भारत में समावेशी विकास की अवधारणा। Inclusive Development in Hindi

समावेशी विकास का आशय ऐसे आर्थिक विकास से है जिसमें विकास का लाभ समाज के सबसे कमजोर वर्ग को मिलता है। इस प्रकार समावेशी विकास में ऐसे लोगों को शामिल किया जाता है जो अब तक विकास की प्रक्रिया में छूट गये थे या पीछे रह गए थे। समावेशी विकास की अवधारणा कोई नई अवधारणा नहीं है। यह कहा जा सकता है कि विकास का अर्थ ही समावेशी विकास है। आज हम इसे समावेशी विकास कह कर अपनी पिछली गलतियों को सुधारने सुधारने की चेष्‍टा कर रहे हैं। वास्‍तव में इसके पहले विकास के जो भी प्रयास किए गए उसका लाभ ऊपरी तबके ने अपनी झोली में डाल दिया और वे लोग इससे वंचित रह गए जिन्‍हें वास्‍तव में इसकी जरूरत थी। इसी को ध्‍यान में रखते हुए 12वीं पंचवर्षीय योजना में विकास को समावेशी बनाने पर बल दिया गया है।

भारत में समावेशी विकास की अवधारणा। Inclusive Development in Hindi

समावेशी विकास का आशय ऐसे आर्थिक विकास से है जिसमें विकास का लाभ समाज के सबसे कमजोर वर्ग को मिलता है। इस प्रकार समावेशी विकास में ऐसे लोगों को शामिल किया जाता है जो अब तक विकास की प्रक्रिया में छूट गये थे या पीछे रह गए थे। विश्‍व बैंक द्वारा प्रकाशित इंडिया डेवलपमेंट रिपोर्ट 2006 में कहा गया है कि विकास की प्रक्रिया आर्थिक क्रियाओं के योग का मात्र माप नहीं है। बल्‍कि आर्थिक विकास के समावेशी स्‍वरूप का मूल्‍यांकन है जिसमें आर्थिक लाभों के वितरण पर ही ध्‍यान नहीं दिया जाता बल्‍कि सुरक्षा, सशक्‍तिकरण, विकास में पूर्ण सहभागिता, जैसे कारकों पर भी ध्‍यान दिया जाता है। सामान्‍यता किसी विकास को समावेशी विकास तब माना जाता है जब विकास के साथ-साथ सामाजिक अवसरों का भी समान वितरण हो ऐसे। समावेशी विकास के प्राय: दो लक्षण बताए जाते हैं:
(1)  सेवाओं के वितरण तथा अवसर की उपलब्‍धता में समानता।
(2)  विकास के द्वारा प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति की सशक्‍तिकरण।
समावेशी विकास की अवधारणा कोई नई अवधारणा नहीं है। यह कहा जा सकता है कि विकास का अर्थ ही समावेशी विकास है। आज हम इसे समावेशी विकास कह कर अपनी पिछली गलतियों को सुधारने सुधारने की चेष्‍टा कर रहे हैं। वास्‍तव में इसके पहले विकास के जो भी प्रयास किए गए उसका लाभ ऊपरी तबके ने अपनी झोली में डाल दिया और वे लोग इससे वंचित रह गए जिन्‍हें वास्‍तव में इसकी जरूरत थी। इसी को ध्‍यान में रखते हुए 12वीं पंचवर्षीय योजना में विकास को समावेशी बनाने पर बल दिया गया है। योजना आयोग के अनुसार जनसंख्‍या का बड़ा भाग विकास के लाभ से वंचित है। विकास के स्‍वरूप से उपजी असमानताओंकी चर्चा करते हुए कई प्रकारके असंतुलनों का उदाहरण दिया गया है। जैसे-ग्रामीण व शहरी असमानता, अमरी व गरीब जसंख्‍या के मध्‍य असमानता, पुरुषों व महिलाओं के मध्‍य असमानता, राज्‍यों व राज्‍य के विभिन्‍न क्षेत्रों के मध्‍य असमानता।

