कल्याणकारी राज्य का क्या अर्थ है कल्याणकारी राज्य के कार्यों का वर्णन कीजिये। लोक कल्याणकारी राज्य का उद्भव तथा विकास को स्पष्ट कीजिये। लोक कल्याणकार
लोक कल्याणकारी राज्य अर्थ, परिभाषा, कार्य तथा उद्देश्य
- कल्याणकारी राज्य का क्या अर्थ है कल्याणकारी राज्य के कार्यों का वर्णन कीजिये।
- लोक कल्याणकारी राज्य का उद्भव तथा विकास को स्पष्ट कीजिये।
- लोक कल्याणकारी राज्य पर एक निबंध लिखिए।
- भारत की एक कल्याणकारी राज्य के रूप में व्याख्या कीजिये।
- लोक कल्याणकारी राज्य के प्रमुख लक्षणों का वर्णन कीजिए
- एक लोक कल्याणकारी राज्य के उद्देश्य का वर्णन कीजिये।
लोक कल्याणकारी राज्य का अर्थ (meaning of welfare state in hindi)
आज के युग में लोक कल्याणकारी सिद्धान्त विश्व के विभिन्न राज्यों में एक प्रचलन जैसा हो चला है । यही कारण है कि विश्व के करीब-करीब सभी देश चाहे वहाँ प्रजातन्त्रातम प्रणाली हो अथवा कोई अन्य प्रणाली हो, अपने को लोक कल्याणकारी राज्य कहते हैं। लोक कल्याणकारी राज्यों में नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार (Fundamental Right) दिये जाते हैं, जो राज्य के हस्तक्षेप से वर्जित होते हैं।
कल्याणकारी राज्य आज इतना लोकप्रिय हो गया है कि अनेक विद्वानों ने असके अर्थ को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। अतः अनेक विद्वानों ने इसकी परिभाषा भी की है।
डा० अब्राहम ने कहा है-"कल्याणकारी राज्य वह है जो अपनी आर्थिक व्यवस्था का संचालन आय के अधिकाधिक समान वितरण के उद्देश्य से करता है।" गारनर के अनुसार-"कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य राष्ट्रीय जीवन, राष्ट्रीय धन तथा जीवन के भौतिक, बौद्धिक तथा नैतिक स्तर को विस्तृत करना है।" कांट ने कहा है कि कल्याणकारी राज्य का अर्थ उस राज्य से है जो अपने नागरिकों के लिये अधिकतम सामाजिक सविधायें प्रदान करे।"
इसी प्रकार अन्य विद्वानों ने जैसे मैकाइवर (Macdver), हॉब्सन ने भी इसके अर्थ को परिभाषित किया है। इस प्रकार लोक कल्याणकारी राज्य अपने नागरिकों के मानसिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक तथा अन्य पहलुओं को विकसित करने का प्रयास करता है। इसका सम्बन्ध नागरिकों के सर्वांगीण विकास से है । इसका उद्देश्य सामाजिक शोषण का अन्त करना और कलात्मक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करना है।
लोक कल्याणकारी राज्य का उद्भव तथा विकास
लोक कल्याणकारी राज्य का उद्भव 19वीं शताब्दी के बाद माना गया है। 19वीं शताब्दी तक उत्तर्राष्ट्रीय जगत् में 'पुलिस राज्य' (Police State) की अवधारणा थी। राज्य ने अपने को केवल कानून तथा व्यवस्था तक ही सीमित रखा था। लाक कल्याण का दायित्व व्यक्तियों पर था । 'पुलिस राज्य' की अवधारणा के बावजूद राज्यों ने व्यक्तियों के कल्याण के लिये बहुत कुछ किया जो किसी न सिकी रूप में कल्याणकारी राज्य की उत्पति में काफी सहायक साबित हुआ । जैसे नागरकिों के कल्याण सम्बन्धी राज्य में उन कामों को हम निम्नलिखित रूप में रख सकते हैं।
1. इंगलैन्ड का गरीबों-कानून अधिनियम (Poor Law Act)
इंगलैन्ड में सबसे पहले रानी एलीजाबेथ (प्रथम) के शासन काल में गरबी कानून अधिनियम पारि हुआ । इस कानून के निर्माण से सबसे पहले लोक-कल्याणकारी राज्य की शुरुआत इंगलैन्ड में हुई । इस कानून के द्वारा भिखमंगों, अपाहिजों और अनाथें की सेवा तथा पालन पोषण के लिये विशेष रूप से ध्यान दिया गया।
2. नेपोलियन तृतीय का योगदान (Contribution of Nepolean III)
फ्रांस में नेपोलियन (III) ने सामाजिक हित सम्बन्धी ऐसे अनेक कार्य किये जिससे फ्रांस में भी लोक कल्याण की भावना का काफी विकास हुआ । नेपोलिय तृतीय ने अपने देश के नागरिकों को खुश करने के लिये सार्वजनिक मताधिकार, मजदूर संघ, मजदूरी में वृद्धि और गृह एवं राज्य-सहायता प्राप्त बीमा योजना के सिद्धान्तों को कार्य रूप दिया । इन सारे कार्यों से लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना में काफी सहायता मिली।
3. विस्मार्क का योगदान (Coutribution of Bismarck)
