साँच को आँच नहीं पर निबंध: हमारे समाज में सत्य और असत्य के बीच हमेशा संघर्ष रहा है। लेकिन एक कहावत हमें सिखाती है कि "साँच को आँच नहीं", अर्थात् सत्य
साँच को आँच नहीं पर निबंध - Saanch ko Aanch Nahin par Nibandh
साँच को आँच नहीं पर निबंध: हमारे समाज में सत्य और असत्य के बीच हमेशा संघर्ष रहा है। लेकिन सत्य पर कितनी भी विपत्तियाँ आएँ, फिर भी वह कभी पराजित नहीं होता। इसीलिए कहा भी गया है कि "साँच को आँच नहीं।" यह कहावत हमें प्रेरणा देती है कि सत्य को अपनाने वाला व्यक्ति कितनी भी कठिनाइयों से गुज़रे, अंततः जीत उसी की होती है। सत्य की यह ताकत न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन में बल्कि सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भों में भी देखी जा सकती है।
सत्य की शक्ति और उसकी अमरता
सत्य एक ऐसी शक्ति है जो किसी भी परीक्षा में खरी उतरती है। जब कोई व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चलता है, तो प्रारंभ में उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, परंतु समय के साथ उसकी सच्चाई प्रमाणित हो जाती है। सत्य की तुलना सूरज से की जा सकती है, जिसे बादल कुछ समय के लिए ढक सकते हैं, लेकिन वे हमेशा के लिए उसे छिपा नहीं सकते।
इतिहास गवाह है कि जो लोग सत्य के मार्ग पर चले, उन्हें कठिनाइयाँ तो आईं, लेकिन वे अपने आदर्शों पर अडिग रहे और अंततः विजय प्राप्त की। महात्मा गांधी का जीवन इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। उन्होंने सत्य और अहिंसा के बल पर भारत को स्वतंत्रता दिलाई। उनके विचारों और सिद्धांतों की शक्ति इतनी प्रबल थी कि एक साधारण व्यक्ति होते हुए भी उन्होंने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को झुका दिया। अगर गांधीजी असत्य का सहारा लेते, तो शायद उनका संघर्ष लंबे समय तक टिक नहीं पाता, लेकिन उनकी सच्चाई ने उन्हें अमर बना दिया।
झूठ की अस्थायी विजय
झूठ चाहे कितनी भी चालाकी से फैलाया जाए, वह देर-सवेर उजागर हो ही जाता है। असत्य की चमक क्षणिक होती है, जबकि सत्य का प्रकाश स्थायी होता है। इतिहास में कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहाँ असत्य ने कुछ समय के लिए विजय पाई, लेकिन अंततः सत्य की जीत हुई।
भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सत्य और धर्म का मार्ग अपनाने की शिक्षा दी थी। महाभारत के युद्ध में अर्जुन असमंजस में थे कि वे अपने ही परिवारजनों के विरुद्ध युद्ध करें या नहीं। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि सत्य और धर्म की रक्षा के लिए कर्म करना ही जीवन का उद्देश्य है। गीता में यह स्पष्ट किया गया है कि असत्य और अधर्म की विजय क्षणिक होती है, जबकि सत्य और धर्म की राह पर चलने वाला व्यक्ति भले ही कठिनाइयों से गुज़रे, अंततः विजय उसी की होती है।
महाभारत के इस युद्ध में कौरवों ने कई बार छल और कपट का सहारा लिया, लेकिन अंत में सत्य के मार्ग पर चलने वाले पांडवों की जीत हुई। यह सिद्ध करता है कि असत्य कितना भी शक्तिशाली लगे, उसकी जड़ें कमजोर होती हैं और वह एक न एक दिन समाप्त हो जाता है।
सत्य को अपनाने के लाभ
सत्य को अपनाने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से शांत और आत्मविश्वास से भरपूर होता है। वह बिना किसी भय के जीवन जीता है, क्योंकि उसे झूठ छिपाने की आवश्यकता नहीं होती। सत्यनिष्ठ व्यक्ति को समाज में सम्मान प्राप्त होता है और लोग उस पर विश्वास करते हैं।
अगर हम अपने व्यक्तिगत जीवन में भी सत्य को अपनाएँ, तो यह हमें न केवल आत्म-संतुष्टि देगा बल्कि हमारे रिश्तों को भी मजबूत बनाएगा। कई बार लोग झूठ बोलकर रिश्ते बचाने की कोशिश करते हैं, लेकिन जब उनका झूठ पकड़ा जाता है, तो विश्वास टूट जाता है और रिश्ता खराब हो जाता है।
सत्य की राह कठिन क्यों होती है?
सत्य की राह हमेशा कठिन मानी जाती है क्योंकि यह धैर्य और साहस की माँग करती है। समाज में कई बार असत्य को बढ़ावा दिया जाता है और सच बोलने वाले को तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। लेकिन यही वह समय होता है जब सत्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता की परीक्षा होती है।
भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारियों ने भी सत्य और न्याय की राह चुनी थी। वे जानते थे कि ब्रिटिश सरकार को समाप्त करना आसान नहीं होगा, लेकिन वे अपने सत्य पर अडिग रहे और देश को स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया।
निष्कर्ष
"साँच को आँच नहीं" सिर्फ़ एक कहावत नहीं, बल्कि जीवन का मूल सिद्धांत है। सत्य को अपनाने वाला व्यक्ति भले ही कठिनाइयों से गुज़रे, लेकिन अंत में उसकी जीत होती है। झूठ और फरेब की दुनिया में भी सत्य एक दीपक की तरह जलता रहता है, जो राह भटकने वालों को सही दिशा दिखाता है। हमें चाहिए कि हम अपने जीवन में सत्य को अपनाएँ और इसकी शक्ति को समझें। यही जीवन की सच्ची सफलता और संतोष का मार्ग है।
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