मेरे जीवन का यादगार दिन। A Memorable Day of My Life in Hindi
कुछ घटनायें मानव-जीवन में अपनी अमिट छाप छोड़ जाती हैं। सम्भवतः मैं उस दिन को कभी न भूल सकेंगा, जिस दिन भारत के राष्ट्रपति डॉ० अब्दुल कलाम हमारे कॉलिज में आये थे। यह मेरे जीवन का यादगार दिन था। विश्व के प्रमुख वैज्ञानिकों का हमारे नगर में एक सम्मेलन होने जा रहा था। हमारा नगर प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से गंगा किनारे एक सुरम्य स्थान है। भारत के राष्ट्रपति डॉ० अब्दुल कलाम उसी में भाग लेने के लिये दिल्ली से आ रहे थे। हमारे प्रधानाचार्य जी ने नगर के प्रसिद्ध कार्यकर्ताओं से प्रार्थना की कि मिसाइल मैन डॉ० कलाम साहब को कुछ क्षणों के लिये कॉलिज में भी यदि ले आया जाये, तो बड़ी कृपा होगी। कई बार प्रार्थना करने पर नगर के नेताओं ने बात मान ली और कॉलिज के लिये पाँच मिनट का समय कार्यक्रम में निर्धारित कर दिया गया।
केवल दो दिन का समय शेष रह गया था। बहुत सुन्दर ढंग से स्वागत करने का निश्चय किया गया। कॉलिज के हॉल की तूतिया से पुताई आरम्भ हो गई। दरवाजों और खिड़कियों पर वार्निश होने लगी। पुताई के पश्चात् जमीन पर फर्श बिछा दिये गये और उन पर अभी नया फर्नीचर आया था, लगा दिया गया। आगे अतिथियों एवम् महिलाओं के बैठने की व्यवस्था की गई। उनके लिये हत्थे वाली कुर्सियाँ थीं और उनके पीछे कॉलिज के छात्रों के लिये स्टूल थे। सामने मंच बनाया गया था, काफी ऊँचे दो तख्त थे, जो मिलाकर बिछाये गये थे। उनके चारों ओर बांस लगाकर ऊपर छत बनाई गई थी। बांसों के ऊपर लाल कपड़ा तथा गोटा लगाया गया था। मण्डप की छत सुनहरी साड़ियों से सजाई गई थी। उसमें तरह-तरह के फूलों के गुच्छे लटकाये गये थे, मंच पर बहुत सुन्दर मुगलकालीन कालीनें बिछाई गईं थीं और सलमा सितारों के कामदार तकिये थे। मंच के पीछे की दीवार पर भारतवर्ष का एक बड़ा मानचित्र लगाया गया, अन्य दीवारों पर राष्ट्रीय नेताओं के चित्र सजाये गये और बीच-बीच में तिरंगे झण्डे लगा दिए गये थे। कॉलिज के मुख्य द्वार पर हरी पत्तियों का बहुत बड़ा द्वार बनाया गया, जिस पर स्वागतम् और शुभागमन के बोर्ड लगा दिए गए। दिल्ली से फूल-मालाओं का प्रबन्ध किया गया था। ढाई सौ फूल-मालायें मंगाई। गई थीं। जिनमें से डेढ़ सौ तो मंच की सजावट में खर्च हो गई थीं और भिन्न-भिन्न पुष्पों की सौ मालायें राष्ट्रपति को पहनाने और कुछ उनके ऊपर पुष्प वर्षा करने के लिये रख ली गई थीं।
अब वे क्षण कुछ ही दूर थे, जबकि हमारे मान्य अतिथि हमारे मध्य में आने वाले थे। दर्शकों की भीड़ कॉलिज में उमड़ी चली आ रही थी। चारों ओर सशस्त्र पुलिस लगी हुई थी। सिपाही और दीवानों की तो बात ही क्या, वहाँ थानेदार और डी० एस० पी० घण्टों से ड्यूटी दे रहे थे। सी० आई० डी० चारों ओर घूम रही थी। खद्दर की टोपियाँ और खद्दर के कुर्ते ही अधिक दिखाई पड़ रहे थे। गणमान्य नागरिक और आमन्त्रित नेता तथा कॉलिज के छात्र पहले से ही हॉल में बैठा दिए गए थे। द्वार पर केवल स्वागत करने वाले अधिकारी थे। सभी लोगों की दृष्टि उसी मार्ग पर लगी हुई थी, जिधर से राष्ट्रपति की कार आने वाली थी। सभी लोग बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे। इतने में ही लाल झण्डे वाली मोटर साइकिल दनदनाती हुई आई, जिस पर आगे पायलैट चलता है। चारों ओर शोर मच गया राष्ट्रपति आने वाले हैं। “दो-तीन मिनट के बाद ही चौदह-पन्द्रह कार एक साथ कॉलिज के द्वार पर आकर रुकीं। एक में डी० एम० थे, दूसरी में एस० पी० कुछ कारों में उत्तर-प्रदेश के कुंछ मन्त्री थे, और कुछ में राष्ट्रपति के निजी व्यक्ति। बीच की कार