राजनीतिक सिद्धांत इतिहास की व्याख्या और सामाजिक पुनर्निर्माण की व्याख्या में सहायक है स्पष्ट कीजिए। राजनीतिक सिद्धांत की उपयोगिता या इसकी सार्थकता को
राजनीतिक सिद्धांत इतिहास की व्याख्या और सामाजिक पुनर्निर्माण की व्याख्या में सहायक है स्पष्ट कीजिए।
- राजनीति विज्ञान में सिद्धांत का महत्व बताइए।
- राजनीति विज्ञान का इतिहास से संबंध बताइए।
राजनीति विज्ञान में सिद्धांत का महत्व
राजनीतिक सिद्धांत की उपयोगिता या इसकी सार्थकता को परखने के लिए इसके दोनों पक्षों अर्थात राजनीति विज्ञान और राजनीतिक दर्शन की उपयोगिता पर विचार करना उपयुक्त होगा। राजनीति हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब हम वैज्ञानिक पद्धति से राजनीति की समस्याओं का विश्लेषण करते हैं तो इन्हें समझने और सुलझाने में पर्याप्त सहायता मिलती है। उदाहरण के लिए, जैसे भूविज्ञान (Geology) से हमें भूकंप (Earthquake) के कारणों को समझने और उनका निवारण करने की सूझबूझ प्राप्त होती है, वैसे ही राजनीति विज्ञान से हमें राजनीतिक जीवन में संघर्ष (Conflict) और हिंसा (Violence) के कारणों का पता चलता है और उनकी रोकथाम के तरीके सीखने को मिलते हैं।
राजनीति विज्ञान की सार्थकता को सब जगह स्वीकार किया जाता है। परन्तु राजनीति-दर्शन के अन्तर्गत हम युग-युगांतर से प्रचलित विचारों की जानकारी प्राप्त करते हैं। साधारणतः इनमें मानव जीवन के उद्देश्यों और उनकी पूर्ति की विधियों के निर्देश मिलते हैं। इन निर्देशों में इतना मतभेद पाया जाता है कि इनके आधार पर कोई निष्कर्ष निकालना कठिन प्रतीत होता है।
कभी-कभी राजनीति-दर्शन की सार्थकता पर प्रश्न-चिह्न अवश्य लगाया जाता है; और इसे स्वयं राजनीति-सिद्धांत की सार्थकता का प्रश्न बना दिया जाता है। प्रस्तुत सन्दर्भ में जो आपत्तियाँ उठाई जाती हैं, उन्हें परखने के बाद ही हम राजनीतिक-सिद्धांत की सार्थकता का निर्णय कर सकते हैं।
ऐतिहासिक क्रांतियों का प्रेरणा-स्रोत
कुछ लोग राजनीतिक-सिद्धांत को ऐसी क्रांतियों का स्रोत मानते हैं जो बनी-बनाई व्यवस्था (Argument) को नष्ट करके हमारे जीवन को अस्त-व्यस्त कर देती हैं। इन्हीं आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए आर० जी० गैटेल ने 'हिस्ट्री ऑफ पॉलिटिकल थॉट' (राजनीतिक चिन्त का इतिहास) के अन्तर्गत लिखा है :
"राजनीति-सिद्धांत पर यह आरोप लगाया जाता है कि व्यावहारिक परिणामों की दृष्टि से यह न केवल बंजर भूमि की तरह विफल सिद्ध होता है बल्कि यह यथार्थ राजनीति के लिए घातक भी है। डनिंग ने लिखा था कि जब कोई राजनीतिक प्रणाली राजनीतिक दर्शन के रूप में ढल जाती है तो यह स्थिति आमतौर पर उस प्रणाली के लिए मृत्यु के समान होती है।"
गैटेल ने चेतावनी दी है कि समय के परिवर्तन के साथ जो सिद्धांत अपनी उपयोगिता खो चुके हों, वे अक्सर प्रगति के रास्ते में रुकावट डालते हैं। इन सिद्धान्तों की अधकचरी जानकारी रखने वाले लोग जब इनके लिए मर-मिटने को उतारू होते हैं तो वे केवल विक्षोभ पैदा करते हैं। परन्तु गैटेल ने यह स्वीकार किया है कि सब राजनीतिक सिद्धांत ऐसी हालत पैदा नहीं करते। मानव-इतिहास में अनेक राजनीतिक सिद्धान्तों ने ऐसी क्रांतियों को बढ़ावा दिया है जिनसे मानवता का पर्याप्त हित हुआ है। लोकतंत्र, वैयक्तिक स्वतंत्रता और अंतर्राष्ट्रीय न्याय की दिशा में जो भी प्रगति हुई है, उसका अधिकांश श्रेय उन सैद्धांतिक मान्यताओं को दिया जा सकता है जिन्हें मेधावी विचारकों की लम्बी श्रृंखला ने प्रस्तुत किया है।
