कुबेरनाथ राय का जन्म उत्तर प्रदेश में गाजीपुर में 26 मार्च 1933 ई. को हुआ। उन्हें हिंदी के प्रमुख निबंध कारों में से एक मन जाता है। इस ल...
कुबेरनाथ राय का जन्म उत्तर प्रदेश में गाजीपुर में 26 मार्च 1933 ई. को हुआ। उन्हें हिंदी के प्रमुख निबंध कारों में से एक मन जाता है। इस लेख के माध्यम से हम कुबेरनाथ राय जी का जीवन परिचय, रचनाएं, भाषा शैली तथा निबंधों के बारे में जानेंगे।
कुबेरनाथ राय का जीवन परिचय
हिन्दी निबन्धकारों में विशिष्ट स्थान रखने वाले श्री कुबेरनाथ राय का जन्म उत्तर प्रदेश में गाजीपुर के एक गाँव मतसाँ में 26 मार्च 1933 ई. को हुआ। इनके पिता संस्कृत के गंभीर अध्येता थे और पितामह भी साहित्यिक रुचि सम्पन्न थे। इन्होंने कलकत्ता से निकलने वाले पत्रों का संपादन किया। कुबेरनाथ जी को साहित्य-अध्ययन व लेखन की अभिरुचि विरासत में मिली। इन्होंने क्वींस कॉलेज वाराणसी से विज्ञान विषय में स्नातक स्तर तक शिक्षा प्राप्त की और कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम.ए. किया।
1959 से 1986 तक वे नलवारी कॉलेज, नलवारी (असम) में अंग्रेजी के आचार्य व विभागाध्यक्ष के पद पर प्रतिष्ठित रहे। 1986 से गाजीपुर के सहजनंद कॉलेज के प्राचार्य पद पर कार्यरत हैं। साहित्य सृजन के प्रति उनकी गहन रुचि है जो उनके निवन्धों में भी झलकती है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में इनके निवन्ध प्रकाशित होते रहे हैं। कुवेरनाथ जी आधुनिक युग के निबंध लेखकों में ललित निबन्धकार रहे हैं और इनके निवन्धों में विषय की दृष्टि से विविधता मिलती है। भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ साहित्यिक ग्रंथ 'रामचरितमानस' और 'महाभारत' में उनकी विशेष रुचि रही है। इसीलिए अपनी रचनाओं में वे वैदिक संस्कृति और पौराणिक मिथकों का आवश्यकतानुरूप उल्लेख करते हैं। इसके अतिरिक्त इतिहास, पुरातत्त्व, ज्योतिष, दर्शन, काव्यशास्त्र आदि विषयों को भी इन्होंने अपनी लेखनी से सुसज्जित किया है। श्री राय का निधन 5 जून 1996 को हुआ को उनके पैत्रिक गांव मतसा में हुआ।
कुबेरनाथ राय की रचनाएँ
'प्रिया नीलकंठी', 'गंधमादन', 'रस आखेटक', 'निषाद बाँसुरी', 'विषाद योग', 'माया बीच', 'मन पवन की नौका', 'दृष्टि अभिसार', 'पर्णमुकुट', 'मणिपुतुल के नाम', 'महाकवि की तर्जनी', 'राम कथा : बीज और विस्तार', त्रेता का वृहत्साम' आदि इनकी प्रकाशित रचनाएँ हैं।
'प्रिया नीलकंठी', 'गंधमादन', 'विषाद योग' – नामक संग्रह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं।
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की परंपरा के निबंधकार श्री कुबेरनाथ राय ने अपने निवन्धों में भारतीय संस्कृति में आर्येतर तत्त्वों का महत्त्व, रामकथा के अनेक प्रसंगों की मौलिक व्याख्या और संस्कृति के साथ इतिहास का नवीनतम बोध प्रदान करने का प्रयास निरंतर किया है। इनकी इस विशेषता के कारण ही पाठक और लेखक के मध्य आत्मीयता दिखाई देती है।
कुबेरनाथ राय की भाषा शैली
कुबेरनाथ जी की भाषा-शैली विषयानुरूप होने के साथ-साथ विशेष लालित्य एवं रोचकता से युक्त होते हुए भी अनावश्यक अलंकरण से रहित है। गूढ़ चिंतन और गंभीरता प्रधान निबंधों की भाषा भी पैनापन लिए हुए है। विषय-संप्रेषण के लिए इन्होंने विभिन्न प्रतीकों, लाक्षणिकता और विंव योजना का आधार भी लिया है, इसलिए कहीं-कहीं भाषा संश्लिष्ट हो गई है। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि माधुर्य तथा ओज का मिश्रण, उक्ति वैचित्र्य, इतिहास और पुराण का नूतन संदर्भ में प्रयोग, प्रतीकात्मकता और चित्रात्मकता आदि विशेषताएँ इनकी भाषा में स्पष्ट झलकती हैं।
गंभीर विषय की प्रस्तुति में तत्सम शब्दों का बाहुल्य होने पर भी वे उर्दू, फारसी, अंग्रेजी, देशज एवं तद्भव शब्दों का यथानुरूप प्रयोग करते हैं। मुहावरे और लोकोक्तियों का सटीक प्रयोग इनकी भाषा का गुण है। इस सम्बन्ध में हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी का मत उल्लेखनीय है-"कुबेरनाथ के निबंधों में काव्यात्मक संवेदन के साथ विविध प्रसंगों को लेकर सूक्ष्म पर्यवेक्षण होते हैं। भाषा का प्रवाह बराबर समरस रहता है और बीच-बीच में कुछ बौद्धिक विवेचन का क्रम बना रहता है। यात्रा-प्रसंगों के साथ मानसिक उहापोह भी चलता है यों निबंध का विधान यहाँ पूरी तरह तोषप्रद बना रहता है।"
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