धन का सदुपयोग पर निबंध: हम सभी जानते हैं कि आज के समय में धन यानी पैसा बहुत ज़रूरी है। बिना पैसे के हम अपने जीवन की ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकते। खाना,
धन का सदुपयोग पर निबंध - Dhan ka Sadupyog par Nibandh
धन का सदुपयोग पर निबंध: हम सभी जानते हैं कि आज के समय में धन यानी पैसा बहुत ज़रूरी है। बिना पैसे के हम अपने जीवन की ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकते। खाना, कपड़ा, घर, पढ़ाई, इलाज—हर चीज़ के लिए हमें धन की ज़रूरत होती है। लेकिन जितना ज़रूरी पैसे कमाना है, उससे ज़्यादा ज़रूरी है कि हम उस पैसे का सही उपयोग करें। इसलिए धन की सार्थकता केवल उसके संग्रह में नहीं, बल्कि उसके संतुलित और सही दिशा में प्रयोग में निहित है।
कई बार हम देखते हैं कि कुछ लोग बहुत अमीर होते हैं, लेकिन फिर भी उनका मन दुखी रहता है। वे खुश नहीं होते, क्योंकि उन्होंने पैसे का सही उपयोग नहीं किया। दूसरी ओर, कुछ लोग कम पैसे में भी बहुत खुश रहते हैं, क्योंकि वे उस पैसे को सोच-समझकर खर्च करते हैं। इसलिए हमें यह समझना चाहिए की धन एक साधन है, साध्य नहीं। यह जीवन की यात्रा को सहज बनाने के लिए है, ना कि जीवन का उद्देश्य। जब कोई व्यक्ति केवल धन को ही लक्ष्य बना लेता है और उसके पीछे आंख मूंदकर भागता है, तो वह कई बार गलत मार्ग पर भी चल पड़ता है। वहीं, जो व्यक्ति धन का सदुपयोग करता है, वह सच्चे अर्थों में धनवान कहलाता है।
आज के समाज में बहुत से लोग धन कमाने की होड़ में लगे हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं सिखाया जाता कि धन का सही उपयोग क्या है। कोई जरूरत से ज्यादा खर्च करता है, तो कोई धन को जमा करके रखता है, लेकिन उसका उपयोग नहीं करता। दोनों ही स्थितियाँ गलत हैं। धन का न तो अपव्यय होना चाहिए और न ही व्यर्थ संग्रह। जिस प्रकार जल बहता रहे तो जीवन देता है और यदि रुक जाए तो सड़ांध उत्पन्न करता है, ठीक उसी प्रकार धन चलायमान हो, सही दिशा में बहता रहे, तो सुख-संपन्नता लाता है, पर यदि वह संग्रह के मोह में बंधकर ठहर जाए, तो वह लालच, घमंड और विनाश की ओर ले जाता है।
आजकल कई लोग दिखावे में भी बहुत पैसा खर्च करते हैं। महंगे मोबाइल, कपड़े, होटल और गाड़ियाँ दिखाने के लिए खरीदी जाती हैं, लेकिन उनका असली फायदा नहीं होता। हमें सादगी से रहना चाहिए और समझदारी से पैसे खर्च करने चाहिए। जरूरी चीजों पर खर्च करना ठीक है, लेकिन बिना ज़रूरत के चीजें खरीदना सिर्फ पैसे की बर्बादी है।
धन, यदि सिर्फ अपने ऐश्वर्य के लिए प्रयोग हो, तो वह एक सीमित दायरे में कैद रह जाता है। लेकिन जब वही धन समाज की भलाई में लगे, तो वह एक वटवृक्ष की तरह बन जाता है, जिसकी छाया में न जाने कितने थके हुए मुसाफिर विश्राम पाते हैं। धन के सदुपयोग का सबसे सुंदर रूप वह है, जब वह किसी और की मुस्कान बन जाए। जब किसी निर्धन के बच्चे की किताबें उससे खरीदी जाएँ, जब किसी विधवा माँ के घर का चूल्हा उससे जल उठे, या जब किसी रोगी को जीवन का एक और अवसर मिल जाए—तब वह धन केवल कागज नहीं रहता, बल्कि पुण्य बन जाता है।
धन के सदुपयोग से आत्मविकास भी किया सकता है। अच्छी पुस्तकों में निवेश करना, नए कौशल सीखने में धन खर्च करना, अपने जीवन को दिशा देने में धन का उपयोग करना भी एक प्रकार का सदुपयोग है। अंततः, यह कहना गलत न होगा कि धन, यदि सही हाथों में हो और सही दिशा में लगाया जाए, तो वह संसार में बड़े बदलाव ला सकता है। परन्तु वही धन यदि मोह, दिखावे और स्वार्थ की बेड़ियों में बंध जाए, तो वह इंसान को अंदर से खोखला कर देता है।
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