दबाव समूह की कार्यप्रणाली तकनीकों पर चर्चा करें। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए दबाव समूहों द्वारा विभिन्न कार्यप्रणाली या तरीके अपनाये जाते हैं, जिनम
दबाव समूह की कार्यप्रणाली तकनीकों पर चर्चा करें।
अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए दबाव समूहों द्वारा विभिन्न कार्यप्रणाली या तरीके अपनाये जाते हैं, जिनमें निम्न प्रमुख हैं।
दबाव समूह की कार्यप्रणाली
(1) लॉबींग - लॉबींग का सामान्य अर्थ है, 'विधानमण्डल के सदस्यों को प्रभावित कर उनसे अपने हित में कानूनों का निर्माण करवाना'। लॉबींग में व्यवस्थापिका के अधिवेशन के समय किसी विशेष विधेयक को विधि में परिणत करवाने या न करवाने में रुचि ली जाती है। इस उद्देश्य से विधायकों से व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित किया जाता है। इसके अतिरिक्त प्रतिनिधिमण्डल, शिष्टमण्डल, पत्र. तार, टेलीफोन और प्रदर्शन आदि साधनों को भी अपनाया जाता है। दबाव समूह विशेष रूप से गश्चमी देशों में इस साधन का उपयोग करते हैं। संयुक्त राज्य अमरीका में इसका महत्व इतना बढ़ गया है कि 'लॉबी (गोष्ठी कक्ष) को कभी-कभी ‘विधानमण्डल का तीसरा सदन' कहते हैं। इस कार्य हेतु अनेक समूहों के बड़े कार्यालय होते हैं और उनमें हजारों अधिकारी तथा कर्मचारी लगे रहते हैं। ये लॉबीस्ट तीन प्रकार के कार्य करते हैं, सूचनाएँ प्रसारित करते हैं, अपने नियोजनकर्ता के हितों की रक्षा करते हैं तथा विधियों के राजनीतिक प्रभावों को स्पष्ट करते हैं।
(2) प्रचार व प्रसार के साधन - अपने उद्देश्य की प्राप्ति, जनता ने अपने । म सद्भावना का निर्माण करने और उद्देश्य प्राप्ति में सहायक सिद्ध होने वाले लोगों के दृष्टिकोण को अपने पक्ष में करने के लिए विभिन्न दबाव समूह अथवा वर्गीय या आर्थिक हितों के प्रभावशाली संगठन, प्रेम 'डियो, टेलीविजन और सार्वजनिक सम्बन्धों के विशेषज्ञों की सेवाओं का उपयोग करते हैं।
(3) आँकड़े प्रकाशित करना - नीति-निर्माताओं के समक्ष अपने पक्ष को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए दबाव समूह आँकड़े प्रकाशित करते हैं, ताकि अपनी बात को पग करवा सकें।
(4) गोष्ठियाँ आयोजित करना - आजकल दबाव समूह विचार-विमर्श तथा वाद-विवाद के लिए गोष्ठियाँ, सेमिनार तथा भाषणमालाएँ एवं वार्ताएँ आयोजित करते हैं। गोष्ठियों में विधायिका तथा प्रशासिका के प्रमुख अधिकारियों को आमन्त्रित करते हैं और उन्हें अपने मत से प्रभावित करने का प्रयास करते हैं।
(5) रिश्वत, बेईमानी अथवा अन्य उपाय - अपने ध्येयों की रक्षा के लिए दबाव समूह रिश्वत व घूस देने से भी नहीं कतराते। बेईमानी के तरीकों का भी यथासम्भव प्रयोग करते हैं तथा विरुद्ध हितों को अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए बदनाम भी करवा देते हैं। कहीं-कहीं पर तो आवश्यकतानुसार सुरा और सुन्दरी का भी प्रयोग करते हैं। प्रत्येक देश की राजधानी में दबाव समूहों के प्रतिनिधि सक्रिय रूप से क्रियाशील रहते हैं। इन उपायों के प्रयोग में व्यवसायिक दबाव समूह अन्य दबाव समूहों से सदैव आगे रहते हैं।
(6) न्यायालय की शरण - जब दबाव समूह के समस्त प्रत्यनों के बावजूद उनके हितों को आघात पहुँचाने वाला कानून पारित हो जाता है, तब दबाव समूह न्यायालयों में याचिका प्रस्तुत करने अपने पक्ष में निर्णय करवाने का प्रयास करते हैं। उदाहरण के लिए भारत में जब 1969 में 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था, तब बैंकों के संचालकों ने अपने हितों की रक्षा हेतु मौलिक अधिकारों का आश्रय लेकर न्यायालय से अपने पक्ष में निर्णय ले लिया था।
(7) संसद-सदस्यों के मनोनयन में रुचि - दबाव समूह ऐसे व्यक्तियों को चुनाव में दलीय प्रत्याशी मनोनीत करवाने में मदद देते हैं जो आगे चलकर संसद में उनके हितों की अभिवृद्धि में सहायक हों। ऐसा कहा जाता है कि लोकतन्त्रात्मक शासन-व्यवस्था में संसद-सदस्य दबाव समूहों की जेब में होते हैं। चुनावों में संसद-सदस्यों को पैसा चाहिए और अनेक बार यह पैसा दबाव समूह उपलब्ध करवाते हैं।
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