हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव पर निबंध। Vidyalaya ka Varshik Utsav Nibandh! विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थी के लिये जितना महत्त्व विद्यालय के उत्सवों का होता है उतना घर के उत्सवों का नहीं। प्रत्येक विद्यालय में प्रतिवर्ष स्वतन्त्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि अनेक उत्सव मनाये जाते हैं, परन्तु उनकी दृष्टि में जितना महत्त्व विद्यालय के वार्षिकोत्सव का होता है, उतना अन्य किसी उत्सव का नहीं, क्योंकि उस दिन उन्हें मिलता है उनकी योग्यता, उनकी कार्यकुशलता और उनकी अनुशासनप्रियता का फल पुरस्कार। मेरे विद्यालय का वार्षिकोत्सव 15 फरवरी को मनाया गया, क्योंकि पहली मार्च से बोर्ड की परीक्षा प्रारम्भ हो रही थी। कई दिनों से हम लोग अपने कक्षाध्यापक महोदय की आज्ञानुसार कार्य में व्यस्त थे, तैयारियां जोरों पर थीं। कुछ विद्यार्थियों को निमन्त्रण-पत्र छपवाने का काम दिया गया था और कुछ को बाँटने का। कुछ नाटक की तैयारी में व्यस्त थे। कई दिन से बराबर पूर्वाभ्यास हर हो रहा था। संगीत के अध्यापक रोजाना शाम को छ: बजे घर जाते, क्योंकि नाटक का सारा कार्य भार उन्हीं के कन्धों पर था।
विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थी के लिये जितना महत्त्व विद्यालय के उत्सवों का होता है उतना घर के उत्सवों का नहीं क्योंकि विद्यालय उनके लिए घर से भी बढ़कर होता है। घर आते हैं केवल भोजन करने और सोने के लिए। इस प्रकार उनके विद्यार्थी जीवन का अधिकांश समय कॉलेज की चारदीवारी में ही व्यतीत होता है। कॉलेज के उत्सव को वे अपना उत्सव समझते हैं और घर के उत्सवों को माता-पिता का। प्रत्येक विद्यालय में प्रतिवर्ष तुलसी जयन्ती, सूर जयन्ती, स्वतन्त्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि अनेक उत्सव मनाये जाते हैं, परन्तु उनकी दृष्टि में जितना महत्त्व विद्यालय के वार्षिकोत्सव का होता है, उतना अन्य किसी उत्सव का नहीं, क्योंकि उस दिन उन्हें मिलता है उनकी योग्यता, उनकी कार्यकुशलता और उनकी अनुशासनप्रियता का फल पुरस्कार। उस दिन वे फूले नहीं समाते।
यह उत्सव प्रतिवर्ष फरवरी के अन्त में या मार्च के प्रारम्भ में मनाया जाता है, क्योंकि यह समय अध्यापक और विद्यार्थी दोनों के लिये फुर्सत का होता है। विद्यार्थियों की वर्ष भर की पढ़ाई अब समाप्त हो जाती है। अध्यापक भी पढ़ाने से कुछ थोड़ा-सा मुक्त हो जाते हैं। बोर्ड की परीक्षा के विद्यार्थी इन्हीं दिनों में अपने-अपने कॉलिजों से अन्तिम विदाई लेते हैं। उत्सव के समय ही उपयुक्तता का दूसरा आकर्षण प्रकृति की मनोरमता भी होती है। यह समय बसन्त ऋतु का होता है, चारों और प्रकृति देवी अपने गले में पीले फूलों का हार पहिने हरी-भरी दिखाई पड़ती है। न अधिक जाड़ा होता है और न अधिक गर्मी, कोट से हम स्वेटर पर आ जाते हैं।
