'गरुड़ध्वज' नाटक के आधार पर (नायिका) वासन्ती का चरित्र-चित्रण कीजिये: श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र द्वारा रचित नाटक 'गरुड़ध्वज' की नायिका वासन्ती एक जटिल
'गरुड़ध्वज' नाटक के आधार पर (नायिका) वासन्ती का चरित्र-चित्रण कीजिये।
श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र द्वारा रचित नाटक 'गरुड़ध्वज' की नायिका वासन्ती एक जटिल पात्र है। वह न केवल अद्वितीय सौन्दर्य से सुशोभित हैं, अपितु उनके अंतर्निहित गुण भी प्रशंसनीय हैं। वह बौद्ध धर्मावलंबी काशिराज की इकलौती पुत्री है। बौद्ध धर्म की अनुयायी होने के कारण वासंती को अनेक सामाजिक रुढियों और धार्मिक संकीर्णता का सामना करना पड़ता है। बाद में वही वासन्ती कालिदास की प्रेयसी के रूप में हमारे सम्मुख प्रकट होती है। वासन्ती के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
अद्वितीय सौंदर्य और गुण: वासन्ती न केवल रूपवती है, बल्कि उसके अंदर अनेक गुण भी हैं। कालिदास जैसे संयमी पुरुष भी उसके सौंदर्य और गुणों से मोहित हो जाते हैं। उसके सौन्दर्य की प्रशंसा करते हुए कुमार विषमशील कालिदास से कहते हैं कि वह रूप और गुण की अद्भुत मिश्रण है। "पता नहीं, कितने कुण्ड इस पर्वतीय स्रोत के सामने फीके पड़ेंगे।"
राजकुलों से अस्वीकृत: वासंती धार्मिक संकीर्णता के कारण क्षत्रिय राजकुलों द्वारा अस्वीकृत कर दी जाती है। उसके पिता काशिराज बौद्ध धर्मावलंबी हैं। अतः कोई भी क्षत्रिय राजकुल वासंती को अपनी रानी के रूप में स्वीकार कर उससे विवाह नहीं करता। अंततः काशिराज उसके 50 वर्षीय वृद्ध, यवन राजकुमार को सौंप देते हैं, जबकि वासंती उससे विवाह नहीं करना चाहती। किन्तु इसी बीच विक्रममित्र के प्रयास से यह विवाह बीच में रोक दिया जाता है और वासन्ती को राजमहल में सुरक्षित पहुँचा दिया जाता है।
सामाजिक रूढ़ियों का शिकार: पिता के बौद्ध धर्म के कारण, वासन्ती को राजकुलों में विवाह का अवसर नहीं मिल पाता। अंत में, उसे 50 वर्षीय यवन राजकुमार से विवाह करना पड़ता है, जिसके लिए वह तैयार नहीं होती। यह दर्शाता है कि वह तत्कालीन समाज में व्याप्त धार्मिक संकीर्णता से पीड़ित है।
स्वाभिमान: धार्मिक रूढ़ियों के बावजूद भी वासन्ती अपना स्वाभिमान नहीं खोती। वह किसी ऐसे राजकुमार से विवाह नहीं करना चाहती जो विक्रममित्र के दबाव में ऐसा करने के लिए मजबूर हो।
उदार एवं स्नेहशील: वासंती के ह्रदय में प्राणिमात्र के प्रति प्रेम एवं उदारता का भाव विद्यमान है। वह चाहती है कि जीवन में किसी को कोई भी दुःख न हो और सभी लोग परस्पर प्रेमभाव से रहें।
प्रेम की शुद्धता और सहृदयता: हताशा के बावजूद वासन्ती प्रेम की पवित्रता को बनाए रखती हैं। वह कालिदास की कविता में सच्चे प्रेम का रस ढूंढती हैं। यह प्रेम ही है जो उसे कालिदास के प्रति आकर्षित करता है, और यह प्रेम सामाजिक बंधनों से परे है। इस प्रकार वासन्ती एक आदर्श प्रेमिका के रूप में उभरती हैं। उनका प्रेम निष्कलंक एवं समर्पित है।
निष्कर्ष: वासन्ती एक बहुआयामी चरित्र है। वह सुंदर, दयालु और दृढ़ संकल्प वाली है। वह सामाजिक मानदंडों और व्यक्तिगत दुखों से जूझते हुए भी प्रेम और आत्मसम्मान के लिए दृढ़ रहती है
संबंधित लेख:
गरुड़ध्वज नाटक के आधार पर कालिदास का चरित्र चित्रण कीजिये
'गरुड़ध्वज' नाटक के तृतीय अंक की कथा (सारांश) अपने शब्दों में लिखिए
'गरुड़ध्वज' नाटक के द्वितीय अंक की कथा (सारांश) अपने शब्दों में लिखिए
'गरुड़ध्वज' नाटक के आधार पर आचार्य विक्रममित्र का चरित्र चित्रण
गरुड़ध्वज’ नाटक के आधार पर नायिका ‘मलयवती’ का चरित्रांकन कीजिए।
गरुड़ध्वज’ नाटक के आधार पर नायिका ‘मलयवती’ का चरित्रांकन कीजिए।
COMMENTS