वस्तुओं में निरंतर महंगाई को लेकर दो-महिलाओं की चिंतापूर्ण बातचीत संवाद के रूप में लिखिए। नीता: "अरे किरण, क्या बात है? इतनी उदास क्यों दिख रही हो?"
वस्तुओं में निरंतर महंगाई को लेकर दो-महिलाओं की चिंतापूर्ण बातचीत संवाद के रूप में लिखिए
नीता: "अरे किरण, क्या बात है? इतनी उदास क्यों दिख रही हो?"
किरण: "नीता, ये महंगाई तो कम ही नहीं हो रही है। सब्जी के दाम आसमान छू रहे हैं।"
नीता: "हां किरण, मैं भी यही सोच रही थी। आजकल तो दाल, चावल, तेल, हर चीज़ के दाम बढ़ गए हैं।"
किरण: "और बच्चों की स्कूल फीस, किराया, बिजली का बिल... सब कुछ बढ़ रहा है।"
नीता: "सचमुच, इस महीने का बजट बनाना बहुत मुश्किल हो गया है।"
किरण: "और सोचो, त्योहारों का सीजन आ रहा है। इस बार तो और भी खर्च बढ़ जाएगा।"
नीता: "हां किरण, बच्चों के लिए नए कपड़े, मिठाई, तोहफे... सब कुछ खरीदना होगा।"
किरण: "मुझे नहीं पता कि ये महंगाई कब रुकेगी। सरकार क्या कर रही है?"
नीता: "पता नहीं किरण। शायद वे कुछ नई योजनाएं लाएंगे।"
किरण: "हमें तो बस यही उम्मीद है कि ये महंगाई जल्द से जल्द कम हो जाए।"
नीता: "हां किरण, वरना घर चलाना बहुत मुश्किल हो जाएगा।"
(दोनों महिलाएं कुछ देर चुपचाप बैठती हैं, चिंता में डूबी हुई।)
किरण: "चलो नीता, अब मैं खाना बनाती हूं।"
नीता: "ठीक है किरण, मैं भी तुम्हारी मदद करती हूं।"
(दोनों महिलाएं मिलकर काम करने लगती हैं, उम्मीद है कि यह महंगाई का दौर जल्द ही खत्म हो जाएगा।)
वस्तुओं में निरंतर महंगाई को लेकर दो-महिलाओं की चिंतापूर्ण बातचीत संवाद के रूप में लिखिए
(सुनीता किराने की दुकान पर सामान खरीद रही है। नीता भी वहां आती है और दोनों महिलाएं एक-दूसरे से बात करने लगती हैं।)
सुनीता: (हताश होकर) "नीता जी, ये महंगाई तो कम ही नहीं हो रही है। हर चीज के दाम आसमान छू रहे हैं।"
नीता: (हमें सहमति जताते हुए) "हां सुनीता जी, आप बिलकुल सही कह रही हैं। आजकल घर चलाना बहुत मुश्किल हो गया है।"
सुनीता: "पहले तो दाल, चावल, और आटा ही महंगे थे, पर अब तो सब्जी, फल, दूध, तेल, हर चीज के दाम बढ़ गए हैं।"
नीता: "और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, स्कूल फीस, ये सब भी लगातार बढ़ रही है। पति की तनख्वाह तो वही है, कैसे गुजारा होगा?"
सुनीता: "मैं तो अब घर का बजट संभालने में परेशान हो गई हूं। हर महीने कुछ न कुछ कटौती करनी पड़ती है।"
नीता: "और ये महंगाई तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। सरकार कुछ क्यों नहीं करती?"
सुनीता: "पता नहीं नीता जी। शायद ये सब बड़ी अर्थव्यवस्था का खेल है। हम आम लोगों का क्या बस सहना ही पड़ता है।"
नीता: "हां, पर हम हार नहीं मान सकतीं सुनीता जी। हमें समझदारी से खर्च करना होगा और हर चीज का सदुपयोग करना होगा।"
सुनीता: "आप सही कह रही हैं नीता जी। हमें मिलकर इस मुश्किल का सामना करना होगा।"
(दोनों महिलाएं एक-दूसरे को सहारा देते हुए दुकान से बाहर निकलती हैं।)
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