गोदान उपन्यास के पात्र डॉ. मेहता का चरित्र चित्रण: डॉ. मेहता युनिवर्सिटी में दर्शन शास्त्र के अध्यापक हैं। वे आधुनिक शिक्षित और बुद्धिजीवी हैं। समाज म
गोदान उपन्यास के पात्र डॉ. मेहता का चरित्र चित्रण
डॉ. मेहता युनिवर्सिटी में दर्शन शास्त्र के अध्यापक हैं। वे आधुनिक शिक्षित और बुद्धिजीवी हैं। समाज में उपस्थित सभी समस्याओं पर वे अपना विचार रखते हैं। वे शहरी पात्रों की मानसिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
डॉ. मेहता के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
लज्जाशीलता - मेहता अविवाहित हैं। वे महिलाओं की सभा सोसाइटी में घबरा जाते हैं। लेखक ने उनके बारे में बताया है बिना ब्याहे और नवयुग की रमणियों से पनाह मांगते थे। पुरुषों की मंडली में खूब चहकते थे। मगर ज्योंही कोई महिला आई, आपकी जबान बंद हुई; जैसे बुद्धि पर ताला लग जाता था। स्त्रियों से विशिष्ट व्यवहार करने तक की सुधि न रहती थी।
स्पष्टवादी - मेहता स्पष्टवादी हैं। वे सच बोलने से कभी नहीं कतराते । वे किसी की निरर्थक खुशामद भी नहीं करते। वे मालती में अच्छाई देखकर उसका लिहाज करते हैं और उसकी ओर आकृष्ट भी हो जाते हैं। परंतु शिकार खेलने के अवसर पर एक मधुर कलूटी जंगली स्त्री के साथ मेहता जब बातचीत करते हैं, तब मालती ईर्ष्यान्वित हो जाती है। इस पर मेहता नि:संकोच अपनी टिप्पणी देते हैं - कुछ बातें तो उसमें ऐसी हैं कि अगर तुम में होती तो तुम सचमुच देवी हो जाती।
लेखक प्रेमचन्द मेहता के भाषण के संबंध में कहते हैं -“मेहता को कटु सत्य कहने में संकोच न होता था। मेहता साहब स्त्रियों की सभा में जो भाषण देते हैं और स्त्रियों के सामने जो उनकी कटु और निष्ठुर आलोचना करते हैं, वह भी उनकी स्पष्टवादिता का प्रमाण है।”
मेहता शादी के संबंध में अपना स्पष्ट विचार रायसाहब को सुना देते हैं- “क्षमा कीजिएगा आप ऐसा प्रश्न लेकर आए हैं कि उस पर गंभीर विचार करना मैं हास्यास्पद समझताहूँ। आप अपनी शादी के जिम्मेदार हो सकते हैं, लड़के की शादी का दायित्व क्यों अपने ऊपर लेते हैं, खासकर जब आपका लड़का बालिग है और अपना नफा-नुकसान समझता है। कम से कम मैं तो शादी जैसे महत्व के मुकाबले में प्रतिष्ठा का कोई स्थान नहीं समझता।”
मेहता दोहरी जीवन-दृष्टि से नफरत करते हैं । उनका विचार है कि अगर मांस खाना पसंद है तो खुलकर खाओ। बुरा समझते हो तो मत खाओ । पर बुरा समझना और छिपकर खाना धूर्तता है, कायरता है।
वे रायसाहब से कहते हैं - "मानता हूँ आपका अपने आदमियों के साथ बहुत अच्छा बर्ताव है, मगर प्रश्न यह है कि उसमें स्वार्थ है या नहीं। उसमें एक कारण क्या यह नहीं हो सकता कि मध्यम आँच में भोजन स्वादिष्ट पकता है। गुड़ से मारने वाला जहर से मारने वाले की अपेक्षा कहीं अधिक सफल हो सकता है।"
भावुक और संवेदनशील - मेहता भावुक और संवेदनशील व्यक्ति हैं। गोविंदी के दु:ख से द्रवित होकर वे कहते हैं - "मुझे न मालूम था आप उनसे इतनी दु:खी हैं, मेरी बुद्धि का दोष, आँखों का दोष, कल्पना का दोष और क्या कहूँ, वरना आपको इतनी वेदना क्यों सहनी पड़ती ?”
