यदि पाठशाला न होती निबंध: कल्पना कीजिए, एक ऐसी दुनिया जहाँ पाठशाला न होती! शायद सुनने में तो अच्छा लगे - छुट्टियाँ ही छुट्टियाँ, सीखने का कोई दबाव नही
यदि पाठशाला न होती हिंदी निबंध - Yadi Pathshala Na Hoti Essay in Hindi
कल्पना कीजिए, एक ऐसी दुनिया जहाँ पाठशाला न होती! शायद सुनने में तो अच्छा लगे - छुट्टियाँ ही छुट्टियाँ, सीखने का कोई दबाव नहीं। लेकिन गहराई से सोच तो स्कूल तो समाज की रीढ़ हैं, जहाँ बच्चों को ज्ञान दिया जाता है, अनुशासन सिखाया जाता है और उन्हें समाज का एक जिम्मेदार सदस्य बनाया जाता है. बिना पाठशाला के, सामाजिक असमानता और भी बढ़ सकती है. गरीब परिवारों के बच्चे शिक्षा के अवसरों से वंचित रह सकते हैं.
यदि पाठशाला न होती तो समाज एक रुके हुए तालाब की तरह होता। पाठशाला केवल शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि समाजीकरण का आधार भी है। कक्षाओं में बैठकर बच्चे न सिर्फ पढ़ते-लिखते हैं, बल्कि परस्पर संवाद करते हैं, सहयोग करना सीखते हैं, अनुशासन का पाठ ग्रहण करते हैं। विद्यालय के अभाव में, रूढ़िवाद और अंधविश्वास हावी हो जाएंगे। पीढ़ी दर पीढ़ी, वही ज्ञान, वही कौशल, वही मान्यताएँ चली आएँगी। विकास का पहिया थम जाएगा।
स्कूल केवल शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि समाजीकरण का भी आधार हैं। कक्षाओं में बैठकर बच्चे न सिर्फ पढ़ते-लिखते हैं, बल्कि परस्पर संवाद करते हैं, सहयोग करना सीखते हैं, और अनुशासन का पाठ ग्रहण करते हैं। स्कूल के अभाव में, रूढ़िवाद और अंधविश्वास हावी हो सकते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी, वही ज्ञान, वही कौशल, वही मान्यताएं चली आएँगी। विकास का पहिया थम जाएगा।
पाठशाला न होने का मतलब होगा, व्यवस्थित शिक्षा का अभाव. इतिहास, विज्ञान, साहित्य, गणित आदि विषयों का गहन अध्ययन मुश्किल हो जाएगा. हमारी समझ सतही और सीमित रह जाएगी। डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक - ये सब लोग विद्यालयों की ही देन हैं। विद्यालय ही वह मंच है जहाँ नये आविष्कारों के बीज बोए जाते हैं और भविष्य के लिए कुशल जनशक्ति तैयार की जाती है।
हालाँकि, यह सच है कि पाठशालाएँ ही शिक्षा का एकमात्र मार्ग नहीं हैं। प्रकृति स्वयं एक महान् पाठशाला है। अनुभवों से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। परंतु, पाठशाला इन सबको समाहित करके एक व्यवस्थित रूप प्रदान करती है।
पाठशाला न होने से समाज में असमानता और बढ़ जाएगी। जो लोग ज्ञान के स्रोतों के निकट होंगे, वे ही तरक्की कर पाएंगे। शेष समाज अज्ञान के दलदल में फँसा रहेगा। इसलिए, पाठशालाओं का अस्तित्व नकारना मूर्खता ही होगी। विद्यालय ही वह स्थान है जहाँ ज्ञान को व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। योग्य शिक्षक जटिल विषयों को सरल बनाते हैं, जिज्ञासा को जगाते हैं और विद्यार्थियों को स्वयं प्रश्न पूछने और उत्तर खोजने के लिए प्रेरित करते हैं।
कुछ कहेंगे, प्रकृति ही सबसे बड़ी शिक्षिका है। पर क्या प्रकृति बच्चों को नैतिकता, न्याय, और मानवीय मूल्य सिखाएगी? क्या प्रकृति ही तर्क-शक्ति का विकास करेगी? वास्तविकता ये है शिक्षालय ही वे स्थान हैं जहाँ बच्चों को सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, परोपकार, और कर्तव्यनिष्ठा जैसे मूल्यों का पाठ पढ़ाया जाता है। बिना शिक्षा के, नैतिकता का पतन होगा, जिससे समाज में अराजकता फैल जाएगी।
COMMENTS