शहरीकरण की परिभाषा, समस्या तथा चुनौतियां बताइये। शहरीकरण की परिभाषा होती है- शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या की वृद्धि। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार शहरीकरण
शहरीकरण की परिभाषा, समस्या तथा चुनौतियां बताइये।
- शहरीकरण की प्रमुख समस्याएं बताइये।
- शहरी विकास की चुनौतियां पर आलेख लिखिए
- शहरीकरण की परिभाषा लिखिए।
- शहरी विकास की चुनौतियां पर निबंध।
शहरीकरण की परिभाषा
शहरीकरण की परिभाषा होती है- शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या की वृद्धि। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार शहरीकरण या शहरी विकास, बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में जाकर लोगों के बसने को कहते हैं। प्रोफेसर मिश्रा ने शहरीकरण को इस प्रकार परिभाषित कियाः ‘‘शहरीकरण कोई उत्पाद नहीं है। यह तो एक प्रक्रिया है, जिससे लोग दूर-दराज़ के कृषि-प्रधान गांवों को छोड़ कर नगरों तथा शहरों में बसने लगते हैं, जहां अधिकांश रूप से औद्योगिक एवं सेवा-क्षेत्र से संबंधित कार्य कर्ता होते हैं। शहरीकरण की प्रक्रिया में शहरों एवं नगरों की संख्या बढ़ जाती है, और साथ ही साथ उनकी जनसंख्या भी बढ़ जाती है। शहरी जनसंख्या में वृद्धि होना तो शहरीकरण का एक पक्ष है।’’
शहरीकरण की प्रमुख समस्याएं
तीव्रता से होने वाले शहरीकरण से कई समस्याएं उत्पन्न हुई हैं, विशेष रूप से विकासशील देशों की सरकारों के लिए। हालांकि शहरों में रहने वाले लोगों को अतिरिक्त आय का लाभ मिलता है, शहरों में कई प्रकार की समस्याएं भी होती हैं, जैसे कि निर्धनता, बेरोज़गारी, प्रदूषण, भीड़भाड़ आदि। टौली तथा टौमस के अनुसार, शहरीकरण को प्रभावित करने वाले तीन कारक हैं, जो इस प्रकार हैं:
- पर्यावरणीय कारक, जो प्रदूषण तथा शहरों के खचाखच भरे होने के कारण होते हैं।
- कई शहरों में ‘सुरक्षित आजीविका’ होती है यानि, देहाड़ी की दरें एक स्तर से नीचे नहीं जा सकतीं, जिसके कारण किसी शहर की जनसंख्या सामान्य से अधिक या कम भी हो सकती है।
- कुछ आकर्षक शहरी क्षेत्र आवश्यकता से अधिक जनसंख्या को आकर्षित करते हैं, जिससे कुछ विकासशील देशों के शहरों में विभिन्न प्रकार की समस्याएं हो जाती है
शहरी विकास की चुनौतियां
- शहरीकरण तथा स्वास्थ्य,
- शहरीकरण तथा शिक्षा,
- शहरीकरण तथा स्वच्छता,
- शहरीकरण तथा स्वच्छ पेयजल,
- शहरीकरण तथा आवास समस्या,
- शहरीकरण तथा प्रदूषण,
- शहरीकरण तथा निर्धनता
शहरीकरण तथा स्वास्थ्य
स्वास्थ्य, शहरीकरण का अभिन्न अंग है; तथा शहरी निवासियों के लिए एक कुशल, उचित एवं सुगम स्वास्थ्य व्यवस्था उपलब्ध कराना शहरी प्रशासन का कर्त्तव्य है। शहरी क्षेत्रों में, विशेषकर झोपड़पटि्टयों में, कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं और इनका मुख्य कारण है वहां का प्रदूषित वातावरण एव स्वच्छ रहन-सहन का अभाव। खचाखच भरे होने के कारण तथा झुग्गी-झोपड़ियों के साथ-साथ सटे होने से झोपड़पटि्टयों में कई प्रकार के संक्रामक रोग- जैसे न्यूमोनिया, टीबी तथा दस्त- फैलने की आशंका बनी रहती है। जब लोग, विशेषकर बच्चे, ऐसे आवासीय क्षेत्रों में पलते हैं जहां बहुत से घर पास-पास बने होते हैं, गंदगी फैली होती है, शोर बहुत अधिक होता है, तथा पढ़ाई-लिखाई एवं मनोविनोद के लिए न कोई स्थान हो न साधन, तो ऐसे बच्चे अक्सर बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। बच्चों के अतिरिक्त, महिलाएं विशेषकर गर्भवती महिलाएं, दूषित वातावरण से प्रभावित होती हैं। जब गर्भवती स्त्रियों के रक्त में कार्बन मोनोक्साइड का संदूषण होता है, तो उनके गर्भ में पल रहे भ्रूण पर कुप्रभाव पड़ता है।
शहरीकरण तथा शिक्षा
हालांकि शहरों में शिक्षा के पर्याप्त अवसर मिलते हैं, परन्तु शहरों में रहने वाले निर्धन लोगों के लिए कई बार यह अप्राप्य हो जाती है क्योंकि उनके पास पर्याप्त साधन नहीं होते। शहरीकरण से शहरों तथा नगरों में उच्च शिक्षा को बढ़ावा मिला है। शहरों के विकास से विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई है। इसके परिणामस्वरूप शहरों में, ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा साक्षरता बढ़ी है। फिर भी, शहरों के झुग्गी-झोपड़ी वाले क्षेत्रों में शिक्षा पहुंचाना आज भी एक बड़ी चुनौती है।
शहरीकरण तथा स्वच्छता
