सत्यमेव जयते पर निबंध: “सत्यमेव जयते” एक प्रसिद्ध संस्कृत सूक्ति है जिसका अर्थ है –"सत्य की ही विजय होती है।" यह बताता है कि चाहे अंधकार कितना भी घन
सत्यमेव जयते पर निबंध - Satyamev Jayate par Nibandh
“सत्यमेव जयते” एक प्रसिद्ध संस्कृत सूक्ति है जिसका अर्थ है –"सत्य की ही विजय होती है।" यह बताता है कि चाहे अंधकार कितना भी घना हो, झूठ के पाँव कितने भी मजबूत हों, और असत्य का साम्राज्य कितना भी विशाल दिखे, अंततः पराजय मिथ्या की ही होती है और विजय का मुकुट सत्य के मस्तक पर ही सजता है। सत्य उस सूर्य के समान है जिसे मेघ क्षण भर के लिए ढक सकते हैं, पर जिसका अस्तित्व और प्रकाश अटल है। झूठ उस ओस की बूँद जैसा है जो सूर्योदय होते ही लुप्त हो जाती है।
यह सूक्ति हमारे पवित्र उपनिषदों में से एक, मुंडकोपनिषद् से ली गयी है। मुंडकोपनिषद् अथर्ववेद का हिस्सा है और इसमें ब्रह्मज्ञान तथा मोक्ष प्राप्ति के मार्ग का वर्णन है। इसी उपनिषद् के तीसरे मुंडक के पहले खंड का छठा श्लोक है:
सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र तत्सत्यस्य परमं निधानम्॥
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्, जब भारत ने अपने राष्ट्र के प्रतीक और आदर्शों का चयन किया, तब इस प्राचीन सूक्ति को राष्ट्रीय आदर्श वाक्य (National Motto) के रूप में चुना गया। 26 जनवरी 1950 को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक, सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ के सिंह शीर्ष के नीचे इसे अंकित किया गया। यह चयन अत्यंत दूरदर्शी और प्रतीकात्मक था। अशोक स्तंभ स्वयं सम्राट अशोक के धर्मचक्र प्रवर्तन और सत्य, अहिंसा के आदर्शों का प्रतीक है, और इसके नीचे "सत्यमेव जयते" अंकित होना इस बात का द्योतक है कि स्वतंत्र भारत अपने शासन, न्याय और जीवन के हर क्षेत्र में सत्य के मार्ग पर चलेगा।
लेकिन प्रश्न यह है — सत्य है क्या? क्या केवल वही सत्य है जो आँखों से दिखाई दे, कानों से सुनाई दे? या फिर जो बहुमत कहे वही सच है? सत्य वह है जो छल और स्वार्थ से मुक्त हो। वह जो केवल आंखों से नहीं, हृदय से भी देखा जा सके। सत्य कभी शोर नहीं करता — वह मौन रहता है, किन्तु जब वह प्रकट होता है, तो असत्य की दीवारें ढह जाती हैं।
इतिहास गवाह है कि सत्य की राह कभी आसान नहीं रही। सत्यवादियों को अक्सर संघर्ष करना पड़ा है, तिरस्कार सहना पड़ा है, और बलिदान देना पड़ा है। राम ने पिता की आज्ञा और वचन की मर्यादा के लिए राजगद्दी ठुकराई और वन का कठोर जीवन स्वीकारा। हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी और पुत्र को खो दिया, पर सत्य का मार्ग नहीं छोड़ा। कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को यह उपदेश दिया कि धर्म की स्थापना के लिए जो आवश्यक है, वह सत्य है। महात्मा गांधी ने भी ‘सत्य और अहिंसा’ को अपना अस्त्र बनाकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी और ब्रिटिश साम्राज्य को झुका दिया।
सत्य को स्थापित करने के लिए अडिग रहना पड़ता है, झूठ के प्रलोभनों का सामना करना पड़ता है, और न्याय के पक्ष में आवाज़ उठानी पड़ती है। किन्तु इस संघर्ष में भी विजय का आश्वासन छिपा होता है। सत्य की शक्ति उसकी आंतरिक पवित्रता और पारदर्शिता में निहित है। इसीलिए झूठ की इमारत कितने भी आकर्षक रंग-रोगन से सजी हो, उसकी बुनियाद कमजोर होती है, जबकि सत्य की शिला पर बना भवन कालजयी होता है।
हमारे राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे "सत्यमेव जयते" अंकित होना हमें निरंतर इस बात की याद दिलाता है कि हमारा राष्ट्र सत्य के आदर्शों पर स्थापित किया गया है। सामाजिक स्तर पर, सत्य एक मजबूत और न्यायपूर्ण समाज की आधारशिला है। जब समाज के सदस्य सत्य का पालन करते हैं, तो विश्वास और सहयोग की भावना बढ़ती है। भ्रष्टाचार, अन्याय और भेदभाव कम होते हैं। एक सत्यनिष्ठ समाज प्रगति और विकास के पथ पर अग्रसर होता है। इसलिए यह प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने जीवन में सत्य को धारण करे और इसका आचरण करे। ।
COMMENTS