भारत में समावेशी विकास एवं चुनौतियाँ
भारत में समावेशी विकास एवं चुनौतियाँ! Read this article in Hindi to learn about:- 1. भारत में समावेशी विकास से आशय (Concept of Inclusive Development in India) 2. समावेशी विकास की चुनौतियां (Challenges for Inclusive Growth in India) 3. सरकार द्वारा समावेशी विकास की दिशा में किये जा रहे प्रयास...
समावेशी विकास से तात्पर्य ऐसे विकास से है जिसमें तेज आर्थिक विकास, उच्च घरेलू विकास दर तथा अधिक राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है और स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ पर्यावरण, पौष्टिक भोजन जैसी बुनियादी सुविधाओं का लाभ कमजोर वर्गों सहित सभी वर्गों तक पहुँचता है। इस प्रकार समावेशी विकास की रणनीति निर्धनता रेखा से नीचे रह रहे कमजोर वर्गों को रोजगार के अवसरों में वृद्धि तथा सामाजिक सेवाओं का लाभ वास्तव में इन तक पहुँचकर जीवन स्तर में गुणात्मक सुधार लाने पर केन्द्रित है।
अत: विकास एवं वितरण तथा सामाजिक न्याय को प्रभावी बनानेके लिए सामवेशी विकास अपरिहार्य है। यह विकासके वितरणात्मक पहलू पर बल देता है और समता के सैद्धान्तिक पहलू को न्याय के व्यवहारिक धरातल से मिलाकर विकास के सारे क्षेत्रों को स्वयं में समाहित करता है।
समावेशी विकास से आशय है कि :-
(1) आधारभूत वस्तुओं तक सबकी पहुँच हो।
(2) शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी, कमजोर वर्ग के लोगों को रोजगार वृद्धि प्रक्रिया से जोड़ा जाये तथा कृषि, ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में निवेश तथा आय वृद्धि के प्रभावी उपाय किये जायें।
(3) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यकों, कमजोर वर्गों, निर्धनों महिलाओं का सामाजिक तथा आर्थिक सशक्तिकरण हो।
(4) स्वास्थ्य शिक्षा आवास तथा खाद्य सुरक्षा पर सर्वाधिक सार्वजनिक व्यय किया जाये।
(5) वित्तीय समावेशन किया जाये।
(2) शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी, कमजोर वर्ग के लोगों को रोजगार वृद्धि प्रक्रिया से जोड़ा जाये तथा कृषि, ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में निवेश तथा आय वृद्धि के प्रभावी उपाय किये जायें।
(3) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यकों, कमजोर वर्गों, निर्धनों महिलाओं का सामाजिक तथा आर्थिक सशक्तिकरण हो।
(4) स्वास्थ्य शिक्षा आवास तथा खाद्य सुरक्षा पर सर्वाधिक सार्वजनिक व्यय किया जाये।
(5) वित्तीय समावेशन किया जाये।
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विश्व
बैंक में समावेशी विकास को गति और विकास की संरचना के रूप में परिभाषित किया है।
यह वह गति है, जिसके साथ कोई अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है और
लाभ अधिकमत लोगों तक पहुँचता है। इस धारणा के पीछे विकास की गरीबोन्मुख विचारधारा
है, जिसका आशय ऐसे विकास से है, जिसमें सभी प्रकार
के निर्धनों को प्रथमत: लाभ पहुँचे तथा नीतियाँ एवं कार्यक्रम सामान्यतय: उन
लक्ष्यों को ध्यान में रखकर बनाये जायें, जिसमें उत्पादनों
पर कार्य करने के बजाय गरीबों के बीच आय के पुर्नवितरण पर जोर हो। इसका उद्देश्य
ऐसे समतामूलक समाज का निर्माण करना है जिसमें सभी वर्गों को उच्च गुणवत्तयुक्त
स्वास्थ्य व खुशहाल जीवन जीने का समान अवसर मिल सके और सभी वर्गों के लोक एक ही
प्रकार के खाद्यान्न, वस्त्र, मकान एवं जीवनशैली
में गरिमामय जीवन जी रहे हो।
वास्तव
में भारत के लिए समावेशी विकास कोई नयी अवधारणा नहीं है, बल्कि
हमारी संस्कृति में निहित सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु
निरामय: की सामाजिक परिकल्पना का व्यवहारिक रूप है, जिसे 12वीं
पंचवर्षीय योजना (2012-17) में सर्वाधिक महत्व देते हुए सभी को विकास का सहभागी
बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
भारत में समावेशी विकास की चुनौतियां