जर्मनी में बिस्मार्क ने भी लोक कल्याण के सिद्धान्त का प्रयोग किया। उसने बीमारी बुढ़ापा तथा दुर्घटना सम्बन्धी सामाजिक बीमा की योजनाओं को लागू कर सामाजिक नीतियों को क्रियान्वित किया । लोक कल्याण की भावना को इससे काफी सहायता मिली। क्योंकि बिस्मार्क की देखा देखी प्रगति वादियों ने भी सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी अनेक विधियों को लागू किया।
4. लोक कल्याण के प्रति सामाजिक चेतना का विकास (Evolution of Social Conssciousness for Welfare State)
इंगलैन्ड जैसे देशों में लोक-कल्याण के सिद्धान्त के प्रति सामाजिक चेतना का विकास हुआ। डिफेन्स, क्रिश्चियन समाजवादी नेता किंग्सले और डिज़रैली जैसे राजनीतिज्ञों ने लोक-कल्याणकारी राज्य के सिद्धान्त के विकास में एतिहासिक भूमिका निभाई । इंगलैन्ड के समाजवादियों ने तथा मजदूर संघों ने इस दिशा में प्रमुख रूप से कार्य किया। प्रधान मंत्री जायड जार्ज ने सामाजिक बीमा योजना को सबसे पहले क्रियान्वित किया । प्रधानमंत्री एटली ने अपने शासन काल में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (National Health Service) की स्थापना की तथा रेलवे यातायात, खान, इस्पात और बैंकों का राष्ट्रीयकरण कराया । आज भी इंगलैन्ड लोक कल्याणकारी सिद्धान्त के विकास में और इसे पहल करने में आगे है।
5. राष्ट्रपति रूजवेल्ट और टूमैन का योगदान (Contribution of President Roosevelt and Trumann)
प्रारम्भ में अमेरिका ने लोक कल्याणकारी नीति का विरोध किया । बहुत से अमेरिकियों की यह धारणा थी कि लोक कल्याणकारी नीति राज्य को दिवालिया बना सकती है। परन्तु इसके बावजूद भी अमेरिका में बहुत से ऐसे कार्य किये गये हैं जो लोक कल्याणकारी नीति के अन्तर्गत आते हैं। जैसे राष्ट्रपति रुजवेल्ट की 'नयी नीति' (New Deal) तथा राष्ट्रपति ट्रमैन की 'उचित नीति' (Fair Deal) सम्बन्धी विचार, जिसके अन्तर्गत अमेरिका में लोक कल्याणकारी योजनाओं को अपनाया गया। वहाँ सामाजिक सुरक्षा (Social Sicurity) और निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई है । वृद्धाश्रम (Old Age Home) इत्यादि भी लोक कल्याण के क्षेत्र में ही आते हैं।
6. भारत का योगदान (Contribution of India)
लोक कल्याणकारी राज्य के उद्भव एवं विकास में भारत का भी महान योगदान रहा है । वेस तो भारत में लोक कल्याण को प्रथा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। परन्तु राज्य से सम्बन्धित लोक कल्याण के कार्य ब्रिटिश शासन काल से शुरू होता है। जबकि सती प्रथा, बाल विवाह से सम्बन्धित कानूनों का निर्माण किया गया । इसकी चर्चा भले अध्याय में किया जा चुका है। परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamlte) तथा नीति निर्देशक तत्वों (Directive Principles of the State Policy) के अन्तर्गत इसकी उद्घोषणा की गई । भारत का उद्देश्य एक लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना है । भारतीय संविधान की धारा 38 में लोक कल्याण सम्बन्धी सिद्धान्तों की विवेचना की गई है। धारा 29 से 51 तक उन तमान नीतियों की चर्चा की गई है जिन्हें अपनाकर एक लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना की जा सकती है। इसके अन्तर्गत जीवन निर्वाह के पर्याप्त साधन, भौतिक साधनों का स्वाभित्व, सामाज्य स्वास्थ्य में वृद्धि, बेकारी, बुढ़ापा तथा अंग भंग की स्थिति में सार्वजनिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार कुटीर उद्योगों का विकास, बच्चों के स्वास्थ्य तथा उनकी सुकुमा रावस्था के दुरुपयोग पर रोक तथा स्त्रियों से सम्बन्धित कार्यक्रम इत्यादि का प्रावधान किया गया है। सरकार इस ओर काफी ध्यान भी दे रही है। आज भी भारत में ग्राम पंचायतों की स्थापना, बेरोजगारी को दर करने के उपाय तथा बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा इत्यादि कार्य क्रियान्वित पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
इस प्रकार राज्य का लोक कल्याणकारी सिद्धान्त आज काफी लोक प्रिय हो गया है। विश्व के अन्त राज्यों ने भी लोक कल्याण कारी योजनाओं को व्यापक रूप में लागू किया है। लोक कल्याणकारी सिद्धान्त आज विश्व के राज्यों के अस्तित्व के लिये आवश्यक हो गया है।
लोक कल्याणकारी राज्य की विशेषतायें / लक्षण