इस समय भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में तीव्रवर विकास करने की आवश्‍यकता है क्‍योंकि भारत की आय के मौजूदा स्‍तर पर, इस बात में कोई संशय नहीं है कि यदि हम अपनी जनसंख्‍या के जीवनयापन की आर्थिक स्‍थितियों में व्‍यापक सुधार लाना चाहते हैं और भारत के नवयुवकों की बढ़ती आकांक्षाओं को पूरा करना चाहते हैं तो हमें अर्थव्‍यवस्‍था के उत्‍पादन आधार को बढा़ना होगा। किंतु यदि यह प्राप्‍त लाभों के प्रभाव को पर्याप्‍त रूप से व्‍यापक नहीं करता तो वह विकास ही पर्याप्‍त नहीं है। हमें एक ऐसी विकास प्रक्रिया की आवश्‍यकता है जो और अधिक समावेशी हो, जो गरीबी में अधिक तेजी से कमी लाने के लिए गरीबों की आय को बढ़ाए जो अच्‍छी गुणवत्‍ता वाले रोजगार का विस्‍तार करे और जो जनसंख्‍या के सभी वर्गों के लिए स्‍वास्‍थ्‍य एवं शिक्षा जैसी आवश्‍यक सेवाओं तक पहुंच को भी सुनिश्‍चित करे।। कुछ समय पूर्ण उद्योग महासंघ की वार्षिक बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उद्योग जगत को सामाजिक विकास में भागीदारी हेतु प्रेरित करते हुए समावेशी विकास के लिए दस सूत्रीय रूपरेखा प्रस्‍तुत की गई थी। ये दस सूत्र निम्‍नलिखित हैं:
  1. उद्योग जगत अपने कर्मचारियों तथा श्रमिकों के कल्‍याण के लिए निवेश करे तथा उनके बच्‍चों के स्‍वास्‍थ एवं शिक्षा की व्‍यवस्‍था की साथ सामाजिक सुरक्षा हेतु उपाय करे।
  2. उद्योग जगत को कर भुगतान के साथ अपनी जिम्‍मेदारी को समाप्‍त नहीं मानना चाहिए। उन्‍हें अपनी सामाजिक जिम्‍मेदारी का ध्‍यान रखना चाहिए तथा इसकी पूर्ति के लिए लगातार प्रयास करते रहना चाहिए।
  3. उद्योग जगत को अनुसूचित वर्ग के लोगों, महिलाओं तथा साधनविहीन लोगों को नौकरियों में अवसर उपलब्‍ध कराने के लिए नीति बनानी चाहिए।
  4. कंपनी तथा उद्योगों के उच्‍च पदों पर विराजमान लोगों को अधिक वेतन और भत्‍ते लेने से परहेज करना चाहिए। इस प्रकार कंपनी के व्‍यव में कमी लाकर उस धन को समाज कल्‍याण के क्षेत्र में लगाना चाहिए।
  5. उद्योगों को चाहिए कि वे तकनीकी क्षेत्र में निवेश करके देश के योग्‍य और प्रतिभा सम्‍पन्‍न युवाओं को शोध और अनुसंधान हेतु मदद दें। उद्योगों को नियमित रूप से छात्रवृत्‍ति देने की दिशा में भी सोचना चाहिए।
  6. उद्योग जगत को अपने उत्‍पादोंकी वाजिब कीमत रखनी चाहिए तथा अन्‍य उद्योगोंसे गठबंधन करके उत्‍पादों की कीमत को बढ़ाए रखनेकी नीति का त्‍याग करना चाहिए।
  7. उद्योगो को पर्यावरण के अनुकूल तकनीक को अपनाना चाहिए ताकि भावी पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संसाधनों को बचाए रखा जा सके।
  8. उद्योग जगत को अनुसंधान और विकास की गति में तेजी लाने के लिए सक्रिय योगदान देना चाहिए।
  9. उद्योगों को भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध संघर्षशील होना चाहिए तथा ऐसे उद्योगपति जो राजनीति में भी दखल रखते हैं, को राजनीति और उद्योग के बीच लाभकारी संबंध नहीं बनाना चाहिए।
  10. मीडिया को उत्‍तरदायित्‍वपूर्ण भूमिका में आना चाहिए तथा मीडिया के गैर-जिम्‍मेदाराना व्‍यवहार को हतोत्‍साहित करना चाहिए।

समावेशी विकास अपने विस्‍तृत आकार में सामाजिक न्‍याय की उस अवधारणा का पोषण भी करता है जिसे हमारे संविधान में भी मान्‍यता दी गयी है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि समावेशी विकास अपने आप में एक संपूर्ण और समग्र अवधारणा है। यह सामाजिक बदलाव का कारक है। जहां तक भारत का प्रश्‍न है यह एक विकासशील देश है और कई क्षेत्रों में अभी भी यहां विशेष प्रयास की जरूरत है अपने देश की जरूरतों के मुताबिक समावेशी विकास के निम्‍नलिखित प्रमुख घटकों का उल्‍लेख किया जा सकता है:
  1. आधारभूत संरचनाओं – सड़क, स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं, पेयजल, स्‍वच्‍छता, सिंचाई, शिक्षा इत्‍यादि के क्षेत्र में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए तथा आर्थिक विकास की धारा को इस ओर मोड़ जाना चाहिए।
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन पर विशेष ध्‍यान दिया जाना चाहिए। निचले वर्ग तक विकास की लहर पहुंचने के लिए रोजगार के अवसरों का बढ़ाना नितांत आवश्‍यक है। मनरेगा के अंतर्गत देश में इस दिशा में ठोस प्रयास किया जा रहा है।
  3. कृषि तथा ग्रामीण विकास क्षेत्र में निवेश में वद्धि की जानी चाहिए ताकि ग्रामीण जनता की आय में वृद्धि हो सके।
  4. सूचना प्रौद्योगिकी आधारित तकनीकों की सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच सुनिश्‍चित की जानी चाहिए।
  5. पिछड़ी तथा दलित जातियों, महिलाओं तथा आदिवासियों के सशक्‍तिकरण की दिशा में विशेष प्रयास किया जाना चाहिए।

