संघर्ष का अर्थ लिखिए तथा संघर्ष के विभिन्न के प्रकार का वर्णन कीजिये - कॉन्फ्लिक्ट या संघर्ष शब्द का अर्थ है बेमेल या असंगत। उदाहरण के लिए हम अक्सर बे
संघर्ष का अर्थ लिखिए तथा संघर्ष के विभिन्न के प्रकार का वर्णन कीजिये
संघर्ष का अर्थ
कॉन्फ्लिक्ट या संघर्ष शब्द का अर्थ है बेमेल या असंगत। उदाहरण के लिए हम अक्सर बेमेल या विरोधी मूल्यों, विश्वासों या निष्ठाओं का उल्लेख करते हैं। संघर्ष या विरोध तब आरम्भ होता है जब हितों, ध्येयों, मूल्यों और विश्वासों के दो भिन्न समुच्चयों का अस्तित्व होता है। दूसरे शब्दों में, संघर्ष या विरोध उस स्थिति का नाम है जिसमें सम्बन्धों के बेमेल या असंगत पहलुओं का अस्तित्व होता है। पर संघर्ष तब ही होता है जब दोनों सम्बद्ध पक्ष हितों और मूल्यों की असंगतता प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं। भविष्य की हानि का भय भी उतनी शक्ति से कार्य कर सकता है जितनी शक्ति से वर्तमान हानि का प्रत्यक्ष दर्शन। आरम्भिक अवस्था में संघर्ष को गुप्त या प्रच्छन्न संघ (लेटेण्ट कॉन्फ्लिक्ट) कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि संघर्ष केवल आरम्भिक अवस्था में होता है जिसमें दोनों पक्ष अपने हितों को परस्पर असंगत या बेमेल समझते हैं। पर प्रच्छन्न या गुप्त संघर्ष उस समय प्रकट (ओवर्ट कॉन्फ्लिक्ट) संघर्ष बन जाता है जब दोनों सम्बद्ध पक्ष ऐसे व्यवहार से उसका परिहार करने का निश्चय कर लेते हैं जो उसी प्रकार असंगत या परस्पर हानिकारक होता है। दूसरे शब्दों में, गुप्त संघर्ष तब होता है जब असंगत हित प्रत्यक्ष हो जाता है, और यह प्रकट संघर्ष तब हो जाता है जब हितों की असंगतता को असंगत साधनों द्वारा दूर करने का प्रयत्न किया जाता है। 1962 से पहले भारत और चीन का संघर्ष सिर्फ गुप्त संघर्ष था पर 1962 में जब चीन ने खुले आम बलप्रयोग का सहारा लिया तब यह प्रकट संघर्ष बन गया।
संघर्ष के प्रकार
- गुप्त संघर्ष (Unidentified Conflict)
- प्रकट संघर्ष (Identified Conflict)
गुप्त संघर्ष (Unidentified Conflict) - गुप्त संघर्ष का अर्थ है वह संघर्ष जो परस्पर प्रत्यक्ष किये गये उन असंगत हितों के अस्तित्व पर आधारित है जो विवाद के किसी एक क्षेत्र या कुछ निश्चित क्षेत्रों में स्थित समझे जाते हैं।
प्रकट संघर्ष (Identified Conflict) - प्रकट संघर्ष वह है जो किसी राज्य की आत्मा से अभिन्न होता है और जिसका अस्तित्व विवाद के निश्चित क्षेत्रों के अभाव में भी रह सकता है। लेकिन ऐसा कोई निश्चित नियम नहीं है जिसके अनुसार कोई गुप्त संघर्ष प्रकट संघर्ष के रूप में आ जाता है।
शायद, यह बहुत हद तक उस चीज पर निर्भर होता है जिसे रॉबर्ट नॉर्थ"किसी राज्य की सहिष्णुता की देहलीज" कहता है, या जिसे चेस्टर्न बर्नार्ड "उदासीनता का क्षेत्र" कहता है। दूसरे शब्दों में, संघर्ष के परिवर्तन की प्रक्रिया केवल तब तक रुकी रहती है जक तक चोट खाया हुआ पक्ष चोट को सहता रहता है। पर सहिष्णुता की मात्रा स्वयं बहुत सारे कारकों के हिसाब-किताब पर निर्भर होती है।
राजनितिक संघर्ष
