भोर का तारा एकांकी में शेखर का चरित्र चित्रण: भोर का तारा' एकांकी में तीन प्रधान पात्र हैं- शेखर, माधव और छाया। शेखर को इस एकांकी में एक साधारण कवि के
भोर का तारा एकांकी में शेखर का चरित्र चित्रण
भोर का तारा' एकांकी में तीन प्रधान पात्र हैं- शेखर, माधव और छाया। शेखर को इस एकांकी में एक साधारण कवि के रूप में चित्रित किया गया है वह एक संवेदनशील व्यक्ति, देशप्रेमी है। वह अपनी प्रेयसी छाया से अत्यन्त प्रेम करता है। इस लेख में शेखर के चरित्र की विशेषताओं का वर्णन किया गया है।
1. शेखर का कवि रूप :- शेखर एक कवि के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होता है। एकांकी के आरम्भ में ही उसके कवि रूप का परिचय हमें मिलता है- "शेखर कुछ गुनगुनाते हुए टहलता है, या कभी - कभी तख्त पर बैठकर कुछ लिखता जाता है। जान पड़ता है, वह कविता बनाने में संलग्न है, तल्लीन मुद्रा । जो कुछ वह कहता है उसे लिखता भी जाता है।" वह सदैव एक स्वप्न लोक में रहता है। कल्पना के सागर में डूबता - उतरता अपनी कविता की रचना करता है। उसके लिए सौंदर्य ही कविता है इसलिए वह अपने मित्र माधव से कहता है- "मुझे तो सौन्दर्य ही कर्तव्य जान पड़ता है। मुझे तो जहां सौन्दर्य दीख पड़ता है, वहां कविता दीख पड़ती है, वहीं जीवन दीख पड़ता है।" उसकी काव्य- प्रतिभा से प्रसन्न होकर सम्राट स्कन्दगुप्त उसे राजकवि के रूप में सम्मानित करते हैं।
2. संवेदनशील : शेखर संवेदनशील व्यक्ति है। उसकी संवेदना ही उसे सामान्य में विशेष को देखने की दृष्टि देती है। सम्राट के भवन के निकट, राजपथ पर अंधी भिखमंगी को वह इसलिए भीख देता है। क्योंकि उसे देखकर शेखर को उसमें "एक कविता, एक लय, एक व्यथा झलक पड़ती है।" उसकी शारीरिक दीनता को देखकर शेखर को लगता है कि मानो किसी शिल्पकार ने उसे इस ढांचे में ढाला है। एक भिखमंगी औरत में शेखर को कविता तथा एक शिल्पकार की कला का बोध होना, पाठक को उसके संवेदनशील होने का बोध करवाता है ।
3. प्रेमी : शेखर प्रेमी के रूप में भी सामने आता है। वह अपनी प्रेयसी छाया से अत्यन्त प्रेम करता है। किन्तु छाया सम्राट स्कन्दगुप्त के दरबारी देवदत्त की बहन है इसलिए उसे लगता है कि वह कभी छाया को प्राप्त नहीं कर सकता। क्योंकि एक मंत्री की बहिन का मामूली कवि से संबंध होना वह कठिन मानता है किन्तु छाया का प्रेम उसके जीवन का लक्ष्य है- "माधव, जीवन में मेरी दो ही तो साधनाएं हैं, छाया का प्यार और कविता।" इस प्रकार छाया उसके जीवन की प्रेरणा थी और शेखर का प्रेम भी छाया के प्रति स्वच्छ था इसलिए वह छाया को पत्नी रूप में पाता है और उसकी प्रेरणा से भोर का तारा नामक महाकाव्य की रचना भी करता है।
4. देश-प्रेमी : शेखर देश-प्रेमी है। जब राष्ट्र को उसकी आवश्यकता पड़ती है तो उस समय शेखर अपने काव्य और प्रेम का बलिदान देकर जनता में देश-प्रेम जगाने का प्रयास करता है। जनता में क्रांति का संचार करने के लिए वह अपने कविकुल शिरोमणि होने के स्वप्न को भी त्याग देता है और ऐसा वह इसलिए कर पाया क्योंकि उसके लिए प्रेम और अपने स्वप्न से बढ़कर देश-प्रेम है ।
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