माइटोकॉण्ड्रिया की संरचना एवं कार्य: माइटोकॉण्ड्रिया एक झिल्ली-बंधित अंग है जो सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं में पाया जाता है। यह कोशिका का "पावरहाउस" मान
माइटोकॉण्ड्रिया की संरचना एवं कार्य लिखिए
माइटोकॉण्ड्रिया की संरचना (Structure of Mitochondria): माइटोकॉण्ड्रिया एक झिल्ली-बंधित अंग है जो सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं में पाया जाता है। यह कोशिका का "पावरहाउस" माना जाता है क्योंकि यह कोशिका के लिए आवश्यक ऊर्जा का उत्पादन करता है। इनकी संरचना गोलाकार, छड़ीनुमा तथा धागेनुमा होती है। इनकी औसत लम्बाई 0.5 से 8 माइक्रोन और व्यास 0.05 से 0.1 माइक्रोन होता है। सामान्यत: इनकी संख्या एक कोशिका में 50 से 5000 तक हो सकती है। माइक्रोस्टेरीयाज नामक शैवाल की कोशिका में एक एवं कुछ एककोशीय जीवों में 5 लाख तक इनकी संख्या पायी जाती है।
माइटोकॉण्ड्रिया एक दोहरी झिल्ली से परिबद्ध कोशिकांग है। इसकी बाह्यकला सपाट होती है एवं अन्तःकला में कई अंगुली के समान उभार पाये जाते हैं जो क्रिस्टी कहलाते हैं । अन्तःकला एवं बाह्यकला के बीच 6-8 nm की दूरी होती है। दोनों झिल्लियों के बीच पाये जाने वाले स्थान को पेरीमाइटोकॉण्ड्रियल स्पेस कहते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के श्वसन एन्जाइम पाये जाते हैं; जबकि अन्दर की ओर जैल समान, प्रोटीन युक्त व समांगी पदार्थ भरा रहता है जिसे मैट्रिक्स कहते हैं।
माइटोकॉण्ड्रिया में दो मुख्य भाग होते हैं:
- माइटोकॉण्ड्रिअल मैट्रिक्स: यह अंतरंग झिल्ली के भीतर स्थित एक तरल पदार्थ होता है। इसमें कई एंजाइम और अन्य प्रोटीन होते हैं जो ऊर्जा उत्पादन में शामिल होते हैं।
- क्रिस्टी: ये आंतरिक झिल्ली में मौजूद झुर्रियाँ हैं। क्रिस्टी की सतह पर 85 A व्यास के कण 100 A की दूरी पर स्थित होते हैं जिनका आकार टेनिस के रैकेटनुमा होता है, इन्हें प्रारम्भिक कण याऑक्सीसोम (oxysomes) या F, कण कहते हैं। ऑक्सीसोम आधार, वृन्त एवं सिर तीन भागों से मिलकर बनते हैं। ये फॉस्फोलिपिड एवं प्रोटीन से बने होते हैं। ऑक्सीसोम में ATP सिंथेटेस एन्जाइम पाया जाता है जो ऑक्सीकरण एवं फॉस्फाराइलेशन का कार्य करता है।
माइटोकॉण्ड्रिया के कार्य (Functions of mitochondria)
(1)कोशिका का पॉवर हाउस: माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का "पॉवर हाउस" या ऊर्जा घर कहा जाता है। इसमें ऑक्सीश्वसन के दौरान निकलने वाली ऊर्जा एडिनोसीन ट्राइफॉस्फे (ATP) के रूप में संचित रहती है। जब कोशिका को विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है तो यह एडिनोसीन ट्राइफॉस्फेट (ATP), एडिनोसीन डाइफॉस्फेट, फॉस्फेट अणु एवं ऊर्जा में टूट जाता है। एक ATP अणु के टूटने से 7.3 kcal ऊर्जा निकलती है।
(2) क्रेब्स चक्र: ग्लाइकोलाइसिस के बाद ग्लूकोज अणु दो पाइरूविक अणुओं में टूट जाता है जिनका ऑक्सीकरण एक चक्रीय पथ के रूप में मैट्रिक्स में उपस्थित विभिन्न श्वसन एन्जाइमों के द्वारा होता है जिसे क्रेब्स चक्र कहते हैं।
(3) ऑक्सीफॉस्फोरिलेशन: यह क्रिया ऑक्सीसोम कणों में होती है जो माइटोकॉण्ड्रिया की भीतरी झिल्ली पर स्थित होती हैं। इस क्रिया में NADPH2, NADH, एवं FADH, का ऑक्सीकरण होकर ATP का निर्माण होता है।
(4)नाइट्रोजन चयापचय: माइटोकॉण्ड्रिया नाइट्रोजनयुक्त यौगिकों के चयापचय में भी शामिल होते हैं। वे अमोनिया और नाइट्रेट जैसे यौगिकों को अन्य यौगिकों में परिवर्तित करते हैं।
(5) माइटोकॉण्ड्रिाया में डी. एन. ए. की उपस्थिति के कारण स्वःप्रतिकृति (Self replication) की क्षमता पायी जाती है।
(6)माइटोकॉण्ड्रिया, प्रकाशीय श्वसन (Photorespiration) की क्रिया में भाग लेने वाला एक प्रमुख कोशिकांग है।
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