Indian Atomic Policy in Hindi भारतीय आणविक नीति का वैश्विक दृष्टिकोण
सारे संसार में भारत
बुद्ध एवं गाँधी के दर्शन से जाना जाता है। भारत अपने ‘शांतिवाद
आध्यात्म’ के कारण ही समस्त राष्ट्रों मध्य अपनी
श्रेष्ठता को प्रतिस्थापित करता है। आज के बदलते अंर्तराष्ट्रीय परिवेश को
प्रतिस्थापित करता है। आज के बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिवेश में शस्त्रों के अंधी
दौड़ तथा आयुध एवं परमाणु के आविष्कारों ने भारत को शांतिवाद तुंगनिद्रा से जागने
के लिए विवश किया। अगस्त-1945 के आरम्भ में अमेरिका के पास केवल दो परमाणु बम ‘लिटिल
ब्याय’ थे और हिरोशिमा व नागासाकी में उनके इस्तेमाल
के साथ ही अमेरिका का परमाणु बमों का भण्डार खाली हो गया था,
लेकिन 29 अगस्त 1949 को परमाणु बम के एकाधिकार क्षेत्र समाप्त हुआ जब रूस ने
पहला सफल परमाणु बम परीक्षण किया। इससे परमाणु शस्त्रों की दौड़ चल पड़ी। मई 1951
में अमेरिका ने और नवम्बर 1952 में सोवियत संघ ने अपने प्रथम हाइड्रोजन शक्ति
परीक्षण किये, 1952 में ब्रिटेन,
1960 में फ्रांस और 1964 में चीन भी परमाणु शस्त्रों की दौड़ में शामिल हुआ।
भारत भी वर्षों के
गुलामी से आजादी प्राप्त करने के उपरान्त राष्ट्र के विकास में ‘भावी
भारत निर्माण’ के आयामों को स्थापित करने का प्रयत्न कर रह
था। इन्हीं के बीच-गतिशील अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर पश्चिमी राष्ट्र व
महाशक्तियाँ परमाणु सम्पन्न हो चुकी थी जो विश्व शांति के दृष्टि से श्रेयस्कर
नहीं था। दक्षिण एशिया में भारतकी स्थिति कुछ विषेष रूप की थी जिसने भारत को
परमाणु ऊर्जा के शोध व विकास के तरफ ध्यान देने के लिए 1944 में ही डॉ० होमी
जहाँगीर भाभा ने विशेष बल दिया। अभी तक कुल सात राष्ट्रों ने आणविक परीक्षण कर
चुके है- (अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन,
फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान) इनके अतिरिक्त एक दर्जन ऐसे राष्ट्र
हैं जो परमाणु हथियार बनाने में सक्षम है (कनाडा, जर्मनी,
दक्षिणी अफ्रीकी, इटली, इजराइल, स्वीडन, स्विट्जलैण्ड, जापान) हथियारो के
दौड़ आयुध निर्माण ने सम्पूर्ण विश्व को सदैव युद्ध के लिए तत्पर रहने की दिशा
में खड़ा किया। जहाँ प्रत्येक राष्ट्र एक दूसरे को शंका दृष्टि से देख रहा है।
पं० जवाहर लाल नेहरू ने
परमाणु अस्त्रों द्वारा उत्पन्न खतरे को एक प्रमाणिक विभिषिका मानते थे और उनका
विश्वास था कि भारत परमाणु ऊर्जा का विकास शांतिपूर्ण कार्यों के लिए करेगा। इसी
को ध्यान में रखते हुए 1948 में भारतीय परमाणु नीति की घोषणा करते हुए कहा कि ‘भारत
परमाणु शक्ति वाला शांतिपूर्ण राष्ट्र बनेगा इस नीति की उत्पत्ति ‘गांधीवादी
परम्परा और अहिंसा के आदर्शों से हुई थी। जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक
महत्वपूर्ण अंग था। इस नीति में ‘स्वतंत्र तथा शांतिपूर्ण’
परमाणु शक्ति के विकास की भावना समाहित थी इसी लक्ष्य को पं० नेहरू जी ने
जीवनपर्यन्त निभाया था। लेकिन चीन के द्वारा 16 अक्टूबर 1964 को चीन ने अपना