परस्पर सम्मान और सहिष्णुता को प्रोत्साहन
कभी-कभी यह आरोप लगाया जाता है कि सब तरह के काल्पनिक चिन्तन की तरह राजनीति-दर्शन भी यथार्थ की अनदेखी करता है, अतः उसे व्यवहार में उतारने की कोई गुंजाइश नहीं है। इसमें संदेह नहीं कि राजनीति-सिद्धांत का सरोकार अत्यन्त जटिल समस्याओं से है; इसमें बहुत-से-बहुत मुख्य प्रवृत्तियों का संकेत दे सकते हैं-भिर्विकार नियमों का निरूपण नहीं कर सकते। फिर, यह हमें विवादास्पद विषयों के निश्चित उत्तर भी नहीं देता। व्यक्ति के अधिकार क्या हैं, न्याय क्या है, या सर्वोत्तम शासन प्रणाली कैसी होगी-इन प्रश्नों का कोई ऐसा उत्तर नहीं दिया जा सकता जो अंतिम रूप से मान्य या प्रामाणिक हो।
राजनीतिक-सिद्धांत लोगों को बहुत-से-बहुत परस्पर विचार-विमर्श और चर्चा-परिचर्चा के लिए प्रेरित कर सकता है ताकि वे एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझने का प्रयत्न कर सकें। यह जरूरी नहीं कि वे किसी बात पर सहमत हो जाएं। परन्तु परस्पर संवाद स्थापित होने पर उनके मन में एक-दूसरे के प्रति सद्भावना, सम्मान और सहिष्णुता की प्रवृत्ति को बल मिलता है, और यही भावना राजनीतिक-सिद्धांत के अध्ययन को सार्थक कर देती है।
पारिभाषिक शब्दावली का अर्थ-निर्धारण और संकल्पनाओं का स्पष्टीकरण
राजनीतिक चर्चा (Political Discussion) और राजनीतिक तर्क (Political) में जिस शब्दावली का प्रयोग होता है, उसका सही-सही अर्थ निर्धारित करना राजनीति-सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण कार्य है। उदाहरण के लिए, स्वतंत्रता (Liberty), समानता (Equality), न्याय (Justice), सत्ता (Authority), लोकतंत्र (Democracy), राष्ट्रीयता (Nationality) इत्यादि ढेर सारे ऐसे शब्द हैं जो बोलचाल की भाषा, पत्र-पत्रिकाओं, राजनीतिक चर्चाओं और विवेचनात्मक कृतियों में बार-बार प्रयुक्त होते हैं। भिन्न-भिन्न विचारधाराओं (Ideologies) के समर्थक इन शब्दों का प्रयोग भिन्न-भिन्न अर्थ में कर सकते हैं। राजनीति-सिद्धांत के अन्तर्गत इन शब्दों के ऐसे अर्थ स्थिर करने का प्रयास किया जाता है जो भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण रखने वाले लोगों को मान्य हों, और इनके आधार पर वे परस्पर संवाद स्थापित कर सकें। जब तक इनके सर्वमान्य अर्थ स्थिर नहीं होते, तब तक कुछ लोग इनका प्रयोग इतनी चालाकी से कर सकते हैं जिससे वे अपने तर्क की कमजोर कड़ी को छिपा जाते हैं, या स्वार्थी और जनोत्प्रेरक नेता (Demagogues) इन शब्दों के सहारे लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करके उन्हें गुमराह कर देते हैं। कई स्वेच्छाचारी शासक (Autocrats) इन शब्दों की मनमानी व्याख्या देकर अपने शासन को वैध ठहराने (Legitimization) की जुगाड़ करते हैं जैसी कि मुसोलिनी ने की थी। राजनीति-सिद्धांत इनके सही-सही अर्थ निर्धारित करके इनके दुरुपयोग को रोकता है।
COMMENTS