हल्कू का चरित्र चित्रण: हल्कू 'पूस की रात' कहानी का केंद्रीय चरित्र है । वह गरीब किसान है। उसके पास कुछ खेती लायक जमीन है। जमीन कितनी है, इसका विवरण प
पूस की रात कहानी में हल्कू का चरित्र चित्रण
हल्कू का चरित्र चित्रण: हल्कू 'पूस की रात' कहानी का केंद्रीय चरित्र है । वह गरीब किसान है। उसके पास कुछ खेती लायक जमीन है। जमीन कितनी है, इसका विवरण प्रेमचंद ने नहीं दिया है, लेकिन हल्कू की आर्थिक स्थिति से अनुमान लगा सकते हैं वह बहुत मामूली हैसियत का किसान है और खेती योग्य जमीन भी बहुत कम होगी। जमीन पर जो उपज होती है, वह घर-परिवार के लिए पर्याप्त नहीं है, इसलिए उसे कर्ज लेना पड़ता है। उसकी सारी उपज कर्ज चुकाने में चली जाती है, फिर भी वह ऋण से मुक्त नहीं हो पाता। इसलिए उसे मजदूरी करनी पड़ती है, यद्यपि "मजूरी" से बचाए पैसे भी उसे महाजन को देने पड़ते हैं।
आर्थिक दीनता ने हल्कू के मन को दीन नहीं बनाया है लगातार शोषण ने उसे धीर-धीरे किसानी के प्रति उदासीन अवश्य बना दिया है। हल्कू के स्वभाव का परिचय हमें कहानी की शुरूआत से ही लग जाता है। जब सहना कर्ज माँगने आता है, तब उसकी पत्नी 'मजूरी' से बचाए तीन रुपये देने को तैयार नहीं होती। जबकि हल्कू का दृष्टिकोण ज्यादा व्यावहारिक है । वह जानता है कि इससे बचने का कोई उपाय नहीं है। अगर अभी वह रुपया नहीं देगा तो उसे गालियाँ और घुड़कियाँ सहनी पड़ेंगी - "हल्कू एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ा रहा। पूस सिर पर आ गया, कम्मल के बिना हार में रात को वह किसी तरह सो नहीं सकता। मगर सहना मानेगा नहीं, घुड़कियाँ जमावेगा, गालियाँ देगा । बला से जाड़ों में मरेंगे, बला तो सिर से टल जाएगी, यह सोचता हुआ वह अपना भारी भरकम डील लिए हुए (जो उसके नाम को झूठा सिद्ध करता था) स्त्री के समीप आ गया और खुशामद करके बोला- ला दे दे, गला तो छूटे । कम्मल के लिए कोई दूसरा उपाय सोचूँगा।" जब वह यह बात मुन्नी को कहता है तो मुन्नी कहती है "गाली क्यों देगा, क्या उसका राज है।" मुन्नी सूदखोर महाजनों और जमींदारों की ताकत को भले न जानती हो या जानते हुए भी अनजान बनने का दिखावा कर रही हो लेकिन हल्कू इस ताकत को जानता समझता है। वह भली-भाँति जानता है कि इनसे बचने का कोई रास्ता नहीं है।
हल्कू एक समझदार किसान है। वह समाज के अंतर्विरोध को बखूबी समझता है। वह जानता है कि समाज में ऐसे लोग भी है जिनके पास हर तरह की सुख-सुविधाओं के साधन मौजूद हैं। लेकिन ये साधन उन लोगों के पास हैं जो स्वयं मेहनत नहीं करते, जो किसानों की मेहनत का लाभ उठाते हैं- "यह खेती का मजा है। और एक–एक भागवान् ऐसे पड़े हैं, जिनके पास जाड़ा जाय तो गरमी से घबड़ाकर भागे। मोटे-मोटे गद्दे, लिहाफ, कम्मल । मजाल है, जाड़े का गुजर हो जाय। तकदीर की खूबी है। मजूरी हम करें, मजा दूसरे लूटें!" लेकिन हल्कू इसके सही और मूल कारण को पहचानने में असमर्थ है। वह उसे " तकदीर की खूबी समझता है। यानी कि जो दूसरों की मेहनत पर मज़े कर रहे हैं, वे भाग्यशाली हैं और हम जो मेहनत करके भी भूखे मर रहे हैं, हमारा भाग्य ही खराब है। शोषण को भाग्य का खेल समझने के कारण हल्कू के पास शोषण से बचने का कोई अन्य रास्ता नहीं है । इसीलिए वह सोचता है कि अगर खेती में भी शोषण होना है तो ऐसी खेती से चिपके रहने का क्या लाभ? दूसरे, वह यह भी सोचता है कि जब लोग मेहनत न करके भी सुखी हैं, तो फिर मेहनत करते रहने का क्या मतलब? इस तरह का लगातार शोषण उसकी चेतना को कृषि और श्रम दोनों से उदासीन बना देता है। हल्कू की यही मानसिकता खेत पर उसके सारे व्यवहार में अभिव्यक्त होती है।
खेत पर वह अपनी उपज की देखभाल करने के लिए आया है। उसके साथ उसका कुत्ता है, जिसके साथ उसका व्यवहार उसके हृदय की मानवीयता और पवित्रता को व्यक्त करता है। जैसा कि प्रेमचंद ने स्वयं कहानी में लिखा है, गरीबी ने हल्कू की आत्मा को आहत नहीं किया है। इसलिए वह अपने को सर्दी से बचाने के लिए जितना चिंतित है, उतनी ही चिंता जबरा को लेकर भी है। हल्कू के खेत में जब नीलगायें आ जाती हैं, तब हल्कू उठकर नहीं जाता। पहले वह सोचता है कि जबरा के रहते कोई जानवर खेत में जा ही नहीं सकता। फिर वह उठता भी है तो दो-तीन कदम चलकर ठंड के बहाने से पुनः बैठ जाता है। यह जानते हुए कि नीलगायें खेत चर रही हैं, वह चादर ओढ़कर सो जाता है। उसका यह व्यवहार निश्चय ही उसके पहले के व्यवहार से भिन्न है लेकिन अगर हम कहानी के पहले भाग पर गौर करें तो हम यह आसानी से समझ सकते हैं कि इस व्यवहार का क्या कारण है? वस्तुतः हल्क लगातार शोषण से परेशान होकर जिस मानसिकता से गुजर रहा है, उसी का नतीजा है कि वह अपनी ही मेहनत से उपजाई फसल को बचाने की कोशिश नहीं करता। निश्चय ही हल्कू स्वयं इस व्यवहार के लिए उत्तरदायी नहीं है। परिस्थितियों ने उसे ऐसी स्थिति में पहुँचा दिया है। ये परिस्थितियाँ हैं, किसान का लगातार शोषण। वह अशिक्षित है, धार्मिक आतंक और अंधविश्वास के कारण भाग्यवादी है, गरीब है, इसलिए वह कथित उच्चवर्गीय महाजनों और जमींदारों के चंगुल में फँसा हुआ है। शोषण के चक्र से वह कैसे मुक्त हो, यह नहीं जानता, इसलिए वह किसानी करने की लाचारी से ही मुक्त होने की सोचता है। स्पष्ट ही उसकी मानसिकता किसान के भयावह शोषण को ही उजागर करती है और इस अर्थ में हल्कू की यह मानसिकता केवल हल्कू की मानसिकता नहीं रहती। गरीब मेहनतकश की मानसिकता बन जाती है । हल्कू का चरित्र इसी अर्थ में एक वर्गीय चरित्र है।
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