Bharat Nirman Yojana in Hindi भारत निर्माण योजना 2005 की विशेषताएं
महात्मा गांधी का कहना
है कि “भारत गांवों में बसता है।” इसलिए अगर हमें भारत को उन्नत करना है तो
गांवों की दशा सुधारनी होगी।
इस वास्तविकता को
समझाते हुए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने गांवों के
बुनियादी ढांचे को बनाकर उन्हें हर तरीके से उन्नत बनाने के लिए “भारत निर्माण”
के नाम से 2005 में एक विशाल, दीर्घकालीन और व्यावहारिक योजना चलायी। यह
योजना इस दृष्टिकोण से पहले की योजनाओं से थोड़ा भिन्न है कि इसमें गांवों के
किसी एक क्षेत्र के विकास की बात न कहकर उसके संपूर्ण क्षेत्र के विकास की बात की
गई है और यदि कोई क्षेत्र “भारत निर्माण योजना” से छूट भी गया हो तो उसे राष्ट्रीय
ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन तथा सर्वशिक्षा अभियान जैसे कार्यक्रमों में रख दिया
गया है ताकि गांवों का संपूर्ण विकास हो सके।
भारत निर्माण कार्यक्रम
की दूसरी बड़ी विशेषता यह है कि इसे गांवों को सहायता देकर आगे बढ़ाने की बजाए
उनके लिए ऐसी बुनियादी सुविधाएं जुटाने की कोशिश की गई है कि वे उस नींव पर स्वयं
का विकास कर सकें। यह योजना एक प्रकार से गांवों को बैसाखियां न देकर उन्हें अपनी
ही पैरों पर मजबूती से खड़े होने लायक बनाती है। ‘भारत निर्माण’
को समग्रता में समझने के लिए इस योजना में शामिल महत्वपूर्ण क्षेत्रों,
इनके उद्देश्यों इसके विभिन्न चरणों तथा इस दिशा में हुई प्रगति और इससे होने
वाले लाभों का मूल्यांकन करना होगा। भारत निमार्ण योजना में गांवों के विकास हेतु
छह महत्वपूर्ण क्षेत्रों यथा विद्युतीकरण, सड़कें, जल आपूर्ति, दूरसंचार,
सिचांई, आवास को शामिल किया गया है। इसका मूल उद्देश्य
है गांवों में उद्योगों की स्थापना करना, गांवों के लोगों के रहन-सहन में सुधार लाना।
अपेक्षा यह की गई है कि चूंकि भारत निर्माण योजना से गांव वालों को गांवों में ही
जरूरत की सुविधाएं मिल रही हैं, इसलिए शहरों की ओर पलायन में कमी आएगी।
उल्लेखनीय है कि भारत
निर्माण योजना को दो चरणों में लागू किया गया है। इसका प्रथम चरण (2005-2009) तक
तथा द्वितीय चरण (2009-2014) तक है।
विद्युतीकरण: विद्युत पहुंच से दूर शेष बचे 1,25,000
गांवों को 2009 तक आच्छादित करना तथा साथ ही साथ 2.3 करोड़ परिवारों को कनेक्शन
प्रदान करना।
सड़कें: 1000 से अधिक जनसंख्या (पहाड़ी एवं आदिवासी
क्षेत्रों के लिए यह सीमा 500) वाली सभी अगम्य बसावटों को सभी मौसमों में संपर्क
मार्ग प्रदान करना।
जल आपूर्ति: प्रत्येक बासवटों को शुद्ध पेयजल के स्त्रोत
मुहैया कराना तथा इस संदर्भ में 55,067 अनाच्छादित बसावटों को 2009 तक आच्छादित
किया गया।
दूरसंचार: प्रत्येक गांवों को टेलीफोन से जोड़ना था शेष
बचे 66822 गांवों को नवंबर, 2007 तक आच्छादित करना।
सिंचाई: 2009 तक 10 मिलियन हेक्टेयर (100 लाख) की
अतिरिक्त सिंचाई क्षमता का सृजन करना।
आवास: 2009 तक ग्रामीण निर्धनों के लिए 60 लाख आवासों
का निर्माण करना:
भारत निर्माण योजना के
द्वितीय चरण (2009-2014) के अंतर्गत निम्न लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं:
