क्षेत्रवाद से आप क्या समझते हैं ? भारतीय राजनीति में क्षेत्रवाद के उदय का कारण बताइये ? क्षेत्रवाद को समझने के लिए पहले क्षेत्र को समझना आवश्यक है। भौ
क्षेत्रवाद से आप क्या समझते हैं ? भारतीय राजनीति में क्षेत्रवाद के उदय का कारण बताइये ?
क्षेत्रवाद का अर्थ
क्षेत्रवाद को समझने के लिए पहले क्षेत्र को समझना आवश्यक है। भौगोलिक दृष्टि से क्षेत्र जिले के एक भाग या जिले को अथवा राज्य के किसी भाग या राज्य को कहते हैं। जब हम क्षेत्र शब्द का प्रयोग करते हैं तो उसमें क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले सभी तत्व जैसे जनसंख्या, संस्कृति, परम्पराएँ, उनका साझा हित आदि में साहचर्य तथा भातृत्व की भावना दृष्टिगोचर होती है तथा साथ-साथ ही अन्य क्षेत्रों से अलगाव की भावना भी दिखाई देती है।
भारत जैसे विशाल तथा विविधता पूर्ण देश में जहाँ अनेक धर्म, सैकड़ों जातियाँ तथा हजारों उपजातियाँ रहती हैं उनके अलग-अलग क्षेत्र, संस्कृति, परम्पराएँ व मान्यताएँ हैं। कुछ जातियाँ, धार्मिक तथा भाषाई आधार पर समूह कुछ विशेष क्षेत्रों में रहते हैं जो उनकी पहचान बन गये हैं। इस प्रकार ये समूह अपने क्षेत्र में आर्थिक विकास तथा अन्य विकास को चाहते हैं तथा उस क्षेत्र की सभी वस्तुओं पर, संसाधनों पर, वहाँ के उद्योगों पर, रोजगार के अवसरों पर, यहाँ तक कि प्राकृतिक संसाधनों पर भी अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझने लगते हैं। उनके इस प्रकार के आचरण को कुछ क्षेत्रीय राजनीतिक दल बढ़ावा देते हैं तथा उनकी भावनाओं में "अति" का तत्व समाहित हो जाता है। इन भावनाओं के वशीभूत होकर वे अपने क्षेत्र से बाहर के व्यक्तियों को अपने क्षेत्र में मिल रही सुविधाओं का उपभोग नहीं करने देते हैं जिससे क्षेत्रीयता की भावना अपने विद्रोह के रूप में समाज के सामने आती हैं।
भारतीय राजनीति में क्षेत्रवाद के उदय के कारण
- भाषा के प्रति लगाव,
- आर्थिक असन्तुलन,
- धार्मिक भावनाएँ,
- क्षेत्रीय राजनीति,
- अलगाव की भावना
(1) भाषा के प्रति लगाव - भाषा के प्रति लगाव की भावना ने क्षेत्रीयता की भावना से भारतीय राजनीति को प्रभावित किया है। 1948 में राज्यों के पुनर्गठन पर विचार करने के लिए नियुक्त आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के गठन का विरोध किया था परन्तु राजनीतिज्ञों ने अपने स्वार्थ के लिए भाषाई हितों को बढ़ावा दिया।
(2) आर्थिक असन्तुलन - भारत के विभिन्न इलाकों में आर्थिक विकास की असन्तुलन की स्थिति ने भी क्षेत्रीय दलों को प्रोत्साहन दिया है। महाराष्ट्र में शिवसेना, असम में ऑल असम स्टूडेण्ट यूनियन, आन्ध्र प्रदेश में तेलंगाना आदि का उदय इसी असन्तुलन के कारण हुआ।
(3) धार्मिक भावनाएँ - कई अवसरों पर धर्म भी क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाले कारक के रूप में सामने आता है। पंजाब में कई वर्षों तक चले आतंकवाद के कारण में ये ही भावनाएँ सम्मिलित थीं।
(4) क्षेत्रीय राजनीति - क्षेत्रवाद की भावना को बढ़ावा देने में राजनीतिज्ञों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। राजनीतिज्ञ अपने प्रभाव को बढ़ाने में इस क्षेत्रीयता को बढ़ावा देते हैं।
