शहरीकरण के कारण क्या है : वैसे तो शहरीकरण के अनेक कारण हैं; पर शहरीकरण के कुछ मुख्य कारण नीचे बताए जा रहे हैं तथा शहरीकरण के सभी कारणों की विस्तार से
शहरीकरण के कारण - Causes of Urbanization in Hindi
शहरीकरण के कारण क्या है : वैसे तो शहरीकरण के अनेक कारण हैं; पर शहरीकरण के कुछ मुख्य कारण नीचे बताए जा रहे हैं तथा शहरीकरण के सभी कारणों की विस्तार से चर्चा की गयी है।
शहरीकरण के कारण - Causes of Urbanization in Hindi
- कृषि-सम्बंधी विकासः
- औद्योगीकरणः
- व्यवसाय मंडी के तत्त्व (मारकेट फोर्सिस):
- सेवाओं के केन्द्र :
- सामाजिक-सांस्कृतिक केन्द्रों के रूप में शहरों एवं नगरों का उद्भव :
- यातायात एवं संचार–साधनों में सुधार
- जनसंख्या में प्राकृतिक वृद्धि
1) कृषि-सम्बंधी विकासः कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण होने से पहले की अपेक्षा अब खेतोंमें काम करने वाले श्रमिकों की मांग कम हो रही है। जिन श्रमिकों को खेतों एवं गाँवों में काम नहीं मिलता, वे काम तथा आजीविका की खोज में शहरों की ओर चले जाते हैं। शहरों में जो श्रमिक भवन निर्माण कार्यों अथवा छोटे-मोटे कामों में लगे होते हैं, जैसे कि बोझा ढोने अथवा मजदूरी का काम, या फिर अपना कोई काम शुरू कर लेते हैं, वे अधिकांश रूप से ग्रामीण क्षेत्रों से आए हुए होते हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब राज्य में कुछ दशक पूर्व जब कृपि क्षेत्र में विकास हुआ था तो परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में वहां के ग्रामीण क्षेत्रों के श्रमिक न केवल भारत के दूसरे राज्यों के शहरों की और, बल्कि विश्व के अन्य देशों के शहरों की ओर प्रवासन करने लगे।
2) औद्योगीकरणः यह अधिकांश रूप से शहरों में अथवा उनके आसपास के क्षेत्रों में होता है। औद्योगीकरण से कई नए उत्पाद बाजार में आते हैं, जिसके कारण बड़ी संख्या में लोगों को आजीविका के अवसर मिलते हैं तथा लोग शहरों की सीमाओं से सटे उपनगरों में बसने लगते हैं। भारत के बड़े-बड़े शहरों में बड़ी संख्या में जो कामगार एवं श्रमिक काम करते हैं, वे अधिकांश रूप से ग्रामीण क्षेत्रों से आए हुए प्रवासी होते हैं।
3) व्यवसाय मंडी के तत्त्व (मारकेट फोर्सिस): जब उपभोक्ता सामान बनाने वाले उद्योगों में वृद्धि होती है तो ऐसे शहरों का महत्त्व बढ़ जाता है जो उपभोक्ता बाज़ार के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण होते हैं। शहरों तथा नगरों में उपभोक्ता सामान के बहुत से खरीददार होते हैं, और इसी कारण शहरों तथा नगरों में उपभोक्ता सामान के नए-नए उद्योग लगाए जा रहे हैं। इस प्रकार उद्योग तथा शहर एक-दूसरे की बढ़ोत्तरी में योगदान देते हैं और शहरी विकास स्वयंधारी बन जाता है।
4) सेवाओं के केन्द्र : ज्यों-ज्यों शहर विकसित होते हैं, वैसे-वैसे वहाँ के निवासियों का जीवन-स्तर बढ़ जाता है। इससे व्यापार बढ़ता है तथा तीसरी श्रेणी की सेवाएं शहरों में केन्द्रित हो जाती हैं। ये तीसरी श्रेणी की सेवाएं (टरशिअरी सर्विसिज़) खुदरा, मनोरंजन, खानपान, बैंक, बीमा एवं प्रशासन सेवाएं उपलब्ध कराती हैं।
5) सामाजिक-सांस्कृतिक केन्द्रों के रूप में शहरों एवं नगरों का उद्भव : आजकल राष्ट्रों की अधिकांश सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के केन्द्र उनके शहर एवं नगर बन चुके हैं। हर प्रकार के मनोरंजन के केन्द्र भी ये ही शहर एवं नगर हैं। जिन शहरों तथा नगरों में अच्छे सिनेमाघर, नाट्यशालाएं, कला विधियां, संग्रहालय तथा सार्वजनिक उद्यान होते हैं, वे शहर तथा नगर जनसंख्या को बड़ी संख्या में आकर्पित करते हैं। कई लोग तो शहरी जीवन के बीचोंबीच रहना पसंद करते हैं। विभिन्न प्रकार की सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के केन्द्र होने के कारण शहर कई सारे अवसर प्रदान करते हैं। सफलता की संभावना अधिक होने के कारण, शहरी जीवन की ओर बहुत-से लोग आकर्पित होते हैं। परन्तु, इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि शहर तथा नगर अधिकतर भीड़-भाड़ से भरे होते हैं।
6) यातायात एवं संचार–साधनों में सुधार : राष्ट्रीय विकास का मुख्य लक्ष्य होता है, मूलभूत सुविधाओं में सुधार तथा शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में संयोजकता। इसके लिए सरकार नई-नई सड़के बनवाती हैं। बढ़ी हुई संयोजकता से लोगों की ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवासन करने की प्रक्रिया तीव्र तथा सरल बन जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरों में आजीविका के अवसर कहीं अधिक होते हैं, जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग शहरों की ओर प्रवासन करते हैं, जिससे शहरों की जनसंख्या बढ़ जाती है। पिछड़े क्षेत्रों में रेलवे का विकास होने से इन क्षेत्रों से भी अब बड़ी संख्या में लोग शहरों की ओर जाते हैं।
7) जनसंख्या में प्राकृतिक वृद्धि : विश्व में वर्तमान शहरीकरण का यह सार्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा, शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि की दर कम है।
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