1. लोक कल्याण की भावना राज्य का उत्तरदायित्व है :- 'लोक कल्याण' एक ऐसा शब्द है जो नागरिकों के लिये बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। लोक कल्याण की मांग नागरिकों का अधिकार है। यदि कोई भी राज्य लोक कल्याण सम्बन्धी बातें करता है तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह नागरिकों पर कोई उपकार करता है। राज्य इन लोक कल्याण सम्बन्धी कार्यों को इस लिये करता है कि यह उसका उत्तरदायित्व है । व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करके ही राज्य अपने अस्तित्व की रक्षा कर सकता है।
2. लोक कल्याण राज्य का प्रमुख सिद्धान्त है :- लोक कल्याण की भावना राज्य का उत्तरदायित्व ही नहीं वरन् इसका महत्वपूर्ण सिद्धान्त भी है । लोक-कल्याणकारी राज्य की एक विशेषता है कि राज्य के अन्तर्गत समाज तथा राज्य में अभिन्न सम्बन्ध होता है। इसमें एक व्यक्ति का हित दूसरे व्यक्ति का हित होता है । इसलिये लोक कल्याणकारी राज्य की सफलता के लिये देश के नागरिकों में सामुदायिक भावना का विकास होना चाहिये ।
3. दरिदता तथा अभाव का उन्मूलन करना लोक कल्याणकारी राज्य की मुख्य विशेषता है :- यदि नागरिकों में दरिद्रता, अभाव आदि की भावना आती है तो लोक कल्याणकारी राज्य कभी अपने उद्देय प्राप्त नहीं कर सकता।
4. लोक कल्याणकारी राज्य का नारा नागरिकों का सर्वांगीण विकास है :- यह नागरिकों के मन भय और अभाव को ही दूर नहीं करता वरन् व्यक्ति का ध्यान 'पालने से कब्र तक' (From the Cradle to the grave) करता है। बच्चा के जन्म से पहे माँ का स्वास्थ्य तथा पैदा होने पर बच्चों के स्वास्थ्य, पढ़ाई आदि की समुचित व्यवस्था करता है। बच्चा जब बड़ा होकर देश का नागरिक बनता है उस समय भी राज्य उसकी व्यवस्था करता है । यह नागरिकों के नागरिक जीवन से लेकर सामाजिक आर्थिक, धार्मिक तथा अन्य पहलुओं को भी विकसित करने का प्रयास करता है।
लोक कल्याणकारी के राज्य उद्देश्य
कल्याणकारी राज्य के उद्देश्य और राज्य के उद्देश्य के बीच आज अन्तर करना बहुत ही कठिन है। क्योंकि आज सभी राज्य अपने को कल्याणकारी राज्य की संज्ञा देते हैं। इस प्रकार यदि देखा जाये तो कल्याणकारी राज्य का प्रमुख उद्देश्य अपने नागरिकों का सर्वांगीण विकास है।
1. एक लोक कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक न्याय को सही दिशा में आगे बढ़ाना है। एक कल्याणकारी राज्य के लिये परिवर्तन एक सार्वभौमिक तथा सार्वकालिक प्रक्रिया है। भारत में संचालित हो रही पंचवर्षीय योजनायें तथा समाज कल्या के कार्यक्रम सामाजिक विकास के ही प्रयास हैं । अतः लोक कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य समाज में कुछ रचनात्मक परिवर्तनों को प्रारम्भ करना जिसमें पुरानी प्रथाओं का उन्मूलन तथा नई परम्पराओं की स्थापना सहित कुछ प्रवर्तित संस्थाओं को बदलना भी शामिल है।
2. लोक कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य सामाजिक विाकस के महत्वपूर्ण निर्धारक तत्वों या निर्देशकों (Indicators) में जीवन स्तर में परिवर्तन करना, गरीबी उन्मूलन, शिक्षा में वृद्धि, रोजगार में वृद्धि, सामाजिक न्याय में वृद्धि, रोगार में वृद्धि, सामाजिक न्याय में वृद्धि तथा विस्तार समाज कल्याण, जीवन की विविधताओं तथा विषमताओं से सुरक्षा समाज कल्याण सेवाओं तथा सुविधाओं में सुधार, स्वास्थ्य सुधार तथा विकास, पर्यावरण संरक्षण तथा विस्तार, सामाजिक, क्षेत्रीय तथा भौगोलिक असमान्ताओं का उन्मूलन जैसे कार्यक्रमों में सभी की सहभागिता लेकर कार्य करना ताकि गुणात्मक तथा संरचनात्मक परिवर्तन सम्मिलित हो सके।
3. कल्याणकारी राज्य के उद्देश्यों में समानता, न्याय, स्वतन्त्रता, तार्किकता तथा व्यक्तिवाद का मुख्य स्थान रहा है।
4. लोक कल्याणकारी राज्य का मुख्य उद्देश्य यह भी है कि सुनियोजित ढंग से 'सामाजिक परिवर्तन' लाना है तथा सामाजिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है- सामाजिकम न्याय । सामाजिक न्याय की अवधारणा लोकतन्त्र तथा लोक कल्याणकारी राज्य के उदय तथा मानवधिकारों की विश्वव्यापी लोकप्रियता के कारण पल्लवित हुई थी।
