पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध : प्रकृति ने हमारे लिए एक स्वस्थ एंव सुखद आवरण का निर्माण किया था परंतु मनुष्य ने भौतिक सुखों की होड़ में उसे दूषित कर दिया। प्रदूषण मख्यत: चार प्रकार का होता है- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तथा अणु प्रदूषण। हर प्रकार का प्रदूषण किसी न किसी रूप में रंगों में वृद्धि करता है, जीवनमे तनाव मानसिक और शरीरिक व्यक्रता को बढ़ावा देता है। वायु हमारे प्राणों का आधार है। वायु में आक्सीजन की मात्रा घटना और कार्बन डा-ऑक्साइड तथा कार्बन मोनोआक्साइड जैसी हानिकारक गैसों की मात्रा का बढ़ाना ही वायुप्रदूषण का लक्षण है। वायुमंडल में कार्बन डाई-आक्साइड की मात्रा लगातार बढ़ रही है। नगरों मे मोटर-गाडि़यों द्वारा छोड़ो गए धुएं तथा कल-कारखानो की चिमनियों से निकलें धुएं से वायु प्रदूषण होता है। वे व्यवसाय जिनमें प्रचुर मात्रा में धूल उड़ती है (जैसे- सीमेंट, चूना, खनिज आदि) तथा वे व्यवसाय जो दुर्गधयुक्त भाप उत्पन्न करते हैं (जैसे- पशु वध, चमड़ा तैयार करना, साबुन या चर्बी का व्यापार आदि) वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।
पर्यावरण शब्द का
निर्माण ‘परि’ तथा ‘आवरण’ के योग से हुआ है। परि का अर्थ है चारों ओर तथा
आवरण का अर्थ है टकने वाला; अर्थात जो हमारे चारों ओर फैलकर हमें ढके हुए
है। यें भी कह सकते हैं कि जो हमारे चारों ओर विद्यमान है,
वही पर्यावरण है। प्रकृति ने हमारे लिए एक स्वस्थ एंव सुखद आवरण का निर्माण किया
था परंतु मनुष्य ने भौतिक सुखों की होड़ में उसे दूषित कर दिया। वाहनों तथा कारखानों
की चिमनियों से निकलते धुऐं, रासायनिक गैसों एवं शोर-शराबे
ने वातावरण को प्रदूषित किया है। वनों की कटाई के कारण प्रदूषण और भी भयंकर होता
जा रहा है।
पर्यावरण दो प्रकार का
होता है प्राकृतिक पर्यावरण तथा समाजिक पर्यावरण। प्राकृतिक पर्यावरण प्रकृति से संबंधित
है, इसमें वायु, जल, भूमि, वन, पक्षी, खनिज पदार्थ आदि सम्मिलित हैं। सामाजिक
पर्यावरण मानव संबंधों को प्रकट करता है। सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक
संबंध सामाजिक पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं। प्रदूषण मख्यत: चार प्रकार का होता
है- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तथा
अणु प्रदूषण। हर प्रकार का प्रदूषण किसी न किसी रूप में रंगों में वृद्धि करता है,
जीवनमे तनाव मानसिक और शरीरिक व्यक्रता को बढ़ावा देता है।
Related : पर्यावरण के प्रति हमारा दायित्व
वायु हमारे प्राणों का
आधार है। वायु में आक्सीजन की मात्रा घटना और कार्बन डा-ऑक्साइड तथा कार्बन
मोनोआक्साइड जैसी हानिकारक गैसों की मात्रा का बढ़ाना ही वायुप्रदूषण का लक्षण
है। वायुमंडल में कार्बन डाई-आक्साइड की मात्रा लगातार बढ़ रही है। नगरों मे
मोटर-गाडि़यों द्वारा छोड़ो गए धुएं तथा कल-कारखानो की चिमनियों से निकलें धुएं से
वायु प्रदूषण होता है। वे व्यवसाय जिनमें प्रचुर मात्रा में धूल उड़ती है (जैसे-
सीमेंट, चूना, खनिज आदि) तथा वे व्यवसाय जो दुर्गधयुक्त भाप
उत्पन्न करते हैं (जैसे- पशु वध, चमड़ा तैयार करना,
साबुन या चर्बी का व्यापार आदि) वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। प्रदूषित वायु
के कारण अनेक रोग जैसे- रक्तचाप, हृदय रोग, श्वास रोग तथा नेत्र संबंधी रोग आदि बढ़ रहे
हैं। बालू के महीन कणों से यक्ष्मा (टी.बी.) आदि रोगों के होने की संभावना रहती
है।
वनों के संरक्षण एवं
एंवर्धन द्वारा वायु प्रदूषण रोका जा सकता है। वन कार्बन-डाइऑक्साइड का उपभोग
करते हैं तथा ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। भूस्खलन, भूक्षरण,
रेगिस्तानों के विस्तार को रोकने के लिए, जल स्त्रोतों को सूखने से बचाने के लिए तथा
वायु-प्रदूषण के कारण प्रभावित होने वाली भावी पीढि़यों के भविष्य को सुरक्षित
रखने के लिए हमें अधिक वृक्ष लगाने होंगे तथा वृक्षों पर निरंतर हो रहे कुठाराघात
