इस लेख में पढ़ें " हिप्पीवाद पर निबंध ", " Essay on Hippie Culture in Hindi " एवं हिप्पीवाद की उपयोगिता । हिप्पीवाद पर न...
इस लेख में पढ़ें "हिप्पीवाद पर निबंध", "Essay on Hippie Culture in Hindi" एवं हिप्पीवाद की उपयोगिता।
हिप्पीवाद पर निबंध - Essay on Hippie Culture in Hindi
- हिप्पीवाद का अर्थ
- हिप्पीवाद की विचारधारा
- भारत और हिप्पीवाद
- कौन होते हैं हिप्पी ?
- क्या हिप्पीवाद उपयोगी है ?
हिप्पीवाद का अर्थ
हिप्पीवाद मूल रूप से युवाओं का एक आन्दोलन था जिसका उदभाव 1960 के दशक में अमेरिका में हुआ। 'हिप्पी' शब्द की उत्पत्ति हिप्स्टर से हुई मानी जाती है, जिसका अर्थ होता है - परंपराओं का विरोध करने वाले लोग। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि हिप्पीवाद वास्तव में कोई वाद न होकर सभी वादों (मतों ) का विरोध है। हिप्पीवाद के अनुयायी मानते हैं कि मानुष्य बिना कि वाद या मत विशेष को माने भी जी सकता है। यह लोग किसी भी पूर्व प्रचलित विचारधारा, धार्मिक सिद्धांतों, शास्त्रों को नहीं मानते। चेतना की उच्च अवस्थाओं को प्राप्त करने के लिए हिप्पी मारिजुआना, एलएसडी तथा अन्य नशीली दवाओं का सेवन करते थे।
हिप्पीवाद की विचारधारा
1940 व 1950 के दशक में फ्रांस के विचारक जीन पौल सात्र ने जीवन को इस घुटन की अनुभूति को और उसके आधार पर अपने जीवन-दर्शन-अस्तित्ववाद' का उद्घोष किया। उसने बताया कि भोग और त्याग दोनों में ही निराशा हाथ लगती है। इसलिए निराशा ही हमारे जीवन का सर्वस्व है। निराशा में ही हमको जीवन के वास्तविक मूल्य प्राप्त हो सकते हैं । सात्रं के अनुसार मृत्यु जीवन की अपेक्षा अधिक गहरा सत्य है, हमारा जीवन नागफनी की भाँति चारों ओर से प्रताड़ित है, मानो समस्त समाज हमारा शत्रु है। आश्चर्य यह है कि हम जीवित हैं ।
अस्तित्ववादी विचारधारा के साथ निराशावादी और पलायनवादी जीवनदर्शन का बोलबाला हो गया । समस्त शुतरमुर्गों ने समझ लिया कि हम रेत में सिर गाड़ कर आने वाली आँधी से अपनी रक्षा कर सकते हैं। निराश प्रेमियों ने सोचा कि हम क्षितिज के परे दुनियाँ बसाकर चैन से रह सकते हैं और मनचले शौकीन कवियों ने सोचा कि वे अपने दिमाग में भरे हुए प्याज के छिल्कों को उतारकर जीवन का सार ग्रहण कर सकते हैं। दुस्साहसी कामुक वीरों के देश अमरीका में विश्व संस्कृति परिषद् की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य ऐसी संस्कृति का प्रचार करना था जिसका न जन्म हुआ और न जिसका नामकरण हुआ था।
कुण्ठाओं और निराशा के समुद्र में हाथ-पैर पटकने वाले अकर्मण्य युवकों को तिनके का सहारा मिल गया और उन्होंने पागलों की खाल ओढ़कर समझदार होने का दावा किया। उन्होंने अपने आपको जूते का तल्ला, रिरियाता पिल्ला, बागडबिल्ला और न मालूम क्या-क्या कहना शुरू कर दिया। इनके बारे में हम इतना ही कह सकते हैं ऐसे लोगों का ईश्वर ही मालिक है।
बस, अब क्या था । पागलपन की नकल करने वाले अनेक आन्दोलन आरम्भ हो गये । पहले बीटल्स आये, फिर बीटनिक्स आये । उनकी नंगी-भूखी पीढ़ी आई और साथ में आई इंगलैंड की क्रोधित युवा पीढ़ी। इन्हीं के कारण अमरीका में हिप्पीवाद का आन्दोलन आरम्भ हो गया। हिप्पीवाद किसी प्रकार से सही या गलत करके इस दुनियाँ से पीछा छुड़ाने की कल्पना करता है। इनका हाल उन विक्षिप्त व्यक्तियों की भाँति जो ईंटों की आवाज में सारंगी का संगीत सुनते हैं।