(5) अलगाव की भावना - भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद भी अनेक क्षेत्रों में अलगाव की भावना बनी हुई हैं। उदाहरण के लिए-महाराष्ट्र में विदर्भ या मराठवाड़ा, गुजरात में सौराष्ट्र, उ०प्र० में बन्देलखण्ड तथा हरित प्रदेश, पं० बंगाल में गोरखालैण्ड तथा जम्मू कश्मीर में लद्दाख की माँग इसी भावना की परिचायक है। झारखण्ड, उत्तरांचल, छत्तीसगढ़, तेलंगाना आदि राज्यों का गठन भी इसी भावना के कारण हुआ है।
भारतीय राजनीति में क्षेत्रवाद की भूमिका
भारतीय लोकतंत्र तथा राजनीति में क्षेत्रीय दलों (क्षेत्रवाद) की विशिष्ट भूमिका है। क्षेत्रीय दलों ने प्रजातान्त्रिक भावनाओं पर सकारात्मक व नकारात्मक दोनों प्रकार का प्रभाव छोड़ा है।
क्षेत्रवाद के सकारात्मक प्रभाव
(1) आर्थिक असन्तुलन दूर करने में सहायक - क्षेत्रीय दलों ने अपने प्रभाव में वृद्धि करते हुए व्यवस्थापिका में अपनी संख्या को प्रभावशील ढंग से उपयोग किया। केन्द्र में सत्ताधारी दल को समर्थन देने के एवज में इन दलों ने अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों के विकास के लिए अनेक योजनाएँ क्रियान्वित की, जिससे इन क्षेत्रों में आर्थिक विकास तथा रोजगार की समस्या हल हुई तथा श्रम का दूसरे क्षेत्रों में पलायन रुका। आर्थिक विकास से अन्य क्षेत्रों की आधारभूत संरचना में भी सुधार हुआ। यातायात के साधनों में तथा व्यापार के साधनों में भी वृद्धि हुई तथा लोगों के जीवन स्तर में भी वृद्धि हुई।
(2) राजनीतिक रूप से जाग्रत - क्षेत्रीय दलों के अभ्युदय से वर्षों से पिछड़े क्षेत्रों व जनसमूहों में राजनीतिक चेतना जाग्रत हुई। ये जनसमूह तथा क्षेत्र अपने आर्थिक तथा राजनीतिक हितों के प्रति उदासीन रहते थे। क्षेत्रीय दलों के उत्थान से इन्हें अपने हितों के संरक्षण की चिन्ता हई तथा वे राजनीतिक रूप से तथा सामाजिक रूप से संगठित हुए।
(3) राजनीतिक पक्षपात की भावना का पतन - स्वतन्त्रता के बाद हमारे देश में प्रजातान्त्रिक भावनाओं का कुछ राजनीतिज्ञों ने अनुचित दोहन भी किया। इन राजनीतिज्ञों ने अपने प्रभाव क्षेत्र वाले क्षेत्रों में सभी प्रकार की सुविधाओं का विकास किया, आर्थिक विकास के लिए अनेक परियोजनाएँ लागू की तथा कुछ पिछड़े हुए क्षेत्रों के साथ पक्षपात करते हुए वहाँ इन सुविधाओं को लागू नहीं किया। इन क्षेत्रों के निवासियों की भावनाओं का सम्मान वहाँ के क्षेत्रीय दलों ने किया तथा पिछड़े क्षेत्रों के विकास को लेकर आन्दोलन किये गये जिससे इन क्षेत्रों का विकास तो प्रारम्भ हुआ ही साथ में इन क्षेत्रीय दलों की ताकत में भी वृद्धि हुई।
(4) राष्ट्रवाद की भावना का विकास - क्षेत्रीय समस्याओं का हल करने के लिए जो क्षेत्रीय आन्दोलन किये गये वे उप क्षेत्रवाद या उपराष्ट्रवाद का भावना को जन्म देने वाले सिद्ध हुए। उपराष्ट्रवाद की भावनाएँ भी भविष्य में राष्ट्रवाद का रूप लेती हैं।
क्षेत्रवाद के नकारात्मक प्रभाव
(1) राजनीतिक अस्थिरता - भारतीय लोकतंत्र में क्षेत्रीय दलों के कारण राजनीतिक अस्थिरता का प्रचलन भी शुरू हुआ। इन क्षेत्रीय दलों के द्वारा स्वयं तो बहुमत प्राप्त नहीं किया जाता परन्तु केन्द्र में सरकार बनाने में इनका भारी योगदान होता है ये दल अपनी शर्तों पर सरकार बनाते हैं तथा देश हित को भावना को ध्यान में न रखते हुए क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों के कारण कभी भी सरकार को गिराने में सक्षम होते हैं। इसीलिए इनके समर्थन पर टिकी सरकार कोई भी कार्य जनहित के लिए नहीं कर पाती है अपितु इन दलों के हितों को दृष्टि में रखते हुए करती है, इससे राजनीतिक अस्थिरता का जन्म होता है।