5. सामाजिक न्याय के अन्तग्रत यह कहा जाता है कि सभी व्यक्ति जन्म से एक समान हैं और सभी में मानवीय गरिमा तथा गौरव का भाव है । लोक कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य इसी सामाजिक न्याय की स्थापना करना है।
इस प्रकार यदि देखा जाये तो कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाना है।
लोक कल्याणकारी राज्य के कार्य (lok kalyanakari rajya ke karya)
लोक कल्याणकारी राज्य के कार्यों का जहाँ तक प्रश्न है, ये ऐसे कार्य हैं जो राज्य की सफलता के लिये आवश्यक हैं।
1. प्रशासक तथा जनता की दूरी कम करना:-लोक कल्याणकारी राज्य को कार्यों में सबसे महत्वपूर्ण है प्रशासक और जनता की दूरी कम करना । और यह तभी सम्भव हो सकता है जब सामाजिक प्रशासन के कार्यों को लोक कल्याण के कार्य से जोड़ा जाये ।
2. सामाजिक न्याय को अवधारणा :-लोक कल्याण का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य है सामाजिक न्याय की अवधारणा को आगे बढ़ाना । लोक तन्त्र तथा लोक कल्याणकारी राज्यों में सामाजिक न्याय की अवधारणा तेजी से पनपी है । इसके लिये जाति, धर्म, वंश, लिंग, प्रजाति, रंग तथा नरल सहित अन्य बहुत से आधारों पर व्यक्ति-व्यक्ति का भेद समाप्त करना चाहती है । सामाजिक न्याय के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों नीति निर्देशक तत्वों, सामाजिक विधानों, सामाजिक नीति तथा सामाजिक नियोजन के माध्यम से इसकी प्राप्ति का प्रयास किया जाता है।
3. सामाजिक नीति का निर्धारण कारना -लोक कल्याणकारी राज्य का एक और प्रमुख कार्य सामाजिक नीति से सम्बन्धित है। सामाजिक नीति के अन्तर्गत अनेक कल्याणकारी नीतियों सम्मिलित हैं जिनमें आरक्षण नीति (Reservation Polic) सर्वोच्च है। अन्य नीतियों में बाल नीति, आवास नीति, शिक्षा नीति, एवं स्वास्थ्य नीति इत्यादि प्रमुख है जो सामाजिक न्याय के सिद्धान्तों की प्राप्ति की प्रति के लिये आवश्यक हैं।
4. सामाजिक विधान बनाना :-सामाजिक विधान वे कानून हैं जो समाज में व्याप्त कुरीतियों तथा सामाजिक समस्याओं जैसे-छूआछुत, बाल विवाह, सती प्रथा, बालश्रम, वैश्यावृत्ति तथा बंधुआ मजदूरी इत्यादि पर प्रभावी रोक लगाने के लिये निर्मित किये गये हैं। और लोक कल्याणकारी राज्य का यह कर्त्तव्य होता है, यह कार्य होता है कि वह उपर वर्णित सामाजिक विधान को राज्यों में लागू करे।
5. सामाजिक नियोजन करना :- लोक कल्याणकारी राज्य का यह कार्य है कि वह सामाजिक नियोजन द्वारा राज्य के कार्यों को सम्पन्न करे । सामाजिक नियोजन के द्वारा समाज कल्याण के विशिष्ट कार्यक्रम तथा योजनायें संचालित की जाती हैं, जिसे समाज के दुर्बल तथा भेदभाव के शिकार व्यक्तियों को समाज की मूलधारा में लाया जा सके।
6. जन सहयोग :-जन सहयोग लोक कल्याणकारी राज्य का प्राण है । चूँकि एक लोक कल्याणकारी राज्य अपने चरम उद्देश्य की प्राप्ति के लिये अनेक नीतियों और योजनाओं का संचालन करता है इसलिये इसका यह महत्वपूर्ण कार्य है कि वह जन-सहयोग की सहायता से अपने कार्यक्रम को आगे बढ़ाये । क्योंकि कल्याणकारी योजनाओं की सफलता के लिये जनता का योगदान व्यावहारिक होना चाहिये ।
7. सफलताओं का मूल्यांकन करना :-लोक कल्याणकारी राज्य का यह भी एक महत्वपूर्ण कार्य है कि जो भी कार्य किये जा रहे हैं उनका सही मूल्यांकन किया जाये ।
8. सार्वजनिक वित्त का सदुपयोग :-हर लोक कल्याणकारी राज्य को जनता का धन खर्च करने में सावधानी बरतनी चाहिये । अतः यह उसका कार्य है कि वह सार्वजनिक वित्त का सही-सही उपयोग करे । व्यर्थ खर्च को कम करे ताकि कल्याणकारी कार्यों पर खर्च होनेवाले सार्वजनिक धन से जनता को अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो सके।
इस प्रकार यदि लोक-कल्याणकारी राज्य के कार्यों को देखा जाये तो इसमें इतने सारी कार्य आते हैं कि यदि इसका वर्णन किया जाये तो समाप्त ही नहीं होगा। लोक कल्याणकारी राज्य का आदर्श ही आधुनिक युग में विभिन्न राज्यों के कार्यों का आधार है। वैसे लोक कल्याणकारी राज्य के कार्यों में बाधायें अनेक हैं, लेकिन यदि बाधाों और समस्याओं का सामाधान कर लिया जाता है तो वह राज्य बहुत आगे बढ़ सकता है। भारत के सन्दर्भ में भी यह सही बैठता है।
भारत की एक कल्याणकारी राज्य के रूप में व्याख्या कीजिये।
