संयुक्त राष्ट्र संघ पर निबंध। Essay on United Nations in Hindi : द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका में बुरी तरह से फंसे सभी बड़े देशों द्वारा सैद्धांतिक तौर पर यह स्वीकार कर लिया गया कि युद्ध किसी भी समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। वैश्विक शांति और सुरक्षा से ही मानव का सर्वांगीण विकास संभव है और इसे संबंधित पक्षों द्वारा आपस में मिल बैठकर वार्ता द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। वैश्विक स्तर पर शांति और सुरक्षा के प्रयासों में रत सर्वोच्च संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ (यू एन ओ) इसी प्रकार की सोच की अंतिम परिणीति है।
द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका में बुरी तरह से फंसे सभी बड़े देशों द्वारा सैद्धांतिक तौर पर यह स्वीकार कर लिया गया कि युद्ध किसी भी समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। वैश्विक शांति और सुरक्षा से ही मानव का सर्वांगीण विकास संभव है और इसे संबंधित पक्षों द्वारा आपस में मिल बैठकर वार्ता द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। वैश्विक स्तर पर शांति और सुरक्षा के प्रयासों में रत सर्वोच्च संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ (यू एन ओ) इसी प्रकार की सोच की अंतिम परिणीति है। संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट¸ ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और पूर्व सोवियत संघ के प्रधानमंत्री स्टालिन ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग हेतु कुछ सिद्धांत प्रारंभिक रूप से प्रस्तुत किए ताकि शांति और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इन प्रस्तावों को अटलांटिक चार्टर कहा जाता है। बाद में धुरी राष्ट्रों से संघर्षरत 26 राष्ट्रों ने इन प्रस्तावों को अपना समर्थन देते हुए 1 जनवरी 1942 को संयुक्त राष्ट्र की घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए। इसके बाद चले काफी लंबे विचार विमर्श के बाद राष्ट्र अंततः 25 जून 1945 को ‘अंतरराष्ट्रीय संगठन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन’ में सैन फ्रांसिस्को (संयुक्त राज्य अमेरिका) में 50 देशों के प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर कर दिए। संयुक्त राज्य अमेरिका¸ फ्रांस¸ ब्रिटेन¸ तत्कालीन सोवियत संघ तथा चीन जो कि संयुक्त राष्ट्र संघ के सर्वाधिक शक्तिशाली घटक सुरक्षा परिषद के सदस्य हैं द्वारा इस चार्टर को अनुमोदित कर दिए जाने के बाद अंततः संयुक्त राष्ट्र संघ 24 अक्टूबर 1945 को विधिवत रूप से अस्तित्व में आ गया।
लगभग 185 देशों की सदस्यता के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ 25 जून 2017 को 74 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इसे इसकी सबसे बड़ी सफलता माना जा सकता है कि विगत 74 वर्षों में अनेक प्रकार के देशों के बीच एवं किसी एक देश में गुटों के बीच आपसी संघर्षों को झेलते हुए इसकी सदस्य संख्या में 3 गुने से भी अधिक की वृद्धि हो गई है। इतना ही नहीं इसे इस बात का भी श्रेय जाता है कि इसने विश्व को अभी तक तीसरे विश्वयुद्ध की आग से बचाए रखा है। संयुक्त राष्ट्र संघ की सफलता में इसकी असफलता भी छुपी हुई है। इसके संस्थापकों ने विश्व के शक्तिशाली 5 देशों अमेरिका¸ फ्रांस¸ ब्रिटेन¸ सोवियत संघ तथा चीन को यह सोचते हुए भी वीटो जैसा विशेषाधिकार प्रदान किया था कि इसका प्रयोग करते हुए ये देश आपस में संघर्षरत नहीं