पहला परमाणु विस्फोट किया इसी पर प्रतिक्रिया स्वरूप श्री लाल बहादुर शास्त्री
ने कहा-मेरा यह विचार नहीं है कि, वर्तमान परमाणु शक्ति सम्बन्धी शांतिवादी
नीति की जड़े बहुत गहरी है और उसमें परिवर्तन नहीं होगा। वास्तव में यही से भारत
ने परमाणु बम सम्बन्धी नीति पर विवाद शुरू हुआ तथा 24 अक्टूबर 1964 को ही डॉ०
भाभा ने कहा कि भारत को परमाणु बम बनाना पड़ेगा चीन की नीतियों और उसके द्वारा
पूर्व में किए गए विश्वासघात को देखते हुए यह आवश्यक है। परमाणु सम्पन्न हो,
भले ही उसका स्वरूप शांति को स्थापित करता हो। लेकिन सुरक्षा (देश की अखण्डता)
सर्वोच्च है, राष्ट्रीय हित की दृष्टि से भारत के
द्विआयामी परमाणु नीति का निर्माण हुआ और इसलिए परमाणु बम बनाने के विकल्प को
खुला रखा गया। यदि राजनैतिक इच्छा हुई तो परमाणु बम का निर्माण किया जा सके। इीस
समय तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने ‘भूमिगत
परमाणु विस्फोट परियोजना’ को मंजूरी दे दी।
श्रीमती इंदिरा गाँधी
को भी अपने कार्यकाल के प्रारम्भ में ही भारत को 18 देशों की नि:शस्त्रीकरण सम्बन्धी
समिति को जेनेवा सम्मेलन में विशम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। जिसमें अणु
प्रसार निषेध संधि (1968) अनुमोदित करने का प्रयास किया गया,
जो चीन के द्वारा उत्पन्न खतरे से उसकी सुरक्षा करेगी परन्तु भरत ने इंकार कर
दिया। सन् 1974 में भारत ने भी पोखरण में प्रथम परमाणु परीक्षण (परमाणु ऊर्जा
आयोग) कर डाला, तत्पश्चात अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में
11 व 13 मई 1998 को द्वितीय परमाणु परीक्षण सम्पन्न कर डाला। इसी के परिणाम स्वरूप
भारत के आणविक नीति पर नये सिरे से बहस प्रारम्भ हुई। पड़ोसियों,
माशक्तियों का तर्क था कि ‘भारत के इस कदम से दक्षिण एशिया में हथियारों के
होड़ को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन भारत की नीति केवल अपनी सुरक्षा व विकास की थी।'
परमाणु परीक्षणों के
बाद भारत के दृष्टिकोण में अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नीति को एक निश्चित
दिशा देने की नई चुनौती के रूप में स्वीकारा जिस पृथ्वी पर कुछ राष्ट्र परमाणु
हथियार रखने का एकाधिकार बनाये रखना चाहते है और आतंकवाद से निपटने के नाम पर किसी
भी देश पर मिसाइली हमले को वैध ठहराते हो, वहाँ निर्गुट आंदोलन,
दक्षिण सहयोग परमाणु निरस्त्रीकरण, शांतिपूर्ण सहअस्तित्व,
उत्तर दक्षिण संवाद कैसे स्थापित हो सकता है, लेकिन फिर भी भारत ने
परमाणु हथियार रखने वाले अन्य राष्ट्रों की सीधी चुनौती पेश कर रहा है। चीन व
पाकिस्तान को बता रहा है कि उसकी ओर से पैदा खतरों के मुकाबले के लिए भारत
पूर्णरूपेण तैयार है, लेकिन शान्ति की नीति को सदैव भारत ने अपने लिए
हमेशा एक उच्च आदर्श के रूप में प्रतिस्थापित किया है। परमाणु सम्पन्नता किसी
प्रकार का शस्त्रों की उच्चता न होकर केवल अपने राष्ट्रीय हितों और अपनी जनता
को सुरक्षा (परमाणु/जैविक) हथियारों से सुरक्षा प्रदान करना है।
दक्षिण एशिया या विश्व
राजनीति में भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद से एक नये त्रिकोणात्मक संघर्ष की