आधुनिक विश्व में अधिसंख्यक सरकारें लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आधारित हैं तथा शासन का स्वरूप जनहितकारी अधिक है । वस्तुतः लोक कल्याणकारी राज्य का उदय उस प्रगतिशील विचारधारा का प्रसार है जो मानव विकास तथा कल्याण को सर्वोच्च स्थान प्रदान करती है । बहुजन हितायः बहुजन सुखय की मूल मान्यता पर आधारित लोक कल्याणकारी राज्य का दर्शन मानवतावादी है जो व्यक्ति के सर्वांगीण विकास को सर्वाधिक महत्व देता है। और इसी सन्दर्भ में भारत सरकार द्वारा कल्याणकारी राज्य की स्थापना की गई है। और भारत सरकार द्वारा कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिये स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से ही सतत प्रयत्न किये जा रहे हैं।
जहाँ तक भारत का प्रश्न है सामाजिक प्रशासन या कल्याण प्रशासन की मूल प्रकृति जनहितकारी ही है। लोक कल्याणकारी राज्य में राज्य के दायित्व बहुत गम्भीर तथा व्यापक होते हैं क्योंकि ऐसा राज्य उन पिछड़े, दीन हीन, पतित अक्षम, नि:शक्त तथा प्रताड़ित किये गये व्यक्तियों का विकास, पुनर्वास तथा सुरक्षा सुनिश्चित करता है, जो समाज की दृष्टि में किंचित् निम्नलिखित माने जाते हैं। महिलायें बच्चे निःशक्त, नशेड़ी, वृद्ध, असहाय, अदिवासी तथा पिछड़ी, जातियों के नागरिकों को सम्मानित जीवन प्रदान करना सरकार को मुख्य दायित्व है। भारत ने स्वतंत्रता के उपरोक्त इस ओर पूरा ध्यान दिया है । सामाजिक प्रशासन के अन्तर्गत एक कल्याणकारी राज्य की भूमिका निभाते हुये भारत के संविधान में वर्जित नीति निर्देशक तत्व राज्य से यह अपेक्षा करते हैं कि वह श्रमिकों, वृद्धों, महिलाओं, बच्चों, असहायों तथा अन्य सभी नियोग्यिताग्रस्त लोगों को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करे । इस क्रम में पण्डित जवाहर लाल नेहरू का मानना था-"हमारा अन्तिम लक्ष्य सबके लिये सामाजिक आर्थिक न्याय एवं अवसर सहित वर्गहीन समाज ही हो सकता है-एक ऐसा समाज हो मानव जाति को उच्चतर भौतिक एवं सांस्कृतिक स्तरों को ओर उठाने, आध्यात्मिक मूल्यों, सहयोग, निस्वार्थ सेवा भावना को परिष्कृत करने, स्नेह, सद्भाव एवं न्याय की इच्छा और अततः एक विश्व व्यवस्था को जन्म देने के लिये नियोजित आधार पर संगठित हो।"
इस प्रकार आधुनिक भारत ने स्वतन्त्रता के बाद से ही कल्याणकारी राज्य की स्थापना का धेय अपने सामने रख लिया था। भारत के संविधान (1950) में ही उसकी प्रस्तावना में लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना का धेय सामने रखकर उस पर कार्य की शुरूआत कर दी गई थी।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अन्तर्गत अनुच्छेद 36 से 51 के अन्तर्गत ऐसे बहुत से प्रावधान किये गये हैं जिससे सामाजिक कल्याण के कार्य को आगे बढ़ाया जाये । अनुच्छेद 38 में लोक कल्याण सम्बन्धी सिद्धान्तों की विवेचना की गई है । अनुच्छेद 39 से 51 तक उन तमान नीतियों की चर्चा की गई है जिन्हें अपनाकर एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की जा सकती है। उनके अन्तर्गत जीवन निर्वाह के पर्याप्त साधन, भौतिक साधनों का स्वाभित्व, सामान्य स्वास्थ्य में वृद्धि, बेकारी बुढ़ापे तथा अंग भंग की स्थिति में सार्वजनिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार, कुटीर उद्योगों का विकास कृषि तथा पशुपालन का विकास, बच्चों की सकुमारावस्था के दुरुपयोग पर रोक, सामाजिक और आर्थिक न्यास पर आधारित सामाजिक व्यवस्था, पुरुषों और स्त्रियों को समान कार्य के लिये समान वेतन, सामान्य न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता, कुछ अवस्थाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार, श्रमिकों के लिये निर्वाह मजूरी, बालकों के लिये नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबन्ध इत्यादि ।
इस प्रकार राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अन्तर्गत वे सभी बातों के नीहित हैं जो एक कल्याणकारी राज्य के लिये आवश्यक हैं । केन्द्रीय और राज्य सरकारों ने अपने-अपने साधनों के अनुसार इन निर्देशों का लागू करने का पूरा प्रयास किया है और कर भी रही है। अनुच्छेद 39 (ख) के अन्तर्गत सरकार ने जमींदारी प्रथा को समाप्त करके भूमि को जोतने वालों को भूमिका वास्तविक स्वामी बना दिया है। इस सुधार को करीब-करीब समस्त देश में लागू किया जा चुका है।
