मैं पेड़ बोल रहा हूँ हिंदी निबंध: मैं एक पेड़ हूँ, धरती का पुत्र। सदियों से मैं इस धरती पर खड़ा हूँ, मूक गवाह रहा हूँ बदलते मौसमों का, आते-जाते लोगों
मैं पेड़ बोल रहा हूँ हिंदी निबंध - Main Ped Bol Raha Hu Nibandh in Hindi
मैं एक पेड़ हूँ, धरती का पुत्र। सदियों से मैं इस धरती पर खड़ा हूँ, मूक गवाह रहा हूँ बदलते मौसमों का, आते-जाते लोगों का। मेरे पत्ते हवा में सरसराते हैं, मानो बीते समय की गाथा गा रहे हों। आज मैं बोल रहा हूँ, अपनी कहानी सुना रहा हूँ।
सुनना चाहते हो मेरी दास्तान? जमीन के अंधेरे को चीरकर जब मेरा पहला अंकुर फूटा था, तब धरती माँ ने मुझे आशीर्वाद दिया था। हवाओं ने लोरियाँ सुनाई थीं और सूरज ने अपनी किरणों से मुझे सहारा दिया था। मेरी शाखाएँ फैली हुई हैं, मानो आकाश को छूने का सपना देखती हों। और पत्ते, हरे भरे पत्ते, हवा में थिरकते हुए धूप को छाया में बदल देते हैं।
पत्तों को हरे रंग, फूलों को मनमोहक खुशबू और फलों को मीठा स्वाद - मैं ही देता हूँ। मैं वो गुमनाम कलाकार हूँ, जो मिट्टी को रंग देता हूँ, जीवन को जन्म देती हूँ। मेरे तने पर चिड़ियों ने अपना घर बनाया, गिलहरी मेरी शाखाओं पर इठलाती रहीं। तितलियाँ रंगीन पंख फैलाकर मेरे चारों ओर नाचती हैं। छोटे-छोटे जीव-जंतु मेरी जड़ों के आसपास अपना घर बनाते हैं। हम सब मिलकर एक छोटा-सा पारिस्थितिकी तंत्र बनाते हैं।
मैं प्रकृति का कलाकार हूँ। हर वसंत में मैं हरे रंग का ओढ़नी ओढ़ लेता हूँ। फूलों को खिलने में मदद करता हूँ, उनकी मीठी खुशबू हवा में फैलाता हूँ। गर्मियों में मैं राहगीरों को अपनी छाया देता हूँ, तपन से उनकी रक्षा करता हूँ। बरसात में मैं बारिश के पानी को पीता हूँ और धरती को सींचने में मदद करता हूँ। सर्दियों में मैं नग्न खड़ा रहता हूँ, मानो प्रकृति के साथ गहरी नींद में सो जाता हूँ।
मनुष्य मेरे नीचे खेलते-कूदते हैं, मेरी शाखाओं पर झूले बनाते हैं। प्रेमी मेरी छाँव में मीठी बातें करते हैं, कवि मुझसे प्रेरणा लेते हैं। मैं उन्हें छाया देता हूँ, ठंडी हवा देता हूँ, और सबसे ज़रूरी, जीवन देने वाली ऑक्सीजन देता हूँ।
समय के साथ मेरे और मनुष्यों के रिश्तों में बदलाव हुआ है। पहले वे मेरी पूजा करते थे, मुझे पवित्र मानते थे। मेरी छाया में बैठकर आराम करते, मेरे पत्तों से औषधियां बनाते। लेकिन अब धीरे-धीरे उनका रिश्ता बदल रहा है। वे मुझे काट रहे हैं, जंगलों को नष्ट कर रहे हैं।
मुझे दुख होता है जब मैं देखता हूँ कि धरती हरी-भरी नहीं रह गई है। प्रदूषण से हवा गंदी हो रही है, और धरती का तापमान बढ़ रहा है। मैं तुमसे, मनुष्यो, यही कहना चाहता हूँ - मेरी रक्षा करो। पेड़ बचाओ, मानो अपना ही जीवन बचा रहे हो। पेड़ लगाओ, उनकी देखभाल करो। तभी यह धरती हरी-भरी रहेगी, तभी तुम्हारा जीवन स्वस्थ और सुखी रहेगा।
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