किशोरियों की समस्याएं एवं सबला योजना पर हिंदी निबंध
दुनिया में 10 से 19 वर्ष की आयु 1.2 अरब व्यक्ति रहते हैं, जिसे आमतौर पर
किशोरावस्था के रूप में जाना जाता है। किशोरावस्था उम्र का ऐसा दौर है जब बच्चों
के जीवन में प्रमुख शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक बदलाव होते हैं तथा इसके साथ ही उनकी
सामाजिक बोध और आकांक्षाओं में भी परिवर्तन होते हैं। किशारावस्था ऐसी अवस्था भी
होती है जब युवा वर्ग माता-पिता एवं परिवार से परे संबंध बनाता है तथा अपने समकक्ष
व्यक्तियों एवं बाहरी जगत से प्राभवित होता है। ये उम्र के ऐसे वर्ष भी होते हैं
जब व्यक्ति अनुभव प्राप्त करता है और महत्वपूर्ण मसलों पर असूचित निर्णय लेने का
जोखिम उठाता है। अधिकांश किशोर विकासशील देशों में रहते हैं तथा भारत किशोरों की
सबसे अधिक राष्ट्रीय आबादी वाला देश है। अध्ययन दर्शाते हैं कि आज लाखों किशोर
अच्छी शिक्षा, बुनियादी लैंगिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल, मानसिक स्वास्थ्य
मसलों और विकलांगता के लिए सहायता, हिंसा, दुर्व्यवहार और शोषण से रक्षा तथा सक्रिय
भागीदारी के लिए मंचों तक पहुंच का आनदं नहीं ले पाते।
किशोर जगत में लैंगिक अंतर
देश की लगभग आधी आबादी महिलाएं हैं लेकिन सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य
में लड़के-लड़की के बीच विषमता के कारण संतुलित न्यायोचित विकास पर बुरा असर
पड़ता है। स्वास्थ्य, पोषण, साक्षरता, शिक्षा हासिल करने, कौशल स्तर, व्यावसायिक दर्जे जैसे महत्वपूर्ण
सामाजिक विकास संकेतकों से इस विषमता का पता चलता है। किशोरियों की स्थिति में भी
इसका पता चलता है।
10-19 वर्ष की किशोरियों की संख्या देश में कुल किशोर आबादी का करीब
47 प्रतिशत है। लेकिन उनका विकास विविध प्रकार की समस्याओं के त्रस्त है। करीब
41 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष की कानूनी आयु से पहले ही हो जाती है जबकि
इसकी तुलना में 10 प्रतिशत युवकों की शादी 18 वर्ष की कानूनी आयु से पहले होती है।
कुल मिलाकर 15-19 वर्ष के आयु वर्ग में छह में से एक महिला मां बन जाती है। कम
उम्र में बच्चे जनना ग्रामीण क्षेत्रों में तथा अशिक्षित महिलाओं में बहुत आम बात
है। कुल जच्चाओं की मृत्यु में से करीब 41 प्रतिशत मौत 15-24 वर्ष की आयु वाली
महिलाओं की होती है। 56 प्रतिशत किशोरियां अनीमिक (अल्परक्तता) होती हैं जबकि
इसकी तुलना में 30 प्रतिशत किशोर अरक्तता के शिकार होते हैं। अल्परक्ता की
शिकार किशोरी माताओं को गर्भपात, जच्चा मृत्यु और मृत शिशु पैदा होने तथा कम
वजन के बच्चे पैदा होने का उच्च जोखिम होता है। स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ने
वालों में लड़कियों की संख्या बहुत अधिक होती है। 21 प्रतिशत किशोरियां और 8
प्रतिशत किशोर अशिक्षित होते हैं। स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ने वालों में लड़कियों
की संख्या बहुत अधिक होने का कारण स्कूलों का दूर होना, पुरुष शिक्षक, स्कूल में स्वच्छता सुविधाएं, कम उम्र में शादी
और कम उम्र में घरेलू जिम्मेदारियों को अपनाना है।
दुनिया में लड़को को विकल्पों एवं अवसरों की ज्यादा आजादी होती है
लेकिन लड़कियों को ऐसी आजादी कम होती है तथा यही नहीं, लड़के-लड़कियों के समूह में लड़ेकियों के
साथ पक्षपात और भेदभाव किया जाता है। किशोरियां शर्मीली होती हैं तथा सबके सामने
आने और माता-पिताओं, शिक्षकों, डाक्टरों इत्यदि को अपनी समस्याएं एवं मसले बताने में हिचकिचाती
हैं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि वे अपने मसलों के समाधान के बिना बड़ी होती
हैं या अपनी धारणाओं के आधार पर चलने से प्राय: राह भटक जाती हैं।