इसी प्रकार अनुच्छेद 40 में नीहित निर्देश को कार्यान्वित करने के लिए भी अनेक कानून पारित किये गये हैं और देश के सभी गाँवों में पंचायतों की स्थापना की जा चुकी है। कई राज्यों में नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा लागू करने के लिये कानून पारित कर दिया गया है।
इसी प्रकार श्रमिकों के कल्याण के लिये भी अनेक कानून राज्यों में बनाये गये हैं। इससे श्रमिक वर्गों को काफी फायदा हुआ है और उनके सामाजिक स्तर में काफी अन्तर आया है।
इसके अतिरिक्त संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकारों का जो वर्णन किया गया उससे भी यह पता चलता है कि भारत सरकार द्वारा कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिये प्रयत्न किये जा रहे हैं। यही कारण है कि इसे 'अधिकार पत्र' (Magnacala) कहा जाता है । संविधान में इन अधिकारों का समावेश किये जाने का उद्देश्य उन मूल्यों का संरक्षण है जो एक सवतन्त्र समाज और कल्याणकारी राज्य के लिये आवश्यक हैं।
अनुच्छेद 14 से 18 संविधान प्रत्येक व्यक्ति को समाज का अधिकार प्रदान करता है। भारतीय संविधान के अनु० 19 से 22 तक में भारत के नागरिकों को स्वतन्त्रता सम्बन्धी विभिन्न अधिकार प्रदान किये गये है। अनु० 23-24 शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रदान करता है। इसके अनुसार केवल बेगार ही नहीं बल्कि अन्य किसी भी प्रकारसे जबर्दस्ती श्रम लेने का निषेध किया गया है । अस्पृथ्यता का अन्त भी अनुच्छेद 17 के अन्तर्गत किया गया है । यद्यपि नीति निर्देशक तत्वों के खिलाफ न्यायालय नहीं जाया जा सकता है, परन्तु फिर भी उसे बहुत अधिक मान्यता दी गई । कोई भी राज्य इसकी अवहेलना नहीं कर सकता है।
स्त्रियों के कल्याण के लिये भी संविधान के अन्तर्गत तीन महत्वपूर्ण प्रावधान किये गये हैं। ये मुख्य रूप से स्त्रियों के अधिकार (Right), स्थिति (Status), और कल्याण (Welfare of Women) से सम्बन्धित है। इस दिशा में भी भारत सरकार द्वारा महत्वपूर्ण प्रयास किये गये हैं।
बहुत सारे एक्ट (Act) इस दिशा में भारत सरकार द्वारा पास किये गये जैसे हिन्दू सक्सेशन एक्ट 1950, जिसने स्त्रियों की दशा सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान किया है। दहेज निरोधक एक्ट 1961 भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम कहा जा सकता है।
हिन्दू विवाह ऐक्ट 1955 ने भी स्त्रियों की दशा सुधारने में मदद की है। इससे कोई भी पत्नी कानूनी तौर पर तलाक ले सकती है। इसके अतिरिक्त भी समय-समय पर अन्य ऐक्ट सरकार द्वारा स्त्रियों के लिये पास करके उनकी स्थिति समाज में काफी आगे बढ़ाया है।
जिला परिषद् ऐक्ट के द्वारा स्त्रियों को एक अलग दर्जा प्रदान किया गया है। पंचायत के चुनाव में तो उनके लिये 33% सीट रिजर्व है। बिहार सरकार ने तो इसे 50% किया है।
आधुनिक विधायिकी सहायता द्वारा बच्चों और युवाओं के कल्याण के लिये भी सरकार कृतबद्ध है। इसके लिये अनेक एक्ट भी पास किये गये हैं। क्योंकि राज्य का यह कर्त्तव्य है कि वह बच्चों ही राष्ट्र के भविष्य हैं । अतः भारत सरकार एवं राज्य सरकारों ने उनकी दशा को सुधारने के लिये अनेक कदम उठाये है । अतः बच्चों से सम्बन्धित एक्ट आज पूरे देश में लागू किया गया है।
भारत के पंचवर्षीय योजनाओं में भी लोककलयाण राज्य की झलक देखने को मिलती है। परन्तु फिर भी अभी बहुत कुछ बाकी है करना ।
इस प्रकार जितने में कल्याणकारी कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा एवं राज्य सरकार द्वारा लिये जा रहे हैं उन्हें हम संक्षिप्त में निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है :
1. सामाजिक दृष्टिकोण से पिछड़ा हुआ वर्ग जिन्हें पिछड़ा वर्ग कहा जाता है जिनमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और कुछ और पिछड़ी जातियों या वर्ग आते हैं।
2. स्त्रियों, बच्चों एवं युवाओं के लिये कल्याण के कार्यक्रम।
3. अनाथ, विधवा, बिना शादी शुदा माँ तथा विक्षिप्तम व्यक्तियों के किये उत्थान के लिये कार्यक्रम।
