चंपारण सत्याग्रह का विरोध किसने किया था ?
चम्पारण सत्याग्रह 1917 में बिहार के चम्पारण जिला में हुआ था। एन. जी. रंगा ने गांधी जी के चम्पारण सत्याग्रह का विरोध किया था। चंपारण बिहार के पश्चिमोत्तर इलाके में आता है. इसकी सीमाएं नेपाल से सटती हैं. यहां पर उस समय अंग्रेजों ने व्यवस्था कर रखी थी कि हर बीघे में तीन कट्ठे जमीन पर नील की खेती किसानों को करनी ही होगी. पूरे देश में बंगाल के अलावा यहीं पर नील की खेती होती थी. इसके किसानों को इस बेवजह की मेहनत के बदले में कुछ भी नहीं मिलता था
गाँधीजी ने अंग्रेजों (नीलहो) से कहा; "यह तिनकठिया पद्धति गलत है। आप लोग गलत तरीके से लगान की वसूली कर रहे है। गलत तरीके से जबरदस्ती लोगों को नील की खेती करवा रहे है। हमारा संविधान हर किसान को अनुमति देता है कि वह अपना सामान अपने दाम पर बेचे।"
गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। इसी सत्याग्रह के दौरान रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इन्हे ‘माहात्मा’ की उपाधि दी। बापू ने जगह-जगह घूमकर किसानों से बात कर उनपर हुए जुल्मों को कलमबद्ध किया और उन्हें 4 जून को लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एडवर्ड गैट को दे दिया गया। इन बयानों के आधार पर 10 जून को चंपारण कृषि जांच समिति बनी, जिसके एक सदस्य बापू भी थे। काफी विचार-विमर्श के बाद कमेटी ने अक्तूबर में रिपोर्ट जमा की। इस रिपोर्ट के आधार पर 4 मार्च 1918 को गवर्नर-जनरल ने चंपारण एग्रेरियन बिल पर हस्ताक्षर किए और 135 सालों से चली आ रही नील की जबरन खेती की व्यवस्था का अंत हुआ।