इस दिशा में कारगर पहले करते हुए केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में आधारिक संरचना के विकास के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री आदर्श गांव योजना, राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना, ग्रामीण आवास योजना, राष्‍ट्रीय बायोगैस कार्यक्रम, ग्रामीण पेयजल योजना, उन्‍नत चूल्‍हा कार्यक्रम, ग्रामीण विद्युतीकरण योजना का संचालन स्‍थानीय स्‍वशासी संस्‍थाओं के माध्‍यम से किया जा रह है। ग्रामीण आवागमन व्‍यवस्‍था को सुदृढ़ करने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क ग्रामीण विकास के क्षेत्र में काफी सहायक सिद्ध हो रही है। इस योजना का मुख्‍य उद्देश्‍य ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क संपर्क से वंचित सभी गांवों को सड़क मार्ग से जोड़ना है।

फ्लैगशिप कार्यक्रम के अंतर्गत जवाहर लाल नेहरू राष्‍ट्रीय नवीनीकरण मिशन, राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम, एकीकृत बाल विकास सेवाएं, राष्‍ट्रीय गामीण स्‍वास्‍थ्‍य मिशन, पूर्ण स्‍वच्‍छता अभियान, राजीव गांधी पेयजल मिशन, सर्वशिक्षा अभियान मध्‍यान्‍ह भोजन योजना पर विशेष ध्‍यान देकर सरकार समावेशी विकास के लक्ष्‍य को शीघ्र अतिशीघ्र हासिल कर लेने की योजना पर काम कर रही है। इसके अतिरिक्‍त केंद्र सरकार द्वारा भारत निर्माण परियोजना का संचालन किया जा रहा है। इसके अंतर्गत असिंचित भूमि को सिचांई सुविधा से युक्‍त करना, दूरवर्ती गांवों को पेयजल उपलब्‍ध कराना, निर्धनों हेतु आवास का निर्माण कराना, सभी गावों को विद्युत तथा टेलीफोन सुविधा से युक्‍त करना इत्‍यादि लक्ष्‍य पर काम चल रहा है।

इस प्रकार समावेशी विकास की प्राथमिकतांए स्‍पष्‍ट हैं। अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों, अन्‍य पिछड़ी जातियों अल्‍पसंख्‍यकों और महिलाओं तथा बच्‍चों के उत्‍थान कार्यक्रमों के साथ-साथ कृषि, सिंचाई, जल संसाधन, स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, ग्रामीण अवसंरचना में महत्‍वपूर्ण निवेश तथा सामान्‍य अवसंरचना के लिए जरूरी सार्वजनिक निवेश संबंधी आवश्‍यकताएं इसमें शामिल हैं। अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए कुछ नई और व्‍यापक आधारवाली योजनाओं को क्रियान्‍वित करना होगा। स्‍वाधीनता के बाद के प्रथम तीन दशकों तक भारत की विकास दर 3.5 प्रतिशत या इसके नीचे ही रही। आज हम 9 प्रतिशत विकास दर के स्‍तर को प्राप्‍त करने में सक्षम हुए हैं किन्‍तु आर्थिक विकास की इस दौड़ में देश के उस भाग को पीछे छोड़ दिया गया है जिसे गांधीजी असली भारत कहते थे। अब हमें विकास का लाभ उस असली भारत तक पहुंचना होगा।

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भारत में समावेशी विकास की अवधारणा। Inclusive Development in Hindi
समावेशी विकास का आशय ऐसे आर्थिक विकास से है जिसमें विकास का लाभ समाज के सबसे कमजोर वर्ग को मिलता है। इस प्रकार समावेशी विकास में ऐसे लोगों को शामिल किया जाता है जो अब तक विकास की प्रक्रिया में छूट गये थे या पीछे रह गए थे। समावेशी विकास की अवधारणा कोई नई अवधारणा नहीं है। यह कहा जा सकता है कि विकास का अर्थ ही समावेशी विकास है। आज हम इसे समावेशी विकास कह कर अपनी पिछली गलतियों को सुधारने सुधारने की चेष्‍टा कर रहे हैं। वास्‍तव में इसके पहले विकास के जो भी प्रयास किए गए उसका लाभ ऊपरी तबके ने अपनी झोली में डाल दिया और वे लोग इससे वंचित रह गए जिन्‍हें वास्‍तव में इसकी जरूरत थी। इसी को ध्‍यान में रखते हुए 12वीं पंचवर्षीय योजना में विकास को समावेशी बनाने पर बल दिया गया है।
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