पर रोक लगानी होगी। कारखानों में ऊंची-ऊंची चिमनियां तथा राख एकत्रित करने की
मशीनों का उपयोग अनिवार्य करना होगा। अति प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर
नियंत्रण करना होगा। सरकार इस दिशा में भरसक प्रयास कर रही है।
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जल मनुष्य की बुनियादी
आवश्यकता है। स्वच्छ एवं निरापद पीने का पानी न मिलने के कारण गांवों तथा शहरों
की घनी आबादी में रहने वाले लोग अनेक गंभीर रोगों के शिकार हो रहे हैं प्रतिवर्ष
अनेक व्यक्ति जल प्रदूषण के कारण उत्पन्न रोगों के कारण मर रहे हैं। गांवों
तथा शहरों की गंदी नालियों का जल कुंए, जलाशय, नदी आदि में गिरकर जल प्रदूषण करता है। मनुष्य
द्वारा जल स्त्रोतों के पास मल-मूत्र त्याग करने, तालाबों आदि में पालतू
जानवर नहलाने, तलाब या नदियों के किनारे कपड़े धोने,
आस-पास के वृक्षों के पत्ते एवं अन्य कूड़े के जल में गिरकर सड़ने,
कारखानों से निकलने वाले अवशिष्ट विषैले पदार्थों एवं गंदे जल के नदियों में
गिराने आदि से जल प्रदूषण होता है। जल प्रदूषण के कारण हैजा,
टाइफाइड, पीलिया, आंत्रशेष आदि रोग फैल जाते हैं।
जल को दूषित करने वाले
उपर्युक्त कारणों का निराकरण करके जल प्रदूषण की रोकथाम की जा सकती है। यदि
तालाबों, नदियों कुओं आदि को जल की सफाई के साथ सुरक्षित
रखा जाए एवं इनकी समय सफाई की जाए, रासायनिक क्रियाओं द्वारा परिशोधन किया जाए,
क्लोरीन अथवा लाल दवाई (पोटैशियम परमेंगनेट) आदि का प्रयोग किया जाए तथा जल
प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम 1974 का पालन किया जाए तो जल प्रदूषण से बचा
जा सकता है।
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अनावश्यक,
असुविधाजनक तथा अनुपयोगी आवाज ही शोर है। एक व्यक्ति के लिए जो संगीत है,
वही दूसरे के लिए शोर हो सकता है। हवाई जहाजों और जेट विमानों के भीषण गर्जन,
सड़कों पर मोटरों की पों-पों, ट्रकों की धड़-धड़,
कारखानों से आने वाली तेज आवाज, रेलगाड़ी की आवाज,
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारों से लाउड-स्पीकरों का शोर,
टीवी एवं रेडियो का शोर, ध्वनि प्रदूषण के कारण हैं। शोर पर अनुसंधान
कर रहे वैज्ञानिकों का मत है कि शोर एक अदृश्य प्रदूषण है जो मानव-मात्र के स्वास्थ्य
पर घातक प्रभाव डालता है। तीव्र ध्वनि या अचानक हुए शोर के कारण कान की ध्वनि
ग्राही कोशिकाओं के संवेदी रोम नष्ट हो जाते हैं। ध्वनि प्रदूषण से मनुष्य केवल
श्रवण दोष से ग्रसित ही नहीं होता उसे रक्तचाप, अल्सर,
तेज सिरदर्द, अनिद्रा रोग भी सकते हैं।
यह जानते हुए भी कि अणु
का निर्माण घातक है, आज विश्व के अनेक देश आण्विक शक्ति का
निर्माण इसलिए कर रहे हैं कि अन्य देश उन्हें कमजोर न समझें। कहा भी है- ‘क्षमा
शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो’… । अणुशक्ति को निश्चित अवधि से पूर्व निष्क्रय
करने, शत्रु देश के लिए उसका प्रयोग करने (जैसा जापान के लिए) के
कारण आण्विक प्रदूषण होता है। इससे वनस्पतियां नष्ट हो जाती हैं,
लोग मर जाते हैं या अपंग हो जाते हैं तथा निर्जनता का राज्य हो जाता है। एक ओर
हमें आण्विक शक्ति के प्रयोगों पर रोक लगानी चाहिए दूसरी ओर इसका उपयोग विनाशक
कार्यों के लिए न करके रचनात्मक कार्यों के लिए ही किया जाना चाहिए तभी हम विश्व
शांति और सौहार्द्र की बात कर सकते हैं जो आज के युग मे अति आवश्यक है।
इस बढ़ते हुए प्रदूषण
के प्रति जन-सामान्य एवं भारत सरकार दोनों ही सजग हो रही हैं। जन साधारण के स्तर
पर सुंदरलाल बहुगुण का ‘चिपको आंदोलन’ उभरकर आया है तो
सरकारी स्तर पर वन रक्षा एवं पर्यावरण मंत्रालय की स्थापना हो गई है। सरकार ने
इस दिशा में प्रयास प्रांरभ कर दिए हैं। प्रदूषण का निराकरण तभी हो सकता है जब
जनता एवं सरकार का समवेत प्रयास इस दिशा में निरंतर होता रहे।
Admin


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