शुरूआत हुई जो दो रूपों में है-
- भारत-पाक-चीन
- भारत-दक्षिण एषिया-सम्पूर्ण विश्व (विकसित राष्ट्र)
भारत की नीति काफी हद
तक उसके सुरक्षा हितों तथा राष्ट्रीय व प्रादेशिक अखंण्डता के खतरों से जुड़ी
हुई है। भारत के सुरक्षा हित कश्मीर को लेकर गत कई दशकों से प्रभावित हो रहे है
और उधन चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर भारत और चीन में गम्भीर मनमुटाव चल रहा है।
दीर्घकालीन दृष्टि से भारत के लिए खतरा पैदा कर सकता है। कश्मीर के सवाल पर भारत
के रिश्ते कई देशों के साथ बनते और बिगड़ते रहे है। मध्य एशिया में कट्टरपंथी
इस्लामी प्रसार का फैलाव भारत के हितों को प्रभावित करेगा और पारम्परिक रूप से
जो भारत का माना जा रहा था वह भारत के हाथ से निकलता लग रहा है। भारत के लिए अब यह
एक नयी चुनौती है जिसमें परमाणु सम्पन्न होकर भी फूंक-फूंक कर चलना होगा। परमाणु
विस्फोटोको उपरांत पश्चिमी देशों की रूचि दक्षिण एशिया में अचानक बढ़ गयी है।
चूँकी इस क्षेत्र की शांति में बाधक मुख्यत: कश्मीर समस्या ही है,
इसलिए पश्चिमी देशों का मानना है कि इस समस्या का हल यथाशीघ्र खोज लिया जाए। इस
पहल को अंजाम देने के लिए पश्चिमी देश शक्ति प्रदर्शन की भी बात कर रहे हैं। इस
तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि पश्चिमी विचाराधारा के नाम पर एंग्लो
अमेरिकी (ब्रिटेन और अमेरिका) ही प्रधान रही है इस विचार के तहत पाकिस्तान को
भारत के बराबर बनाये जाने की कोशिश की गयी।
दक्षिण एशिया में शक्ति
संतुलन की प्रक्रिया की कल्पना की गयी। इससे आशा की गयी कि इस क्षेत्र में शांति
बनी रहेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। समय-समय पर ऐसा पटाक्षेप
हुए जिसमें शंका उत्पन्न होती है। परमाणु राष्ट्र होने के बाद भी भारत को पाक व
चीन के तरफ से भी राष्ट्रीय सुरक्षा व प्रादेशिक अखंडता के लिए खतरा उत्पन्न
किया जा रहा है क्योंकि भारत अपने परमाणु नीति को शांति पर आधारित किया है। शांति
व विश्व शांति की दृष्टि से सभी राष्ट्रों की सुरक्षा को प्रमुखता के रूप में
विदेश नीति में स्थापित किया है। भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्पष्ट
किया है कि चीन और पाकिस्तान की क्रिया विधि ने उनको विस्फोटो के लिए बाध्य
किया है लेकिन महत्वपूर्ण यह है परमाणु अस्त्र न बनाने के निर्णय से परमाणु
अप्रसार संधि के मूल उद्देश्यों की वास्तविक रूप में सिद्धि की संभावना बढ़ गयी
है, क्योंकि परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण एवं गैरशांतिपूर्ण
उपयोग के भारतीय दृष्टिकोणको ध्यान में रखता। परमाणु युद्ध का खतरा समाप्त हो
सकताहै।
भारत के आणविक नीति के
कारण विश्व समाज के सामने नि:शस्त्रीकरण की समस्या एक नये आयाम के रूप में उभरी
है। यदि परमाणु अनुसंधान केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों को ध्यानमें रखकर किया जाए
तो शस्त्र नियंत्रण और परमाणु अप्रसार की समस्या स्वयं हल हो जाएगी। अप्रसार का
वास्तविक अर्थ है ‘किसी भी देश के पास परमाणु शस्त्रों का कोई भण्डार
न हो’, लेकिन आज तो कुछ देशों के पास घातक हथियारों का
