नेहरू पुरस्कार का इतिहास और उसके विजेता / प्राप्तकर्ता की सूची
जवाहरलाल नेहरु पुरस्कार एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार है जो भारत सरकार की तरफ से पंडित जवाहरलाल नेहरु की याद में प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है। नोबेल पुरस्कार की भाँति नेहरू पुरस्कार भी, विश्व में एक वर्ष में एक ही ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है, जो संसार के लोगों में अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना व मैत्री को बढ़ावा देने के लिये असाधारण योग देता है। एक लाख रुपये का नेहरू पुरस्कार 1965 में भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था, जिसका प्रथम पुरस्कार श्री नेहरू के जन्म दिवस पर 14 नवम्बर, 1966 को दिया जाना था।
26 सितम्बर, 1966 से 30 सितम्बर, 66 तक चार दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय नेहरू गोष्ठी का आयोजन था। विश्व के विद्वान् गोष्ठी में भाग लेने दिल्ली में एकत्रित हो रहे थे। भारत सरकार द्वारा नियुक्त नेहरू पुरस्कार निर्णायक समिति ने इसी शुभ अवसर पर अपने निर्णय की घोषणा करना उचित समझा। इस सात सदस्यीय निर्णायक समिति में भारत के उपराष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सदस्य होते हैं। अन्य पाँच सदस्यों में एक किसी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, दो वरिष्ठ भारतीय नेता, एक किसी विश्वविद्यालय के उपकुलपति और एक समाचार-पत्रों के प्रतिनिधि विभिन्न देशों की सरकार, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन और विश्व के विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा पुरस्कार योग्य नामों की सिफारिश की जाती है। इस प्रथम निर्णायक समिति के सदस्य थे, स्व० डॉ० जाकिर हुसैन अध्यक्ष, भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश श्री के० सुब्बाराव, जस्टिस खलील अहमद, उड़ीसा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित, टाटा उद्योग के डाइरेक्टर श्री एन. ए. पालकीवाला, उस्मानिया विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ० डी० एस० रेड्री तथा नेशनल हेरल्ड के सम्पादक श्री चेलापति राव निर्णायक समिति की ओर से उपराष्ट्रपति ने 17 सितम्बर, 1966 को घोषणा की कि अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव के लिये जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार राष्ट्र संघ के तत्कालीन महासचिव ऊथान्ट को दिया जायेगा। विश्व की कई सरकारों, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों और विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा पुरस्कार पाने के लिये नामों की सिफारिश की गई थी। बहुत सोच-विचार के बाद थान्ट का नाम तय किया गया।
निर्णायक समिति का यह निर्णय वास्तव में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय था। राष्ट्र संघ के महासचिव के रूप में श्री ऊधान्ट की सेवायें इतिहास के पृष्ठ पर सदैव अंकित रहेंगी। युद्ध की विभीषिकाओं से त्रस्त विश्व को उन्होंने अनेक बार बचाया। अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव और शान्ति बनाये रखने में है। निरन्तर प्रयत्नशील थे। उस समय उनका और भी अधिक महत्त्व बढ़ गया था क्योंकि इस समय सारे संसार की आँखें वियतनाम व पश्चिम एशिया में शांति स्थापना की ओर लगी हुई थी।
