गार्गी का जीवन परिचय व कहानी। Gargi Biography in Hindi
प्राचीन काल से ही हमारे देश में ऐसी महान नारियाँ जन्म लेती रही हैं जिन्होंने ज्ञान-विज्ञान, त्याग-तपस्या, साहस और बलिदान के अतुलनीय उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। जिन्होंने अपने ज्ञान से यह बता दिया कि अगर बालिकाओं को शिक्षा के अवसर प्रदान किए जाएँ तो वे पुरुषों से किसी भी प्रकार कम नहीं साबित होंगी ।
वैदिक काल में ऐसी ही एक ज्ञानवती महिला हुई हैं- गार्गी। गर्ग गोत्र में जन्म लेने के कारण इन्हें गार्गी कहा जाता था। गार्गी अत्यन्त शिक्षित, विदुषी महिला थीं।
एक बार राजा जनक ने यज्ञ किया। उसमें देशभर के प्रकाण्ड विद्वान उपस्थित हुए। राजा जनक के मन मेें यह इच्छा जाग्रत हुई कि जो विद्वान यहाँ आए हैं, पता लगाया जाय इनमें सर्वश्रेष्ठ विद्वान कौन है ?
इसके लिए उन्होंने अपनी गौशाला की एक हजार गायों के सींगों में दस-दस तोला सोना बँधवा दिया और घोषणा की कि जो सर्वश्रेष्ठ विद्वान हो वह इन सब गायों को ले जाए। सभी विद्वान घबरा गए क्योंकि गायें ले जाने का अर्थ था स्वयं को सर्वश्रेष्ठ विद्वान साबित करना। जब कोई भी गायें लेने आगे नहीं बढ़ा तो याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्यों से कहा, ’’उठो और गायों को ले चलो।’’ शिष्य गायों को बाँध कर ले जाने लगे। इस पर विद्वानों को क्रोध आ गया। उन्होंने बिगड़कर याज्ञवल्क्य से पूछा, ’’क्या तुम इतनी बड़ी सभा में स्वयं को सबसे बड़ा विद्वान समझते हो?’’ याज्ञवल्क्य ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया, ’’यह बात नहीं है। यहाँ उपस्थित सभी विद्वानों को मैं प्रणाम करता हूँ। मैं गायें इसलिए ले जा रहा हूँ, क्योंकि मुझे इनकी आवश्यकता है।’’
फिर क्या था, सभी विद्वान चिल्ला उठे, ’’हमसे शास्त्रार्थ करो।’’ याज्ञवल्क्य इस बात पर सहमत हो गए और विनम्रतापूर्वक सभी विद्वानों के प्रश्नों का उत्तर देने लगे। धीरे-धीरे सभी विद्वान प्रश्न पूछ कर चुप हो गये। अन्त में गार्गी ने कहा, ’’राजन! आज्ञा हो तो मैं भी प्रश्न करूँ।’’ राजा जनक ने आज्ञा दे दी। गार्गी ने याज्ञवल्क्य से प्रश्न पूछना प्रारम्भ कर दिया। गार्गी के प्रश्न अत्यन्त पैने तथा गहन अध्ययन पर आधारित थे। प्रश्नों को सुनकर विद्वतमण्डली मन ही मन गार्गी के ज्ञान की सराहना करने लगी।
गार्गी याज्ञवल्क्य के बीच हुए संवाद का वर्णन:-
याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने के लिए गार्गी उठीं और पूछा कि हे ऋषिवर! क्या आप अपने को सबसे बड़ा ज्ञानी मानते हैं, जो आपने गायों को हांकने के लिए अपने शिष्यों को आदेश दे दिया?
याज्ञवल्क्य ने कहा कि मां! मैं स्वयं को ज्ञानी नहीं मानता परन्तु इन गायों को देख मेरे मन में मोह उत्पन्न हो गया है। गार्गी ने कहा कि आपको मोह हुआ, लेकिन यह इनाम प्राप्त करने के लिए योग्य कारण नहीं है। अगर सभी सभासदों की आज्ञा हो तो में आपसे कुछ प्रश्न पूछना चाहूंगी। अगर आप इनके संतोषजनक जवाब दे पाएं तो आप इन गायों को निश्चित ही ले जाएं।'
सभी ने गार्गी को आज्ञा दे दी। गार्गी का प्रश्न था, 'हे ऋषिवर! जल के बारे में कहा जाता है कि हर पदार्थ इसमें घुलमिल जाता है तो यह जल किसमें जाकर मिल जाता है?'
