गोबर का चरित्र चित्रण - इस लेख में गोदान उपन्यास के प्रमुख पात्र गोबर का चरित्र चित्रण किया गया है। गोबर होरी और धनिया का बेटा है। गोबर के चरित्र में
गोबर का चरित्र चित्रण - इस लेख में गोदान उपन्यास के प्रमुख पात्र गोबर का चरित्र चित्रण किया गया है। गोबर होरी और धनिया का बेटा है। गोबर के चरित्र में निम्न विशेषताएं हैं जैसे - (1) सरल युवक, (2) व्यवहार कुशल, (3) निर्दयी, (4) अन्याय के प्रति विद्रोही तेवर, (5) भाग्य में अविश्वास, (6) साहसी, (7) कानून का जानकार, (8) स्वार्थी।
गोबर का चरित्र चित्रण - Gobar ka Charitra Chitran
गोबर होरी और धनिया का बेटा है। उसका स्वभाव अपने पिता से विपरीत है। वह प्रत्येक अन्याय का विरोध करता है। गोबर नई पीढ़ी के असंतोष का प्रतीक है। धर्मभीरुता, सरलता और भाग्यवादिता के कारण तथा साहूकार के कर्जे की चक्की में पिस जाने के कारण पिता की असहायता देखकर गोबर विद्रोही मनोभाव संपन्न नवयुवक बन जाता है। उसके चरित्र में विभिन्न घात-प्रतिघात के बीच विकास दिखाई पड़ता है। उसे किसानी में कोई मर्यादा दिखाई नहीं पड़ती। उसका सिद्धांत है कि पैसा ही सब कुछ है। उसके विचार से “जिसके साथ चार पैसे गम खाओ वही अपना। खाली हाथ तो माँ-बाप भी नहीं पूछते।”
सरल युवक - गोबर एक सरल युवक है। भोला के घर पर भूसा लेते समय और गाय लाते समय उसकी विधवा बेटी झुनिया से उसका प्रेम संबंध स्थापित हो जाता है। झुनिया से उसके मिलने की पूर्व स्थिति इस प्रकार थी उसकी दृष्टि में अभी उसके यौवन में केवल फूल लगे थे, जब तक फल न लग जाएँ उस पर ढेले फेंकना व्यर्थ बात थी और किसी ओर से प्रोत्साहन न पाकर उसका कौमार्य उसके गले से चिपका हुआ था।
वह झुनिया से शारीरिक संबंध रखकर उसे जब गर्भवती कर देता है, तब माँ-बाप, समाज किसी का सामना करने की ताकत उसमें नहीं रह जाती। वह फुसलाकर झुनिया को अपने घर तक पहुँचाकर छुपकर शहर भाग जाता है । वह समझता है कि वह धन कमाकर घर लौटेगा तो धन के बल पर गाँववालों का मुँह बंद कर देगा और दादा अम्मा उसे कुल-कलंक न समझ कर कुल तिलक समझेंगे।
मिर्जा खुर्शीद की रक्षा करते हुए हड़ताल में वह पिट गया। बुरी तरह घायल हुआ। हाथ की हड्ही टूट गई। झुनिया उसकी सेवा करती है। गोबर को लगता है कि पत्नी को सताने का फल उसे मिला है।
झुनिया मजदूरी करके परिवार चलाने लगती है। तो गोबर का हृदय परिवर्तन हो जाता है। वह मानो प्रायश्चित करने को तैयार हो जाता है । उसके जीवन का रूप बदल जाता है। उसके मन में पूँजीवादी समाज -व्यवस्था के प्रति आक्रोश है, पर मानसिक दृढ़ता के अभाव में वह क्रांतिकारी नहीं बन पाता।
व्यवहार कुशल - गोबर अपनी व्यवहार कुशलता से भोला का क्रोध शांत कर देता है। वह जब कहता है - ‘काका, मुझसे जो कुछ भूल-चूक हुई, उसे क्षमा करो तब भोला प्रसन्न हो जाता है। वह नोखेराम को क्रोध दिखाकर और सारी बातें जमींदार रायसाहब अमरसाल सिंह तक पहुँचाने की धमकी देकर सीधे रास्ते पर ले आता है। दुबारा लगान वसूल करने के विचार से नोखेराम विरत हो जाता है। गोबर अपनी मित्र मंडली से मिलकर नाटक खेलकर सभी का प्रिय पात्र बनता है।
निर्दयी - वह झुनिया को गर्भवती करके अपने घर तक पहुँचाकर शहर भाग जाता है। जिसका जीवन भर साथ देने का वादा किया था, उसे भूल-सा जाता है। शहर जाते समय अपनी माँ से झगड़ता है, पाँव नहीं छूता, माँ के दिल को दुःख पहुँचाता है। पिता को भी जली-कटी सुनाता है । उनकी सरलता की खिल्ली उड़ाता है। बहाना बनाकर झुनिया को पीटता है । गर्भवती झुनिया की संतान के जन्म होने की कोई सावधानी नहीं बरतता है। अपने बेटे की मौत उसे उतना नहीं खलती।
अन्याय के प्रति विद्रोही तेवर - गोबर जानता है कि जमींदार, साहूकार शोषण और अन्याय का जाल फैलाकर गाँव के निरीह किसानों की दशा बदतर कर देते हैं। इसलिए वह नहीं चाहता कि पिता जमींदार की चापलूसी करे । वह उनसे कहता है - "यह तुम रोज रोज मालिकों की खुशामद करने क्यों जाते हो ? बाकी न चुके तो प्यादा आकर गालियाँ बकता है। बेगार देनी ही पड़ती है। नजर - नजराना सब तो हमसे भराया जाता है। फिर किसी को क्यों सलाम करें।