मानव विकास रिपोर्ट 2014, विश्व विकस रिपोर्ट 2012, राष्ट्रीय अपराध अभिलेख 2013 तथा मानवाधिकार संचायिका 2012 आदि के विश्लेषण भारत में विकास प्रक्रिया के नकारात्मक पक्षों को उजागर करते हुए समता मूलक समाज के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। वास्तव में भारत की कुल आबादी का 1/3 से अधिक भाग ऐसा है, जो विकास की इस प्रक्रिया से कोसों दूर है। आज भी उसका जीवन रोटी, कपड़ा मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में ही बीत जाता है।
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संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 1/3 गरीब भारत में रहते हैं, जो प्रतिदिन 1.25 अमेरिकी डॉलर से कम में जीवन यापन करते हैं।
हालांकि आज भारत विश्व की दूसरी सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थवयवस्था बन चुका है, तथापि गरीब और अमीर के मध्य अंतर उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है और सापेक्ष गरीबी बढ़ रही है। देश में कुल साक्षरता प्रतिशत 65.38 है, जो इस बात का परिचायक है कि जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग आज भी विकास एवं समाज की मुख्य धारा से अलग है।
आंकड़ों के अनुसार विगत 17 वर्षों में लगभग 3 लाख किसानों द्वारा आत्महत्या, 2007-2012 के मध्य करीब सवा तीन करोड़ किसानों द्वारा अपनी जमीन बेंचकर शहरों में दिहाड़ी मजदूर के रूप में कार्य करने हेतु मजबूर होना आर्थिक विकास का लाभ किसानों तक न पहुँच पाना स्पष्ट दिखाता है।
सरकार
द्वारा समावेशी विकास की दिशा में किये जा रहे प्रयासों में प्रमुख निम्नलिखित है:-
(1) वित्तीय
समावेशन के माध्यम से समाज के असुरक्षित और कमजोर वर्ग को निवेश के अवसर और
अर्थिक वृद्धि के लाभ हेतु धन उपलब्ध कराया जा रहा है। इसका उद्देश्य जमा और
भुगतान खाता, साख बीमा और पेंशन जैसी व्यापक वित्तीय सेवाओं
का लाभ सर्वसुलभ कराना है, इस विषयक प्रधानमंत्री जनधन योजना,
स्वर्ण मौद्रीकरण योजना, मुद्रा बैंक, स्किल
इण्डिया मिशन आदि प्रमुख हैं।
(2) भारत
में प्रशासन की पहुँच सभी तक हो तथा अन्तिम छोर पर बैठा व्यक्ति भी सामाजिक,
आर्थिक बदलाव का लाभ लेकर अपने जीवन स्तर को उन्नत बना सकें,
इसके लिए डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम की शुरूआत की गई है। इसके जरिए सरकार तथा
प्रशासन को जवाबदेह एवं संवेदनशील बनायाजा सकेगा, साथ ही
विभिन्न विभागों, योजनाओं में समन्वय हो सकेगा। ई-हेल्थकेयर,
ई-कोर्ट, ई-पुलिस, ई-बैंकिंग आदि का विस्तार भी इसी के द्वारा सम्भव
है।
(3) किसानों
को विकास की इस प्रक्रिया से जोड़ने हेतु राष्ट्रीय क्रृषि बाजार,
मृदा स्वास्थ्य योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना,
कृषि सिंचाई योजना, कृषि ऋण, डी.डी. किसान चैनल,
कृषि बीमा योजना तथा ई-मण्डी आदि योजनाएं संचालित की जा रही हैं।
(4) प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, मेक इन इण्डिया, स्वच्छ भारत अभियान तथा जनजातियों के विकास हेतु वन बन्धु कल्याण योजना एवं महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता व स्वावलम्बन हेतु बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं, सुकन्या समृद्धि योजना आदि समावेशी विकास की दिशा में संचालित की जा रही है।
(5) किन्तु समावेशी विकास का सामाजिक पक्ष जोकि भारतीय परम्परागत समाज की बुराइयों (जाति, धर्म, रूढि़याँ, अंधविश्वास) के कारण बाधित हे, उसे तमाम संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद समाज के बौद्धिक परिष्करण, मनोवृत्ति में परिवर्तन संवेदनशीलता, मानवीयता तथा शिक्षा में गुणात्मक बढ़ोत्तरी से ही सम्भव है, जो स्वयं से ही प्रारम्भ होता है।
अत: आज भारत में समतामूलक समाज के निर्माण हेतु विकास के उपरोक्त अवसरों को तर्कसंगत तरीके से हासिए पर स्थित वर्गों तथा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों को मुख्य धारा में लाकर क्षेत्र, भाषा, आयु, लिंग, सम्प्रदाय आदि कारकों के ऊपर उठते हुए सामाजिक न्याय एवं सामाजिक सुरक्षा, युक्तियुक्त विभेद तथा लक्षित विकास को समावेशी विकास का पर्याप्त बनाना ही होगा, तभी सभी लोग इस विकास से लाभान्वित होकर गरिमामय जीवन जीवन कल्पना को साकार कर सकेंगे।
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