4. मानसिक एवं शारिरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों, जिनमें बहरे, अन्धे, बोल नहीं सकना (बधिर), पूरी तरह से विकलाग, दिमागी तौर पर बीमार, के कल्याण के कार्यक्रम भी सरकार बड़े पैमाने पर चला रही है।
5. आर्थिक रूप से असम्पन्न व्यक्ति के कलयाण के कार्यक्रम।
6. फैक्ट्री में काम करने वाले श्रमिकों के लिये कल्याण के कार्यक्रम।
7. वैसे व्यक्ति जो एक जगह से हटाये गये हैं (Displaced Passus), उनको बसाने की व्यवस्था करना।
उपर दिये गये सभी के लिये कल्याणकारी कार्यक्रम बनाये गये हैं और उन्हें कार्य रूप में परिणित भी करने की व्यवस्था सरकार कर रही है। इनकी जरूरतों को सरकार अब समझने लगी है। बल्कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिये तो ऐसे अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं जिससे उनका आर्थिक स्तर उपर उठ सके । इसके लिये उनके लिये शिक्षा की व्यवस्था, उनके स्वास्थ्य तथा उनके रहने की व्यवस्था भी सरकार द्वारा किया जाता है । इनके लिये सरकारी नौकरियों में (रिजर्वेशन) आरक्षण की भी व्यवस्था की गई है । बल्कि संविधान के अनुच्छेद 338 के अन्तर्गत एक कमिश्नर अनुसूचित जाति और जनजाति के लिये रखे गये हैं। इसके अलावा हरिजन कल्याण (HariganWelfare) और जनजाति कल्याण (Tribal Welfare) बोर्ड भी गठित किया गया है ।
इसी प्रकार नवयुवकों के लिये भी बहुत सारे कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं जैसे N.C.C.,A.C.C., N.D.S. (National Discipline Scheme) इत्यादि ।
अतः अन्त में हम यह कह सकते हैं कि सरकार ने राज्य तथा संघ सरकार दोनों के द्वारा बहुत सारे कार्यक्रम को इनके लिये शुरू किया है। इसके लिये कम पैसों में घर बनाने का इन्तजाम, गन्दी बस्तियों का प्रबन्ध, जिनके पास जमीन नहीं है उनके बीच जमीन का बन्दोबस्त करना, कम से कम श्रमिक की व्यवस्था, (Munimum Wages) । इस प्रकार सरकार के काम की गिनती इतनी है कि यहाँ सबके चर्चा नहीं की जा सकती है। कल्याणकारी राज्य के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये 20 प्वाइंट कार्यक्रम (20 point programme) भी सरकार के द्वारा शुरू किया गया है । इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से युवाओं, स्त्रियों, शिक्षा तथा बच्चों के मृत्यु दर को घटाने की ओर ध्यान दिया गया है। बीस सूत्री कार्यक्रम अधिकतर समाज कल्याण से जुड़े हुये हैं।
परन्तु यदि देखा जाये तो अभी भी अनेक कल्याण से सम्बन्धित कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। बहुत सारे कल्याणकारी राज्यों से सम्बन्धित कार्य सिर्फ दिखावे के लिये हैं । बहुत स्थानों पर प्रशिक्षित (expets) व्यक्तियों की कमी के कारण कल्याणकारी कार्य जनता तक नहीं पहुँच पाते हैं। इसलिये बहुत सारे कार्यों के करने के बावजूद हम पीछे रह जाते हैं। अभी भी 50% से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। शिक्षित लोगों की संख्या भी 36% से ज्यादा नहीं है। स्त्रियों और बच्चों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है। अनुसूचित जाति और जनजाति के भी जीवन में अभी और बदलाव की आवश्यकता है। अतः अभी भी भारत को एक कल्याणकारी राज्य की संज्ञा नहीं दी जा सकती है।
सामाजिक कल्याण और विकास के कार्यक्रमों दोनों का तालमेल (Co-ordinate) आर्थिक विकास के साथ-साथ होना चाहिये तभी कल्याणकारी कार्यक्रम आगे बढ़ सकते है। इसके लिये सरकारी संस्थाओं तथा कल्याणकारी संस्थाओं से सम्बन्धित कल्याणकारी कार्यों में जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, घर, न्याय, श्रम इत्यादि के क्षेत्र में सही तालमेल बैडाया जा सके । पी-डी० कुलकर्नी ने “शोशल पॉलिसी" में जो उनके द्वारा लिखी गई है उसमें कहा है कि “As regards social welfare services, a clear and national policy has to be formilated. While entain encomaging funds in terms of positive, promotive and integrated services have no doult emerged, in operational terms efforts lontinue to the dissipated oer a large and fragnented area. A scheme pattern of welfare services build from the community level upward has yet to be evolved, extended and stablished."