संघर्ष का संप्रत्यय इसके प्रायः सभी रूपों-आर्थिक, राष्ट्रीय या राजनीतिक पर लागू होता है। पर यहाँ हमारा उद्देश्य राजनीतिक संघर्ष की समीक्षा करना है। संघर्ष के बारे में किये गये अध्ययनों के आधार पर आर्थिक संघर्ष के सिद्धान्त को राजनीतिक संघर्ष पर लागू किया है और राजनीतिक संघर्षों के कुछ विशेष लक्षण बताये हैं। राजनीतिक संघर्ष का एक लक्षण यह है कि राज्यों की प्रतियोगिता में शक्ति और युद्ध का नाटकीय एकान्तरण देखने में आता है। इस एकान्तरण को गुप्त संघर्ष और प्रकट संघर्ष का एकान्तरण भी कहा जा सकता है। जब संघर्ष गुप्त होता है तब धमकी, वायदे और दबाव के साधन प्रयोग में लाये जाते हैं। जबकि प्रकट संघर्ष में प्रयुक्त साधन युद्ध है। कैनेथ बोल्डिंग ने गुप्त-प्रकट सम्बन्ध को राजनय-युद्ध सम्बन्ध की संज्ञा दी है। उसके अनुसार, राजनीतिक संबंधों की स्थिति में, शान्ति काल में राजनीति का सबसे कारगर साधन राजनय है और जब कभी राजनय विफल हो जाता है तभी संघर्ष का सहारा लेते हैं। राजनय से संघर्ष में परिवर्तन की यह प्रक्रिया गुप्त संघर्ष में बदलने की प्रक्रिया कहलाती है। इस प्रक्रिया में दो अन्य प्रक्रियाएँ भी कार्यरत रहती हैं। एक है सुधार प्रक्रिया और दूसरी है बिगाड़ प्रक्रिया। बिगाड़ प्रक्रिया में राजनीतिक सम्बन्ध राजनय की लगातार विफलता के परिणामस्वरूप अधिकाधिक बिगड़ते जाते है। बिगाड़ प्रक्रिया के लक्षण हैं हथियारों की होड़ और आपसी भय की वृद्धि। दूसरी ओर सम्बन्धों का सुधरना सुधार प्रक्रिया कहलाता है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले संघर्षों की एक विशेषता इस कारण होती है कि यद्ध एक महत्वपूर्ण सामाजिक घटना है और युद्ध सदा राजनयिक सम्बन्धों के टूटने के भय का सूचक होता है। अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों के अध्ययन में भयजनकता या धमकियों का विशेष अर्थ होता है। किसी धमकी के महत्व के दो आयाम होते हैं- एक तो स्वयं धमकी का परिणाम और दूसरा इसकी व्यक्तिनिष्ठ या अनुभवात्मक संभाव्यता। यदि कोई धमकी इस तरह दी जाये कि उससे धमकी के पात्र को कोई हानि की सम्भावना न अनुभव हो तो इस धमकी का कोई फल नहीं होगा। दूसरी ओर, धमकी भी ऐसे तरीके से दी जानी चाहिये कि धमकी पाने वाले पक्ष को यह विश्वास हो कि धमकी के अनुसार कार्यवाही की जाने वाली है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में मोटे तौर से तीन प्रकार की धमकियाँ या भय होते हैं। दण्ड की धमकी, विजय की धमकी और विनाश की धमकी। असल में ये सब राष्ट्रीय शक्ति के साधन हैं। अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष की तीसरी विशेषता यह है कि इसमें प्रतिरक्षात्मक संगठन और हथियार भी होते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में भौगोलिक सीमाओं का बड़ा महत्व है। राष्ट्रों की सीमाएँ सुनिर्धारित हुआ करती हैं और सीमा का कोई भी अतिक्रमण सबसे अधिक चिन्ता का विषय माना जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय सीमाएँ राजनय द्वारा बदलना कठिन है। आज एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका के कई देशों के मध्य सीमा समस्याएँ हैं और वह निश्चय ही एक नये प्रकार के अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष पैदा होने का बड़ा कारण है।
COMMENTS