मुन्नी का चरित्र चित्रण: मुन्नी इस कहानी में हल्कू की पत्नी है और विद्रोहिणी स्वभाव की है। मुन्नी जमींदार के शोषण के विरोध में आवाज उठाती है। कंवल के
पूस की रात कहानी में मुन्नी का चरित्र चित्रण
मुन्नी का चरित्र चित्रण: "पूस की रात" शीर्षक कहानी हिन्दी के सुप्रसिद्ध और जीवन्त लेखक प्रेमचंद की अत्यंत प्रमुख कहानियों में से एक है। इस कहानी में प्रेमचंद ने जमींदार के अत्याचार से पीडित किसान की दयनीय दशाओ का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है।
मुन्नी इस कहानी में हल्कू की पत्नी है और विद्रोहिणी स्वभाव की है। मुन्नी जमींदार के शोषण के विरोध में आवाज उठाती है। वह संवेदनशील स्त्री के रूप दिखाई देती है जिसने तीन रुपये कंबल खरीदने के लिए छिपा कर रखे हैं जिससे पूस माघ की ठिठुरन से बचा जा सके- " मुन्नी झाडू लगा रही थी। पीछे फिरकर बोली- तीन ही तो रुपये हैं, दे दोगे तो कम्मल कहाँ से आवेगा ? माघ - पूस की रात हार में कैसे कटेगी ? उससे कह दो, फसल पर दे देंगे। अभी नहीं।” मुन्नी उपर से कोमल पर अंदर से फौलाद की तरह दृढ़ और कठोर है। मुन्नी एक स्वाभिमानी स्त्री है जो घर के अंदर ही सिर्फ अत्याचार के विरुद्ध खड़ी होती है।
मुन्नी एक व्यवहारिक नारी है, वह समाज की मान-मर्यादा को ध्यान में रखते हुए जल्दी ही रुपये देने को तैयार भी हो जाती है । मुन्नी अपने पति हल्कू की अनुगामिनी है, वह हल्कू के अनुसार ही कार्य करती है। मुन्नी जीवन के कई रंग देख चुकी है, इसलिए वह अनायास ही जीवन की सच्चाई कह देती है "न जाने कितने बाकी हैं जो किसी तरह चुकने में ही नहीं आते ।" यह वह जमींदार द्वारा तकाजा करने पर कहती है।
मुन्नी घर में होने वाले नुकसान को नहीं देख सकती और साथ ही वह खेती के कार्य से अच्छा काम मजदूरी समझती है, क्योंकि मजदूरी में किसी से ऋण नहीं लेना पड़ता । मुन्नी ऋण को बुरा समझती है और ऋण के बोझ तले नहीं दबना चाहती दयनीय दशा में भी मुन्नी अपना धैर्य नहीं खोती। वह हल्कू से कहती है, "मैं कहती हूँ, तुम क्यों नहीं खेती छोड़ देते ? मर-मर काम करो, उपज हो तो बाकी दे दो, चलो छुट्टी हुई। बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जन्म हुआ है। पेट के लिए मजूरी करो। ऐसी खेती से बाज आये। मैं रुपये न दूँगी - न दूँगी।"
उन बातों से और बात करने के अंदाज से उसके दृढ़ व्यक्तित्व का पता भी चलता है। इसके बाद अंतिम भाग में मुन्नी पुनः आती है, जब खेत नष्ट हो जाने के बाद वह सवेरे अपने पति हल्कू के पास पहुँचती है और उसे जगाती है। यहाँ उसका दूसरा रूप सामने आता है। खेत नष्ट हो जाने से यहाँ वह चिंतित नजर आती है। लेकिन प्रेमचंद ने इस चरित्र का अधिक विस्तार नहीं किया है।
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