"विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम्" — यह एक प्रसिद्ध संस्कृत सूक्ति है जिसका अर्थ है, “विद्या का धन सभी प्रकार के धन में सर्वोत्तम और सबसे मूल्यवान है।” मनु
विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम हिंदी निबंध (विद्या धन सर्वश्रेष्ठ धन पर निबंध)
"विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम्" — यह एक प्रसिद्ध संस्कृत सूक्ति है जिसका अर्थ है, “विद्या का धन सभी प्रकार के धनों में सर्वोत्तम और सबसे मूल्यवान है।” मनुष्य के जीवन में धन, पद, प्रतिष्ठा, संपत्ति और अन्य संसाधनों का बड़ा महत्व होता है, लेकिन यदि किसी व्यक्ति के पास विद्या नहीं है तो वह इन सबका सही उपयोग नहीं कर सकता। वहीं दूसरी ओर, यदि किसी के पास विद्या है, तो वह बिना भौतिक संसाधनों के भी जीवन को सार्थक बना सकता है। यही कारण है कि विद्या को सबसे बड़ा धन कहा गया है।
हमारे जीवन में कई प्रकार के धन होते हैं—जैसे पैसा, जमीन, गहने, वस्त्र आदि। परंतु यह सभी धन नश्वर होते हैं। चोर इसे चुरा सकता है, आग जला सकती है और समय इसे नष्ट कर सकता है। मगर विद्या एक ऐसा धन है जिसे कोई चुरा नहीं सकता, जो बाँटने से घटता नहीं बल्कि बढ़ता है। यह जीवन का ऐसा साथी है जो हर सुख-दुख में साथ देता है। भौतिक धन तो एक समय के बाद नष्ट हो सकता है, लेकिन विद्या का धन सदैव मनुष्य के साथ रहता है और हर परिस्थिति में उसका मार्गदर्शन करता है। इसलिए कहा गया है:
"न चोर हार्यं न च राज हार्यं,न भ्रातृ भाज्यं न च भारकारि।व्यये कृते वर्धते नित्यं,विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम्।"
इसी प्रकार गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है कि "विद्या बिनु नर नहीं प्रकाशा",अर्थात विद्या के बिना मनुष्य जीवन अंधकारमय रहता है। बिना शिक्षा के मनुष्य न अपने अधिकारों को जान पाता है और न ही अपने कर्तव्यों को। महात्मा गांधी, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, स्वामी विवेकानंद—इन महान व्यक्तियों के पास आरंभ में बहुत अधिक साधन नहीं थे, लेकिन उनके पास विद्या का असीम धन था, जिसने उन्हें विश्व में एक अलग पहचान दिलाई।
प्राचीन भारत में विद्या को अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया। तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों में दूर-दूर से विद्यार्थी आकर ज्ञान अर्जित करते थे। महान विद्वान जैसे चाणक्य, पाणिनि, आर्यभट्ट, और वाग्भट्ट ने विश्व को यह दिखाया कि सच्चा धन वही है जो हमारा मार्गदर्शन करे, और वह है विद्या का धन। यदि हम आज के वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, इंजीनियरों, लेखकों, और शिक्षकों को देखें, तो हम पाते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में विद्या को ही सबसे महत्वपूर्ण धन माना। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि विद्या के बल पर मनुष्य असंभव को भी संभव बना सकता है।
विद्या वह प्रकाश है जो अंधकार में भी राह दिखाती है। यह केवल पुस्तकों में बंद ज्ञान नहीं, बल्कि सोचने, समझने, और सही निर्णय लेने की क्षमता भी है। विद्या हमें केवल स्कूल-कॉलेज की सीमाओं में नहीं मिलती, बल्कि यह अनुभव, अभ्यास और जिज्ञासा से भी प्राप्त होती है। एक शिक्षित व्यक्ति समाज में सम्मान पाता है क्योंकि उसकी सोच सकारात्मक होती है और वह समाज के लिए उपयोगी सिद्ध होता है।
इसलिए, विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने जीवन में विद्या को सर्वोच्च स्थान दें। उन्हें यह समझना चाहिए कि परीक्षा में अच्छे अंक लाना ही विद्या नहीं है, बल्कि सच्चा ज्ञान वही है जो जीवन के हर मोड़ पर आपका मार्गदर्शन करे। विद्या सच्चे अर्थ में तभी सार्थक होती है, जब वह व्यवहार में उतरे और समाज के लिए उपयोगी बने।
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