28 सितम्बर, 1966 को नेहरू गोष्ठी की अध्यक्षता श्रीमती मिरदल ने की थी तथा संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा प्राप्त “शान्ति पुरस्कार” स्वीकृति सम्बन्धी तार पढ़कर सुनाया। इस अवसर पर श्री ऊ-थान्ट ने कहा था-“अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव के लिए भारत ने मुझे जो नेहरू पुरस्कार दिया है, यह मेरे लिए बड़ी गौरव की बात है। उन्होंने कहा-“पुरस्कार की एक लाख रुपए की धनराशि में संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्राष्ट्रीय स्कूल (न्यूयार्क) को दे दूंगा। यह स्कूल आर्थिक संकट से गुजर रहा है।” 27 सितम्बर को श्री थान्ट ने एक वक्तव्य में कहा था कि जवाहरलाल नेहरू इस शताब्दी के एक महान् राजनेता थे। मुझे उनसे कई बार मिलने का सौभाग्य मिला। उनके प्रति मेरी बड़ी श्रद्धा थी। अत: यह पुरस्कार मिलना मैं अपने लिए गौरव की बात समझता है। खासकर बच्चों और युवकों में स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू को विशेष दिलचस्पी थी। अतः मैं पुरस्कार की राशि संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्राष्ट्रीय स्कूल को दान करना उचित समझता हूं।“
14 नवम्बर, 1966 के स्थान पर यू थांट 10 अप्रैल, 1967 को भारत सरकार के निमन्त्रण पर दिन की यात्रा पर भारत पधारे। 12 अप्रैल, 1967 को एक विशेष समारोह का आयोजन किया गया तथा तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ० राधाकृष्णन ने “अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का जवाहरलाल नेहरू पुरूस्कार” श्री यू थांट को समर्पित किया। यू थांट ने स्वर्गीय नेहरू की भावनाओं तथा उनके आदर्शो के लिये कार्य करते रहने का प्रण लेते हुए कृतज्ञतापूर्वक यह पुरस्कार स्वीकार किया।
इस अवसर पर तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कहा कि यह पुरस्कार भारत और संयुक्त राष्ट्र संघ तथा बर्मा और भारत को एक सूत्र में बाँधता है। यू थांट ने अपना जीवन एक शिक्षक के रूप में शुरू किया और आज भी वे एक शिक्षक की तरह अपना सब कुछ विश्व शान्ति और सद्भाव उत्पन्न करने में समर्पित कर रहे हैं। वे एक बौद्ध हैं। एक बौद्ध की ही तरह उनमें अगाध विश्व प्रेम और सद्भाव भरा है। वे शान्ति और समझौते के ध्येय पर चलते हैं। मतभेदों को दूर करने के लिए शक्ति का प्रयोग अनैतिक ही नहीं, गलत नीति भी है। मनुष्य के भाई-चारे की माँग है कि मानव सहयोग बढ़े। हमारी सुरक्षा मानवीय मूल्यों तथा आध्यात्मवाद के परिपालन में है। शान्ति की सुरक्षा के लिए अन्तर्राष्ट्रीय अनुशासन आवश्यक है। प्रधानमन्त्री तथा राष्ट्रपति ने महासचिव के रूप में यू थांट के कार्य की सराहना की और कहा कि वे विश्वशान्ति और सहयोग के पोषक हैं। उन्हें यह प्रथम पुरस्कार देने का फैसला बहुत ही उचित और प्रशंसनीय है। उन्होंने बर्मा की स्वतन्त्रता की लड़ाई में भी कार्य किया है। श्री नेहरू राष्ट्र को युद्ध से बचाना चाहते थे। स्वतन्त्रता के लिए शान्ति आवश्यक है। अशोक संसार में सबसे बड़े सम्राट माने जाते हैं। वे भी विश्व-शान्ति पक्ष के पोषक और प्रणेता थे। श्री नेहरू का संयुक्त राष्ट्र संघ में अटूट विश्वास था। हम भी राष्ट्रों के बीच शान्तिपूर्ण सहयोग तथा विवाद को बातचीत से हल करने के पक्ष में हैं। डॉ० राधाकृष्णन ने यू थांट के वियतनाम में शान्ति स्थापित करने के प्रयास की सराहना की और आशा व्यक्त की कि जिनेवा सम्मेलन दुबारा बुलाया जायेगा। विश्वमत का लोग ध्यान रखेंगे। थान्ट शान्ति चाहते हैं, बिना किसी पक्ष की विजय अथवा पराजय के।
श्री यू थांट ने अपने भाषण में कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव के लिए पहला नेहरू पुरस्कार पाना किसी भी व्यक्ति के लिए गौरव की बात है, किन्तु महासचिव के लिए यह और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस तरह के पुरस्कार से प्रेरणा तथा प्रोत्साहन मिलता है। श्री नेहरू के प्रति भावभरी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यू थांट ने कहा “उन्होंने अपनी भावना की गहराई तथा बुद्धि के बल पर महत्ता प्राप्त की। जीवन के हर अंग के लिए वे नैतिक दृष्टिकोण रखते थे। उनमें अपार धैर्य, उत्साह और लगन थी। इसके बावजूद वे हम सब की तरह ही एक मानव थे। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में श्री नेहरू ने महान् नेतृत्व किया। उनके नेतृत्व में भारत ने संसार में एक उच्च स्थान पाया। विभिन्न राजनीतिक विचारों वाले राष्ट्रों के बीच में आज सहयोग है, किन्तु सहयोग की बातों की चर्चा कम होती है और विवादों का प्रचार अधिक होता है। कांगों में सेना भेजने के उनके फैसले से संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्य में बड़ी मदद मिली और एक नया अध्याय शुरू हुआ। जहाँ तक अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की बात है, एक-दूसरे को जानना ही पर्याप्त नहीं, सहानुभूति तथा आपस में सहयोग भी होना चाहिये और हमारा मस्तिष्क विस्तृत एवं हृदय विशाल होना चाहिये।
जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं की सूची
संख्या
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नाम
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वर्ष
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1
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यू थांट
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1965
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2
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मार्टिन लूथर किंग जूनियर (मरणोपरांत)
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1966
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3
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खान अब्दुल गफ्फार खान
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1967
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4
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यहुदी मेनुहिन
|
1968
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5
|
मदर टेरेसा
|
1969
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6
|
केनेथ डी कौंडा
|
1970
|
7
|
जोसिप बरोज़ टिटो
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1971
|
8
|
आंद्रे मैल्रौक्स
|
1972
|
9
|
जूलियस के. न्येरेरे
|
1973
|
10
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राउल प्रेबिस्च
|
1974
|
11
|
जोनास सॉल्क
|
1975
|
12
|
ग्यूसेप तुक्की
|
1976
|
13
|
तुलसी मेहर श्रेष्ठ
|
1977
|
14
|
निचिदात्सू फुजी
|
1978
|
15
|
नेल्सन मंडेला
|
1979
|
16
|
बारबरा वार्ड
|
1980
|
17
|
अल्वा और गुन्नार म्यर्दल (संयुक्त रूप से)
|
1981
|
18
|
लेओपोल्ड सदर सेंघोर
|
1982
|
19
|
ब्रूनो क्रेइस्क्य
|
1983
|
20
|
इंदिरा गांधी (मरणोपरांत)
|
1984
|
21
|
ओलोफ पाल्मे (मरणोपरांत)
|
1985
|
22
|
ज़ेवियर पेरिज डी कुईयार
|
1987
|
23
|
यासिर अराफात
|
1988
|
24
|
रॉबर्ट गेब्रियल मुगाबे
|
1989
|
25
|
हेल्मुट कोल
|
1990
|
26
|
अरुणा आसफ अली
|
1991
|
27
|
मौरिस एफ. स्ट्रॉंग
|
1992
|
28
|
आँन्ग सैन सू की
|
1993
|
29
|
महाथिर बिन मोहम्मद
|
1994
|
30
|
होस्नी मुबारक
|
1995
|
31
|
गोह चोक टोंग
|
2003
|
32
|
सुल्तान काबूस बिन सईद अल सईद
|
2004
|
33
|
वांगरी मुटा माथाई
|
2005
|
34
|
लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा
|
2006
|
35
|
ओलाफुर रेगनर ग्रिम्सोन
|
2007
|
36
|
एंजेला डोरोथिया मार्केल
|
2009
|
विश्व शान्ति के
लिए उल्लेखनीय तथा सर्वोत्कृष्ट प्रयास करने वाले व्यक्ति को हर वर्ष नेहरू पुरस्कार
से सम्मानित किया जाता है। नेहरू पुरस्कार नोबेल शान्ति पुरस्कार के समकक्ष समझा जाता है।
श्री नेहरू ने
अपने जीवनकाल में अपने देश और समस्त विश्व के लिए जो कुछ किया, वह श्री नेहरू की कीर्तिपताका को
ज्यों-का-त्यों बनाये रखने में अपने में स्वयं पर्याप्त था, परन्तु फिर भी यह उपाय उस महा-मानव के यशोध्वज को सुरक्षित
रखेंगे तथा साथ ही साथ श्री नेहरू के आदर्शों पर चलने की प्रेरणा को प्रोत्साहन
देते रहेंगे ऐसा हमारा विश्वास है।
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