मेरे विद्यालय का वार्षिकोत्सव 15 फरवरी को मनाया गया, क्योंकि पहली मार्च से बोर्ड की परीक्षा प्रारम्भ हो रही थी। कई दिनों से हम लोग अपने कक्षाध्यापक महोदय की आज्ञानुसार कार्य में व्यस्त थे, तैयारियां जोरों पर थीं। कुछ विद्यार्थियों को निमन्त्रण-पत्र छपवाने का काम दिया गया था और कुछ को बाँटने का। कुछ नाटक की तैयारी में व्यस्त थे। कई दिन से बराबर पूर्वाभ्यास हर हो रहा था। संगीत के अध्यापक रोजाना शाम को छ: बजे घर जाते, क्योंकि नाटक का सारा कार्य भार उन्हीं के कन्धों पर था। क्राफ्ट के अध्यापक अपने प्रिय छात्रों से अपनी कक्षा में बैठे-बैठे झण्डियाँ बनवा रहे थे, काफी बन चुकी थीं, परन्तु प्रधानाचार्य ने कहा था कि अभी और बनाइये। कॉलेज हॉल की, जिसमें उत्सव मनाया जाने वाला था, पुताई हो रही थी, मैं भी उसी कमेटी में था। कुछ अध्यापक चालू वर्ष की वार्षिक रिपोर्ट तैयार करने में व्यस्त थे।
आज 15 फरवरी थी, उत्सव का समय शाम को चार बजे था। परन्तु सुबह से ही सब अपने-अपने कार्यों में व्यस्त थे। कॉलेज में चारों ओर झण्डियाँ लगवाई जा रही थीं। कॉलेज के मुख्य द्वार पर बल्लियों का एक विशाल द्वार बनाया गया था और उस पर हरी-हरी पत्तियाँ लगाई गई थीं। द्वार पर स्वागतम् का बोर्ड लगवाया गया था। हॉल तरह-तरह के चित्रों और झण्डियों से विशेष रूप से सजाया गया था। नीचे फर्श पर सुन्दर दरियाँ बिछाई गई थीं, उनके ऊपर कुर्सियाँ थीं, विद्यार्थियों के लिये जमीन पर बैठने का प्रबन्ध था। आमन्त्रित अतिथियों, अध्यापकों तथा अविभावकों के लिए कुर्सियों का प्रबन्ध था। सभापति एवं प्रधानाचार्य के बैठने के लिए एक ऊँचा मंच बनाया गया था। सभापति के बाईं ओर एक विशाल मेज पर विद्यार्थियों को दिये जाने वाले पुरस्कार सजा कर रखे हुए थे। हॉल के चारों कोनों में अगरबत्तियाँ जलाकर लगाई थीं, जिससे चन्दन की मनमोहक सुगन्ध चारों ओर फैल रही थी। हॉल का द्वार तोरण और बन्दनवारों से सजाया गया था। यद्यपि उत्सव का समय 4 बजे था, फिर भी विद्यार्थी बहुत पहले से ही आने शुरू हो गये थे। आज विद्यार्थियों में एक नई चेतना और नया उल्लास था। सभी साफ-सुथरे कपड़े पहने हुए आ रहे थे। कोई कोई टाई में भी था। कॉलिच के मुख्य द्वार के पास लाइन में एन. सी. सी. की प्लाटून खड़ी थी। हाथों में बन्दूकें थीं। मस्ती में झुकी हुई सिर पर लाल टोपी थी। हवलदार उन्हें 'प्रजेण्ट आर्म’ का अभ्यास करा रहे थे, क्योंकि इन्हें आज सभापति को सलामी देनी थी। आज के उत्सव के सभापति जिलाधीश महोदय थे। कॉलिज के उप-प्रधानाचार्य उन्हें लेने जा चुके थे। कुछ विद्यार्थियों के हाथों में फूलों की मालायें थीं, जोकि मुख्य अतिथि के आने पर अध्यापकों के तथा स्वागतकारिणी के सदस्यों के देने के लिये थीं। हमारे प्रधानाचार्य के हाथों में एक गोटे का हार था। द्वार पर दोनों ओर दो बन्दूक वाले खड़े थे। इतने में एक नीले रंग की कार तेजी से आती दिखाई दी। सभी सतर्क हो गये। गाड़ी रुकी, मुस्कुराते हुए जिलाधीश कार से उतरे और प्रधानाचार्य महोदय से हाथ मिलाया। प्रधानाचार्य जी ने जिलाधीश को गोटे का हार पहनाया, इतने में धड़ाधड़ बन्दूकों से गोलियाँ दागी गई और जो बच्चे फूल-मालायें लिये खड़े थे, उन्होंने भी फूल मालायें पहनाईं। आगे जिलाधीश थे और प्रधानाचार्य थे और उनके पीछे कुछ अध्यापक थे।
