मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना पर निबंध: "मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना" यह मशहूर पंक्ति मशहूर शायर डॉ. मोहम्मद इक़बाल की लिखी गई एक कविता
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना पर निबंध - Mazhab Nahi Sikhata Aapas Mein Bair Rakhna Essay in Hindi
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना पर निबंध: "मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना" यह प्रसिद्ध पंक्ति मशहूर शायर डॉ. मोहम्मद इक़बाल की लिखी गई एक कविता 'सारे जहाँ से अच्छा से ली गई है। इसका मतलब है कि कोई भी धर्म हमें नफरत करना या एक-दूसरे से झगड़ना नहीं सिखाता। चाहे वह हिंदू धर्म हो, इस्लाम हो, सिख धर्म हो, बौद्ध धर्म हो या ईसाई धर्म—सभी मज़हब इंसान को इंसान से जोड़ने की बात करते हैं, न कि तोड़ने की। लेकिन अफसोस की बात यह है कि कई बार कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए धर्म का इस्तेमाल लोगों को बांटने और लड़ाने के लिए करते हैं। वे धर्म की असली शिक्षा को भुला कर नफरत फैलाने की कोशिश करते हैं। जबकि ऐसा करना किसी भी मज़हब की सच्ची शिक्षा नहीं है।
भारत की धरती शुरू से ही सहिष्णुता और विविधता की मिसाल रही है। यहाँ भगवान राम ने समुद्र पार कर लंका में रावण से युद्ध किया, लेकिन विजय के बाद उन्होंने रावण की निंदा नहीं की, बल्कि उसके ज्ञान की प्रशंसा की। ईसा मसीह ने सूली पर चढ़ते समय भी अपने शत्रुओं को माफ़ कर दिया। गुरु नानक देव जी ने जात-पात और ऊँच-नीच के खिलाफ आवाज़ उठाई और कहा कि सभी इंसान एक समान हैं। गौतम बुद्ध ने करुणा और मध्यम मार्ग की शिक्षा दी। ये सभी महापुरुष हमें एक ही बात सिखाते हैं कि इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है।
हमारे देश में त्योहार भी इस भावना को मजबूत करते हैं। ईद पर हिंदू मित्र मुसलमानों को गले लगाते हैं, होली पर मुस्लिम दोस्त रंगों से खेलते हैं, क्रिसमस पर सभी धर्मों के लोग चर्च जाते हैं और गुरुपर्व पर लंगर में बैठकर एक साथ भोजन करते हैं। यह दृश्य बताता है कि हमारे दिलों में धर्म के लिए सम्मान है, पर नफरत के लिए कोई जगह नहीं।
लेकिन जब धर्म के नाम पर दंगे होते हैं, जब एक धर्म के लोगों को दूसरे से डराया जाता है, तो लगता है कि कहीं हम अपनी पहचान और मूल्यों को भूल तो नहीं रहे हैं। यही वह समय होता है जब हमें फिर से उन पंक्तियों को याद करना चाहिए — "मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना"। यदि हम धर्म की असली शिक्षा को समझ लें, तो समाज में नफरत की कोई जगह नहीं बचेगी।
आज के समय में, जब इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से झूठी खबरें और अफवाहें तेजी से फैलती हैं, तब हमें और भी अधिक सतर्क रहना चाहिए। किसी धर्म के खिलाफ झूठी बातें फैलाना, लोगों को भड़काना और समाज को बांटना बेहद घातक हो सकता है। यह न केवल देश की एकता को कमजोर करता है, बल्कि मानवता के मूल सिद्धांतों को भी शर्मसार करता है।
इसलिए हमें मिलकर एक ऐसा समाज बनाना चाहिए, जहाँ हर धर्म, हर जाति और हर संस्कृति को बराबर सम्मान मिले। जहाँ लोग एक-दूसरे के त्योहारों में खुशी से शामिल हों और कठिन समय में एक-दूसरे का हाथ थामें। यही असली धर्म है — इंसानियत का धर्म। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि नफरत से केवल नुकसान होता है—खून बहता है, घर उजड़ते हैं और राष्ट्रीय एकता खंडित होती है। लेकिन धर्म के सच्चे संदेशों को अपनाकर हम एक ऐसा संसार बना सकते हैं, जहाँ कोई भी मज़हब आपस में बैर न रखे, बल्कि सभी एक-दूसरे का सहारा बनें।
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