जखीरा हैं। 1945 से लेकर अब तक 2060 से भी ज्यादा परीक्षण किए जा चुके हैं।
परमाणु अनुसंधान का प्रयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए।
भारत ने सदैव इसे अपने आणविक नीति का शांतिवादी स्वरूप रखा जो आज भी प्रासंगिक
रूप में उच्च आदर्शों के साथ खड़ी है।
भारतीय सरकारों को
समय-समय पर क्षेत्रीय मंचों तथा अंतर्राष्ट्रीय मंचों,
यू.एन. में भारत की नीति का शांतिवादी स्वरूप को उजागर किया है। इसी से सरकार के
निर्माण-पतन के बावजूद भी भारतीय आविवक नीति स्थिर रही। जो स्वतंत्रता थी।
- भारत एक न्यूनतम नाभिकीय निवाकर बनाए रखेगा।
- भारत की किसी खुले उद्देश्य के कार्यक्रम अथवा शस्त्री की किसी होड़ में शामिल होने की मांग नहीं है।
- भारती नाभिकीय हथियारों का पहले प्रयोग न करने और नाभिकीय हथियारों का पहले प्रयोग न करने और नाभिकीय हथियार सहित राष्ट्रों के विरूद्ध प्रयोगन करने की नीति का अनुमोदन करता है।
- भारत का नाभिकीय शस्त्रागार नागरिक अधिकार और नियंत्रण में है।
- एक राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थापना की गई तथा इसे सामरिक प्रतिरक्षा की समीक्षा करने के लिए कहा गया है।
- भारत निस्त्रीकरण सम्मेलन में सच्ची भावना से नाभिकीय हथियार तथा अन्य नाभिकीय विस्फोटक यंत्र के निर्माण के उद्देश्य से विखण्डनीय सामग्री के उत्पादन पर रोक लगाने के लिए एक संधि पर वार्ताओं में शामिल है।
भारत ने अपने आणविक
नीति में परमाणु बटन का प्रबंध उद्घोषित किया कि-
- गैर परमाणु हथियार वाले देशों के खिलाफ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेगा।
- भारत के खिलाफ या भारतीय बलों पर कहीं भी जैविक या रासायनिक हथियारों से हमला होने पर देश जवाबी परमाणु हमले का विकल्प का इस्तेमाल करेगा।
- परमाणु और प्रक्षेपास्त्र से सम्बन्धित सामग्री तथा प्रौद्योगिक के निर्यात पर कड़ा नियंत्रण, विखंडनीय सामग्री कटौती संधि में भागीदारी एवं परमाणु परीक्षणें पर स्वैच्छिका रोक जारी रखना शामिल है।
- भारत ने परमाणु हथियार मुक्त विश्व के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की है तथा कहा कि वह प्रमाणित व भेदभाव रहित परमाणु निरस्त्रीकरण के जरिए यह लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है।
- परमाणु हथियारों का नियंत्रण प्रधानमंत्री के अधीन किया गया।
भारत अमेरिका कि बीच
असैन्य परमाणु समझौता हुआ और इसे लागू करने के लिए अमेरिका को ‘कांग्रेस’
से पारित ‘यूनाईटेड स्टेट्स-इण्डिया
पीसफुल एटामिक एनर्जी कोऑपरेशन एक्ट 2006’ (हेनरी हाइड कानून) पारित हुआ जिसके बाद भारत
को 48 सदस्यीय न्यूक्लीयर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) की
मंजूरी मिली।
भारतीय प्रधानमंत्री ने
कहा कि परमाणु समझौते से ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि भारत भविष्य में परमाणु
परीक्षण नहीं कर सके। 123 समझौता परमाणु परीक्षण करने में भारत के अधिकार को किसी
प्रकार बाधित नहीं करता है। आर्थिक विकास के लिए यह समझौता आवश्यक था। क्योंकि