सभापति महोदय ने सर्वप्रथम एन. सी. सी. की परेड का निरीक्षण किया और सलामी ली। उसके पश्चात् कॉलिज हॉल की ओर चले। कॉलिज हॉल में प्रवेश करते ही मुख्य अतिथि के सम्मान में सभी छात्र खडे हो गये और जब उन्होंने आसन ग्रहण कर लिया तब सब बैठे गये। कार्यक्रम आरम्भ होने से पूर्व 'वन्दे मातरम्' तथा सरस्वती वन्दना की गई। फिर प्रधानाचार्य जी ने सभापति के स्वागत में छोटा-सा भाषण दिया और चालू वर्ष की वार्षिक कार्यवाही का विवरण पढ़कर सुनाया। इसके पश्चात् एकांकी नाटक, जिसका इतने दिनों से पूर्वाभ्यास हो रहा था, का मंचन हुआ। रंगमंच पर कलाकार अपना-अपना अभिनय दिखाने लगे। सभापति महोदय छात्रों के अभिनय को देखकर बार-बार मुस्कुराते और कभी-कभी तालियाँ भी बजाते थे।
इसके अनन्तर प्रधानाचार्य जी ने जिलाधीश महोदय की धर्मपत्नी से प्रार्थना की कि वे अपने कर-कमलों से विद्यार्थियों को पुरस्कार प्रदान करने की कृपा करें। हमारे लिये वे क्षण बड़ी प्रसन्नता और उल्लास के थे। जैसे ही कोई विद्यार्थी पुरस्कार लेता, हाँल तालियों की गड़गड़ाहट से गुंज उठता। पारितोषिक कई प्रकार के थे, सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का, सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी का, सर्वश्रेष्ठ अध्यापक का, कॉलिज में सर्वाधिक उपस्थित रहने वाले छात्र का तथा पिछले वर्ष ससम्मान उत्तीर्ण होने वाले छात्रों के लिये। इसी तरह के और भी कई प्रकार के पुरस्कार थे। मुझे सर्वश्रेष्ठ आज्ञापालक के रूप में छ: मोटी-मोटी पुस्तकें, एक तौलिया तथा एक पदक, प्रथम पुरस्कार में मिला था। पुरस्कार में खिलाड़ियों को खेलने का सामान दिया जा रहा था, पढ़ने वालों को पुस्तकें।
पारितोषिक वितरण के पश्चात् सभापति महोदय ने अपना सारगर्भित भाषण दिया। उन्होंने विद्यार्थियों को अनुशासन में रहने तथा चरित्रवान् बनने का उपदेश दिया। अन्त में, हमारे प्रधानाचार्य ने उत्सव की समाप्ति की घोषणा करते हुए सभापति महोदय तथा सभी उपस्थित महानुभावों को धन्यवाद दिया। इसके पश्चात् विद्यार्थियों को घर जाने की आज्ञा दे दी गई। कुछ प्रमुख छात्रों को फोटो ग्रुप में भाग लेने के लिये रोक लिया गया। मुख्य अतिथि को साथ लेकर प्रधानाचार्य उस ओर चले, जिस ओर फोटो लेने के लिये सैट किया कैमरा रखा था। बीच में मुख्य अतिथि उनके पास प्रधानाचार्य तथा अन्य अध्यापक भी बैठ गये, विद्यार्थी कुर्सियों के पीछे खड़े कर दिये गये। एक क्षण में फोटो ग्रुप हो गया। भीड़ छंट जाने के बाद मुख्य अतिथि के सम्मान में कुछ थोड़े से जलपान का आयोजन हुआ और अन्त में सबने अपने-अपने घरों की राह पकड़ी।
घर, विद्यालय की और विद्यालय भावी जीवन की आधारशिला है। शिक्षा का श्रीगणेश घर से होता है। माता-पिता शुरू से कुछ-न-कुछ सिखाने लगते हैं जैसे चलना, खाना-पीना तथा उचित और अनुचित वस्तुओं का ज्ञान इत्यादि। घर की शिक्षा के पश्चात बालक विद्यालय से वांछित शिक्षा ग्रहण करता है, जिससे उसका भावी-जीवन सुखी और सम्पन्न हो सके। विद्यालय के सामहिक उत्सवों के द्वारा छात्रों में सहयोग, सहानुभूति और एकता और अपनत्व की भावनाओं का उदय होता है, संगठन शक्ति जाग्रत होती है और अपने विचारों को दूसरों के सामने प्रकट करने की क्षमता आती है। अतः प्रत्येक विद्यार्थी को अपने विद्यालय के उत्सवों में भाग लेना चाहिए, जिससे भावी जीवन में वह एक सभ्य और सुशिक्षित नागरिक बन सके।
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