Bharat mein Dharmnirpekshta par Nibandh - पंथ निरपेक्षता या धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है तथा राज्य के प्रत्येक व्यक्ति
भारत में धर्मनिरपेक्षता पर निबंध - Bharat mein Dharmnirpekshta par Nibandh
पंथ निरपेक्षता या धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है तथा राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी धर्म का पालन करने का अधिकार होगा। राज्य धर्म के आधार पर नागरिको के साथ कोई भेदभाव नहीं करेगा तथा धार्मिक मामलो में विवेकपूर्ण निर्णय लेगा। राज्य सभी नागरिको की स्वतन्त्रता को सुनिश्चित करने के लिये कार्य करेगा।
धर्मनिरपेक्षता का शाब्दिक अर्थ है धर्म से निरपेक्षता रहना अर्थात धर्म के मामले में कोई हस्तक्षेप न करना व्यक्ति या समुदाय की जो आस्था या धर्म हो उसे बिना बाध्यता के उसके अनुसार आचरण करने की छूट प्रदान करना ही धर्मनिरपेक्षता है।
भारतीय संस्कृति का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप भिन्न सांस्कृतिक समूहों का एक लंबे समय से परस्पर घुल-मिल जाने का परिणाम है। यहाँ आपस में संघर्षों के भी कई उदाहरण है, लेकिन सामान्यतः लोग यहाँ शताब्दियों से शान्तिपूर्वक आपस में मिल-जुल कर रहते आ रहे हैं। भारत की लोकप्रिय सांस्कृतिक परम्परायें इस मिश्रित या साझी संस्कृति के सबसे अच्छे उदाहरण हैं, जिसमें काफी संख्या में भिन्न-भिन्न धर्मों के लोग आपस में मिल-जुल कर रहते हैं।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में
- भारत राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है, संविधान के अनुसार भारत राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान है।
- भारत में संविधान द्वारा नागरिकों को यह वि”वास दिलाया गया है कि उनके साथ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा।
- संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार भारतीय राज्य क्षेत्र में सभी व्यक्ति कानून की दृष्टि से समान होगें और धर्म जाति अथवा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा।
- भारतीय संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिको को अनुच्छेद 25 से 28 द्वारा धार्मि क स्वतन्त्रता का मूल अधिकार प्रदान किया गया है।
- संविधान के अनुसार सभी धर्माे को स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है, इसके अनुसार प्रत्येक नागरिक को धार्मि क तथा पराेपकारी उद्देश्य के लिए संस्थाऐं स्थापित करने, उनका संचालन करने, धार्मि क मामलों का प्रबन्ध करने, चल व अचल सम्पत्ति रखने और प्राप्त करने तथा ऐसी सम्पत्ति का कानून के अनुसार प्रबन्ध करने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 28 के अनुसार सरकारी शिक्षण संस्थाओं में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है।
- भारतीय संविधान द्वारा धार्मि क कार्याे के लिए किये जाने वाले व्यय को कर मुक्त घोषित किया गया है।
हमारे देश में विचारों और आचरणों में बहुत ज्यादा विविधतायें मौजूद हैं। ऐसी विविधताओं के बीच में किसी एक विशेष विचार का प्रभुत्व संभव नहीं है। भारत में हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध, जैनी, पारसी और यहूदी सब रहते हैं। संविधान भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश घोषित करता है। हर कोई अपने मन पसंद धर्म को मानने, पालन करने और प्रचार करने के लिये स्वतंत्र है। राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है, और यह सभी धर्मों को समान नजरों से देखता है। धर्म के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होता है। जनता ने भी काफी हद तक एक व्यापक दृष्टिकोण विकसित किया है और वह 'जीयो और जीने दो' की अवधारणा पर विश्वास करती है।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार हमारे गणतंत्र की धर्मनिरपेक्षता को दर्शाता है। पश्चिमी देशों में धर्म-निरपेक्षता के विकास का आशय है धर्म और राजसत्ता का पूर्ण रूप से अलगाव। भारत में धर्मनिरपेक्षता को एक सकारात्मक रूप में लिया जाता है जो सभी लोगों के अधिकारों, विशेषतः अल्संख्यकों के अधिकारों की रक्षा तथा भारत की जटिल सामाजिक संरचना के हिसाब से उपयुक्त है। भारतीय संस्कृति और विरासत भारत आध्यात्मवाद की भूमि के रूप में जाना जाता है।
भारत में साकार और निराकार ईश्वरवादी अर्थात द्वैत और अद्वैत दोनों ही प्रकार के धर्मों का सहअस्तित्व है।दार्शनिक चिंतन में भारत में नास्तिक सोच तक का विकास और वृद्धि हुई। हम जानते हैं कि जैन और बौद्ध धर्म ईश्वर के बारे में मौन हैं। यह सब कुछ हमें क्या बताता है? यही कि भारतीय संस्कृति भौतिकवादी अथवा अध्यात्मवादी दोनों रही है। और यही विचारधारा भारत की धर्म निरपेक्षता का आधार है।
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