एड्स पर निबंध। Essay on AIDS in Hindi!
प्रस्तावना : एड्स एक जानलेवा बीमारी है जिसका कारक एच. आई. वी. (पॉजिटिव) होता है। एड्स को एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएन्सी सिंड्रोम भी कहते हैं। प्रतिवर्ष 1 दिसंबर को एड्स के प्रति जागरूकता लेन के लिए एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है।
एड्स का इतिहास : सर्वप्रथम 1981 में कैलीफोर्निया में H.I.V. का संक्रमण पाया गया था। 19वीं सदी में सबसे पहले अफ्रीका के खास प्रजाति के बंदरों में एड्स का वायरस मिला। अन्वेषण से ज्ञात हुआ कि यह संक्रमण बंदरों से मनुष्य में संचारित हुआ था। एड्स एक ऐसी बीमारी है जो मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता को नष्ट कर देती है और अनेक बीमारियों द्वारा ग्रसित होने के अवसर प्रदान करती है। यह मनुष्य को इतना दुर्बल और अशक्त बना देती है कि जीवन स्वयं भार लगने लगता है। इस रोग से ग्रसित होने पर जो रोक-थाम भी बीमारी लगती है वह लाइलाज हो जाती है क्योंकि कोई भी औषधि अपना प्रभाव नहीं डाल पाती। इस रोग का कोई भी विश्वसनीय इलाज नहीं खोजा जा सका है इसीलिये कहा जाता है कि एड्स की जानकारी ही इसका बचाव है (इलाज तो कोई है ही नहीं)।
एड्स के रोगियों की संख्या के निश्चित आँकड़े उपलब्ध करना संभव नहीं है क्योंकि संक्रमित होने के पश्चात् भी वर्षों तक स्वयं संक्रमित रोगी नहीं जान पाता कि H.I.V का संक्रमण हो चुका है। विश्व स्तर पर लगभग 4 करोड़ व्यक्ति H.I.V/एड्स से संक्रमित हैं तथा प्रतिदिन लगभग 7 हजार नये रोगी संक्रमित होते हैं। जिनमें लगभग 1700 बालक होते हैं। 15 से 24 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 1 करोड़ रोगी हैं जिनमें महिलाओं की संख्या लगभग 62 लाख है। विश्व भर में लगभग 11 लाख बच्चे एड्स ग्रसित हैं जिनमें से 80% केवल अफ्रीका में है। HI.V. से संक्रमित लगभग 50 % बच्चे दो वर्ष की आयु प्राप्त करने के पूर्व ही काल-कवलित हो जाते हैं। HLV. से पीड़ित लगभग 90 प्रतिशत व्यक्ति विकासशील देशों के निवासी हैं। यह रोग
एड्स के कारण :यह निश्चित हो चुका है कि H.I.V/एड्स के संक्रमण के केवल चार कारण हैं —
- संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध,
- संक्रमित व्यक्ति के रक्त का प्रयोग,
- संक्रमित व्यक्ति को इंजेक्शन देने वाली सुई का स्वस्थ व्यक्ति के लिए प्रयोग
- संक्रमित माता अथवा पिता की संतान
एड्स से बचने के उपाय : सावधानी बरतने पर इन चारों साधनों पर रोक-थाम थोड़ी-सी सावधानी से की जा सकती है। पहला सुरक्षित यौन सम्बन्ध, दूसरा रक्तदान करने वाले व्यक्ति की रक्त परीक्षा तीसरा ने सुरक्षित यौन सम्बन्ध, दूसरा रक्तदान करने वाले व्यक्ति की रक्त परीक्षा, तीसरा इंजेक्शन के लिये सुई को दुबारा प्रयोग न किया जाये । रोगग्रसित व्यक्ति संतान उत्पत्ति से बचें। विशेषज्ञों का मानना है कि एड्स पीड़ित माँ के गर्भस्थ शिशु को उपचार द्वारा संक्रमण से बचाया जा सकता है।
एड्स का निशान : 1991 में पहली बार लाल रिबन को एड्स का निशान बनाया गया। लाल रंग को ही एड्स का निशान इसलिए चुना गया क्योंकि इसका संबंध खून से है। चूंकि एड्स भी खून से फैलने वाली बीमारी है और खून का रंग लाल होता है इसलिए एड्स के लिए लाल रंग चुना गया। खाड़ी युद्ध में लड़ने वाले अमेरिकी सैनिकों के लिए पीले रंग के रिबन का इस्तेमाल किया गया था। जिन लोगों ने एड्स के निशान को चुना वह, अमेरिकी सैनिकों के लिए इस्तेमाल होने वाले पीले रिबन से प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने एड्स के निशान के तौर पर एक रिबन बनाने का आइडिया रखा, जबकि रंग का चुनाव खून के आधार पर तय किया गया।
गांवों में एड्स की समस्या : गाँवों की समस्या कुछ विशेष प्रकार की है। वहाँ एड्स के प्रति जागरूकता का अभाव है। यौन सम्बन्धों से सम्बन्धित होने के कारण ग्रामीण समाज इस विषय पर चर्चा करना पसन्द नहीं करते और इसे पवित्रता और गरिमा का अतिक्रमण मानते हैं। अंधविश्वासों से ग्रसित होने के कारण यह समस्या और भी जटिल हो जाती है। स्पष्टतया कहा जा सकता है कि ग्रामीण समाज की अशिक्षा, बेरोजगारी तथा इनके परिणामस्वरूप शहरों की ओर पलायन एड्स फैलने में सहायक की भूमिका निभाते हैं। गाँव के बेरोजगार व्यक्ति महानगरों में रोजगार पाने और धन कमाने के लिये जाते हैं। ये सीधे-साधे ग्रामीण युवक कुसंगति में पड़कर नशीले पदार्थों के सेवन तथा वैश्या गमन के शिकार हो जाते हैं। फलस्वरूप अशिक्षित होने के कारण तथा एड्स के विषय में जागरूकता की कमी के कारण अनजाने में एड्स के शिकार हो जाते हैं। यह बीमारी छद्म वेश में होती है और कभी-कभी तो वर्षों तक इसका आभास ही नहीं होता और ये ग्रामीण युवक HIV का हस्तान्तरण अपने परिवार में कर बैठते हैं।