किशोरियां राष्ट्र की वृद्धि का मुख्य स्त्रोत होती हैं। उनके स्वास्थ्य
और विकास के लिए निवेश करना देश की भलाई के लिए निवेश करना है। इनमें से अनेक
लड़कियां स्कूली शिक्षा छोड़ देती हैं, कम उम्र में उनकी शादी कर दी जाती है, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अन्य
सेवाएं हासिल करने में भेदभाव का सामना करती हैं, संवेदनशील हालात में काम करती हैं और बड़ों
का दबाव झेलती है; जिसके मद्देनजर उन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। किशोरियों के
लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में गर्भवस्था, जच्चा–बच्चा मृत्यु का जोखिम, यौन संक्रामक रोग, प्रजनन अंगो पर
संक्रमण, एचआईवी
के मामले तेजी से बढ़ना शामिल हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए किशारियों की स्वास्थ्य
जरूरतों पर ध्यान देने की जरूरत है। समूह के साथ-साथ व्यक्तिगत स्तर पर उन पर
विशष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि वे समाज में भावी पीढि़यों को जन्म
देती हैं। किशारियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण
योजन-सबला शुरू की गई है। इस योजना के तहत स्कूल जाने वाली लड़कियों पर ध्यान
देने के साथ 11-18 वर्ष के आयु वर्ग की किशोरियों के लिए व्यापक कार्यक्रम चलाया
जा रहा है जो प्रायोगिक आधार पर देश के 200 जिलों में चलाई जा रही है।
सबला योजना के मुख्य क्षेत्र
समेकित बाल विकास योजना के मंच के इस्तेमाल से यह योजना सेवाओं के
समेकित पैकेज के साथ देश के 200 जिलों में 11-18 वर्ष के आयु वर्ग की करीब एक
करोड़ किशारियों को उपलब्ध कराई जा रही है। सबला का उद्देश्य 11-18 वर्ष के आयु
वर्ग की (स्कूली शिक्षा छोड़ने वाली सभी किशारियों पर विशेष ध्यान देने के साथ)
किशारियों को आत्मनिर्भर बनाकर उनका चहुंमुखी विकास करना है। आंगनबाडी केंद्रों
पर 600 किलो कैलोरी और 18-20 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध कराने के जरिए अनुपूरक पोषण
उपलब्ध कराया जाता है तथा आंगनबाडी केंद्रों पर हर रोज गरम पकाए हुए भोजन के रूप
में या स्कूली शिक्षा से वंचित 11-14 वर्ष की किशारियों को घर ले जाने के लिए और
14-18 वर्ष की सभी लड़कियों को साल में 300 दिन के लिए भोजन उपलब्ध कराया जाता
है।
इसके अतिरिक्त स्कूल जाने वाली किशोरियों को पोषाहार से भिन्न
सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं, जिनमें कौशल शिक्षा, सुपरवाइज्ड साप्ताहिक आईएफए (100
मिग्रा एलीमेंटल आइरन और 0.5 मिग्रा फोलिक ऐसिड) सप्लीमेंटेशन तथा पोषाहार
परामर्श, यौन
एवं प्रजनन स्वास्थ्य शिक्षा एवं परामर्श, नेतृत्व कोशल, समस्या समाधान, निर्णय लेना और सार्वजनिक सेवाओं तक
पहुंच शामिल हैं। इसके अलावा ज्यादा उम्र की किशोरियों (16-18 वर्ष की आयु) को
आत्मनिर्भर बनाने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कार्यक्रम के
उद्देश्य हासिल करने के लिए इस योजना में स्वास्थ्य, शिक्षा, युवा मामले एवं खेल और पंचायती राज संस्थाओं
जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के तहत सेवाओं के रूपांतरण पर बल दिया गया है।
समुदाय आधारित फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं (आंगनवाडी कार्यकर्ता) तथा
सिविल सोसायटी समूहों की सहायता से किशोरियों के समूह बनाए गए हैं जिन्हें किशोरी
समूह कहते हैं। प्रत्येक समूह का नेतृत्व वरिष्ठ किशोरी (किशोरी सखी) करती है
तथा पीयर सपोर्ट समूह के रूप में कार्यक्रम सेवाएं और कार्य प्राप्त करने के लिए
सप्ताहमें कम से कम 5-6 घंटे की बैठक होती है। सबला में नामांकित प्रत्येक लड़की
को किशोरी कार्ड दिए जा रहे हैं जो सबला के तहत किशोरी की सेवाओं तक पहूंच और
