भूकम्पः एक प्राकृतिक आपदा पर निबंध Essay on Earthquake in Hindi : प्रकृति जब कुपित होती है, तो उसके दुष्परिणाम भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सामने आते हैं। जब भूकंप आता है, तो धरती कांप उठती है और चारों तरफ तबाही के मंजर देखने को मिलते हैं। कुपित प्रकृति विनाश का तांडव करती है, जिसके सामने मानव असहाय नजर आता है। भूकंपों की वजह से जान-माल का भारी नुकसान होता है तथा इतनी अधिक क्षति होती है कि उससे उबरने में वर्षो लग जाते हैं। आंकड़े बताते हैं कि एक वर्ष में दुनियाभर में 8000 से लेकर 10,000 तक भूकंप आते हैं। ये प्राय: भूतल से 50 से 100 किमी. की गहराई में उत्पन्न होते हैं। धरातलीय कम्पन के रूप में भूकंप की घटनाएं भारत में भी होती रहती हैं। भारत मे भूकंप प्रभावित क्षेत्रों की कमी नहीं है।
भूकम्पः एक प्राकृतिक आपदा पर निबंध Essay on Earthquake in Hindi
प्रकृति जब कुपित होती
है, तो उसके दुष्परिणाम भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के रूप में
सामने आते हैं। जब भूकंप आता है, तो धरती कांप उठती है और चारों तरफ तबाही के
मंजर देखने को मिलते हैं। कुपित प्रकृति विनाश का तांडव करती है,
जिसके सामने मानव असहाय नजर आता है। भूकंपों की वजह से जान-माल का भारी नुकसान
होता है तथा इतनी अधिक क्षति होती है कि उससे उबरने में वर्षो लग जाते हैं। आंकड़े
बताते हैं कि एक वर्ष में दुनियाभर में 8000 से लेकर 10,000
तक भूकंप आते हैं। ये प्राय: भूतल से 50 से 100 किमी. की गहराई में उत्पन्न होते
हैं। धरातलीय कम्पन के रूप में भूकंप की घटनाएं भारत में भी होती रहती हैं। भारत
मे भूकंप प्रभावित क्षेत्रों की कमी नहीं है। यहां आने वाले भूकंपों में जहां कुछ
की तीव्रता बहुत अधिक रही, वहीं कुछ कम तीव्रता वाले भी रहे। वर्ष 1905 से
अब तक लगभग 20 बड़े भूकंपों ने भारत में भारी तबाही मचाई। इन भूकंपों ने विनाश की
जो लीला की, उसे विस्मृत कर पाना संभव नहीं है।
भूकंप को होम्स ने
बहुत व्यावहारिक ढंग से समझाने का प्रयास किया। उनके अनुसार यदि किसी तालाब के
शांत जल में एक पत्थर फेंका जाए, तो जल के तल पर भी सभी दिशाओं में तरंगें फैल
जाएंगी। इसी प्रकार जब चट्टानों में कोई आकस्मिक हलचल होती है तो उससे पैदा होने
वाला कम्पन भूकंप कहलाता है। मैसवेल ने भूकंप को वैज्ञानिक ढंग से कुछ इस प्रकार
परिभाषित किया है- भूकंप धरातल के ऊपरी भाग की वह कंपन विधि है,
जो कि धरातल के ऊपरी अथवा निचली चट्टनों के लचीलेपन व गुरूत्वाकर्षण की समस्थिति
में न्यून अवस्थासे प्रांरभ होती है। भूकंप के कारण धरातल में होने वाला कम्पन
प्रघात कहलाता है तथा भूकंपों का अध्ययन करने वाले विज्ञान को ‘सिस्मोलॉजी’
कहते हैं।
भूकंप कई कारणों से आते
हैं। अक्सर ज्वालामुखी का विस्फोट भूकंप का कारण बनता है। जब ज्वालामुखी फटते
हैं, तो उनके आस-पास के क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाली हलचल
भूकंप कहलाती है। जिन क्षेत्रों में ज्वालामुखी ज्यादा होते हैं,
वहां भूकंप की संभावनाएं अधिक रहती हैं। कभी-कभी तो ये बिना फटे ही धरातलीय कंपन
पैदा कर देते हैं। होता यह है कि इनके अंदर का लावा बाहर आना चाहता है,
किंतु शैलों के अवरोध के कारण बाहर आ नहीं पाता। फलत: चट्टानों मे पैदा होने वाला
कंपन भूकंप लाता है। पृथ्वी का सिकुड़ना भी भूकंप का एक कारण है। पृथ्वी जब ठंडी
होकर सिकुड़ती है, तो शैलों में हलचल होती है जिसकी परिणति भूकंप
के रूप में सामने आती है। अक्सर वरलन व भ्रंश जैसी क्रियाओं से संपीडन व तनाव
होता है। इससे चट्टानें हिलती हैं और भूकंप आते हैं। भू-संतुलन की प्रक्रिया को
बनाए रखने के कारण भी भूकंप आते हैं। जब अपरदन द्वारा उच्च प्रदेशों ये शैलपूर्ण
अपरदित होकर निम्न प्रदेशों में निक्षेपित होता है, तो असंतुलन की स्थिति
