"भारत प्रजातियों का द्रविड़ पात्र है" भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जनजातियों की विभिन्न प्रजातियाँ पायी जाती है। डॉ. बी. एस. गुहा, हट्टन एवं रिजले आद
भारत प्रजातियों का द्राविड़ पात्र है स्पष्ट कीजिये।
"भारत प्रजातियों का द्रविड़ पात्र है" भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जनजातियों की विभिन्न प्रजातियाँ पायी जाती है। डॉ. बी. एस. गुहा, हट्टन एवं रिजले आदि ने भारत के विभिन्न भागों में जनजातियों में पायी जाने वाली विभिन्न प्रजातीय विशेषताओं के आधार पर उनका वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। डॉ. गहा का कथन है कि भारतीय जनजातियों में प्रजातियों के निम्न चार प्रारूप पाये जाते हैं -
1. नीग्रिटो - इस प्रजाति के शारीरिक लक्षण छोटा कद, लम्बा तथा कुछ ऊँचा सिर, चौड़ा और छोटा, चेहरा, मुँह आगे की ओर उठा हुआ तथा छोटी चपटी नाक आदि हैं। ये प्रजातियाँ हमें दक्षिण भारत की कदार, इरूला, पनियान, असम के बंगाली नागाओं तथा पूर्वी बिहार की राजमहल की पहाड़ियाँ में देखने को मिलती हैं।
2. आदि-आग्नेय - इस प्रजाति के शारीरिक लक्षण छोटा कद, लम्बा एवं ऊँचा सिर, चौड़ा और छोटा चेहरा, मुँह आगे की ओर उठा हुआ तथा नाक छोटी एवं चपटी आदि हैं। प्रायः मध्य भारत की सभी जनजातियों में इस प्रजाति के लक्षण देखने को मिलते हैं। भील एवं चेंचू इसी प्रजाति के लोग हैं।
3. मंगोल - भारत में इसकी निम्न दो शाखाएँ है - एक चौड़े सिर वाली, तथा दूसरी लम्बे सिर वाली | चौड़े सिर वाली प्रजातियाँ चटगांव एवं म्यांमार तथा उत्तरी पूर्वी भारत में पाये जाते हैं। लम्बे सिर वाली प्रजातियाँ असम, सीमान्त प्रान्तों एवं ब्रह्मपुत्र भी घाटी में पाये जाते हैं।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में प्रजातीय तत्व पाये जाते हैं। भारत में प्रजाति मिश्रण इतना हुआ है कि कोई प्रजाति अपने-आप में शुद्ध रूप में नहीं पायी जाती है, प्रायः किसी दूसरी प्रजाति के लक्षण मौजूद होते हैं। अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि "भारत प्रवृत्तियों का द्राविड पात्र है।
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