धनिया का चरित्र चित्रण - इस लेख में गोदान उपन्यास की प्रमुख पात्र धनिया का चरित्र चित्रण किया गया है। धनिया होरी की पत्नी है। धनिया के चरित्र में निम्
धनिया का चरित्र चित्रण - इस लेख में गोदान उपन्यास की प्रमुख पात्र धनिया का चरित्र चित्रण किया गया है। धनिया होरी की पत्नी है। धनिया के चरित्र में निम्न विशेषताएं हैं जैसे - (1) साहसी, (2) आदर्श माता, (3) आदर्श पत्नी, (4) अनुभव संपन्न नारी।
धनिया का चरित्र चित्रण - Dhaniya Ka Charitra Chitran
धनिया होरी की पत्नी है। गृहस्थ की भट्टी में सब कुछ झोंककर वह छत्तीस साल की उम्र में वृद्धा बन गई है। धनिया के सारे बाल पक गए हैं। चेहरे पर झुरियाँ पड़ गई हैं। सुन्दर गेहुंआ रंग सांवला हो गया है। आँखों को कम सूझता है।
धनिया की तीन संतानों की मौत हो गई। अब बेटा गोबर सोलह साल, बारह साल की सोना और सात साल की रूपा है। उसका मन कहता है कि अगर दवादारु ठीक से होती तो वे बच जाते।
साहसी - धनिया गरीब है, पर किसी से नहीं डरती। जो सही हो और जो मन में आए, वह उसे बे रोक टोक बोल देती है। उसे लोग मुँहजोर और लड़ाकू मानते थे। वह जब अपनी बात पर अड़ जाती है, तब सामाजिक बंधन की परवाह नहीं करती।
पुत्र गोबर जब विधवा झुनिया को गर्भवती बनाकर शहर भाग जाता है, धनिया साहस दिखाकर झुनिया को अपने घर में रख लेती है। समाज के डर से उसे बाहर नहीं करती वरन् पुत्र की कायरता को धिक्कारती है। मातादीन जब अपनी रखैल चमारिन सिलिया को घर से निकाल देता है तब वह सिलिया को अपने घर में शरण देती है। गाय की ईर्ष्या करने वाले देवर हीरा के लिए करती है -सवेरा होते ही लाला को थाने नहीं पहुँचा दूँ तो असल बाप की नहीं।
पुलिस दारोगा और पंच होरी से रिश्वत लेते समय धनिया अंगोछे को झटक देती है तो रुपये जमीन पर बिखर जाते हैं। वह नागिन की तरह फुफकारती है - अंजुरी भर रुपये लेकर चला है, इज्जत बचाने। ऐसी बड़ी है तेरी इज्जत। वह दारोगा की तलाशी की धमकी से नहीं डरती । दारोगा जब कहता है कि इस शैतान की खाला ने हीरा को फंसाने के लिए स्वयं जहर दिया है, तब धनिया इसका मुँह तोड़ जवाब देती है - हाँ दे दिया, अपनी गाय को मार डाला। तुम्हारी तहकीकात में यही निकलता है तो यही लिख दो । पहना दो मेरे हाथ में हथकड़ियाँ। देख लिया तुम्हारा न्याय और तुम्हारी अक्ल की दौड़ । वह ललकार कर कहती है - मैं दमड़ी भी नहीं दूंगी, चाहे मुझे हाकिम के इजलास तक ही चढ़ना पड़े।
आदर्श माता - धनिया स्वभावत: स्नेहशील है । वह गोबर, सोना और रूपा से बहद प्यार करती है । उनके ऊपर कोई भी संकट आने नहीं देती । बहू झुनिया से वह बेटी की तरह प्यार करती है। भोला होरी के घर पर आकर झुनिया को भलाबुरा कहता है तो जब झुनिया घर से निकल जाने को तैयार होती है तो धनिया का मातृप्रेम उमड़ पड़ता है । उसे घर के भीतर जाने का आदेश देकर पूरा संरक्षण देती है। झुनिया इस घटना से इतनी प्रभावित होती है । वह अपनी अभिलाषा व्यक्त करती है - भगवान मुझे फिर जन्म दें तो तुम्हारी कोख में दें।”