में से मुस्कुराते हुये राष्ट्रपति बाहर आये। “राष्ट्रपति की जय” के गगनभेदी नारों से आकाश गुंजने लगा। उनके स्वागत् में धांय-धांय ग्यारह तोपों की सलामी दी गई। प्रधानाचार्य तथा अन्य गणमान्य लोगों ने राष्ट्रपति जी को पुष्पहार पहनाये। कमरों के ऊपर से छात्रों ने पुष्प वर्षा की। एन, सी, सी, और के ऊपर से छात्रा ने पुम वर्षा की। एन० सी० सी० और पी० ई० सी० के छात्र सैनिकों का निरीक्षण करते हुये राष्ट्रपति जी सीधे मंच की ओर पहुँचे। राष्ट्रपति जी बहुत तीव्र गति से चल रहे थे। उनके शरीर में स्फूर्ति थी, मुख-मण्डल तेजोमय था। अंगरक्षक पीछे खड़े रह गए और राष्ट्रपति जी भीड़ को चीरते हुए तेजी से मंच पर पहुँचे। मुस्कुराते हुए उन्होंने सबको नमस्कार किया। प्रधानाचार्य जी ने एक सूक्ष्म भाषण में राष्ट्रपति जी का अभिनन्दन किया, फिर कॉलिज के विद्यार्थी-परिषद के मन्त्री ने अभिवादन पत्र पढ़कर सुनाया और राष्ट्रपति जी को सादर भेंट किया।
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अभिनन्दन-पत्र भेंट किये जाने के पश्चात् राष्ट्रपति जी भाषण देने के लिये खड़े हुए तो तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूंज उठा। फिर एकदम पूर्ण शान्ति हो गई। चारों ओर हॉल के भीतर तथा बाहर माइक का प्रबन्ध था। सर्वप्रथम उन्होंने हमारे द्वारा किए गये स्वागत का धन्यवाद दिया। अपने सारगर्भित भाषण में पहले तो छात्रों के कर्तव्य और अनुशासन पर प्रकाश डाला। स्वतन्त्रता संग्राम में छात्रों द्वारा किए गए कायों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि आज का विद्यार्थी कल का भावी नागरिक है। हम लोग सदैव शासन को नहीं चलाते रहेंगे। विद्यार्थी के लिए सच्चरित्रता बहुत आवश्यक है। इस तरह उन्होंने हम लोगों के समक्ष लगभग दस मिनट तक भाषण दिया। भाषण समाप्त होते ही हॉल में एक बार तालियों का सामूहिक स्वर गूंज उठा। मंच से उन्होंने सबको फिर नमस्कार किया और तेजी से चल दिये। मैंने देखा कि राष्ट्रपति जी को न पुलिस चाहिये थी और न स्वयं सेवक। उनको सामने देखकर भीड़ स्वयं हट जाती थीं। भीड़ में कितनी ही गड़बड़ी हो वे स्वयं ही झगड़ा दूर करते चले जाते थे। उन्हें न कोई भय था और न संकोच। भीड़ को पार करते हुए वे सीधे अपनी कार तक पहुँचे। एक बार उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, जनता हाथ बाँधे खड़ी थी। उन्होंने भी हाथ जोड़कर सबको नमस्कार किया और गाड़ी में बैठ गये। सर-सर करती हुई सभी कारें एक के पीछे एक चलने लगीं, देखते-देखते कार हमारी दृष्टि से ओझल हो गई। दर्शनार्थियों की भीड़ अपने-अपने घर जाने लगी। राष्ट्रपति जी के प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का मेरे हृदय पर गम्भीर प्रभाव पड़ा। उनका श्याम वर्ण, उनके उन्नत ललाट, दूर दिशा में अनावत की झाँकती हुई आँखें और गम्भीर मुद्रा, मुझे सदैव स्मरण रहेगी। मैंने यह अनुभव किया कि उनकी वाणी में कोई जादू था। जनता मंत्रमुग्ध होकर उनके एक-एक वाक्य को वेदं वाक्य के समान सुनती थी। उस पर विचार करती थी। उनके ओजस्वी एवम् सारगर्भित भाषण की एक-एक पंक्ति विद्वानों और कूटनीतिज्ञों के मनन का विषय हो जाती है। उनका तपोमय जीवन भारतवर्ष के प्रत्येक नागरिक के लिये एक आदर्श प्रस्तुत कर रहा हैं। उनका शान्ति और अहिंसा का संदेश विश्व के कोने-कोने में गूंज रहा है। यह हमारे कॉलिज का सौभाग्य था कि उन जैसे महापुरुष ने हमारे यहाँ पधारने की कृपा की। उनके मुख से निकले हुये महत्त्वपूर्ण शब्द का आज तक मेरे हृदय पर प्रभाव है।
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