धन - मेहता की दृष्टि से धन केवल जीवन - निर्वाह के साधन के रूप में महत्त्व रखता है। सामाजिक विषमता को केवल धन के समान वितरण से मिटाया नहीं जा सकता । क्योंकि छोटे-बड़े का भेद केवल धन से नहीं होता। धनकुबेर भिक्षुओं के पांव पड़ते हैं । राजा भी रूप के सामने विनय - भाव दिखाते हैं।
विवाह - विवाह के संबंध में मेहता ओंकारनाथ को बताते हैं - “मैं समझता हूँ मुक्त भोग आत्मा के विकास में बाधक नहीं होता। विवाह तो आत्मा को और जीवन को पिंजरे में बंद कर देता हैं।"
“विवाह को मैं सामाजिक समझौता समझता हूँ और उसे तोड़ने का अधिकार न पुरुष को है, न स्त्री को। समझौता करने के पहले स्वाधीन हैं, समझौता हो जाने के बाद आपके हाथ कट जाते हैं। मेहता समाज की दृष्टि से विवाहित जीवन को और व्यक्ति की दृष्टि से अविवाहित जीवन को श्रेष्ठ मानते।
जीवन - मेहता की राय में प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों के बीच में सेवा -मार्ग जीवन को सार्थक बना सकता है। मेहता जीवन के संबंध में गोविंदी को बताते हैं- “ जीवन मेरे लिए आनन्दमय क्रीड़ा है, सरल, स्वच्छन्द, जहाँ कुत्सा, ईर्ष्या और जलन के लिए कोई स्थान नहीं। मैं भूत की चिंता नहीं करता, भविष्य की परवाह नहीं करता। मेरे लिए वर्तमान सब कुछ है।'
स्त्री की परिभाषा - मेहता मिर्जा खुर्शीद को स्त्री की परिभाषा इस प्रकार बताते हैं -“ स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान है, शांतिसंपन्न है। सहिष्णु है । संसार में जो कुछ सुन्दर है, उसी की प्रतिमा को मैं स्त्री कहता हूँ । मैं उससे यही आशा रखता हूँ कि उसे मार ही डालूँ तो भी प्रतिहिंसा का भाव उसमें न आए। अगर मैं उसकी आँखों के सामने किसी स्त्री को प्यार करूँ, तो भी उसकी ईर्ष्या न जागे। ऐसी नारी पाकर मैं उसके चरणों में गिर पडूंगा और उस पर अपने को अर्पण कर दूँगा।”
स्त्री पुरुष की यथार्थ स्थिति के संबंध में मेहता का विचार इस प्रकार है - " मेरे जेहन में औरत वफा और त्याग की मूर्ति है, जो अपनी बेजबानी से, अपनी कुर्बानी से अपने को बिलकुल मिटाकर पति की आत्मा का अंश बन जाती है।” मिसेज खन्ना की तारीफ करते हुए मेहता कहते हैं - " मैं ऐसी बीबी चाहता हूँ जो मेरे जीवन को पवित्र और उज्वल बना दे, अपने प्रेम और त्याग से।”
स्त्रियों के पाश्चाश्त्य रूप का विरोध करते हुए मेहता कहते हैं - “मुझे खेद है - हमारी बहिनें पश्चिम का आदर्श ले रही हैं, जहाँ नारी ने अपना पद खो दिया है और स्वामिनी से गिरकर विलास की वस्तु बन गई है। पश्चिम की स्त्री स्वच्छन्द होना चाहती है, इसलिए कि वह अधिक से अधिक विलास कर सके। हमारी माताओं का आदर्श कभी विलास नहीं रहा।"
वे पश्चिम की अंधी नकल न करके अच्छी चीजों को ग्रहण के पक्ष में रहते हैं। पश्चिम की स्त्रियों का भोग-लालसा में उच्छृंखल हो जाना और आमोद-प्रमोद के मोह में अपनी लज्जा और गरिमा खो बैठना उनको अखरता है।