भारत में एड्स के मामले
भारत में एचआईवी का पहला मामला 1986 में सामने आया। इसके पश्चात यह पूरे देश भर में तेजी से फैल गया एवं जल्द-ही इसके 135 और मामले सामने आये जिसमें 14 एड्स2 के मामले थे। यहाँ एचआईवी/एड्स के ज्यादातर मामले यौनकर्मियों में पाए गए हैं। इस दिशा में सरकार ने पहला कदम यह उठाया कि अलग-अलह जगहों पर जाँच केन्द्रों की स्थापना की गई। इन केन्द्रों का कार्य जाँच करने के साथ-साथ ब्लड बैंकों की क्रियाविधियों का संचालन करना था। बाद में उसी वर्ष देश में एड्स संबंधी आँकड़ों के विश्लेषण, रक्त जाँच संबंधी विवरणों एवं स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों में समन्वय के उद्देश्य से राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
हालांकि 1990 की शुरुआत में एचआईवी के मामलों में अचानक वृद्धि दर्ज की गई, जिसके बाद भारत सरकार ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य देश में एचआईवी एवं एड्स के रोकथाम एवं नियंत्रण संबंधी नीतियाँ तैयार करना, उसका कार्यान्वयन एवं परिवीक्षण करना है। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के क्रियान्वयन संबंधी अधिकार भी इसी संगठन को प्राप्त हैं। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत कार्यक्रम प्रबंधन हेतु प्रशासनिक एवं तकनीकी आधार तैयार किये गए एवं राज्यों व सात केंद्र-शासित प्रदेशों में एड्स नियंत्रण संगठन की स्थापना की गई।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत
भारत सरकार ने 1992 में एड्स विरोधी अभियान के रूप में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (प्रथम चरण) की शुरुआत की जिसका उद्देश्य देश में एचआईवी संक्रमण के प्रसार एवं एड्स के प्रभाव को कम करना था ताकि एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या में कमी लाई जा सके एवं इसे वृहत स्तर पर फैलने से रोका जा सके। इस कार्यक्रम को वर्ष 1992 से 1999 के बीच लागू किया गया एवं इसके क्रियान्वयन के लिए 84 मिलियन डॉलर का खर्च निर्धारित किया गया। इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन एवं इसके प्रबंधन को और मजबूत करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण बोर्ड का गठन किया गया एवं राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की स्थापना की गई।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के दूसरे चरण की शुरुआत 1999 में हुई। इस बार यह पूर्णतः केंद्र प्रायोजित योजना थी जिसे एड्स नियंत्रण संस्था के माध्यम से 32 राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों एवं अहमदाबाद, चेन्नई एवं मुंबई के नगर निगमों में लागू किया गया।
इस कार्यक्रम के तीसरे चरण को वर्ष 2007 से 2012 के बीच लागू किया गया जिसका उद्देश्य भारत में इस महामारी को और अधिक फैलने से रोकना था। इन सारे प्रयासों की मदद से ही भारत विगत दस वर्षों में एचआईवी संक्रमण के प्रसार को घटाने में सफल हो सका है एवं एचआईवी के नए मामलों में भी कमी देखने को मिली है।
उपसंहार : एड्स का समुचित तथा कार्यकारी उपचार उपलब्ध न होने के कारण समाज का उत्तरदायित्व है कि संक्रमित लोगों में उत्साह, आत्म-विश्वास तथा जीने की इच्छा जागृत की जाये। इसके लिये स्वयंसेवी संगठन आगे आ सकते हैं। दिल्ली पॉजिटिव पीपुल नेटवर्क एक ऐसा संगठन है जिसमें केवल दिल्ली में 1000 से अधिक संक्रमित व्यक्ति हैं। इस संगठन का कहना है कि संक्रमितों को उपचार उपलब्ध कराकर उनमें जीने का हौंसला बढ़ाया है। इसीलिए लोग उनके साथ आ रहे हैं। H.I.V. संक्रमण के द्वारा विभिन्न प्रकार से मानवाधिकारों का हनन होता है। बहुधा संक्रमित व्यक्तियों का बहिष्कार उन्हें उचित उपचार शिक्षा तथा सुरक्षा से वंचित कर देता है। समाज को चाहिये एड्स को कलंक न मानकर रोगियों को सहारा दें। भय के स्थान पर उन्हें आशावान बनायें। अन्तर्राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय प्रयासों को और गति देने की आवश्यकता है साथ ही आवश्यकता है। सूचना, शिक्षा व जागरूकता के प्रचार-प्रसार की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, जनसंख्या नियन्त्रण, योग साधना का महत्त्व, ब्रह्मचर्य पालन, स्वयंसेवी संगठनों के प्रयास, शिक्षा का प्रसार इस समस्या से जूझने में कारगर सिद्ध हो सकते हैं।
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