(2) क्षेत्रीयता का प्रसार - इन दलों की नीतियों से क्षेत्रीयता की भावना उग्र रूप से प्रकट होती है। ये दल लोगों को हिंसात्मक कार्यवाही करने के लिए प्रेरित करते हैं तथा अपने क्षेत्र में ही सभी कार्यक्रम व विकास योजनाएँ क्रियान्वित करना चाहते हैं। इससे क्षेत्रीयता की भावना का गलत दिशा में प्रसार होता है।
(3) कानून तथा व्यवस्था - इन दलों की कार्यवाही के कारण सारे देश में कानून व व्यवस्था की स्थिति खराब होने का अन्देशा होता है। अपनी मांगों को मनवाने के लिए ये दल हड़ताल, बन्द, तोड़फोड़ व हिंसात्मक कार्यवाहियों को भी अंजाम देते हैं तथा दूसरे प्रदेशों से आये श्रमिकों व अन्य व्यक्तियों पर हमले आदि होते हैं जिससे आपसी वैमनस्यता की भावना जाग्रत होती है तथा इन सब कार्यों के विरोध में इन प्रदेशों के व्यक्तियों को अन्य स्थानों पर प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता है। इससे पूरे प्रदेश तथा देश में कानून व व्यवस्था भंग होने का खतरा होता है।
(4) हिंसात्मक व आतंकवादी कार्यवाहियों में वृद्धि - अपने आन्दोलनों को अधिक व्यापक बनाने के लिए क्षेत्रीय दल हिंसात्मक कार्यवाही करते हैं। असम तथा बंगाल में ऑल असम स्टूण्डेट यूनियन, गोरखालैण्ड लिबरेशन फ्रन्ट आदि द्वारा चलाये गये आन्दोलनों से अनेक निर्दोष व मासूम व्यक्तियों की जानें गयीं। इसी प्रकार पंजाब में अलगाववादी आन्दोलन ने हिंसा का एक नया अध्याय बनाया इस प्रकार इन क्षेत्रीय भावनाओं के उबाल से मासूम व्यक्तियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है।
(5) देश की सुरक्षा को खतरा - कई बार क्षेत्रीय दलों के द्वारा चलाये गये आन्दोलन इतने हिंसात्मक हो जाते हैं कि इनसे राष्ट्र की सरक्षा को खतरा हो जाता है। इस प्रकार के माहौल से लाभ उठाने के लिए अनेक विघटनकारी तत्व राष्ट्र को बाँटने की योजना में लग जाते हैं वे लोगों को धन, हथियार तथा अन्य वस्तुएँ प्रदान करते हैं जो राष्ट्र को ही नष्ट करने के काम आते हैं।
इसी प्रकार क्षेत्रीय दलों के कारण कुछ क्षेत्रों में प्रजातान्त्रिक भावनाओं का सम्मान हुआ है। पिछड़े क्षेत्रों का विकास, आर्थिक विकास, तथा व्यक्तियों की अन्य समस्यायें भी इन क्षेत्रीय दलों से हल हुई हैं। इन दलों का लक्ष्य अपने क्षेत्र के लिए अधिक सुविधाएँ प्राप्त करना था तथा विकास के उच्च मानकों को प्राप्त करना था।
इन दलों के विपरीत प्रभाव को देखें तो इससे पृथकतावादी राजनीति को बढ़ावा मिलता है। एक ही राष्ट्र की जनता के बीच आपसी वैमनस्य तथा कटुता की भावना जाग्रत होती है। क्षेत्रीय दल अपने आन्दोलनों को सफल बनाने के लिए धर्म, भाषा, जाति जैसे तत्वों का सहारा लेते हैं जो भारतीय समाज पर अपना गहरा प्रभाव डालते हैं।
यदि विकास के समान अवसर तथा लाभों का समान बँटवारा न्यायपूर्ण ढंग से हो तो क्षेत्रीय दलों की भूमिका भारतीय राजनीति में सीमित हो जायेगी।
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