गार्गी का यह पहला प्रश्न बहुत ही सरल था, लेकिन याज्ञवल्क्य प्रश्न में उलझकर क्रोधित हो गए। बाद में उन्होंने आराम से और ठीक ही कह दिया कि जल अन्तत: वायु में ओतप्रोत हो जाता है। फिर गार्गी ने पूछ लिया कि वायु किसमें जाकर मिल जाती है और याज्ञवल्क्य का उत्तर था कि अंतरिक्ष लोक में।
पर गार्गी याज्ञवल्क्य के हर उत्तर को प्रश्न में बदलती गई और इस तरह गंधर्व लोक, आदित्य लोक, चन्द्रलोक, नक्षत्र लोक, देवलोक, इन्द्रलोक, प्रजापति लोक और ब्रह्मलोक तक जा पहुंची और अन्त में गार्गी ने फिर वही प्रश्न पूछ लिया कि यह ब्रह्मलोक किसमें जाकर मिल जाता है?
इस पर गार्गी पर क्रोधित होकर याज्ञवक्ल्य ने कहा, 'गार्गी, माति प्राक्षीर्मा ते मूर्धा व्यापप्त्त्’। अर्थात गार्गी, इतने प्रश्न मत करो, कहीं ऐसा न हो कि इससे तुम्हारा मस्तक फट जाए। अच्छा वक्ता वही होता है जिसे पता होता है कि कब बोलना और कब चुप रहना है और गार्गी अच्छी वक्ता थी इसीलिए क्रोधित याज्ञवल्क्य की फटकार चुपचाप सुनती रही।
दूसरे प्रश्न में गार्गी ने अपनी जीत की कील ठोंक दी। उन्होंने अपने प्रतिद्वन्द्वी यानी याज्ञवल्क्य से दो प्रश्न पूछने थे तो उन्होंने बड़ी ही लाजवाब भूमिका बांधी।
गार्गी ने पूछा, 'ऋषिवर सुनो। जिस प्रकार काशी या अयोध्या का राजा अपने एक साथ दो अचूक बाणों को धनुष पर चढ़ाकर अपने दुश्मन पर लक्ष्य साधता है, वैसे ही मैं आपसे दो प्रश्न पूछती हूं।' गार्गी बड़े ही आक्रामक मूड में आ गई।
याज्ञवल्क्य ने कहा- हे गार्गी, पूछो।
गार्गी ने पूछा, 'स्वर्गलोक से ऊपर जो कुछ भी है और पृथ्वी से नीचे जो कुछ भी है और इन दोनों के मध्य जो कुछ भी है, और जो हो चुका है और जो अभी होना है, ये दोनों किसमें ओतप्रोत हैं?'
गार्गी का पहला प्रश्न अन्तरिक्ष' और दूसरा 'समय' के बारे था। अन्तरिक्ष' और दूसरा 'समय' के बाहर भी कुछ है क्या? नहीं है, इसलिए गार्गी ने बाण की तरह पैने इन दो प्रश्नों के जरिए यह पूछ लिया कि सारा ब्रह्माण्ड किसके अधीन है?
याज्ञवल्क्य ने कहा- एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गी।’ यानी कोई अक्षर, अविनाशी तत्व है जिसके प्रशासन में, अनुशासन में सभी कुछ ओतप्रोत है। गार्गी ने पूछा कि यह सारा ब्रह्माण्ड किसके अधीन है तो याज्ञवल्क्य का उत्तर था- अक्षरतत्व के! इस बार याज्ञवल्क्य ने अक्षरतत्व के बारे में विस्तार से समझाया।
इस बार गार्गी अपने प्रश्नों के जवाब से इतनी प्रभावित हुई कि जनक की राजसभा में उसने याज्ञवल्क्य को परम ब्रह्मिष्ठ मान लिया। इसके बाद गार्गी ने याज्ञवल्क्य की प्रशंसा कर अपनी बात खत्म की तो सभी ने माना कि गार्गी में जरा भी अहंकार नहीं है। गार्गी ने याज्ञवल्क्य को प्रणाम किया और सभा से विदा ली। गार्गी का उद्येश्य ऋषि याज्ञवल्क्य को हराना नहीं था।
जैसे कि पहले ही कहा गया है कि गार्गी वेदज्ञ और ब्रह्माज्ञानी थी तो वे सभी प्रश्नों के जवाब जानती थी। यहां इस कहानी को बताने का तात्पर्य यह है कि अर्जुन की ही तरह गार्गी के प्रश्नों के कारण 'बृहदारण्यक उपनिषद्' की ऋचाओं का निर्माण हुआ।
अंततः एक प्रश्न ऐसा आया जिस पर याज्ञवल्क्य रुक गए और उत्तर न दे सके किन्तु गार्गी अत्यन्त बुद्धिमती थीं। वह नहीं चाहती थीं कि किसी विद्वान का अपमान हो और वह भी याज्ञवल्क्य जैसे परम विद्वान का। वह चुप हो गयीं और भरी सभा में कहा,‘‘इस सभा में याज्ञवल्क्य से बड़ा कोई विद्वान नहीं है। इन्हें कोई नहीं हरा सकता।“ सारी सभा गार्गी की विद्वता और उदारता की मुक्त कंठ से प्रशंसा करने लगी। ज्ञान और उदारता की ऐसी बेजोड़ प्रतिभाएँ निश्चय ही हमारे देश का गौरव हैं।
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