भारत और हिप्पीवाद
हिप्पीवाद के अनुयायी अपने जीवन से परेशान हैं। जिस देश में ये रहते हैं, उस देश की सरकार इनसे परेशान है। हमारे भारत का उदार हृदय सबका स्वागत करता। यह वह चिड़ियाघर है जिसमें सब प्रकार के जीव-जन्तु एवं पशु-पक्षी पलते हैं । इस देश की मिट्टी ही सब प्रकार के पागलों को प्रश्रय देती है। जो भी हो अमरीका के ये निराश युवक भारत आते हैं और इस प्रकार की वेष-भूषा में घूमते हैं कि यहाँ के कौतूहल प्रिय निवासी उन्हें एक तमाशा समझें । वास्तव में होता ही यह है। हमारे देशवासी उन्हें देखने के लिए ऐसे दौड़ते हैं मानो किसी गाँव में नया-नया ऊँट आ गया हो। ये हिप्पी ऐसी धज धारण करते हैं जो सहज ही कौतूहल उत्पन्न करती है । वे ऐसे बाल रखते हैं जिन्हें देखकर नर और नारी तथा योगी-भोगी का भेद मिट जाता है । ये चरस और गांजे की दम लगाते हैं तथा उनका तस्कर व्यापार करते हैं। कई स्थानों पर तो ये सोने का तस्कर व्यापार भी करते हुए पकड़े जा चुके हैं। लोग इन्हें तमाशा समझते हैं। ये सबका तमाशा बनाते हैं।
ये हिप्पी अपने घर से बहुत थोड़े से पैसे-टके लेकर चल पड़ते हैं और यहाँ जैसे-तैसे अपना काम चलाते हैं, कभी-कभी अवांछनीय साधनों द्वारा धनोपार्जन करते हैं । इनमें न मालूम कितने ऐसे हैं जो जासूसी का काम करते हैं और आस्तीन के साँप की तरह देश के लिए खतरा बने हुए हैं।
कौन होते हैं हिप्पी ?
हिप्पीवाद के समर्थकों का कहना है कि अधिकांश हिप्पी भले घरों के लड़के-लड़कियाँ हैं । और उनके घरों से इनके लिए खर्च आता रहता है। बहुत सम्भव है कि कुछ हिप्पी सच्चे हिप्पी हों। परन्तु प्रश्न यह नहीं है कि ये हिप्पी कहाँ से आते हैं। और ये कौन हैं ? मूल प्रश्न यह है कि ये करते क्या हैं ? ये जीवन से निराश व्यक्ति है और हमारे युवक समाज में कुण्ठा, निराशा और तस्करी का प्रचार करते हैं। हमें आश्चर्य हैं कि हमारा समाज इन्हें किस प्रकार और किस हेतु सहन कर रहा है ? सबसे बड़ी विडम्बना तो यह कि हमारे देश में रहने वाले कतिपय कुबुद्ध व्यक्ति यह सोचने लगे हैं कि क्या हिप्पीवाद हमारे समाज के लिए उपयोगी हो सकता है ?
क्या हिप्पीवाद उपयोगी है ?
हमारे विचार से हिप्पीवाद हमारे लिए इसी स्थिति में उपयोगी हो सकता है, जब हम मान लें कि चरस और गाँजा पीकर मदहोश बनने वाले व्यक्ति हमारे देश की नैया के खेवैया बन सकते हैं। हमारे विचार से हिप्पीवाद को उपयोगी मानना वैसा ही जैसा कि नये जन्म की तमन्ना में खुदकुशी कर लेना। ये हिप्पी लोग चारों ओर बेकाम. बेमतलब घूमा करते हैं। ऐसा लगता है कि न ये किसी के हैं और न कोई इनका है। वे बेसरो-सामान, बेनाम, बेपता और बेमकान हैं इनका न कोई ठिकाना है और न इन्हें किसी पर भरोसा है। इनके प्रति उन्हीं को भरोसा हो सकता है जिन्हें न अपने ऊपर भरोसा है और न भगवान पर भरोसा है। हिप्पीवाद हमारे लिए किसी भी दशा में उपयोगी नहीं हो सकता। इसको तो जितनी ही जल्दी इस देश की सीमाओं के बाहर निकाल दिया जाये, उतना ही हमारे लिये श्रेयस्कर होगा। हिप्पीवाद हमारी संस्कृति को मिटाने के लिये आया है। इसको बहिष्कृत करके ही हम भारतीय संस्कृति की रक्षा कर सकेंगे। हमारे जीवन में इसके लिये कोई स्थान नहीं होना चाहिए ।
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