पैदा होती है। जब चट्टानेंइस संतुलन को बनाए रखने का प्रयास करती हैं,
तो उनमें होने वाले कंपन के फलस्वरूप भूकंप आते हैं। बांध भी भूकंप का कारण बनते
हैं। ऐसा जलीय भार की अधिकता के कारण होता है। जब बांधों के लिए बनाये जाने वाले
भारी-भरकम जलाशयों में जल की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती है,
तो चट्टानों पर जलीय भार ज्यादा पड़ने लगता है और इस दबाव के कारण उनमें होने
वाली हलचल भूकंप का कारण बनती है। हिमखंडों व शिलाओं आदि के खिसकने से भी भूकंप
आते हैं। खानों आदि की छतें ध्वस्त होने से भी धरातलीय हलचल पैदा होती है।
कभी-कभी मानवीय गतिविधियों आदि के कारण आते हैं।
भूकंप कितना भयावह और
तीव्र है इसका आकलन इस बात से किया जाता है कि उसने मानव पर कितना प्रभाव डाला तथा
भूमि में उसकी गति कितनी रही। भूकंप की विनाशलीला ही इसके आकलन का मुख्य आधार
होता है। भूकंप के परिणाम को रिक्टर पैमाने पर मापा जाता है। इस पर अभी तक अधिकतम
8.9 गहनता तक के भूकंप मापे जा चुके हैं। 8.1 से अधिक गहनता के भूकंप जहां
प्रलयंकारी होते हैं, वहीं 7.4 से 8.1 गहनता के भूकंप अति विनाशी
होते हैं। 2.0 गहनता का भूकंप मानव द्वारा महसूस किया जा सकने वाला सबसे कमजोर
भूकंप होताहै। 4.3 गहनता वाले भूकंप साधारण श्रेणी के होते हैं।
भूकंपों के मामले से
भारत भी संवेदनशील क्षेत्र में आता है। भूकंप की दृष्टि से उत्तरी भारत को अधिक
संवेदनशील माना जाता है। हिमालय क्षेत्र सर्वाधिक संवेदनशील है,
क्योंकि हिमालय नवीन वलित पर्वत है, जिसमें निर्माण की प्रक्रिया अभी भी जारी है।
फलत: धरातलीय हलचलों की परिणति यहां भूकंपों के रूप में देखने को मिलती है। भारत
का उत्तरी मैदान भी भूकंपों की दृष्टि से संवेदनशील तो है किंतु यहां कम तीव्रता
वाले भूकंप आते हैं। भारत का दक्षिणी पठार भकंपों की दृष्टि से उतना संवेदनशील
नहीं है, जितना की उत्तरी। दक्षिणी पठार की गणना स्थिर
भू-भाग के रूप में होती है और इसे न्यूनतम भूकंपों वाला क्षेत्र माना जाता है।
भूकंपीय संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर भारत के मौसम विभाग द्वारा पांच क्षेत्र
निर्धारित किये गये हैं। ये हैं अत्यधिक क्षति जोखिम क्षेत्र,
अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र, मध्यम क्षति जोखिम क्षेत्र,
निम्न क्षति जोखिम क्षेत्र तथा अति निम्न क्षति जोखिम क्षेत्र।
अत्यधिक क्षति जोखिम
क्षेत्र तथा अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र, वे क्षेत्र हैं, जहां प्रलयंकारी भूकंप
आते हैं। अत्यधिक क्षति जोखिम क्षेत्रों के अंतर्गत भारतके उत्तरी-पूर्वी प्रांत,
बिहार में नेपाल की सीमा से सटे क्षेत्र, उत्तराखंड, पश्चिमी हिमाचल
प्रदेश (धर्मशाला के चारों ओर), कश्मीर घाटी और कच्छ (गुजरात) आदि आते हैं।
कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के बचे हुए भाग, उत्तरी पंजाब और उत्तर बिहार अधिक क्षति जोखिम
क्षेत्र में हैं। भारत के सर्वाधिक प्रलयंकारी भूकंप वर्ष 1905 के 4 मार्च को
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में आया था, जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8.5 मापी गयी
थी। इसमें 20,000 से भी ज्यादा लोग मारे गये थे।
वैसे तो भूकंप विनाश और
बर्बादी का पर्याय माने जाते हैं, किंतु ये कुछ मायनों में लाभकारी भी साबित होते
हैं। यहां हम इसके लाभ-हानियों पर सम्यक् विचार करते है। भूकंपीय भ्रंश कभी-कभी
जल स्त्रोतों का निर्माण करते हैं, जो मानव समाज के लिए लाभकारी होते हैं। अक्सर भू-भागों
के धंस जाने से झीलों का निर्माण होता है, जो जल के स्त्रोत के रूप में उपयोगी सिद्ध
होती है। भूकंप के कारण धरती फटती है, धरातल पर दरारें पड़ती हैं,