विद्युतीकरण: सभी गांवों में विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करना
तथा 1.75 करोड़ गरीब परिवारों को 2012 तक कनेक्शन प्रदान करना।
सड़कें: 1000 से अधिक जनसंख्या (पहाड़ी एवं आदिवासी
क्षेत्रों के लिए यह सीमा 500) वाले सभी गांवों को बारहमासी सड़कों से 2012 तक
जोड़ना।
जल आपूर्ति: प्रत्येक आच्छादित बसावटों को 2012 तक शुद्ध
पेयजल उपलब्ध कराना।
दूरसंचार: 2014 तक 40 प्रतिशत ग्रामीण टेलीघनत्व का लक्ष्य
प्राप्त करना तथा 2012 तक सभी 2.5 लाख पंचायतों को ब्राडबैंड कवरेज सुनिश्चित
कराना और पंचायत स्तर पर भारत निर्माण सेवा केंद्र स्थापित करना।
सिंचाई: एक करोड़ हेक्टेयर (10 लाख) अतिरिक्त भूमि की
सिंचाई 2012 तक सुनिश्चित करना।
आवास: ग्रामीण निर्धनों के लिए अतिरिक्त 60 लाख
आवासों के निर्माण के लक्ष्यों को 2009 तक प्राप्त कर लेने के बाद 2014 तक 1.2
करोड़ आवासों के निर्माण का नया लक्ष्य अंगीकृत किया गया है।
अब हम भारत निर्माण
योजना के अंतर्गत सम्मिलित किये गये छह क्षेत्रों के ग्रामीण विकास में योगदान का
मूल्यांकन करेंगे।
अगर ग्रामीण
विद्युतीकरण के महत्व को देखा जाए तो किसी देश ने कितनी प्रगति की है यह जानने की
एक कसौटी यह है कि उस देश के कितने गांवों तक बिजली पहुंच है। भारत की अधिकांश
जनसंख्या गांवों में रहती है। इसलिए यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि देश के
ग्रामीण इलाकों का विद्युतीकरण किया जाए। उल्लेखनीय है कि उद्योग,
कृषि, सिंचाई, सूचना एवं संचार, रात्रि का प्रकाश,
तकनीकी विकास, घर, दुकान, बाजार आदि सभी वांछित कार्यों में विद्युत का
महत्व दिन-प्रतिदन बढ़ता जा रहा है। विडंबना है कि आजादी के छह दशक बीत जाने के
बाद भी करीब 25 प्रतिशत गांवों का विद्युतीकरण नहीं हो सका है। देश के आठ राज्यों–आंध्र
प्रदेश, नागालैंड, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, हरियाणा, महाराष्ट्र और गोवा में विद्युतीकरण के
शत-प्रतिशत लक्ष्य को प्राप्त कर लिया गया है किंतु 20 राज्यों के 1.15 लाख
गांवों में विद्युतीकरण अभी भी शेष है। इस महत्वपूर्ण लक्ष्य को ध्यान में रखकर
“राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना” को भारत निर्माण का अंग बना दिया गया है।
इस योजना के अंतर्गत परियोजनाओं के लिए 90 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है।
वर्ष2011-12 में 7934 गांवोंका विद्युतीकरण और 34.44 लाख बीपीएल परिवारों को कनेक्शन
मुहैया कराया जा चुका है। अगर लक्ष्य के अनुरूप प्रगति होती रही तो वह दिन दूर
नहीं जब दूर-दराज, जहां आज भी परिस्थितियों में बिजली पहुंचना
एक जटिल समस्या है, वहां भी सरकार के प्रयासों और सामाजिक सहायोग
से विद्युत प्रकाश के तारे टिमटिमाते हुए नजर आएंगे।
सड़कें भी किसी देश के
विकास में ‘जीवनरेखा’ का काम करती हैं। साथ ही ये गतिशीलता की परिचायक
हैं और साधनों के ढांचे का सशक्त माध्यम भी। इस कार्यक्रम के अंतर्गत 2012 तक
4.41 लाख किमी. लंबी सड़कों हेतु स्वीकृत दी गई है। यह देखना दिलचस्प है कि
