भारत की सांस्कृतिक समस्या निबंध का सारांश - हजारी प्रसाद द्विवेदी विश्व में अनेक संस्कृतियाँ प्रकट हुई हैं, जिनमें भारतीय संस्कृति बहुतप्राचीन है। भारतीय संस्कृति पर अनेक संस्कृतियों का प्रभाव है। विभिन्नप्रभावों से समय-समय पर हमारी इस संस्कृति के समक्ष अनेक समस्यायेंआईं, जो विशेष काल के लिए विकट बनी रहीं किन्तु फिर से समय के प्रबलवेग में वे बहती भी रहीं, हमारी संस्कृति पनपती रही। द्विवेदी जी के अनुसार संस्कृति की तीन विशेषतायें हैं। १. साधनाओं की परिणति २. विरोधहीन वस्तु ३. सामंजस्य स्थापित करने वाली। नाना प्रकार की जातियों का मिलन क्षेत्र भारतवर्ष है। इन मनुष्यों को कल्याण मार्ग की ओर अग्रसर करना ही हमारी असली समस्या है।
भारत की सांस्कृतिक समस्या निबंध का सारांश - हजारी प्रसाद द्विवेदी
विश्व में अनेक संस्कृतियाँ प्रकट हुई हैं, जिनमें भारतीय संस्कृति बहुतप्राचीन है। भारतीय संस्कृति पर अनेक संस्कृतियों का प्रभाव है। विभिन्नप्रभावों से समय-समय पर हमारी इस संस्कृति के समक्ष अनेक समस्यायेंआईं, जो विशेष काल के लिए विकट बनी रहीं किन्तु फिर से समय के प्रबलवेग में वे बहती भी रहीं, हमारी संस्कृति पनपती रही।
द्विवेदी जी के अनुसार संस्कृति की तीन विशेषतायें हैं।
१. साधनाओं की परिणति २. विरोधहीन वस्तु ३. सामंजस्य स्थापित करने वाली। नाना प्रकार की जातियों का मिलन क्षेत्र भारतवर्ष है। इन मनुष्यों को कल्याण मार्ग की ओर अग्रसर करना ही हमारी असली समस्या है।
मुसलमानों के आगमन एवं मुस्लिम धर्म के प्रचार होने पर भारतीय समाज में विषमता पैâली। आचार्य द्विवेदी जी कहते हैं कि पेशा, धर्म तभी कहा जा सकता है जब उसमें व्यक्तिगत लाभ हानि की अपेक्षा सामाजिक लाभ की भावना प्रधान हो। तीन दिशाओं में हिन्दू मुसलमानों को एक करने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं।
१. आध्यात्मिक क्षेत्र में २. लौकिक क्षेत्र में और ३. विज्ञान क्षेत्र में।
भारत में सदैव कला, धर्म, दर्शन और साहित्य पनपा, जिसका परिचय उसने समूचे विश्व को दिया। वर्तमान भारत में हम सबको अपना यही लक्ष्य बनाकर योजनाएँ बनानी है जिससे हमारी संस्कृति की यह समस्या दूर हो सके।
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