इस लेख में पढ़ें " काला धन पर निबंध , " Black Money Essay in Hindi ", " Kala Dhan par Niabandh" काले धन पर निबंध – B...
इस लेख में पढ़ें "काला धन पर निबंध, "Black Money Essay in Hindi", "Kala Dhan par Niabandh"
काले धन पर निबंध – Black Money Essay in Hindi
काला धन की परिभाषा
काले तरीकों से कमाए गए धन को 'काला धन' या 'ब्लैक मनी' कहते हैं। काले धन कि परिभाषा इस प्रकार है कि वह धन जिसका सरकार के पास कोई लेखा-जोखा न हो तथा जिस पर सरकार को कोई कर न अदा किया गया हो उसे काला धन कहते हैं। इसके अतिरिक्त अनेक अवैध काम जैसे मनी लौंडरिंग, रिश्वतखोरी, घोटाला, गबन या सट्टे से कमाया गया धन भी काला धन कहलाता है।
काले धन के दुष्परिणाम
काले धन का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव देश के राजस्व पर पड़ता है। जब देश में काला धन बढ़ जाता है तो अर्थव्यवस्था पटरी से उतरने लगती है। काले धन के कारण सरकार की तमाम नीतियां निष्फल हो जाती हैं। वह लोगों के कल्याण पर अधिक खर्च भी नहीं कर पाती है। जब यही काला धन आतंकवादी और आपराधिक गतिविधियों में लगता है तो देश कि राष्ट्रीय सुरक्षा की भी सेंध लगती है। एक अर्थशास्त्री के अनुसार तो हमारा आधा आर्थिक व्यापार इस काले धन के बल पर ही चल रहा है । इस प्रकार काला धन भ्रष्टाचार में लिप्त अर्थव्यवस्था को जन्म देता है जिससे देश की सही आर्थिक स्थिति का पता लगाना असंभव हो जाता है।
यह बात सच है कि हमारे आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर इस काले धन ने बड़ा ही अनिष्टकारी प्रभाव डाल रखा है। हमारा सामाजिक जीवन भी इस काले धन ने खोखला कर दिया है। जिन सामाजिक गुणों से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए, वे नैतिक गुण ही नष्ट होते जा रहे हैं और जिन असामाजिक तत्वों की रोकथाम होनी चाहिए, वे दिन दुने रात चौगुने बढ़ते जा रहे हैं।
भारत में काला धन
आज भारत के सामाजिक व आर्थिक जीवन में काला धन की समस्या बहुत भीषण रूप धारण कर चुकी है। काले धन का आज कितना बोलबाला है, यह जीवन के हर क्षेत्र में पग-पग पर अनुभव किया जा सकता है। यद्यपि काले धन को मापने का कोई पक्का पैमाना नहीं है। फिर भी राजस्व विभाग के एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2020 में विदेश में जमा काला धन 20,700 करोड़ रुपये से अधिक पहुंच गया है जबकि 2019 में यह आंकड़ा सिर्फ 7200 करोड़ रुपये था। एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2010 में देश की कुल जीडीपी 64.5 ट्रिलियन रुपए थी, वहीं वित्त वर्ष 2011 में देश की जीडीपी 76.7 ट्रिलियन रुपए थी जबकि इस दौरान काला धन करीब 4.5-77.4 ट्रिलियन रुपए से लेकर 5.3-92.08 ट्रिलियन रुपए रहा। यह सोच कर ही भय व्याप्त हो जाता है कि जिस देश में काला धन उसकी अर्थव्यवस्था से अधिक होगा उस देश का आखिर भविष्य क्या है ?
काला धन के स्रोत
यह कहना गलत होगा काले धन का कोई एक स्रोत है। एक सरकारी रिपोर्ट में काले धन के स्रोत को लेकर विस्तार से चर्चा की गयी है। इस रिपोर्ट के अनुसार जिन सेक्टर्स में काला धन सबसे ज्यादा है वो रियल एस्टेट, माइनिंग, फार्मा, पान मसाला, गुटखा, टोबैको, बुलियन, फिल्म इंडस्ट्री और एजुकेशन सेक्टर हैं। काला धन और रिश्वत का घनिष्ठ भी रिश्ता है। रिश्वत के बल पर आय पर लगने वाले कर से बचा जा सकता है। इस प्रकार मूलधन बढ़ता है और दबाया जाता है। यदि यही बचाया हुआ, चुराया हुआ, काला धन सफेद धन होता तो आर्थिक विकास में सहायता मिलती । लेकिन ऐसा आज की व्यवस्था में सम्भव नहीं हो रहा है। सरकार को इस भयावह स्थिति को समझ कर उचित कदम उठाना चाहिए । भारी कर थोप कर, नियंत्रण लगा कर अथवा राष्ट्रीयकरण करके काले धन की समस्या को सुलझाया नहीं जा सकता।
- बहुत से व्यापारी सामान खरीदते वक़्त बिल नही देते हैं। इस प्रकार वे सरकार से टैक्स चोरी करके, काला धन कमाते हैं।
- बहुत से लोग अपनी वास्तविक आय छिपाने के लिए गहने या आभूषण में निवेश करते हैं।
- कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो स्वयं एनजीओ खोलकर उसमें दान देते हैं इस प्रकार वे सरकार से टैक्स में छूट प्राप्त लेते हैं और कर की चोरी करते हैं। इस प्रकार काला धन सफ़ेद धन में परिवर्तित हो जाता है।
- ऐसे देश होते जहाँ विदेशियों को टैक्स नहीं देना पड़ता। ऐसे देशों को टैक्स हैवेन कहा जाता है जैसे मॉरीशस या केमैन आइलैंड्स। इन देशों में -बड़े बड़े उद्योगपति अपनी कंपनी का छोटा सा कार्यालय खोलकर टैक्स में हेराफेरी करते हैं।
काला धन को रोकने के उपाय
निष्कर्ष
काले धन के इस देशव्यापी रोग के लिए सरकार की नीतियाँ और कार्य पद्धति ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं । सफेद धन वाले का धन कर के नाम पर छीन लेना और काले धन वाले पर हाथ भी न लगा सकना कितनी असमर्थता की स्थिति है। आए दिन नोटों और सिक्कों की चलन की मात्रा के घटने-बढ़ने का असर हमारे आर्थिक कारोबार पर पड़ता है। सरकारी काम के ढंग और नियम कुछ ऐसे हैं कि सरकारी फाइलों की गति बराबर धीमी पड़ती जा रही है। यदि ऊपरी आमदनी के असंतोष के कारण सरकारी दफ्तर का कोई छोटा सा कर्मचारी भी निश्चय कर ले कि उसे कोई काम नहीं करना है तो वह ऐसे-ऐसे अड़गे लगा सकने में समर्थ होता है कि फाइल की गति इतनी मंद पड़ जाती है कि सम्बन्धित व्यक्ति उस कर्मचारी को खुश करने को विवश हो जाता है। यही खुश करना ही रिश्वत को जन्म देता है। सरकारी नियम ऐसे हैं कि अब आदमी को अनाज, चीनी जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिए सरकारी परवाने-परमिट की आवश्यकता पड़ती है और इसे प्राप्त करने के लिए रिश्वत देना अनिवार्य हो जाता है। इसी से काला धन अपना क्षेत्र बढ़ाने में समर्थ होता है।
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