शहरों में स्वच्छता बनाए रखना एक बड़ी समस्या है क्योंकि शहरों की बढ़ती जनसंख्या के कारण वहां की स्वच्छता व्यवस्था चरमरा रही है। साधारणतया, स्वच्छता का अर्थ है कूड़ा निकासी की कुशल व्यवस्था। भारत में चार करोड़ लोग ऐसे झुग्गी झोपड़ी क्षेत्रों में रहते हैं जहां स्वच्छता एवं कूड़ा निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। अधिकांश रूप से भारत में अनियोजित झुग्गी-झोपड़ी समूहों में या तो जल-निकासी की व्यवस्था है ही नहीं; यदि है तो इतनी जीर्ण अवस्था में है कि शहरीकरण: एक समीक्षा जल-निकासी होने के विपरीत, गंदा पानी जगह-जगह जमा हो जाता है। गंदा पानी निकालने के लिए खुली नालियां झुग्गी-झोपड़ियों के बीचोबीच बहती हैं तथा वहां रहने वालों के स्वास्थ्य पर इसका कुप्रभाव पड़ता है। कई शहरों में कूड़ा-निकासी एवं जल-निकासी एक विकट समस्या बन जाती है तथा प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी हो जाती है। कई बार देखा गया है कि बड़े शहरों के निवासी विशेषकर बच्चे, ऐसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रस्त होते हैं जो अस्वच्छ कूड़ा-निकासी से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण से पनपती हैं।
शहरीकरण तथा स्वच्छ पेयजल
विकासशील देशों के अधिकांश शहरी क्षेत्रों में लोगों के लिए स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था करना प्रशासन के लिए समस्या है। यूनाइटिड नेशंस प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वच्द पेयजल को मानव अधिकार के रूप में देखते हैं; किंतु लाखों लोगों के लिए यह अभी भी अप्राप्य है। संयुक्त राष्ट संघ के आंकड़ों के अनुसार, अफ्रीका के महाद्वीप पर 40 करोड़ लोग शहरों में रहते हैं, किन्तु सन् 2008 के आंकड़ों के अनुसार 5.5 करोड़ लोगों को स्वच्छ पेयजल नहीं मिलता। स्टौक्होम इन्टरनेश्नल वॉटर इंस्टियूट के अनुसार, तीव्रता से होने वाले शहरीकरण से पेयजल उपलब्ध कराने में अनेक अड़चनें आती हैं। ऐसा कहा जाता है कि विश्व में एच.आई.वी.ऐड्ज़, मलेरिया तथा युद्धों को मिलाकर जितने लोगों की मृत्यु हुई है, उससे कहीं अधिक संख्या में गंदा पानी पी कर लोगों की जानें गई हैं। मानव जीवन के इस संकट से न केवल परिवारों की क्षति होती है, बल्कि देशों के आर्थिक विकास में भी रुकावट आती है।
शहरीकरण तथा आवास समस्या
शहरीकरण की एक बड़ी चुनौती है शहरी जनसंख्या के लिए अच्छे आवास की व्यवस्था। परन्तु शहरों की बढ़ती जनसंख्या ने आवास की समस्या खड़ी कर दी है, जिससे कई लोग झोपड़ियों तथा झुग्गियों में रहने को विवश हो जाते हैं। अत्यधिक शहरीकरण ने शहरी प्रशासन के लिए कई समस्याएं खड़ी कर दी हैं और दिल्ली, मुम्बई, कल्कत्ता तथा अहमदाबाद में तो झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों, अवैध कौलनियों तथा अनाधिकृत आवासीय समूहों ने एक विकट समस्या खड़ी कर दी है।
शहरीकरण तथा प्रदूषण
शहरीकरण तथा प्रदूषण का आपस में घनिष्ठ सम्बंध है। बड़े शहरों में झुग्गी-झोपड़ी एवं अवैध बस्तियों तथा वाहनों की बढ़ती संख्या ने प्रदूषण को बढ़ावा दिया है। कारखानों एवं वाहनों से होने वाला वायु प्रदूषण तथा घरों में प्रयोग होने वाला मिट्टी का तेल एवं जलावन लकड़ी से होने वाले वायु प्रदूषण, दोनों से ही बच्चों तथा बड़ों में श्वसन रोग होते हैं। यहां तक कि, भारत में पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों में होने वाली मृत्यु का यह सबसे बड़ा कारण है। खुले में कूड़ा-कचरा जलाने से विषैली गैस उत्पन्न होती है और शहरों में वायु प्रदूषण का कारण बनती है। कार्बन डायौक्साइड तथा नायट्रोजन औक्साइड जैसी विषैली गैस से न केवल श्वसन रोग होते हैं, इनका मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर लम्बे समय तक कुप्रभाव पड़ता है।
शहरीकरण तथा निर्धनता
कहा जाता है कि विकासशील देशों के शहरों की सबसे विकट समस्या है निर्धनता तथा बेराज़गारी। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार विश्व की एक-तिहाई शहरी जनसंख्या निर्धनता में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यह भी देखा गया है कि केवल विकासशील देशों में ही नहीं, बल्कि विकसित देशों के शहरों में भी भीड़भाड़, भुखमरी, रोग, अपराध तथा कुपोषण जैसी गंभीर समस्याएं प्रचंड होती जा रही है। इसी शहरी निर्धनता के कारण अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जैसे कि आवास, जल, स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा एवं रोज़गार। शहरी निर्धनता एवं बढ़ते हुए झुग्गी-झोपड़ी समूहों के कारण भारत के लिए अपने शहरों को सुचारू, सक्षम, उत्पादक तथा स्थायी विकास के सिद्धांतों पर चलाना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है।
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