'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए। डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित खण्डकाव्य 'श्रवण कुमार' मातृ-पितृ भक्त युवक श्रवण कुमार के जीवन
'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए ।
'श्रवण कुमार' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण- डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित खण्डकाव्य 'श्रवण कुमार' मातृ-पितृ भक्त युवक श्रवण कुमार के जीवन को आधार बनाकर रचा गया था। अयोध्या नरेश के पुत्र राजकुमार दशरथ के बाणों से आहत श्रवण कुमार की कथा के पौराणिक आख्यान को आधार बनाकर लिखित इस खण्डकाव्य के नायक का गौरव श्रवण कुमार को प्राप्त है। श्रवण की चारित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- (1) माता-पिता का अनन्य सेवक, (2) सत्यवादी व क्षमाशील, (3) आतिथेय धर्म का अनुपालक, (4) समदर्शी।
• माता-पिता का अनन्य सेवक- श्रवण अयोध्या राज्य के अन्तर्गत आश्रम में रहते हुए अपने माता-पिता की सेवा में तल्लीन रहता था। अपने माता-पिता की नेत्रहीनता का विकल्प बने श्रवण को मृत्यु के अन्तिम क्षण में भी माता-पिता के प्यासे होने की ही चिन्ता सता रही थी -
मुझे बाण की पीड़ा सम्प्रति इतनी नहीं सताती है। पितरों के भविष्य की चिन्ता जितनी व्यथा बढ़ाती है।
• सत्यवादी व क्षमाशील- श्रवण कुमार ने राजकुमार दशरथ को अपने कुल गोत्र आदि के बारे में सत्य बताकर ब्रह्महत्या के कलंक से मुक्त किया तथा अपनी हत्या ( भले ही दशरथ का उद्देश्य ऐसा नहीं था) के लिए भी क्षमा किया।
• आतिथेय धर्म का अनुपालक - राजकुमार दशरथ के बाणों से घायल होने पर भी राजकुमार दशरथ के आने पर वह उनका स्वागत करता है तथा अपने नेत्रों के जल से उनके चरण धो देना चाहता है।
• समदर्शी - श्रवण कर्म, शील तथा संस्कार का धनी है तथा उन्हीं आदर्शों को अपने जीवन में साकार करता है। सभी को समान भाव से देखता है तथा राजा व रंक सभी के साथ समान व्यवहार करता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि श्रवण कुमार का चरित्र सदाचार, उदारता, क्षमाशीलता त्याग तथा मातृ-पितृ सेवा का अनुपम उदाहरण है।
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