भारत में बाढ़ आपदा प्रबंधन पर निबंध - बाढ़ की समस्या और समाधान
ऐतिहासिक साक्ष्यों
के आधार पर कहा जा सकता है कि मानव सभ्यातायें नदियों के तट पर फली-फूलीं। बाढ़
का मानव मात्र के अस्तित्व पर निश्चित और सकारात्मक प्रभाव रहा है। मैदानी
इलाकों में बाढ़ से कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है, भूजल स्तर की भरपाई और जमीन में नमी फिर से आती है। लेकिन जनसंख्या
के आधिक्य, बेतरतीब विकास, परिवर्तनशील सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां, प्राकृतिक जल निधियों में निरन्तर होती कमी और जलवायु परिवर्तन तथा
अन्य कई कारणों से बाढ़ की प्रकृति, तीव्रता और आवृत्ति में जो वृद्धि हो रही है। उससे बाढ़ न प्राकृतिक
आपदा का रूप ले लिया है।
यद्यपि बाढ़ एक
वैश्विक प्राकृतिक आपदा है लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में इसकी बारंबारता और
विभीषिका ने खतरनाक रूप ले लिया है। भारत में बार-बार आने वाली बाढ़ के पीछे कई
कारण हैं जिसमें प्रमुख रूप से पर्यावरण असंतुलन है। हरे-भरे पेड़ो का विनाश, अवैध खनन, नदियों में प्रदूषण तथा गाद की समस्या, ग्लेशियरों का पिघलना, जल निधियों जैसे- झीलें, नम भूमि क्षेत्र, तालाब आदि का मानव
द्वारा पाटकर बस्तियां बसाना है। भारत में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का आधे से अधिक
भाग असम, बिहार, प. बंगाल और उत्तर प्रदेश में आता है। देश के कई राज्यों/केंद्र
शासित प्रदेशों और पूर्वोत्तर राज्यों में भी बाढ़ का प्रकोप रहता है। लेकिन एक
ही समय सभी जगह बाढ़ नहीं आती है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के अनुसार देश में बाढ़
प्रभावित क्षेत्र लगभग 498 लाख हेक्टेयर है। केन्द्रीय जल आयोग ने बाढ़ प्रभावित
क्षेत्र को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया है:
- ब्रह्मपुत्र नदी क्षेत्र
- उत्तर-पश्चिम नदी क्षेत्र
- गंगा नदी क्षेत्र
- दक्कन नदी क्षेत्र।
ब्रह्मपुत्र नदी
क्षेत्र में बाढ़ मुख्य रूप से नदियों के तटबंधों के ऊपर से बहने, नालों में रुकावट, भूस्खलन या नदियों
के मार्ग बदलने की वजह से आती है। गंगा नदी क्षेत्र में गंगा के उत्तर में स्थित
इलाकों में बार-बार बाढ़ आती है। राप्ती, शारदा, घाघरा और गंडक नदियों से उत्तर प्रदेश
में बूढ़ी गंडक, बागमती, कोसी और कुछ अन्य नदियों से बिहार में व्यापक क्षेत्र में बाढ़ आती
है। पश्चिम बंगाल में महानंदा, भागीरथी, दामोदर आदि नदियों से बाढ़ आती है। उत्तर-पश्चिम नदी क्षेत्र में
बाढ़का प्रमुख कारण नदियों में उफान तथा नालों में रुकावट और विस्तृत जल निकासी
की उचित व्यवस्था न होना। मध्य भारत और दक्कन क्षेत्र में भी जल निकासी की
समस्याओं का कारण बाढ़ आती है।
बाढ़ एक तबाही वएक
त्रासदी है। यह प्रकृति का अभिशाप है बाढ़ की विभीषिका अत्यंत भयानक होती है। यह
गांव के गांव बहा ले जाती है। असंख्य लोग तथा मवेशी मौत का ग्रास बन जाते हैं। आम
जनजीवन रुक जाता है। मिट्टी के घर से लोगों के सामने आवास की समस्या उत्पन्न हो
जाती है। फसलों के नष्ट हो जाने से खाद्य तथा चारा की समस्या गंभीर रूप से उत्पन्न
होती है। संचार व परिवहन व्यवस्था ध्वस्त हो जाती है। पर्यटन उद्योग पूरीतरह
से प्रभावित होता है। संक्रामक रोग फैलते हैं। चारों ओर नीरवता रहती है। केवल अबोध
बच्चे ही हंस खेल रहे होते हैं। पहाड़ों पर भूस्खलन से भीषण तबाही उत्पन्न हो
जाती है। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार बाढ़ के कारण प्रतिवर्ष लगभग 498 लाख हेक्टेयर