बाद में जब गोबर झुनिया को शहर ले जाने को चाहता है, धनिया इसका विरोध करती है। पुत्र को दोषी न मानकर झुनिया को नागिन मानती है वह सोचती है कि यह डाइन बनकर पुत्र को उससे छीन लेती है।
वह पोते को बहुत प्यार करती है। उसे उबटन मलती, काजल लगाती, सुलाती और प्यार करती है। पर वह दूर चले जाने पर उसकी आत्मा रो उठती है। गोबर उसे भला-बुरा कहता है। जाते समय माँ के पैर छूने से इनकार कर देता है। गोबर चला जाता है तो धनिया रो पड़ती है। उसे इतना दुःख हो रहा है मानो कोई उसके हृदय को चीर रहा हो। हीरा गाय को विष दे देता है तो पहले वह उसे विश्वास नहीं कर पाती, क्योंकि उसने हीरा को पाला है। स्नेह दिया है। रामसेवक के साथ अपनी बेटी को विवाह देना वह नहीं चाहती थी। पर मजबूरी से बाद में राजी हो जाती है।
आदर्श पत्नी - धनिया दूसरों के लिए कष्ट सहती है। संयुक्त परिवार में देवर-देवरानियों के लिए कष्ट सहती है। आराम की रोटी नहीं मिलती फिर भी कर्त्तव्य से कभी नहीं डिगती। झुनिया और सिलिया को अपने घर शरण देती है। उनके लिए कष्ट सहती है, पर हँसते -हँसते दुःख के विष को पी जाती है। होरी यथार्थ रूप से उसके लिए कहता है - "बेचारी जब से घर में आई, कभी भी आराम से बैठी। डोली से उतरते ही सारा काम सिर पर उठा लिया। तब देवरों के लिए मरती थी। अब बच्चों के लिए मरती है।
धनिया को घर के लिए पेट-तन काटना पड़ा है। एक-एक लत्ते के लिए जीवन भर तरसी है। उसने एक-एक पैसा प्राणों की तरह संचित किया है। अभाव में सभी को खिलाकर उसे पानी पीकर सोना पड़ा है।
होरी आवेश में आकर धनिया की ओर लपकता है। सभी के सामने बेइज्जती होने से धनिया को ठेस लगती है । पर जब होरी को ज्वर आया तो उसकी ममता जागती है - वह सोचती है - लाख बुरा हो, पर उसी के साथ जीवन के पच्चीस साल कटे हैं । सुख किया है तो उसीके साथ, दुःख भोगा है तो उसी के साथ। अब चाहे वह अच्छा है या बुरा, अपना है।
वह गाय खरीदने की लालसा से पति के साथ देर रात तक सुतली कातती है। काम करते समय होरी को लू लग जाती है। धनिया दौड़कर आती है। वह होरी को छूती है तो उसका कलेजा सन से हो गया । वह रोती है, आम भूनकर पना बनाकर पिलाती है । होरी के शरीर पर गेंहूँ की भूसी की मालिश करती है। लोग गोदान के लिए कहते हैं। वह सुतली बेचकर रखे गए बीस आने पैसे पति के ठंडे हाथ में रखकर दातादीन से कहती है- "महाराज, घर में न गाय है, न बछिया, न पैसा । यही पैसे हैं, यही इनका गोदान है।” फिर वह पछाड़ खाकर गिर पड़ती है। धनिया जो कष्ट सहती है, वह अपने लिए नहीं, वरन् परिवार के लिए और न्यायपथ पर चलने वाले असहायों के लिए। वह असहायों के लिए जितना कोमल है, अत्याचारियों के लिए उतना कठोर है। वह स्वाभिमानी और साहसी होने के नाते सभी अन्यायों का डटकर विरोध करती है । गाँव की सारी घटनाओं के केंद्र में वही है। वह उपन्यास की नायिका है। होरी की सहधर्मिणी और सहकर्मिणी भी है। वह होरी के चरित्र को पूर्णता प्रदान करती है । उसके बिना होरी का जीवन अधूरा लगता है।
