निबंध : क्या एन. सी. सी. अनिवार्य होनी चाहिए? वर्तमान में युद्ध की तकनीकें हमारे पूर्वजों की तकनीक से भिन्न हैं। थल सेना, जल सेना और वायुसेना को तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाता है। इन तकनीकों के बिना कोई भी देश आधुनिक युद्ध में सफल नहीं हो सकता। इसी उद्देश्य से विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा करनी चाहिए जिसमे वह सेना सेवा (एन. सी. सी.)का प्रशिक्षण पा सकें। इस दृष्टिकोण से विद्यालयों और महाविद्यालयों में सेना प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए।
निबंध : क्या एन. सी. सी. अनिवार्य होनी चाहिए?
प्रस्तावना- स्वतंत्रता प्राप्ति से वर्तमान तक भारत ने अनेक समस्याओं का सामना किया है। उनमें से एक समस्या सुरक्षा की है। हमारे पड़ोसी देश अच्छे नहीं हैं। हमारी पश्चिमी सीमान्त सुरक्षित नहीं है। पाकिस्तानी सेना हमारे सीमान्त गांवों में हमला करती रहती है। चीन हमारा मित्र नहीं है। उसने हमारे देश का एक बड़ा क्षेत्र अपने कब्जे में कर लिया है। ऐसा दशा में प्रत्येक देश के लिए अधिक से अधिक सेना अनिवार्य है। हमारे विद्यालयों में सेना का प्रशिक्षण अनिवार्य चाहिए।
आधुनिक युद्ध और एन. सी. सी.– वर्तमान में युद्ध की तकनीकें हमारे पूर्वजों की तकनीक से भिन्न हैं। थल सेना, जल सेना और वायुसेना को तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाता है। इन तकनीकों के बिना कोई भी देश आधुनिक युद्ध में सफल नहीं हो सकता। इसी उद्देश्य से विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा करनी चाहिए जिसमे वह सेना सेवा (एन. सी. सी.)का प्रशिक्षण पा सकें। इस दृष्टिकोण से विद्यालयों और महाविद्यालयों में सेना प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए।
प्रत्येक का उत्तरदायित्व- लोकतांत्रिक देश में सभी नागरिक समान हैं। हम सब अपने घरों में सुरक्षित हैं क्योंकि सीमा पर सेना खतरे का सामना करती है। प्रत्येक नागरिक को अपने देश के प्रति तैयार होना चाहिए, यह तब तक सम्भव नहीं है जब तक आप प्रशिक्षण नहीं पाते हैं। प्रशिक्षण का यह कार्य तभी आसानी से किया जा सकता है जबकि सैन्य शिक्षा हमारी शिक्षा व्यवस्था में शामिल हो।
सेना का जीवन अनुशासन सिखाता है- सेना का जीवन अनुशासन के लिए जाना जाता है। सेना की शिक्षा कानून का पालन करना सिखाती है। मरना और मारना सिपाही का उद्देश्य होता है। सेना प्रशिक्षित व्यक्ति अपने कर्तव्यों के प्रति अन्यों की अपेक्षा अधिक चिंतामय होता है। वे मानते हैकि कर्त्तव्य जीवन से बढ़कर होते हैं और ये विशेषताएँ राष्ट्र को महान बनाती हैं। हमारे देश को ऐसे युवाओं की आवश्यकता है जिनमें आत्म-बलिदान की भावना हो। इस दृष्टिकोण से सेना शिक्षा बहुत उपयोगी है।
संक्षेप में, हम कह सकते हैं सैन्य शिक्षा मिश्रित वरदान है। जिसे इसकी इच्छा होती है। सिर्फ वह व्यक्ति ही इसे प्राप्त कर सकता है।
अभिशाप हो सकता है- सेना के व्यक्ति मात्र जब ही उचित व्यवहार करते हैं जब वे सेना में होते हैं, जब वे सेना से निकल जाते हैं तो वे अपनी योग्यता का अनुचित प्रयोग करते हैं। ऐसे व्यक्तियों से आन्तरिक अव्यवस्था का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए सेना शिक्षा वरदान है तो अभिशाप भी हो सकती है।
सेना प्रशिक्षण अनिवार्य- कुछ लोग सोचते हैं कि विद्यालय और महाविद्यालय में सेना प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए। चीन आक्रमण (1962) के बाद विद्यालय और महाविद्यालयों में सेना प्रशिक्षण को अनिवार्य कर दिया गया था। जिसमें अनेक व्यवहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अनेक विद्यार्थी शारीरिक रूप से अयोग्य पाए गए और जो कुछ विद्यार्थी योग्य थे उनमें रूचि का अभाव था। वे परेड में उपस्थित होते थे न ही उचित प्रकार से व्यवहार नहीं करते थे।
उपसंहार- उपर्युक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए मध्य का रास्ता चुनना सर्वश्रेष्ठ है। सेना प्रशिक्षण देना चाहिए लेकिन अनिवार्य नहीं होना चाहिए। विद्यार्थियों को इसको गंभीरत से लेनी चाहिए। यह उनका कर्तव्य है कि वे अपने राष्ट्र के लिए सेना प्रशिक्षण लें। अपनी मातृभूमि को खतरे के समय बचाने के लिए उन्हें तैयार रहना चाहिए।
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