जमीन पर खड़ी 705.87 करोड़ रुपये मूल्य की फसलें बर्बाद हो जाती हैं। 12,35000 मकान ढह जाते हैं। 94,000 मवेशी और 2000 लोग मारे जाते हैं। हाल ही में जम्मू-कश्मीर में
आयी भीषण बाढ़ ने व्यापक स्तर पर तबाही मचायी है। इस प्रकार हर साल देश के विविध
भागों में बाढ़ कहर ढाती है और जान-माल का भारी नुकसान होता है। यदि हम बाढ़
प्रबंधन की एक ठोस प्रणाली विकसित करे तथा आपदा प्रबंधन के ढांचे को मजबूत बनाए तो
हर साल बाढ़ से होने वाले भारी जान-माल के नुकसान से बचा जा सकता है।
बाढ़ आपदा प्रबंधन : बाढ़ प्रबंधन तीन
स्तरों पर होना चाहिए: 1. पूर्वानुमान, 2. संरचनात्मक उपाय, 3. गैर संरचनागत। इन्हें अपनाकर बाढ़ की तबाही से काफी कुछ बचा जा
सकता है। पूर्वानुमान में वर्षा होने, उसकी गहनता अवधि और वितरण के बारे में भविश्यवाणी करना। तत्पश्चात्
जलप्रवाह मार्ग और बाढ़ के चरणबद्ध विकास का अध्ययन। तीसरे चरण में पिछली वर्षा
में किये गए जलसंग्रह, उपग्रह आधारित दूरसंवेदन तकनीक से
हिमाच्छादन और बर्फ पिघलने के आंकड़े प्राप्त करना।
बाढ़ से निपटने के
संरचनागत उपाय वस्तुत: परम्परागत है। इसके अंतर्गत जलाशयों, बाढ़ तटबंधों, बांधों में निकासी चैनलों का निमार्ण, भूमि कटाव निरोधक कार्य, नदियों की सफाई, वनीकरण, तालाओं, झीलों नमभूमि क्षेत्र की अवैध कब्जों
से मुक्त कराना तथा पड़ोसी देशों से नदी संबंधित विवादों का दीर्घकालीन तथा
पर्यावरणीय अनुकूल समझौता बाढ़ प्रभाव को रोकने में कारगार कदम साबित हो सकता है।
इसके अलावा बाढ़ पुर्वानुमान केंद्र गैर-संरचनागत उपायों में कारगर कदम हो सकता
है। आपदा प्रबंधन के स्तर पर बाढ़ से बचने का यद्यपि देश में कोई स्थायी समाधान
नहीं खोजा जा सकता है फिर भी केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों के स्तर से प्रयास
लगातार जारी है। जैसे नदी जोड़ो परियोजना, वाटरशेड कार्यक्रम, राष्ट्रव्यापी
बाढ़ पूर्वानुमान केंद्रों की स्थापना, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राष्ट्रीय जल ग्रिड संकल्पना, राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की स्थापना, राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम (1954) तथा बाढ़ पूर्व सूचना संगठन का कार्यकाल (पटना) आदि। सरकारी प्रयासों
से बाढ़ की विभीषिका को रोकने के प्रयास जारी है।
आपदाएं यों तो
मानवता की बड़ी दुश्मन होती मानी जाती हैं लेकिन ये हम सब के लिए सबक की तरह हैं।
आपदाओं में अक्सर मानवता खंडित होती दिखती है। लेकिन हमें धीरज और विवेकसे
आपदाओं से निटपना चाहिए। आपदाओं से बचने के लिए मानव समाज का संवेदनशील होना जरूरी
है। महज थोड़े अनुशासन से हम न केवल समुचित राहत सामग्री प्राप्त कर सकते हैं बल्कि
दूसरों को भी जीवन दे सकते हैं। ऐसा देखा गया है कि संकट के समय एक ही स्थान पर
खतरनाक जीवन और मनुष्य एक साथ टिके होते हैं और वे अब सुरक्षित बच जाते हैं।
अत: यह सच है कि
बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन उसका प्रकोप घटाने के लिए
प्रयास करना मानवीय कर्तव्य है। इस प्रकोप से बचने के लिए पर्यावरण संरक्षण की
तरफ विशेष रूप से ध्यान देना होगा। उन मानवीय गतिवधियों को रोकना होगा जो प्रकृति
का क्षरण कर बाढ़ जैसी विभीषिका को आमंत्रित करती हैं। यह भी आवश्यक है कि पड़ोसी
देशों के साथ मिलकर बाढ़ नियंत्रण की ऐसी योजनाएं बनायी जायें, जो पर्यावरण के अनुकूल और दीर्घकालीन हो। इन उपायों को अपनाकर निश्चित
रूप से बाढ़ की विभीषिका/त्रासदी से मुक्ति मिल सकती है।
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