दो कलाकार कहानी के आधार पर चित्रा का चरित्र चित्रण: चित्रा मन्नू भंडारी द्वारा रचित कहानी 'दो कलाकार' की एक प्रमुख पात्रा है। इस कहानी में चित्रा को व
दो कलाकार कहानी के आधार पर चित्रा का चरित्र चित्रण
चित्रा का चरित्र चित्रण: चित्रा मन्नू भंडारी द्वारा रचित कहानी 'दो कलाकार' की एक प्रमुख पात्रा है। इस कहानी में चित्रा को विचारशील, महत्त्वाकांक्षिणी कला प्रेमी एवं सत्यनिष्ठ सखी के रूप में चित्रित किया गया है। चित्रा धनी पिता की इकलौती संतान है। वह चित्रकला की छात्रा है और महत्त्वाकांक्षी है। कोई भी चित्र जब पूरा हो जाता है उसे दिखाने का उसे शौक है इसीलिए तो वह सोती हुई अरुणा को उठा कर अपना नया चित्र दिखाती है।
चित्रकला की लगन उसे इतनी है कि वह हर समय रंगों में डूबी रहती है, ऐसे में उसे दीन-दुनिया तक की खबर नहीं रहती। इसीलिए अरुणा चित्रा से कहती है, 'तुझे दुनिया से कोई मतलब नहीं दूसरों से कोई मतलब नहीं, बस चौबीसों घंटे अपने रंग और तूलियों में डूबी रहती है। चित्रकला को वह इतना महत्त्व देती है कि हरेक घटना में अपनी कला के लिए आइडिया की तलाश में रहती है। अरुणा उससे कहती है कि, 'दुनिया में बड़ी से बड़ी घटना घट जाए पर यदि उसमें तेरे चित्र के लिए कोई आइडिया नहीं तो तेरे लिए उस घटना का कोई महत्त्व नहीं। बस हर घड़ी हर जगह तू मॉडल खोजा करती है। उसकी इस लगन को देखकर गुरुजी कहते हैं कि वह समय दूर नहीं जब हिन्दुस्तान के कोने-कोने में तेरी शोहरत गूँजेगी। इस कला के लिए वह अपनी सखी अरुणा से बहस भी करती है और 'समाज-सेवा' से 'कला' को बेहतर मानती है। कला की साधना से ही वह देश-विदेश में ख्याति प्राप्त करती है। अखबार की सुर्खियों में होती है। उसके चित्रों की प्रदर्शनी चर्चा का विषय बनती है । वह प्रथम पुरस्कार जीतती है और सम्मान पाती है।
कला में लगन के साथ-साथ चित्रा विनोदी स्वभाव की छात्रा है इसीलिए अपने हॉस्टल में वह इतनी लोकप्रिय है कि रेलवे स्टेशन पर अनेक छात्राएँ उसे विदा करने आती हैं। हॉस्टल में उसकी विदाई समारोह का आयोजन किया जाता है और गुरुजी के पास से लौटने में देरी होने पर सभी छात्राओं को उसकी चिंता रहती है।
चित्रा अपने मैत्री संबंधों का सदा ही ध्यान रखती है। वह अरुणा के फुलिया दाई के घर से लौटने पर खाना गर्म करने के लिए उठती है और अरुणा को खाना खिलाने का प्रयास करती है। वह बहुत स्नेह से अरुणा की पीठ थपथपाते हुए कहती है, 'जो होना था सो हो गया अब भूखे रहने से क्या होगा थोड़ा बहुत खा ले।' कॉलेज से लौटते ही वह अरुणा के लिए चाय बनाती है। उसकी चिट्ठियों का ध्यान रखती है और यहाँ तक कि जब अरुणा बाढ़ पीड़ितों के लिए चंदा इकट्ठा करने का काम करती है तो वह चिन्तित हो कहती है कि 'तेरे इम्तिहान सिर पर आ रहे हैं कुछ पढ़ती- लिखती तो तू है नहीं, सारे दिन बस भटकती रहती है। फेल हो गई तो तेरे ससुर साहब क्या सोचेंगे।'
इस प्रकार हम देखते हैं कि चित्रा जहाँ एक ओर कला के प्रति समर्पित है वहीं अपनी अनन्य मैत्री के प्रति निष्ठा से सब का दिल भी जीतती है ।
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