जमींदार अमरपाल सिंह अपनी स्थिति से असंतोष व्यक्त करते हैं । किसानों के पक्ष में होने की बात करते हैं । वे असल में शोषक वर्ग के हैं । गोबर उनकी चाल समझ सकता है । वह कहता है कि यदि जमींदार अपनी स्थिति से असंतुष्ट है तो वह अपना इलाका दे दे और बदले में उसके खेत, बैल हल और कुदाल ले ले। वह जमींदार की धूर्तता की ओर संकेत करते हुए कहता है - “ जिसे दुःख होता है, वह दर्जनों मोटर नहीं रखता, महलों में नहीं रहता, हलवा पूरा नहीं खाता और न नाच-रंग में लिप्त रहता है।”
वह जानता है कि जिसके हाथ में रहती लाठी है, वह गरीबों को कुचल डालता है। कारिंदा नोखेराम होरी से लगान वसूल कर लेता है, पर रसीद नहीं देता। वह लगान दुबारा लेने की मंसा लेकर होरी के यहाँ प्यादा भेजता है तो गोबर आग बबूला होकर जाकर नोखेराम को डाँटता है। वह नोखेराम से कहता है कि मैं अदालत में गंगाजली उठवाकर रुपये दूँगा। तुम रसीद न देने का प्रमाण कर दूँगा। इतना सुनकर नोखेराम नरम पड़ जाता है, तुम थोड़े से रुपए के लिए झूठ थोड़े ही बोलोगे कह कर उसकी खुशामद करता है।
भाग्य में अविश्वास - गोबर भाग्यवादी नहीं है। वह मानता है कि किसानों के दुःख का कारण भाग्य नहीं, बल्कि महाजनों साहूकारों का कुचक्र है। वह ब्राह्मणों के कर्मकाण्ड और भाग्यविधान पर विश्वास नहीं करता। वह पिता से कहता है कि भगवान ने सभी को बराबर बनाया है। वह मानता है कि हमें अपना भाग्य स्वयं बनाना होगा। अपनी बुद्धि और साहस से इन आफतों पर विजय पाना होगा।"
धनवान वर्ग के धर्म-भाव और पूजा-पाठ को वह पाखंड मानता है । वह चुनौती देता है कि यदि वे भूखे-नंगे रहकर पूजा - भजन करें, तो हम देखें। एक दिन खेत में ईख गोड़ना पड़े तो वे सारी भक्ति भूल जायेंगे।
साहसी - गोबर साहसी है। वह रायसाहब के दोषों की आलोचना करता है। दातादीन को धमकाता है। नोखेराम की गलतियों का भंडाफोड़ करता है। उसे देखकर चौपाल के साहूकार वर्ग भयभीत हो जाते हैं।
कानून का जानकार - वह शहर में रहकर राजनीतिक और कानूनी दृष्टि से सजग हो जाता है । सभाओं में आने-जाने से राष्ट्र और वर्ग का अर्थ समझने लगा है। सामाजिक रूढ़ियों और लोक-निंदा का भय उसमें कम हो जाता है । दातादीन को हिसाब लगाकर उसके ब्याज का परिमाण बता देता है लगान चुकाते समय रसीद लेने पर जोर देता है। वह पिता से कहता है कि यदि वह रसीद नहीं देता तो डाक से रुपया भेजो ताकि - धांधली न हो पावे। वह साहूकारों की करतूतों को उजागर करने के लिए उन्हें अदालत में खींचने की धमकी देता है। होली पर मुखिया का व्यंग्य करता है तो होरी सोचता है - लड़के की अक्ल जैसे खुल गई है । कैसी बेलाग बात कहता है ।
स्वार्थी - गोबर अपने आचरण से सरल होते हुए भी स्वार्थी प्रतीत होता है। वह झुनिया को गर्भवती कर देता है । उसे अपने घर पहुँचा कर देर से आने का वादा करके चुप से शहर चला जाता है। वह खबर नहीं रखता कि झुनिया का फिर क्या हुआ ?
वह शहर में जाकर पहले मिर्जा खुर्शीद के पास काम करता है, उनके यहाँ रहता है। पर बाद में जब मिर्जा खुर्शीद से पांच रुपया उधार मांगता है, तो वह पैसे नहीं है कहकर बात टाल देता है। वह अहसान नहीं मानता। पैसे वापस नहीं मिलेंगे, यह जानकर बहाना बना देता है। वह उसी समय अल्लादीन को रुपए उधार देता है।
पिता उसका पालन-पोषण करके उसे बड़ा करते हैं। वह उनके मुँह पर कहता है कि वह लावारिस की तरह बढ़ा है। गोबर स्वार्थी बन कर माँ-बाप के सपने चूर-चूर कर देता है।
माँ-बाप कितनी मेहनत करते हैं। कितना कष्ट उठाते हैं। पर वह माँ से झगड़ता है। शहर जाते समय माँ से बात नहीं करता। पांव नहीं छूता। क्रोध से यहाँ तक कह देता है कि मैं उसे अपनी माता नहीं समझता। वह साफ कह देता है कि मैं पिता का कर्जा नहीं चुका सकता और बहनों की शादी नहीं कर सकता। गोबर नयी पीढ़ी का प्रतिनिधि है। मालती मेहता के संपर्क में आकर उसके आचरण मार्जित होता है। उसे अपनी सामाजिक आर्थिक स्थिति उसकी इच्छा को साकार होने नहीं देती। वह पलायनवादी बन जाता है।
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