केंद्र सरकार की दूसरी योजनाओं की तुलना में ग्रामीण सड़क निर्माण क्षेत्र में उत्साह
काफी ज्यादा है। पर्यावरण मुद्दों और नौकरशाही के जाल में परियोजनाओं के उलझ जाने
के इस दौर में ग्रामीण सड़कों को लेकर सकारात्मक रुख सुखद संकेत है। अगर देश के
देहाती इलाकों को पक्की सड़कों के द्वारा शहरों से जोड़ दिया जाए तो ग्रामीण भारत
की तस्वीर बदल सकती है। विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार देश के जिन देहाती
इलाकों का संपर्क पक्की सड़कों से है, उन इलाकों के घरों में सन् 2000 से 2009 के बीच
आमदनी में 50 से 1000 प्रतिशत तक और साक्षरता में 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई और
लड़कियों को शिक्षा मिलना आसान हुआ। इस प्रकार कहना न होगा कि सड़कें केवल संपर्क
का माध्यम ही नहीं वरन् बहुमुखी विकास का साधन भी हैं।
जल हमारे जीवन में आवश्यक
ही नहीं वरन अनिवार्य प्राकृतिक तत्व है। यदि जल को जीवन कहा जाए तो अतिशयोक्ति
नहीं होगी। संपूर्ण पृथ्वी का लगभग दो-तिहाई भाग ठीक हमारे शरीर की तरह ही है
किंतु केवल इस जल का लगभग एक प्रतिशत भाग ही पीने योग्य माना जाता है। जल जीवन को
आधार ही नहीं देता वरन उसे संवारने का काम भी करता है। ग्रामीण भारत के विकास से
पेयजल की आपूर्ति इसलिए महत्वपूर्ण है कि कहीं-कहीं तो पानी की विकट समस्या बनी
हुई है और कहींपर पेयजल की अशुद्धता के कारण ग्रामीण लोगों में अनेक प्रकार की
बीमारियां फैल रही हैं। इसलिए केवल जल की स्वच्छता की आपूर्ति ही नहीं हो बल्कि
गुणवत्ता के मानकों पर भी खरा उतरे। यही कारण है कि भारत निर्माण कार्यक्रम में
ग्रामीण पेयजल आपूर्ति को एक घटक के रूप में शामिल किया जाए।
भूमंडलीकरण के इस दौर
में सूचनाओं का आदान-प्रदान तेजी से हो रहा है और दुनिया सिमट कर वैश्विक गांव बन
गई है। सूचना क्रांति के इस युग में यह आवश्यक हो गया है कि उन वंचित लोगों को
इसके दायरे में लाया जाए जो संचार साधनों के अभाव के कारण पिछड़ रहे हैं। भारत
निर्माण योजना के अंतर्गत गांवों में दूरसंचार के क्षेत्र में क्रांतिकारी
परिवर्तन परिलक्षित हो रहे है जिसका सकारात्मक प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ रहा
है। उल्लेखनीय है कि गत वर्षो से कृषि क्षेत्र में दूरसंचार व सूचना प्रौद्योगिकी
का प्रयोग कृषि उपज बढ़ाने, फसल को रोगमुक्त रखने,
मिट्टी परीक्षण, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार,
उन्नत तकनीक व बीजों के उपयोग आदि के संबंध में किया जा रहा है। ई-मार्केट तथा
ई-कामर्स की सुविधाएं किसानों के लिए वरदान साबित हो रही हैं। मौसम,
वातावरण, कृषि तथा भूमि संबंधी स्थानीय आंकड़ों के
एकीकरण, सूखा, बाढ़, भूकंप जैसी आपदाओं के पूर्वानुमान तथा इनके
प्रभावों के आंकलन संबंधी कार्यों को संपादित करने के दृष्टिकोण से दूरसंचार व
सूचना प्रौद्योगिकी ग्रामीण भारत के लिए काफी उपयोगी व लाभप्रद है। दूरसंचार प्रौ़द्योगिकी
की वजह से ही किसान कृषि, पशुपालन, मुर्गीपालन, मत्स्य पालन से
संबंधित विभिन्न जानकारियों पाने में सफल हुए हैं। मध्य प्रदेश में ‘ई-एग्रीकल्चर