परमाणु ऊर्जा किफायती और आसानी से प्रापत किया जा सकता है। इसलिए यह समझौता भारत
के राष्ट्रीय हित में है, जो बिना किसी दबाव के और आणविक नीति को स्पष्ट
करते हुए उसके वैश्विक स्वरूप को उजागर किया।
अक्टूबर 2008 में
भारतीय परमाणु नीति को उस समय अप्रत्यक्ष रूप में अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता
प्राप्त हुई जिसके बाद भारत ने फ्रांस तथा रूस के साथ भी परमाणु सहयोग समझौते
किए। भारत की परमाणु शस्त्र नीति को एक प्रकार से स्वीकृति मिल गई थी। भारत ने
यह स्थिति NPT पर हस्ताक्षर किए किये बिना प्राप्त की और
सितम्बर 2009 में घोषित किया कि भारत परमाणु अप्रसार पर हस्ताक्षर नही करेगा।
भारतीय आणविक नीति की
प्रमुख बाते निम्न थी।
- फ्रांस, रूस, आदि के साथ ऐसे समझौते करके भारतीय ऊर्जा सुरक्षा को विश्वसनीय और दृढ़ बनाना।
- अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद की पूर्ण समाप्ति के लिए उन सभी देशों विशेषकर U.S.A. इग्लैण्ड, रूस आदि से दृढ़ सहयोग करना तथा पकिस्तान पर इस बात के लिए दबाव बनाना कि वह अपनी आतंकवाद को सर्मथन देने की नीति का त्याग करे और अपनी धरती पर विद्यमान आंतकी संगठनों को बंद करे तथा सीमा पार आतंकवाद पर रोक लगाए।
- पूर्वी एशिया तथा एशिया के देशों के साथ अधिक आर्थिक सहयोग सम्बन्ध स्थापित करना।
- अफ्रीकी देशों के साथ सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक सम्बन्धों के विकास को एक नई प्राथमिकता।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लिए लगातार कार्य करना।
- परमाणु नि:शस्त्रीकरण का पूर्ण समर्थन करना लेकिन NPT, CTBT जैसी अपूर्ण संधियों पर हस्ताक्षर न करना।
- समकालीन स्थिति में भारतीय परमाणु नीति को बनाए रखना और आवश्यक रूप में भारतीय परमाणु निवारक क्षमता को विकसित करना।
- विश्व आर्थिक मंदी का सामना करने के लिए उचित कदम उठाने और दूसरे राष्ट्रों के साथ अधिक व्यापक आर्थिक सम्बन्धों को विकसित करके भारतीय अर्थव्यवस्था को दृढ़ बनाना।
- विश्व में परमाणु प्रसार के रोकने के लिए अन्य देशो के साथ पूर्ण सहयोग करना।
- चीन व पाक के साथ विद्यमान सीमा सम्बन्धी झगड़े के निपटाने के लिए लगातार प्रयास करना।
भारत की आणविक सम्पन्न
होने के बाद भी भारत शांन्ति का रक्षक है लेकिन भारतीय हित की दृष्टि से चीन के
द्वारा नए सुपर सोनिक परमाणु वाहन के सफल परीक्षण किया जो परमाणु हथियारो को लक्ष्य
तक ले जाने के समक्ष है इसकी खूबी यह कि यह अमेरिकी किसाइलो को वकमा देकर बच
निकलनेमें समक्ष है। डब्ल्यू - 14 को आवाज से 10 गुना ज्यादा रफ्तार पर चलने के
लिए बनाया गया है।
आज के बदलते विश्व
परिदृश्य में स्वतंत्र आणविक नीति रखते हुए भारत ने वर्तमान में रूस की मदद से
कम से कम 10 रिएक्टर लगाने को समझौते किया। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने परमाणु ऊर्जा, पेट्रोलियम, मेडिकल रिसर्च फौजी
ट्रेनिंग पर समझौता किया। आस्ट्रेलिया भी यूरेनियम की सप्लाई करेगा,
कनाडा ने भी ऐसा भरोसा दिया है। हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री के ब्रिटेन दौरे
में भारत ब्रिटेन के मध्य 9 अरब पाउंड मूल्य के सौदे किए जिनमें असैन्य पर
परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर तथा व साइबर सुरक्षा में सहयोग का फैसला हुआ। बिट्रिश
प्रधान डेविड कैमरुन ने कहा कि नई गतिशील आधुनिक भागीदारी हुई और संयुक्त राष्ट्र
सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए ब्रिटेन का समर्थन दोहराया है।
मोदी ने कहा कि – असैन्य परमाणु समझौते ने हमारे बीच आपसी विश्वास और जलवायु
परिवर्तन का सामना करने में हमारे संकल्प का प्रतीक है। भारत के वैश्विक स्वच्छ
ऊर्जा भागीदारी वैश्विक केन्द्र में सहयोग का समझौते से वैश्विक उद्योग में
सुरक्षा और बचाव को मजबूती मिलेगी। भारत के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारी में
ब्रिटेन का 18वॉ स्थान है। वर्ष 2014-15 में द्विपक्षीय व्यापार 14.32 अरब डालर
रहा। भारत में निवेशकों में ब्रिटेन की स्थिति तीसरे बड़े राष्ट्र की है।
भारत आज सुचना,
प्रौद्योगिकी, रक्षा के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित
करता चला जा रहा है। भारत ने परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम स्वदेशी मिसाईल अग्नि
में द्विचरणीय शस्त्र प्रणाली है। यह 20 मीटर लम्बी तथा 17 टन भारी है। इसमें
पाँचवी पीढ़ी के कम्प्यूटर लगे है। इसकी आधुनिकता विशेषताएँ उड़ान के दौरान होने
वाले अवरोधो के दौरान खुद को ठीक एवं दिशा निर्देशित कर सकता है। यह तकनीक भारत की
आत्मनिर्भर को बतलाता है लेकिन फिर भी भारत कुछ राष्ट्रों द्वारा अपनाई गई नस्लवादी
भेदभाव की नीति साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नव उपनिवेशवाद की
नीतियों की आलोचना करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की जनसभाओं का प्रयोग करता है
तथा अन्य मंचों से भी लगातार अपने शांतिवादी दृष्टिकोण उकेरता आया है। निरस्त्रीकरण,
शस्त्रीनियंत्रण तथा परमाणु नि:शस्त्रीकरण की दिशा में संयुक्त राष्ट्र संघ के
प्रयत्नों में सहायता प्रदान किया है प्रजातिपार्थक्य की नीति के विरूद्ध अन्तर्राष्ट्रीय
अर्थव्यवस्था के तथा हिन्द महासागर को शान्ति क्षेत्र बनाने के प्रस्तावों को
पास करवाने के पीछे भारत का हाथ निश्चत रहा है।
इन्हीं के मद्देनजर
विश्व के द्वारा भारत प्रयोजित शांति के नियमों का स्थापित करने के क्षेत्र में
उसकी महत्ती भूमिका को नकार नहीं पारहा है और तृतीय विश्व के प्रतिनिधि के तौर पर
गुटनिरपेक्ष के अगुवा के रूप में बढ़ती अर्थव्यवस्था,
विकासशील राष्ट्रों में सबसे अधिक जी.डी.पी. में विकासशील देशों में सबसे बड़े
कार्यक्रमों में से एक है। वर्ष 2014 में पर्याप्त ल्पूटोनियम भारतके पास था और
अनुमानित संख्या 175-125 थी, लेकिन इसके बावजूद भी परमाणु सम्पन्नता
दादागिरी में नहीं बदली बल्कि उद्देश्यों के आधारपर सुरक्षा के लिए आधारित रही।
बदलते परिदृश्य में एक नई विश्व व्यवस्था में भारत के स्वरूप को सभी राष्ट्रों
में स्वीकार है- चाहे आधार कुछ भी हो- जनसंख्या, स्थान,
परमाणु सम्पन्नता, तृतीय विश्व का प्रतिनिधि,
विकासशील राष्ट्रों के नेता के रूप भारत की महत्ता को अस्वीकार नहीं किया जा
सकता है।