होंगे। इतना ही नहीं वे अपने अपने प्रभाव क्षेत्र के देशों को भी संघर्ष में पड़ने से रोकेंगे। उस समय शीत युद्ध की कल्पना भी नहीं की गई थी। रूजवेल्ट की यह स्पष्ट मान्यता थी कि अमेरिका¸ सोवियत संघ तथा ब्रिटेन के सक्रिय सहयोग से शांति और सुरक्षा का वातावरण स्थापित करने में सफल होगा। रूजबेल्ट की मृत्यु के उपरांत ही उनका यह स्वप्न धराशाई हो गया और सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका शीत युद्ध के रूप में आमने सामने हो गए। सारा विश्व इन दो महाशक्तियों के प्रभाव क्षेत्र में चला गया। सोवियत संघ ने जहाँ साम्यवाद के प्रसार का बीड़ा उठाया तथा उसी के अनुरूप तृतीय विश्व के देशों को लामबन्द किया वहीं दूसरी ओर अमेरिका ने साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए बहुत से देशों को विपुल मात्रा में सैनिक सहायता दी। इन दोनों महाशक्तियों की पारस्परिक प्रतिद्वंदिता ने विश्व के कई भागों जैसे मध्य-पूर्व¸ दक्षिण एशिया¸ पूर्व एशिया में अशांति को जन्म दिया। 1990-91 में सोवियत संघ के विघटन के साथ शीत युद्ध तो समाप्त हो गया परंतु विश्व के अनेक भागों में सुरक्षा तथा अशांति का वातावरण अभी भी विद्यमान है।
आज संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष शांति और सुरक्षा की समस्याएं तो विद्यमान नहीं है जो इसकी स्थापना के समय तथा शीत युद्ध के काल में विद्यमान थी लेकिन विकासशील देश में परमाणु अस्त्र बनाने तथा प्राप्त करने की होड़ और विकसित देशों द्वारा अपने निहित आर्थिक एवं सामाजिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु उन्हें समर्थन देने की नीति ने यदि वैश्विक स्तर पर नहीं तो कम से कम क्षेत्रीय स्तर पर शांति और सुरक्षा की समस्या उत्पन्न कर दी है। नकली राष्ट्रवादिता¸ धार्मिक रूढ़िवादिता¸ अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद¸ उच्च अग्नि शक्ति वाले हल्के हथियारों के फैलाव¸ नशीली दवाओं की तस्करी और इससे वित्तपोषित आतंकवाद आदि सर्वथा नवीन प्रकार की समस्याओं से उपजी अशांति और असुरक्षा से लड़ने में संयुक्त राष्ट्र संघ का वर्तमान संगठनात्मक ढांचा सक्षम एवं उपयुक्त नहीं है। यदि ऐसा होता तो बोस्निया¸ रवांडा¸ अंगोला¸ इथोपिया तथा सोमवारिया में अब तक शांति स्थापित हो गई होती।
आज का विश्व एड्स¸ पर्यावरण प्रदूषण¸ तेजी से बढ़ती जनसंख्या¸ आय एवं धन के वितरण की असमानताएं जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने विगत कुछ वर्षों से इन समस्याओं के समाधान पर ध्यान तो दिया है लेकिन वह ना तो पर्याप्त है और ना सही दिशा में है। अब समय आ गया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को ऐसी सर्वोच्च संस्था का स्वरूप प्रदान किया जाए जो शांति और सुरक्षा की स्थापना के साथ संपूर्ण मानव जाति के विकास और उत्थान के लिए कार्य करे। सुरक्षा परिषद का विस्तार किए जाने की आवश्यकता है और यह भी आवश्यक है कि स्थाई सदस्यों को जो भी वीटो अधिकार मिला है वह समाप्त हो जिससे सभी सदस्य देशों की समानता सुनिश्चित हो सके। संयुक्त राष्ट्र की वित्तीय स्थिति को मजबूत किया जाना आवश्यक है। इसके लिए यह जरूरी है कि इसके सदस्य राष्ट्र समानता के आधार पर (कुछ अपवादों को छोड़कर) धन जुटाएं जिससे कि परिचर्चाओं में सब राष्ट्रों की बात बराबरी का दर्जा रख सके। समानता की आधुनिक दुनिया में कुछ सदस्य देशों को प्रधानता प्रदान किया जाना अटपटा है। यह विश्व संस्था विश्व के देशों की सच्ची प्रतिनिधि बने जिससे कि यह अपने उद्देश्यों में सफल हो सके।
COMMENTS