सेवाएं लेने की निगरानी करने पात्रता साधन है। सबला कार्यक्रम के तहत पोषाहार से
भिन्न सेवाओं को किशोरी समूहों अर्थात किशोरी समूह बैठकों के लिए जरिए स्कूल
नहीं जाने वाली किशोरियों तक भी पहुंचाया जाता है। प्रत्येक किशोरी समूह में
15-25 किशोरियां होती हैं जिनका नेतृत्व वरिष्ठ किशोरी अर्थात किशोरी सखी करती
है तथा उसकी दो सहयोगी अर्थात सहलियां होती हैं। सखियां और सहेलियां प्रशिक्षण
देती हैं तथा किशोरियों के लिए पीयर मॉनिटर/शिक्षक के रूप में कार्य करती हैं। वे
एक वर्ष तक समूह के लिए कार्य करती हैं तथा प्रत्येक लड़की रोटेशनल आधार पर सखी
के रूप में चार महीनों की अवधि के लिए कार्य करती हैं। किशोरियां प्री-स्कूल, शिक्षा, विकास निगरानी और
एसएनपी जैसी आंगनवाडी कार्यकर्ता की दिन प्रति दिन की गतिविधियों एवं अन्य
गतिविधियों में आंगनवाडी कार्यकर्ता की सहायता करने में भी भाग लेती हैं। वे घर पर
विजिट (एक समय पर 2-3 लड़कियां) के लिए आंगनवाडी कार्यकर्ताओं के साथ भी जाती हैं
जो भविष्य के लिए प्रशिक्षण की बुनियादी तैयार करती हैं।
राज्य विशेष के सबला प्रयास
मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे अनेक राज्यों में जागररूकता संबंधी सभी
गतिविधियों के लिए तथा सखियों एवं सहेलियों के प्रशिक्षण के लिए स्वंय सेवी
संगठनों का इस्तमेल किया जा रहा है। सप्ताह में एक बार स्कूल जाने वाली और स्कूल
नहीं जाने वाली किशोरियों की बैठक आयोजित की जाती है ताकि स्कूल जाने वाली एवं स्कूल
न जाने वाली लड़ेकियों के बीच बातचीत को बढ़ावा दिया जा सके तथा स्कूल जाने वाली
किशोरियों को स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहन दिया जा सके। तीन महीनों में एक बार
किशोरी दिवस निर्धारित किया जाता है और सामान्य स्वस्थ्य जांच, लंबाई एवं वजन की
माप तथा रेफरल सेवाओं की सुविधा दी जाती है। इन सबका आयोजन आंगनवाडी कार्यकर्ता स्वास्थ्य
कर्मियों की मदद से करती हैं तथा ऐसी स्वास्थ्य समस्या के लिए विशिष्ट स्वास्थ्य
देखभाल केंद्र द्वारा किया जाता है। प्रत्येक किशोरी को किशोरी कार्ड उपलब्ध
कराया जाता है जो सबला योजना के तहत सेवाओं के किशोरी द्वारा उपयोग करने की
निगरानी का साधन है।
योजना की बुनियादी रूपरेखा के साथ राज्य सरकारों ने किशारियों के कल्याण
के लिए उन तक पहुंचने के विशेष प्रयास किए हैं। बिहार में राज्य सरकार ने 16-18
वर्ष की किशारियों के व्यावसायिक प्रशिक्षण को इस योजना के साथ मिलाया है तथा
शिक्षा विभाग की हुनर स्कीम के जरिए किशोरियों तक पहुंच रही है। हुनर स्कीम राज्य
स्तरीय विशिष्ट पहल है जो अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों
को सशक्त बनाने के लिए चलाई जा रही है। इसके तहत कम से कम 8वीं पास युवतियों को
व्यावसायिक रूप से वहनीय प्रशिक्षण उपलब्ध कराने तथा रोजगार योगय कौशल विकसित
करने प्रयास किए जा रहे हैं।
ओडिशा जैसे राज्य सरकार ने किशोरियों को वस्त्र दस्तकारी में
प्रशिक्षण देने का प्राथमिकता दी है तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के लिए मौजूदा
कुटीर उद्योगों के साथ समझौते किए हैं। इसके तहत मार्केट लिंक संबंधी प्रशिक्षण भी
दिया जाता है ताकि वरिष्ठ किशोरियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकें। आंध्र
प्रदेश और कर्नाटक सरकार ऐसे ही प्रयास कर रही हैं।
गुजरात में राज्य सरकार ने किशोरियों की पर्याप्त स्वास्थ्य
देखभाल एवं समय पर परामर्श सुनिश्चित करने के लिए ममता तरुणी कार्यक्रम शुरू किया
है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ऐसी किशोरियों को स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध
कराना है जो स्कूल छोड़ चुकी हैं, क्योंकि वहां स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए
पहले ही स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराने का कार्यक्रम मौजूद है। इस कार्यक्रम
के जरिए युवतियों में किशोरावस्था के दौरान होनेवाले बदलावों के बारे में शारीरिक
एवं मनोवैज्ञानिक परामर्श दिया जा रहा है। हर छह महीने में किशोरियों की पोषाहार
स्थिति और हीमोग्लोबिन स्तर की जांच की जाती है तथा यदि आवश्यकता हो तो उनका
एनीमिया का इलाज किया जाता है। कार्यक्रम में अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित करने के
लिए राज्य सरकार ने मामूली आर्थिक सहायता का भी प्रावधान किया है। इसका मकसद यह
सुनिश्चित करना है कि खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों से अधिक
से अधिक लड़कियां शामिल हो सकें और इसका लाभ उठा सकें। राज्य सरकार सखियों को 25
रुपये हर बैठक के लिए उपलब्ध कराती है ताकि वे किशोरी समूहों में अधिक से अधिक
लड़कियों को ला सकें तथा उन्हें जागरूक कर सकें। इसके साथ-साथ आंगनवाडी
कार्यकर्ता को भी बैठक और किशोरियों का परामर्श देने के लिए 50 रुपये की प्रोत्साहन
राशि दी जा रही है।
झारखंड में राज्य सरकार ने किशोरियों को तकनीकी और व्यावसायिक कौशल
देने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण के वास्ते प्रभावी लिंकेज स्थापित करने के
लिए विशष प्रयास किए हैं। व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं प्लेसमेंट के लिए एनएसडीसी
(राष्ट्रीय कौशल विकास निगम) तथा 30 स्थानीय स्वयं सेवी संगठनों के साथ लिंकेज
स्थापित किया गया है। किशोरियों के समूहों को मौजूदा स्वयं सहायता समूहों के साथ
जोड़ा जा रहा है ताकि वे इन समहों के साथ बात कर सकें और आर्थिक निर्भर होने में
उनसे मदद हासिल कर सकें। शिक्षा विभाग के सहयोग से राज्य सरकार विशेष पाठ्यक्रम
तैयार कर रही है ताकि स्कूल छोड़ चुकी किशोरियों को स्कूलों में पुन: दाखिल
कराया जा सके और विशेष रूप से तैयार किए गए शैक्षिक पाठ्यक्रम से उनकी साक्षरता
उपलब्ध कराने के लिए उपाय किए हैं। इसके लिए राष्ट्रीय बालिका शिक्षा कार्यक्रम
और कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय के साथ लिंकेज स्थापित किया गया है। खासतौर
से जनजातीय लड़कियों के गैर-कानूनी व्यापार से निपटना राज्य के समक्ष प्रमुख
चुनौती है। इस समस्या से निपटने के लिए झारखंड सरकार ने जीवन कौशल शिक्षा के जरिए
समुचित व्यावसायिक प्रशिक्षण और साक्षरता बढ़ाने की योजना पर काम शुरू किया है।
आशा है कि इससे बालिकाओं के गैर कानूनी व्यापार को कम किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त
कार्पोरेट सामाजिक दायित्व कोष को इस्तेमाल प्रत्येक आंगनवाडी केंद्र मे लघु
पुस्त्कालय एवं शिक्षण केंद्र बनाने के लिए किया जा रहा है। राज्य सरकार ने
किशोरियों के स्वास्थ्य एवं पोषाहार के लिए राज्यव्यापी सामाजिक एकजुटता
अभियान भी शुरू किया है जिसका उद्घटन एक समारोह में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री
ने किया था जहां सबला के तहत सारे कार्यक्रम शुरू किए गए।
सबल पहल से किशारियों को ज्यादा आत्मनिर्भर बनाने, पोषाहार एवं स्वास्थ्य
दशा में सुधार, कौशल सुधार और सूचित विकल्प उपलब्ध कराने के जरिए उनकी क्षमता
बढ़ाने में मदद मिली है। सबला सहित विभिन्न योजनाओं के जरिए सरकार किशोरियों के
स्वास्थ्य, पोषाहार एवं विकास जरूरतों को पूरा करने के लिए निवेश कर रही है
जिससे उनको शिक्षा, स्वास्थ्य एवं संरक्षण के अधिकार प्रदान किए जा सकें। इससे
किशोरियों को लैंगिक रूप स बराबरी एवं न्यायपूर्ण भविष्य के निर्माण में मदद
मिलेगी। कुल मिलाकर इससे महिलाओं को आत्मनिर्भर एवं आत्मविश्वास से भरपूर बनाया
जा सकेगा।
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