स्वामी विवेकानंद पर निबंध: स्वामी विवेकानंद (मूल नाम: नरेंद्रनाथ दत्त) एक ऐसे युगपुरुष थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और दर्शन को विश्वपटल
स्वामी विवेकानंद पर निबंध 500 शब्द (Essay on Swami Vivekananda in Hindi)
स्वामी विवेकानंद पर निबंध: स्वामी विवेकानंद (मूल नाम: नरेंद्रनाथ दत्त) एक ऐसे युगपुरुष थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और दर्शन को विश्व पटल पर एक नई पहचान दी। उनका जीवन, उनके विचार और उनके उपदेश आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। वे केवल एक संत नहीं थे, बल्कि एक दूरदर्शी विचारक, एक महान देशभक्त और एक ऐसे समाज सुधारक थे जिन्होंने भारत के पुनरुत्थान का स्वप्न देखा था।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था। बचपन से ही वे तीव्र बुद्धि, जिज्ञासु प्रवृत्ति और आध्यात्मिक झुकाव वाले थे। उन्होंने पश्चिमी दर्शन, विज्ञान और साहित्य का गहन अध्ययन किया, लेकिन उनकी आत्मा को शांति नहीं मिली। वे सत्य की खोज में थे और इसी खोज ने उन्हें रामकृष्ण परमहंस के पास पहुँचाया, जो उनके गुरु बने। रामकृष्ण परमहंस के सान्निध्य में नरेंद्रनाथ ने आध्यात्मिकता के गहरे रहस्यों को समझा और उन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई। यहीं से नरेंद्रनाथ, स्वामी विवेकानंद के रूप में उभरे।
विश्व धर्म संसद और वैश्विक पहचान: 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद के भाषण ने उन्हें विश्व भर में ख्याति दिलाई। उनके "अमेरिका के भाइयों और बहनों" संबोधन ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने सनातन धर्म के सार्वभौमिक सिद्धांतों, सहिष्णुता और सभी धर्मों के प्रति सम्मान का संदेश दिया। उनके भाषण ने पश्चिमी दुनिया को भारतीय आध्यात्मिकता की गहराई से परिचित कराया और भारत की छवि को एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में स्थापित किया। इस घटना ने भारत के गौरव को बढ़ाया और विवेकानंद को एक वैश्विक आध्यात्मिक नेता के रूप में पहचान दिलाई।
भारत के प्रति उनका दृष्टिकोण: स्वामी विवेकानंद का हृदय भारत के गरीब और पिछड़े लोगों के लिए धड़कता था। उन्होंने महसूस किया कि भारत की असली शक्ति उसके युवाओं में निहित है। उन्होंने युवाओं को 'उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए' का मंत्र दिया। वे चाहते थे कि भारत के लोग शारीरिक रूप से मज़बूत, मानसिक रूप से सशक्त और आध्यात्मिक रूप से उन्नत हों। उन्होंने शिक्षा, समाज सुधार और राष्ट्रीय एकता पर विशेष बल दिया। उनका मानना था कि केवल आध्यात्मिक जागरण ही भारत को उसकी खोई हुई गरिमा वापस दिला सकता है।
समाज सुधारक और मानवतावादी: विवेकानंद ने जातिवाद, छुआछूत और अंधविश्वास जैसी सामाजिक बुराइयों का कड़ा विरोध किया। उन्होंने महिला सशक्तिकरण की वकालत की और शिक्षा को सभी के लिए अनिवार्य बताया। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य 'आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च' (अपने मोक्ष के लिए और जगत के कल्याण के लिए) के सिद्धांत पर कार्य करना था। यह मिशन आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है।
उनके विचारों की प्रासंगिकता: स्वामी विवेकानंद के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। उनका राष्ट्रवाद संकीर्ण नहीं था, बल्कि वह मानवतावाद पर आधारित था। उन्होंने सार्वभौमिक भाईचारे और सह-अस्तित्व का संदेश दिया। आज के समय में जब दुनिया विभिन्न संघर्षों और विभाजन का सामना कर रही है, उनके एकता और प्रेम के संदेश की महत्ता और भी बढ़ जाती है। उनका 'मानव सेवा ही माधव सेवा' का सिद्धांत हमें दूसरों की मदद करने और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को समझने की प्रेरणा देता है।
निष्कर्ष: स्वामी विवेकानंद एक ऐसे प्रकाश स्तंभ थे जिन्होंने अपने ज्ञान, कर्म और त्याग से पूरे विश्व को प्रकाशित किया। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची महानता बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धि, निस्वार्थ सेवा और मानव कल्याण के प्रति समर्पण में निहित है। वे भारत की आत्मा थे और रहेंगे। उनके आदर्शों पर चलकर ही हम एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकते हैं जिसका उन्होंने स्वप्न देखा था - एक मज़बूत, समृद्ध और आध्यात्मिक रूप से उन्नत राष्ट्र जो विश्व का मार्गदर्शन कर सके।
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