मार्केटिंग’ का श्रीगणेश करके ‘ई-कृषि’
को बढ़ावा दिया जा रहा है।
भारत कृषि प्रधान देश
है और कृषि के लिए सिंचाई सुविधा का होना अत्यधिक आवश्यक है। परंतु लंबे समय से
देश की कृषि योग्य भूमि का 60 प्रतिशत भाग असिंचित या वर्षा पर निर्भर रहा है।
सिंचाई के अभाव से ही कई वर्षों से 1960 के दशक से आई हारित क्रांति की गति लगभग
थम-सी गई है। जबकि दूसरी हरित क्रांति का सपना देखा जा रहा है और 2015 तक खाद्यान्न
उत्पादन को 31 करोड़ टन से 42 करोड़ टन अर्थात् दोगुना करने पर जोर दिया जा रहा
है। इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर भारत निर्माण के तहत लगातार दो से अधिक
चरणों में कुल 107 लाख हेक्टेयर की अतिरिक्त सिंचाई क्षमता का विकास किया गया।
वर्ष 2011-12 से 2014-15 तक 5000 करोड़ रुपए का अनुमान विशेष जल प्रबंधन हेतु स्वीकृत
किया गया है।
सिंचाई की समस्या हल
हो जाने से हम सूखे की समस्या का निदान ढूंढ पाएंगे,
साथ ही कृषि को आधुनिक बनाने के साथ-साथ फसल चक्र में विभिन्नता भी ला पांएगे।
ऐसा प्रतीत होता है कि सिंचाई की कमी से उपेक्षित किसानों की सुध लेने वाला ठोस
कार्यक्रम भारत निर्माण में स्थान पर गया है।
आवास व्यक्ति की भोजन
और वस्त्र के बाद तीसरी मूलभूत आवश्यकता है। आवास से व्यक्ति की आर्थिक और
सामाजिक सुरक्षा का निर्धारण होता है। ग्रामीण क्षेत्र में आवास की स्थिति ज्यादा
विकट है क्योंकि गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाली अधिकांश आबादी गांवों में
ही निवास करती है। इंदिरा आवास योजना (1985-86) को भारत निर्माण का एक हिस्सा बना
दिया गया है जिसके अंतर्गत 2005-06 से 2008-09 के दौरान 60 लाख घर बनाने का लक्ष्य
रखा गया था। इस लक्ष्य के मुकाबले 71.76 लाख घरों का निर्माण किया गया। भारत
निर्माण के दूसरे चरण के अंतर्गत 1.20 करोड़ घरों के निर्माण का लक्ष्य रखा गया
है। निस्संदेह इन प्रयासों से ग्रामीण भारत के निर्धनों को आवास का सपना साकार हो
सकेगा और उनकी रोटी, कपड़ा के साथ-साथ तीसरी बुनियादी आवश्यकता ‘आवास’
की पूर्ति हो सकेगी।
सर्वविदित तथ्य है कि
अत्यंत विकसित देश भी अपने गांवों का विकास तीव्र गति से करके ही विकसित देशों की
कतार में पंक्तिबद्ध हो पाए हैं। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए यह अत्यंत आवश्यक
है कि ग्रामीण विकास हेतु संचालित ‘भारत निर्माण कार्यक्रम’
को प्राथमिकता के आधार पर प्रभावी रूप से क्रियान्वित किया जाए।
कहना न होगा कि भारत
निर्माण योजना ग्रामीण विकास में बेहद मददगार सिद्ध हो रही है जिसके माध्यम से आज
गांवों से पलायन रुका है और गांवों में रोजगार की संभावनाएं बढ़ी हैं। उनकी आय तथा
रहन-सहन का स्तर बढ़ा है।
अब यह ध्यान रखना होगा
कि ‘भारत निर्माण कार्यक्रम’ के क्रियान्वयन की व्यूह
रचना ऐसी होनी चाहिए जो निर्धन ग्रामीणों के आर्थिक एवं सामुदायिक जीवन को उन्नत
करने, उनके जीवन स्तर में सुधार लाने तथा उनके विकास को आत्मयोजित
बनाने से संबंधित हो।
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