इसमें हमें खनिज पदार्थों की प्राप्ति होती है। भूकंप का एक फायदा यह भी है कि कई
बार समुद्र-तटीय भागों में भूकंप आने से तटीय भाग नीचे धंस जाते हैं जिससे गहरी
खाडि़यों का निर्माण होताहै। इससे अच्छे समुद्र पत्तन बनने का मार्ग प्राशस्त
होता है, जिनसे व्यापार में सहायता मिलती है। ऐसा भी
होता है कि भूकंप की वजह से एक बड़ा जलाच्दादित भाग समुद्र से बाहर आ जाता है
जिससे नये स्थलीय भाग का निर्माण होता है। भूकंपों से वलन भ्रंश पैदा होता है,
इससे जहां स्थलाकृतियों का जन्म होता है, वहीं भूस्खलन से होने वाला अपक्षय मिट्टी के
निर्माण में सहायक होता है। भूकंप भू-गर्भीय ज्ञान का बढ़ाने में सहायक होते हैं।
वैसे भूकंप के फायदे कम,
नुकसान ज्यादा है। इससे जानमाल को व्यापक हानि होती है। वर्ष 2001 में भारत के
भुज (गुजरात) में आए भूकंप में जहां लगभग एक लाख लोग मारे गये थे,
वहीं सम्पत्ति की व्यापक क्षति हुई थी। पूरे के पूरे नगर व बस्तियां तबाह हो
जाती हैं और आदमी सड़क पर आ जाता है। चूंकि भूकंप का सबसे अधिक कंपन अधिकेन्द्र
पृथ्वी के धरातल पर होता है, अतएक सबसे ज्यादा नुकसान भी इसी के आसपास होता
है। भूकंप कई तरीकों से तबाही लाते हैं। इनके कारण अक्सर नदियों के मार्ग भी
अवरूद्ध हो जाते हैं, जिससे भूकंप प्रभावित क्षेत्र में बड़ी-बड़ी
लहरे उठती हैं जो सूनामी का रूप लेकर जहां तटवर्ती इलाकों तबाही मचाती हैं,
वहीं जलपोतों को भी क्षतिग्रस्त करती है। भूकंप आने से रेल व सड़क मार्ग भी ध्वस्त
हो जाते हैं, जिससे यातायात व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो
जाती है। जीवन ठहर सा जाता है। भूकंपों के कारण कभी कभी आग लगने की घटनाएं भी होती
हैं, जो तबाही मचाती हैं। जहां बिजली के तारों का टकराव आग का
कारण बनता है, वहीं पेट्रोलियम व गैस भंडारों में भीषण आग लग
जाती है। भूकंप की चपेट में आने से बड़े-बड़े पुल आदि ध्वस्त हो जाते हैं,
जिनके पुनर्निर्माण मे बहुत समय लग जाता है। भूकंप के कारण चट्टानों में दरारें
पड़ जाती हैं, जिनसे बाद में भ-स्खलन की स्थिति पैदा होती
है। भूकंप के कारण लोग तो मरते ही हैं, करोड़ो अरबों की सम्पत्ति भी स्वाहा हो जाती
है। भूकंप की तबाही से उबरने में वर्षों लग जाते हैं तथा इसके अनेक आर्थिक व
सामाजिक दुष्परिणाम भी सामने आते हैं। गरीबी, विपिन्नता,
बेरोजगारी आदि बढ़ाने से जहां अपराध बढ़ते हें, वहीं जीवन के लिए
संघर्ष भी बढ़ता है। राजस्व की व्यापक क्षति होती है और फिर से एक नई दुनिया
बसाने जैसी जद्दोजहद करनी पड़ती है।
भूकंप पर मानव का काई
जोर नहीं। इन्हें रोक पाने की भी कोई प्रणाली हमारे पास नहीं है। इतना जरूर है कि
हम कुछ सावधानियां बरत कर व कुछ उपाय कर इसके प्रभाव को थोड़ा न्यून कर सकते हैं।
इसके लिए यह जरूरी है कि भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में भूकंप नियंत्रण केंद्रों की
स्थापना की जाए ताकि इसकी पूर्व सूचना वहां के निवासियों को दी जा सके। ग्लोबल
पोजीशनिंग सिस्टम के द्वारा भी विवर्तनी प्लेटों की गति का पता लगाकर लोगों को
सावधान किया जा सकता है। यह जरूरी है कि भूकंप प्रभावित क्षेत्रों मे क्षमता के
अनुरूप ही निर्माण कार्य हो तथा यहां ऊची इमारतें न बनाई जाएं। भूकंप की दृष्टि
से संवेदनशील क्षेत्रों में अनिवार्य रूप से ऐसी इमारतें बनाई जाएं,
जो भूकंप प्रतिरोधी हों तथा इनमें हल्की निर्माण सामग्री का इस्तेमाल किया जाए।
भूकंप से बचाव एवं राहत कार्यों के लिए भी हमें ठोस रणनीति बनानी होगी और एक ऐसी
प्रणाली विकसित करनी होगी जिससे फौरन से प्रभावी ढंग राहत एवं बचाव कार्य शुरू
किये जा सकें। इसके अलावा हमें प्रकृति को भी संरक्षित रखना होगा क्योंकि भूकंप
प्रकृति का ही तो कोप है।
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