मेवाड़ मुकुट खण्डकाव्य के आधार पर महाराणा प्रताप का चरित्र चित्रण: गंगारत्न पाण्डेय द्वारा रचित 'मेवाड़ मुकुट' खण्डकाव्य के नायक महाराणा प्रताप हैं।
मेवाड़ मुकुट खण्डकाव्य के आधार पर महाराणा प्रताप का चरित्र चित्रण कीजिए
गंगारत्न पाण्डेय द्वारा रचित 'मेवाड़ मुकुट' खण्डकाव्य के नायक महाराणा प्रताप हैं। कवि ने इस खण्डकाव्य में भारतीय इतिहास के विख्यात महापुरुष महाराणा प्रताप के त्याग, संघर्ष, देशभक्ति, उदारता और बलिदान का चित्रण किया है। राणा प्रताप के इन गुणों को अपनाने हेतु प्रेरित करना ही कवि का उद्देश्य रहा है। महाराणा प्रताप के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(1) स्वतन्त्रता प्रेमी - स्वतंत्रता के प्रति प्रेम महाराणा प्रताप के रोम- रोम में व्याप्त है। भारत के सभी शासक अकबर की शक्ति के कारण उसकी अधीनता स्वीकार कर लेते हैं परन्तु प्रताप पराधीनता स्वीकार नहीं करते और पराजित होकर अरावली की पहाड़ियों में भटकते रहते हैं और मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए युक्ति सोचते रहते हैं-
मैं मातृभूमि को अपनी पुनः स्वतंत्र करुंगा।
या स्वतन्त्रता की वेदी पर लड़ता हुआ मरुंगा ।।
(2) देशभक्त - प्रताप में देशप्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ है। वह अपना सर्वस्व गवाँकर भी मातृभूमि की रक्षा के लिए कृत संकल्प हैं। उन्हें मेवाड़ से, वहाँ की धरती से, नदी - पर्वतों से और वनों- मैदानों से भी असीम प्यार है। वे देश की स्वतंत्रता का व्रत लिए हुए हैं-
मैं स्वदेश के हित जीवित हूँ, उसके लिए मरुंगा।
(3) स्वाभिमानी - महाराणा प्रताप में क्षत्रियोचित स्वाभिमान विद्यमान है। इसीलिए भामाशाह के द्वारा सैन्य संगठन के लिए दिये जाने वाले अपरिमित धन को स्वीकार करना वे अपने स्वाभिमान के विरुद्ध मानते हैं। राजवंश के द्वारा दिये गये धन को भी स्वीकार करना वे उचित नही मानते -
राजवंश ने जिसको जो कुछ दिया, न वापस लूँगा।
शेष प्राण हैं अभी, देश-हित हँस-हँस होम करुंगा।।
(4) दृढ़-प्रतिज्ञ - राणा प्रताप अत्यन्त दृढ़-प्रतिज्ञ हैं। वे अपने संकल्प को बार-बार दुहराते हैं। वे प्रतिज्ञा करते हैं कि जब तक शरीर में श्वास हैं, मेवाड़ की भूमि को स्वतंत्र कराने का प्रयास करता रहूँगा-
जब तक तन में प्राण, लड़ेगा पलभर चैन न लेगा।
सूर्य-चन्द्र टल जाये, किन्तु व्रत उसका नहीं टलेगा।।
(5) शरणागत वत्सल और वात्सल्यपूर्ण पिता - राणा प्रताप हृदय अत्यन्त उदार एवं विशाल है। वे शत्रुपक्ष की कन्या दौलत को शरण देते है और उसे अपनी पुत्री के समान ही पालते हैं । इस सम्बन्ध में कवि के उद्गार हैं-
अरि की कन्या को भी उसने रख पुत्रीवत वन में।
एक नया आदर्श प्रतिष्ठित किया वीर जीवन में।।
दौलत के मुख से निकले हुए शब्द राणा प्रताप के उसके प्रति वात्सल्य भाव को प्रकट करते हैं-
सचमुच ये कितने महान् है, कितने गौरवशाली।
इनको पिता बनाकर मैंने बहुत बड़ी निधि पाली।।
(6) पराक्रमी - महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व की ओजस्विता दर्शनीय है। वे युद्धस्थल में शत्रुओं को धराशायी करने में पूर्ण सक्षम हैं। वे अपरिमित सैन्य शक्तिसम्पन्न अकबर से युद्ध करते हैं। तथा उसकी सेना के दाँत खट्टे कर देते हैं। उनके पराक्रम का लोहा स्वयं अकबर भी मानता है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि महाराणा प्रताप स्वतंत्रता - प्रेमी, देशभक्त, उदार हृदय, दृढ़-प्रतिज्ञ, निर्भीक और स्वाभिमानी लौह-पुरुष हैं। वे भारतीय इतिहास में सदैव वन्दनीय रहेंगे।
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