जब होरी पर संकट मंडराता है, धनिया बेचैन हो जाती है। उसकी रक्षा करने तैयार रहती है। वह चाहती है कि उसका सर्वस्व चले जाने पर भी पति सकुशल रहें। मजाक में होरी कहता है वह साठ साल की उम्र तक रह नहीं पाएगा। यह सुनकर धनिया काँप जाती है। वह जैसे अपने नारीत्व के संपूर्ण तप और व्रत से अपने पति को अभयदान दे रही थी।
धनिया यौवन काल में बहुत सुन्दर थी। उसके द्वार पर पटेश्वरी झिंगुरी सिंह चक्कर लगाते थे। किसी को कुछ कहने का साहस न था । पटेश्वरी को उसने ऐसा मुँह तोड़ जवाब दे दिया था कि उसे वह भूल न सका।
वह स्वयं पतिव्रता थी। इसलिए पतिव्रता सिलिया को अपने घर में जगह देती है। वह पति का पथ-प्रदर्शन करती है। पर सरल होरी धर्म, बिरादरी, मर्यादा और पंचों आदि के डर से सब अनसुना कर देता है और कष्ट सहता है।
धनिया पति को डांटती है, पति के कारण भाग्य पर रोती है । लेकिन वह दूसरों के सामने पति की रक्षा करती है। पति का पक्ष लेकर गोबर से बिरादरी में रहने की मजबूरी पर प्रकाश डालती हुई कहती है - “बेटा तुम भी अंधेर करते हो । हुक्का पानी बंद हो जाता, तो गाँव में निर्वाह होता ! जवान लड़की बैठी है। उसका भी कहीं ठिकाना लगाना है कि नहीं ?"
अनुभव संपन्न नारी - धनिया गाँव के लोगों की ईर्ष्या और पर - दुःख विभोरता आदि गुणों से परिचित है। इसलिए गाय को सही सलामत रखने के लिए आँगन में नाँद गड़वाना चाहती है ।
हीरा से झगड़ा होने पर हीरा उसे जूते मारने की धमकी देता है तो सब हीरा के खिलाफ हो जाते हैं । धनिया इस अवसर का फायदा उठाकर हीरा को धक्का देकर गिरा देती है। इससे उसका फौलादी व्यक्तित्व उभर कर सामने आ जाता है।
वह मानती है कि जमींदार के जेल जाने से सुराज नहीं मिलता। धर्म और न्याय पर आधारित समाज में गरीबों को कुछ राहत मिलेगी तो वही सुराज होगा।
वह भोला को सजग करा देती है कि तुमने नोहरी से शादी करके अच्छा नहीं किया। वह कहती है - औरत को अपने वश में रखने का बूता न था, तो सगाई क्यों की थी ? वह स्पष्ट कर देती है कि वह पत्नी सेवा कर सकती है, जिसने तुम्हारे साथ जवानी का सुख उठाया हो।
कभी-कभी धनिया के चरित्र में विरोधाभास मिलता है। गाय आने पर वह खुश होती है। पर अनागत विपत्ति की शंका से डर जाती है। गाय मर जाती है तो कहती है- “ इस निगोड़ी गाय का पैर जिस दिन से आया, घर तहस-नहस हो गया।
होरी के विचार से सहमत न होकर वह पति पर बिगड़ती है तो दूसरे क्षण में उसकी असहायता देखकर द्रवित हो जाती है।
होरी को बहुत प्यार करती है। स्वयं मिटकर उसे सही सलामत रखना चाहती है, पर कभी-कभी भला-बुरा कह देती है। कभी गोबर को प्यार करती है, कभी दोष देती है। कभी बहू को प्यार करती है, कभी नागिन कहती है।
वह एक बहिर्मुखी पात्र है। मन के दुःख को क्रोध रूप में प्रकट कर देती है, लेकिन एक आदर्श गृहणी के रूप में अपना कर्त्तव्य सही रूप से निभाती है।
COMMENTS