भारत के परीक्षणों के
बाद लगे प्रतिबंध अपने आप हटे बिना किसी दबाव के क्योंकि विश्व शांति भारत का
अन्तिम लक्ष्य है। चाहे भारत के पड़ोसी राष्ट्रों से भले ही धोखा क्यों न मिला
हो लेकिन भारत पाक व चीन के साथ सदैव बात चीत के लिए अग्रसर रहता है कारण यह है कि
अहिंसा भारत के विदेशनीति में ही स्थापित है, जो गांधी के लिए आर्दश
है जो ‘शांतिवाद आध्यात्म’
है।
जलवायु परिवर्तन का
मुद्दा हो, G
77, G 20 आसियान,
बिम्सटेक, ब्रिक में भारत की उपस्थिति से इन संगठनों की
उपादेयता बढ़ी है। इनके कार्य प्रणालियों पर विश्व के महाशक्ति की नजर सदैव बनी
रहती है।
परिवर्तित विश्व में
आर्थिक कारणों ने भी संधियों को जन्म दिया है भारत प्रत्येक स्तर पर गतिमान है।
आर्थिक, सांस्कृति, राजनैतिक,
कूटनीतिक, विज्ञान- सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में
निरंतर विकास के पथ अग्रसर है। इस बदलते मॉडल में या यूँ कहे नई विश्व आर्थिक व्यवस्था
में भारत की आणविक नीति का उपयोग (कूटनीतिक, राजनीतिक) स्तरों पर विदेशनीति के व्यापक
परिप्रेक्ष के रूप सक्रिय करने की आवश्यकता है जिससे भारत विकास की नई ऊचाइयों
छूँ सके। सुरक्षा परिषद में विकसित राष्ट्रों का अनुसमर्थन भी मिले चाहे आधार कोई
बने लेकिन सुरक्षा परिषद में भारत का स्थायी सदस्यता मिले जिसका एक मानक ‘शांतिवादी
परमाणु नीति शस्त्र निरस्त्रीकरण’ की भावना भी हो सकती है। परमाणु सम्पन्नता से
किसी राष्ट्र को भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भारतीय विदेशनीति में
पंचशील को अपनाया गया जिसका मूलाधार शांति और केवल अंतर्राष्ट्रीय शांति है।
परमाणुनीति के आधार पर विश्व में आणविक व सामरिक क्षेत्रों में ‘शक्ति
संतुलन’ स्थापित किया जा सके । जिससे भारत-पाक चीन के त्रिकोणात्मक सघर्ष
पर रोक लगे तथा दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन स्थापित हो सम्पूर्ण विश्व में
शांति प्रत्यायोजित हो क्योंकि परमाणु के कारण सदैव विश्व अशान्त है। आज 70
वर्ष बीत जाने के बाद भी विश्व ‘लिटल ब्वाय को भूला नहीं पाया है जिसका परिणाम
सम्पूर्ण विश्व ने झेला। युद्धों के खतरों को टालने के लिए शायद भारत ने परमाणु
हथियारों का निर्माण किया लेकिन शांति उसका मूल उद्देश्य था,
जो संयुक्तराष्ट्रकी संकल्पना है। ‘शांति’ और ‘संर्वत्र शांति’ स्थापित हो क्योंकि’
युद्ध मानव मस्तिष्क में जन्म लेता है और वहीं पर उसे नियन्त्रित किया जाय’।
यदि ऐसा नही हुआ तो विश्व कल्याण कभी भी नहीं हो पाएगा।
भारत विश्व कल्याण
हेतु है विश्व शांति स्थापित करना चाहता है। इसलिए उसने अपनी आणविक नीति को सदैव
शांतिवादी ही कहा और आगे भी उसका स्वरूप वही होगा। जो सम्पूर्ण मानवता एवं मानव
जाति के लिए श्रेयस्कर है। यहीं भारतीय परमाणु नीति का वैश्विक दृष्टिकोण है जो
समस्त राष्ट्रों के लिए आज भी उतना प्रासांगिक है जितना संयुक्त राष्ट्र।
भारतीय आणविक नीति शांति पूर्ण साधनों द्वारा शांति की स्थापनाके लक्ष्य ‘अन्तर्राष्ट्रीय
सुरक्षा व शांति के मध्य सम्पूर्ण सुसंगता है’।
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