अन्त में हम कह सकते हैं कि सरकार की ओर से कल्याणकारी राज्य की दिशा में काफी प्रयास किये जा रहे हैं और इस प्रयास को जारी रखने से आने वाले समय में इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
लोक कल्याणकारी राज्य पर निबंध
आधुनिक युग में अधिकतर सरकारें लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर आधारित हैं और करीब-करीब सभी सरकारें अपने को कल्याणकारी राज्य की संज्ञा देती है। इसका विकास धीरे-धीरे हुआ है। क्योंकि प्राचीन काल में राज्य को कल्याणकारी राज्य नहीं बल्कि पुलिस राज्य के रूप में जाना जाता था।
धीरे-धीरे लोक कल्याणकारी राज्य की धारणा सामने आई और लोक कल्याणकारी राज्य का उदय उस प्रगतिशील विचारधारा का प्रसार है जो मानव विकास तथा कल्याण को सर्वोच्च स्थान प्रदान करता है। अब राज्य को एक आवश्यक बुराई नहीं बल्कि एक ऐसी परियित्ता समझा जाता है जो मान को समाप्त मूलभूत सुविधायें उपलब्ध करा सकती हैं।
सामाजिक विज्ञानों के विश्वकोष में दी गई परिभाषा के अनुसार लोक कल्याणकारी राज्य से आशय एक ऐसे राज्य से है जो अपने सभी नागरिकों को न्यूनतम जीवन स्तर प्रदान करना अपना एक अनिवार्य दायित्व मानता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि एक लोक कल्याणकारी राज्य लोकतालिक मूल्यों पर आधारित राज्य है जिसका मुख्य धेय है मानव का सर्वांगीण विकास अर्थात् सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक विकास । व्यक्ति के जीवन में हस्तक्षेप एक कल्याणकारी राज्य उसके कल्याण एवं विकास के लिये करता है। मानव समाज में समानता स्वतन्त्रता तथा न्याय की स्थापना करना इसका मुख्य दर्शन है। लोक कल्याणकारी राज्य में राज्य के दायित्व बहुत गम्भीर तथा व्यापक होते हैं, क्योंकि ऐसा राज्य व्यक्तियों का विकास, पुनर्वास तथा सुरक्षा सुनिश्चित करता है जो समाज में निम्नस्तरीय माने जाते है।। अब विश्व स्तर पर एक ऐसी विचारधारा पल्लवित हो रही है जो मानव कल्याण नैतिकता तथा मानवीय गरिमा के विकास के लिये प्रतिबद्ध दिखाइ दे रही है।
भारत में भी सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक न्याय जो कल्याणकारी राज्य का प्रमुख अंग हैं, के लिये अनेक संवैधानिक व्यवस्थायें की गई हैं। संविधान के तीसरे भाग (मौलिक अधिकरों की व्यवस्था) एवं चौथे भाग (राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की व्यवस्था) में लोगों को सामाजिक न्याय प्रदान करने के अनेक उपायों का उल्लेख किया गया है।
संविधान के भाग 3 का अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 15 तथा अनुच्छेद 16 में लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की बात कही गई है । अनुच्देद 17 द्वारा छुआ छूत को तथा अनुच्छेद 24 एवं 25 द्वारा बेबार एवं शोषण को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया है। इस प्रकार संविधान के तीसरे भाग की व्यवस्था के द्वारा यदि एक ओर उन बाधाओं को दूर किया गया है जो सामाजिक न्याय की उपलब्धि में बाधक हैं, तो उसके चौथे भाग की अनेक व्यवस्थाओंद्वारा सामाजिक न्याय सब नागरिको को सुलभ बनाने की व्यवस्था की गई है।
समाजिक नीति के अन्तर्गत अनेक कल्याणकारी नीतियों सम्मिलित हैं। इसमें आरक्षण नीति सर्वोच्च है। भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से समाज कल्याण के विशिष्ट कार्यक्रम तथा योजनायें संचालित की गई है ताकि समाज के दुर्बल तथा भेदभाव के शिकार व्यक्तियों को समाज की मूलधारा में लाया जा सके। इस प्रकार भारत सरकार द्वारा कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिये अनेक प्रयास किये जा रहे हैं।
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