प्रत्यक्षण का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषता: प्रत्यक्षण एक महत्वपूर्ण मानसिक प्रक्रिया है। संवेदन के समान प्रत्यक्षण भी एक ऐसी संज्ञानात्मक मानसिक प्रक्रि
प्रत्यक्षण का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताओं का वर्णन करें।
प्रत्यक्षण एक महत्वपूर्ण मानसिक प्रक्रिया है। संवेदन के समान प्रत्यक्षण भी एक ऐसी संज्ञानात्मक मानसिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा वातावरण के उद्दीपक का ज्ञान होता है। अंतर केवल इतना है, कि संवेदन में अर्थरहित ज्ञान होता है। जबकि प्रत्यक्षण में अर्थपूर्ण ज्ञान होता है। क्योंकि इसमें मस्तिष्क सक्रीय होकर सूचनाओं को संगठित करता है, तथा उसकी व्याख्या करता है। ज्ञानेन्द्रियों द्वारा वाह्य वस्तुओं अथवा क्रियाओं की अनुभूति को संवेदना कहते हैं। जब मनुष्य इस संवेदना को अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर देखता- परखता और स्वीकार करता है, तो इस प्रक्रिया को प्रत्यक्षीकरण कहते हैं। प्रत्यक्षण के स्वरूप को निम्न परिभाषाओं के अध्ययन द्वारा बड़ी ही आसानी से समझा जा सकता है।
प्रत्यक्षण की परिभाषा (Definition of perception in Hindi)
एटकिंसन एवं हिलगार्ड के अनुसार "प्रत्यक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा हम वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों के प्रतिरूपों की व्याख्या करते हैं एवं उनका संगठन करते हैं।"
अरुण कुमार सिंह के अनुसार "प्रत्यक्षण एक सक्रिय, चयनात्मक एवं संज्ञानात्मक मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति को अपने आंतरिक अंगों (आंतरिक वातावरण ) तथा बाह्य वातावरण में उपस्थित वस्तुओं का उसी क्षण अनुभव होता है।"
कोलमैन के अनुसार "प्रत्यक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने शरीर के भीतरी अंगों एवं बाहरी दुनिया के बारे में जानकारी प्राप्त करता है।"
सैन्ट्रोक के अनुसार "संवेदी सूचनाओं को अर्थ प्रदान करने के लिए मस्तिष्क द्वारा सूचनाओं को संगठित करने एवं व्याख्या करने की प्रक्रिया को ही प्रत्यक्षण कहा जाता है।"
रायबर्न के अनुसार "अनुभव के अनुसार संवेदना की व्याख्या की प्रक्रिया को प्रत्यक्षीकरण कहते हैं।"
इन परिभाषाओं के अध्ययन से प्रत्यक्षण के स्वरूप के संबंध में निम्न बातें स्पष्ट हो जाती हैं-
- प्रत्यक्षण में उद्दीपक का तत्काल अनुभव होता है।
- प्रत्यक्षण एक सक्रीय मानसिक प्रक्रिया है।
- प्रत्यक्षण एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया है।
- प्रत्यक्षण की प्रक्रिया के दौरान उद्दीपकों को संगठित करने की मानसिक क्रिया घटित होती है।
- प्रत्यक्षण एक चयनात्मक प्रक्रिया है।
प्रत्यक्षण की विशेषता (Characteristics of Perception in Hindi)
- प्रत्यक्षण एक अर्थपूर्ण मानसिक प्रक्रिया है।
- प्रत्यक्षीकरण की प्रक्रिया मनुष्य की परिपक्वता और अभिप्रेरणा पर निर्भर करती है, जो व्यक्ति जितना अधिक परिपक्व होता है और प्रत्यक्षीकरण के लिए जितना अधिक अभिप्रेरित होता है। वह उतने ही अच्छे ढंग से प्रत्यक्षीकरण करता है।
- अवधान प्रत्यक्षीकरण के लिए आवश्यकीय है।
- व्यक्ति के पर्यावरण में अनेक उद्दीपक होते हैं। परन्तु उनका अवधान उन्हीं में होता है, जो उसके लिए उपयोगी एवं रुचिकर होते हैं। इसलिए प्रत्यक्षीकरण को चयनात्मक प्रक्रिया कहा जाता है।
- प्रत्यक्षीकरण की सबसे बड़ी विशेषता यह है, की व्यक्ति उदीपक को उसके पूर्ण रूप में देखता और समझता है।
- प्रत्यक्षीकरण की प्रक्रिया में व्यक्ति अपने पूर्व अनुभवों का प्रयोग करता है।
- प्रत्यक्षीकरण की प्रक्रिया में व्यक्ति जिस वस्तु तथा क्रिया का प्रत्यक्षीकरण करता है, उसकी पूर्व में किये गए प्रत्यक्षीकरण की वस्तुओं से तुलना करता है एवं उनमें समानता एवं असमानता देखता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
ज्ञानेन्द्रियों के प्रभाव को मस्तिष्क तक पहुंचने की प्रक्रिया को संवेदना कहते हैं। संवेदना के मुख्यतः तीन सामान्य गुण क्रमशः गुण, तीव्रता, सत्ताकाल या अवधि हैं, तथा तीन विशिष्ट गुण क्रमशः विस्तार, स्पष्टता, स्थानीय चिन्ह हैं। संवेदना के प्रकार क्रमशः दृष्टि संवेदना, ध्वनि संवेदना, गंध संवेदना, स्वाद संवेदना, स्पर्श संवेदना, मांसपेशी संवेदना, तथा शारीरिक संवेदना होते हैं।
प्रत्यक्षण एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों द्वारा वातावरण में उपस्थित वस्तुओं, व्यक्तियों या घटनाओं का ज्ञान प्राप्त करता है। यह ज्ञान तात्कालिक होता है। प्रत्यक्षण के विभिन्न सिद्धांतों हैं । प्रत्यक्षण के दैहिक सिद्धान्त में प्रत्यक्षण प्रक्रिया के दौरान होने वाली अनुभूतियों की व्याख्या के लिए शरीर में व्याप्त अगणित न्यूरोन के बीच होने वाली आवेशीय प्रक्रिया को आधार बनाया जाता है। प्रत्यक्ष सिद्धान्त के अनुसार प्रत्यक्षण को उस वातावरण का विश्लेषण करके ठीक ढंग से समझा जा सकता है। प्रत्यक्षण के गेस्टाल वादी सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति किसी वस्तु का प्रत्यक्षण अलग अलग रूप में न करके सम्पूर्ण रूप में करता है। प्रत्यक्षणात्मक संगठन के आधारभूत तथ्य या नियम के अनुसार प्रत्यक्षण प्रक्रिया में व्यक्ति जिस वस्तु का प्रत्यक्षण कर रहा होता है उस वस्तु के खास पैटर्न को खोज लेता है। व्यवहारवादियों के अनुसार प्रत्यक्षण सीखा हुआ व्यवहार है । प्रत्यक्षीकरण की प्रक्रिया मनुष्य की परिपक्वता और अभिप्रेरणा पर निर्भर करती है। सही प्रत्यक्षण का विकास करने के लिए बालक की निरिक्षण शक्तियों को प्रोत्साहित करना होगा।
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