वीमेन्स लीग में भाषण देते हुए मेहता स्त्री का गुणगान करते हुए कहते हैं - स्त्री पुरुष से उतनी श्रेष्ठ है जितना प्रकाश अंधेरे से। मनुष्य के लिए क्षमा और त्याग और अहिंसा जीवन के उच्चतम आदर्श हैं। नारी इस आदर्श को प्राप्त कर चुकी है।
परिश्रमी - मेहता समय के पाबन्दी हैं । वे समय के दुरुपयोग को पाप समझते हैं। वे आधी रात को सोते थे और घड़ी रात रहे उठ जाते थे । कैसा भी काम हो, उसके लिए कहीं न कहीं समय निकाल लेते थे।
बहुमुखी प्रतिभा - मेहता हर काम में रुचि रखते थे । वे कभी कबड्डी खेलते हैं तो कभी मजदूर -आन्दोलन में भी भाग लेते हैं। वे शिकार खेलने जाते समय मालती को कंधे पर बिठाकर नाला पार करते समय रोमांटिक प्रवृत्ति का परिचय देते हैं। उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व से मालती उन पर फिदा हो जाती हैं। वे मि. खन्ना और मिसेज खन्ना के बीच समझौता करा देते हैं। वे अपने विषय के अच्छे जानकार हैं। वे किसी भी समस्या पर अपना सुलझा हुआ दृष्टिकोण रख सकते हैं।
वोट- वीमेन्स लीग में सरोज और अन्य युवतियाँ मांग रखती हैं कि हमें पुरुषों के बराबर वोट मिलना चाहिए । मेहता वोट पर अपनी राय देते हैं- “वोट नए युग का मायाजाल है, मरीचिका है, कलंक है, धोखा है, उसके चक्कर में पड़कर आप न इधर की होंगी न उधर की । संसार में सबसे बड़ा अधिकार सेवा और त्याग से मिलता है । वह आपको मिले हुए हैं ! उन अधिकारों के सामने वोट कोई चीज नहीं।"
प्रेम - वीमेन्स लीग में सरोज के प्रेम संबंधी प्रश्न के उत्तर में मेहता कहते हैं कि जिसे तुम प्रेम कहती हो, वह धोखा है, उद्दीप्त लालसा का विकृत रूप, उसी तरह जैसे संन्यास केवल भीख मांगने संस्कृत रूप है। वह प्रेम अगर वैवाहिक जीवन में कम है, तो मुक्त विलास में बिलकुल नहीं है । सच्चा आनन्द, सच्ची शांति केवल सेवा - व्रत में है । सेवा सीमेंट की तरह है जो दंपति को जीवन पर्यान्त स्नेह और साहचर्य में जोड़े रख सकता है । जहाँ सेवा का अभाव है, वहीं विवाह - विच्छेद है, परित्याग है, अविश्वास है।
मालती ने मेहता से पूछा कि तुम कैसे प्रेम से संतुष्ट होगे ? उत्तर में महेता ने कहा -“ बस यही कि जो मन में हो, वही मुख पर हो । मेरे लिए रंग रूप, हाव-भाव और नाजो-अन्दाज का मूल्य बस उतना ही है, जितना होना चाहिए।" प्रेम संबंध में मेहता कहते हैं - प्रेम जब आत्मा - समर्पण का रूप लेता है, तभी ब्याह है । उसके पहले ऐयाशी है।
दानशील - मेहता मासिक एक हजार रुपए वेतन पाने पर भी छात्रों, विधवाओं और असहायों की मदद कर देते हैं। इस कार्य के लिए उनको कर्जा भी लेना पड़ता है।
शोषक समाज से घृणा - मेहता शोषक समाज से घृणा करते हैं । इसलिए वे मिल मालिक मि. खन्ना को ऊँची नजर से नहीं देखते। पर खन्ना के मिल में आग लगने के बाद उन्हें पश्चाताप होने से मेहता खन्ना की इज्जत करते हैं।
इस प्रकार मेहता एक आदर्श प्रस्तुत करके समाज में अपना प्रभाव डालते हैं और पाठक वर्ग उनका अनुसरण करने को प्रेरित होते हैं।
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